नई दिल्ली: बीड़ी को कैंसर की घटनाओं से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट अविश्वसनीय हैं, और हमारी ‘बेचारी’ बीड़ी को अगर पर्याप्त सरकारी सहायता मिले तो यह वैश्विक बाजार में क्यूबन सिगार के समकक्ष अपना स्थान बना सकती हैं.
ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सहयोगियों और इस उद्योग से जुड़े संगठनों के सदस्यों के द्वारा किये गये कुछ दावे हैं. साथ ही उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि नरेंद्र मोदी सरकार सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों से संबंधित कानून (सिगरेट्स एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट -COTPA) में प्रस्तावित संशोधन के माध्यम से लाखों महिलाओं की आजीविका को खतरे में डाल रही है.
कोटपा को साल 2003 में भारत में सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों के विज्ञापन पर रोक लगाने और उनके व्यापार और वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति एवं वितरण को नियमन प्रदान करने के लिए लागू किया गया था.
इस कानून में एक प्रस्तावित संशोधन विधेयक के माध्यम से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने इसमें एक नया अनुच्छेद जोड़ा है जो सभी लोगों के लिए किसी भी तंबाकू उत्पाद को बेचने अथव इसे वितरित करने के लिए लाइसेंस, अनुमति और पंजीकरण प्राप्त करना अनिवार्य बनाता है.
प्रस्तावित संशोधनों पर अपनी आपत्तियां व्यक्त करने लिए, आरएसएस के दो सहयोगी संगठनों, स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय मजदूर संघ – ने अखिल भारतीय बीड़ी उद्योग महासंघ (एआईबीआईएफ) के साथ मिलकर मंगलवार को राष्ट्रीय राजधानी में एक कार्यक्रम आयोजित किया.
इस कार्यक्रम में केंद्रीय श्रम राज्य मंत्री रामेश्वर तेली, राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी और प्रफुल्ल पटेल के अलावा भारत में क्यूबा के राजदूत एलेजांद्रो सिमंकास मारिन ने भी भाग लिया. इन लोगों ने बीड़ी लॉबी का समर्थन करते हुए कहा कि इस उद्योग से सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों, विशेषकर महिलाओं को व्यापक रोजगार के अवसर मिलते हैं और इसलिए सरकार को इसे अपना संरक्षण देना चाहिए.
कार्यक्रम में किए गए दावे
एआईबीआईएफ के सदस्य अर्जुन खन्ना ने दिप्रिंट को बताया कि उनका उद्योग एक नियमों के अनुपालन वाला उद्योग है, जो सभी तरह के करों का भुगतान करता है और सभी नियमों का पालन करता है.
उन्होंने कहा, ‘हम चाहते हैं कि सरकार बीड़ी को अन्य तंबाकू उत्पादों से अलग करके देखे क्योंकि यह सुदूर ग्रामीण इलाकों में लाखों महिलाओं को सहायता प्रदान करती है. ये महिलाएं बीड़ी बांधने से होने वाली आय से अपने बच्चों को शिक्षित करने में सक्षम हो पाती हैं.’
कार्यक्रम के आयोजकों ने ‘ए स्टडी ऑन द स्टेटस ऑफ अल्टरनेटिव एम्प्लॉयमेंट स्कीम्स फॉर वीमेन बीड़ी रोलर्स (महिला बीड़ी बांधने वालों के लिए वैकल्पिक रोजगार योजनाओं की स्थिति पर एक अध्ययन) शीर्षक से एक रिपोर्ट भी जारी की, जो देश में लाखों बीड़ी बांधने वाली महिलाओं पर कोटपा संशोधन के संभावित प्रभाव को उजागर करना चाहती है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जब तक इन महिलाओं को उनकी आजीविका के लिए बड़े पैमाने पर कौशल प्रशिक्षण और वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तब तक बीड़ी बांधना ही भारत भर में लाखों महिलाओं के लिए एकमात्र करने योग्य व्यवसाय है.
इस बारे में बात करते हुए कि कैसे ये नए नियम बीड़ी की बिक्री में शामिल लोगों को प्रभावित करेंगे, इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तंबाकू उत्पाद ‘ज्यादातर छोटे- छोटे विक्रेताओं और फेरीवालों द्वारा बेचे जाते हैं, जिनके पास तंबाकू उत्पाद बेचने के लिए छोटे पैमाने पर बना सेट-अप होता है’.
इसी कार्यक्रम में बोलते हुए स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक अश्विनी महाजन ने कहा कि ऐसा कोई अध्ययन उपलब्ध नहीं है जिससे पता चलता हो कि बीड़ी से कैंसर हो सकता है. उन्होंने दावा किया कि इस प्रस्तावित संशोधन का मसौदा तैयार करने वाले पैनल में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के विशेषज्ञ भी शामिल थे.
महाजन ने कहा ‘हम सभी ने कोविड महामारी के दौरान पूरी तरह से डब्ल्यूएचओ की पोल खुलते देखी है. हमने देखा कि कैसे यह विदेशी ताकतों के आगे झुकता है. डब्ल्यूएचओ पर विश्वास करने की कोई जरूरत नहीं है.’
भारतीय मजदूर संघ के बी. सुरेंद्रन ने कहा कि डब्ल्यूएचओ ने यह तो दावा किया है कि भारत में सालाना 13 मिलियन (1.3 करोड़) से अधिक लोग तंबाकू के सेवन की वजह से मरते हैं, लेकिन इस वैश्विक स्वास्थ्य संगठन ने इस बारे में ‘पूरा डेटा’ प्रकाशित नहीं किया कि किस राज्य में इससे कितने लोग मरते हैं.
सुरेंद्रन ने यह भी कहा कि सरकार को ‘बीड़ी उद्योग को तब तक नहीं छेड़ना चाहिए जब तक कि उसके पास वैकल्पिक रोजगार के अवसर प्रदान करने की क्षमता न हों’.
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, तंबाकू के सेवन से हर साल लगभग 1.35 मिलियन (1.35 करोड़) लोगों की मौत होती है. इसके दावों के अनुसार, ‘भारत तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और उत्पादक देश भी है. इस देश में विभिन्न प्रकार के तंबाकू उत्पाद बहुत कम कीमतों पर उपलब्ध है.’ इसके साथ ही इसका कहना है कि उपलब्ध डेटा से पता चलता है कि भारत में लगभग 267 मिलियन (2.67 करोड़) वयस्क (15 वर्ष व उससे अधिक),जो इस देश के सभी वयस्कों का 29 प्रतिशत हैं, तंबाकू के उपयोगकर्ता हैं.
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‘ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि बीड़ी लॉबी कमजोर है’
राज्यसभा सांसद और बिहार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा कि सरकार कभी-कभी इस तरह की चिंताओं को नजरअंदाज कर देती है, क्योंकि ‘भारत में बीड़ी लॉबी कमजोर है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘बीड़ी उद्योग ने खुद की उतनी पैरवी नहीं की है. भारत में लॉबिंग (पैरोकारी) को एक बुरा शब्द माना जाता है, लेकिन अमेरिका में लॉबिंग एक संगठित क्षेत्र है.’
उनका कहना था कि, ‘सांसदों के पास हमेशा सारी जानकारी उपलब्ध नहीं होती है. यही वजह है कि कभी-कभी आधी- अधूरी जानकारी के साथ कानून का मसौदा तैयार कर दिया जाता है.’ साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि वह अब तक बहुत सारे कैंसर रोगियों से मिले हैं, परन्तु वह कभी ऐसे किसी व्यक्ति से नहीं मिले, जिसे बीड़ी की वजह से कैंसर हुआ हो – उनमें से सभी सिगरेट ही पीते थे.
भाजपा सांसद ने यह सुझाव भी दिया कि कार्यक्रम के आयोजकों को प्रासंगिक दस्तावेज और जानकारी को एक साथ इकठ्ठा कर के प्रस्तावित संशोधनों पर अपनी आपत्तियों के बारे में सरकार के पास एक संगठित प्रतिनिधि दल भेजना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘असलियत में कोई भी सरकार नहीं चाहेगी कि लोग अपनी नौकरी खो दें.’
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राकांपा सांसद, क्यूबा के राजदूत ने भी किया समर्थन
पहले केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव को इस कार्यक्रम में शामिल होना था, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी ओर से श्रम राज्य मंत्री रामेश्वर तेली को भेजा.
तेली ने कई ऐसी केंद्रीय योजनाओं के नाम गिनाए जो बीड़ी श्रमिकों को उनकी आजीविका सुरक्षित करने में मदद कर सकती हैं, और आयोजकों से इस उद्योग के श्रमिकों को रोजगार प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा लॉन्च किए गए नए ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत करवाने का आग्रह किया.
उन्होंने बीड़ी श्रमिकों की खस्ता हालत को उजागर करने के लिए इस रिपोर्ट के लेखकों को धन्यवाद दिया और साथ ही आयोजकों को यह आश्वासन भी दिया कि उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों से केंद्रीय मंत्री को अवगत कराया जाएगा.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता और राज्यसभा सांसद प्रफुल्ल पटेल ने कहा, ‘अगर क्यूबा को सिगार के लिए जाना जा सकता है, तो हमारे पास बीड़ी उद्योग के लिए उसी तरह का पारिस्थितिकी तंत्र क्यों नहीं हो सकता है?’
भारत में क्यूबा के राजदूत एलेजांद्रो सिमंकास मारिन ने कहा कि भारत के तंबाकू उद्योग की क्यूबा के सिगार उद्योग के साथ काफी समानताएं हैं.
मंच पर से एक सिगार दिखाते हुए, उन्होंने कहा कि क्यूबा के तंबाकू उद्योग से जुड़ी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए उनकी सरकार के समर्थन ने ऐसे ‘उत्कृष्ट उत्पादों’ को बनाने और उन्हें वैश्विक बाजार में एक प्रीमियम उत्पाद में रूप में पेश करने में मदद की.
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