scorecardresearch
Wednesday, 18 December, 2024
होमराजनीतिBJP से मुकाबले के लिए क्षेत्रीय दलों को ‘वैकल्पिक रणनीति’ की जरूरत, लेकिन ममता के विपक्षी गठबंधन से कर रहे परहेज

BJP से मुकाबले के लिए क्षेत्रीय दलों को ‘वैकल्पिक रणनीति’ की जरूरत, लेकिन ममता के विपक्षी गठबंधन से कर रहे परहेज

इस साल मई में पश्चिम बंगाल चुनाव में प्रचंड जीत के बाद से ममता बनर्जी देश के बाकी हिस्सों में तृणमूल कांग्रेस की मौजूदगी दर्ज कराने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं, और इसके लिए कई कदम उठाए भी हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख ममता बनर्जी पूरी सक्रियता के साथ राज्य से बाहर अपनी पार्टी के विस्तार की कोशिशों में लगी हैं और खुद को केंद्र में सत्तासीन भाजपा के खिलाफ एकजुट विपक्ष के प्रमुख चेहरे के तौर पर पेश कर रही हैं.

ममता की पार्टी न केवल गठबंधन करने और पूर्वोत्तर और गोवा में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है, बल्कि कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों के पूर्व सदस्यों को टीएमसी के पाले में लाने की कोशिशें भी जारी हैं.

टीएमसी और खुद को भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकजुटता कायम करने में सक्षम नेतृत्व के तौर पर पेश करने के ममता बनर्जी के प्रयासों के बावजूद कई प्रमुख क्षेत्रीय राजनीतिक दल—जो भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा नहीं हैं—अभी तक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के 2024 के आम चुनावों से पहले विपक्षी एकता के आह्वान पर आगे बढ़ने से हिचकिचा रहे हैं.

ममता बनर्जी के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन के विचार से परहेज करने वाले राजनीतिक दलों में से अधिकांश फिलहाल इस पर कोई टिप्पणी न करने का विकल्प अपना रहे हैं.

चुनाव अभियान या फिर भाजपा-नीत केंद्र सरकार और टीएमसी के बीच गतिरोध के मौकों पर ममता बनर्जी के मुखर समर्थक रहे राष्ट्रीय जनता दल (राजद), समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के वरिष्ठ नेता और पदाधिकारी भी अभी विपक्षी एकजुटता के लिए उनके नेतृत्व को स्वीकार करने के प्रति अनिच्छुक ही नजर आ रहे हैं.

उनकी हिचकिचाहट की एक वजह ये भी है कि उन्हें लगता है कि ममता के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस के शामिल होने की संभावना नहीं है. हालांकि, कुछ लोगों को इस तरह का कोई गठबंधन होने की संभावना पर ही संदेह है. वहीं, कुछ अपने राज्य में पार्टी के साथ गठबंधन में है और कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा और 2024 में भाजपा के खिलाफ एकजुट विपक्ष की उम्मीदों के बीच उलझे हैं.

ममता बनर्जी कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए को खारिज करती रही हैं और पिछले महीने वह संसद के शीत सत्र से पहले कांग्रेस की तरफ से बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक में भी शामिल नहीं हुई थीं.

लेकिन अपनी पहचान न बताने के इच्छुक एक क्षेत्रीय पार्टी के नेता ने कहा, ‘कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनावों में लगभग 20 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था. मुझे नहीं लगता कि उसे इस तरह खारिज किया जा सकता है. कई राज्यों में उनकी मजबूत उपस्थिति है.’


यह भी पढ़ें: मोदी और शाह को किन तीन वजहों से चुनाव में ‘गणित’ और ‘फिजिक्स’ से ज्यादा ‘कमेस्ट्री’ पर भरोसा है


‘विपक्ष एक व्यक्ति पर केंद्रित नहीं होना चाहिए’

राजद प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने रविवार को दिप्रिंट से कहा, ‘मैं समझता हूं कि हम भाजपा को हरा सकें इसके लिए वैकल्पिक तैयारी की जरूरत है. और यह किसी एक व्यक्ति पर केंद्रित नहीं होना चाहिए. हमने देखा है कि व्यक्तित्व आधारित राजनीति (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदर्भ में) ने हमारा क्या हाल किया है.’

उन्होंने कहा, ‘इस तरह का कोई वैकल्पिक प्रोग्राम तैयार करने के लिए आने वाले दिनों में जमीनी स्तर पर बहुत सारा काम करने की जरूरत हैं और इस पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए.’ भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता के बनर्जी के आह्वान पर राजद ने अभी तक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है.

वहीं, सपा ने 2024 के लिए विपक्षी एकजुटता के आह्वान पर पार्टी की चुप्पी एक बड़ी वजह यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को बताया है.

समाजवादी पार्टी की सांसद और प्रवक्ता जूही सिंह ने रविवार को कहा, ‘वह (बनर्जी) हमारी पार्टी की पुरानी सहयोगी हैं. वह विपक्ष की एक बड़ी नेता भी हैं. लेकिन इस समय हम केवल उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.’

बसपा के एक वरिष्ठ नेता की तरफ से भी कुछ इसी तरह का तर्क दिया गया. अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर नेता ने कहा, ‘अभी, हम केवल आगामी चुनावों (उत्तर प्रदेश) पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. इसके बाद ही एकजुट विपक्ष की उनकी (बनर्जी की) अपील पर कोई फैसला कर सकते हैं.’

अन्य दलों का भी कहना है कि उनके नेतृत्व की तरफ से इस मामले पर अभी कोई फैसला नहीं किया गया है.

राज्यसभा डीएमके सदस्य तिरुचि शिवा ने कहा, ‘शीर्ष नेतृत्व ने अभी इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहा है. इसलिए, मेरे स्तर पर इस मामले में कोई टिप्पणी करना उचित नहीं होगा.’

नाम जाहिर न करने की शर्त पर टीडीपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर अभी कुछ नहीं बोलने का फैसला किया है.

वहीं, आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने रविवार को दिप्रिंट से कहा, ‘लोकतंत्र में हर पार्टी को अपने विस्तार का अधिकार है. हमें उनकी (बनर्जी की) रणनीतियों पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए.’

गौरतलब है कि आप भी दिल्ली से बाहर विस्तार की कोशिशों में लगी है और यूपी, गोवा और पंजाब में आगामी चुनावों में पूरी तैयारी के साथ हिस्सा लेने की कवायद में जुटी है.

जुलाई में दिल्ली की यात्रा के दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने संकेत दिया था कि बीजू जनता दल (बीजद) और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) जैसे दलों के एकजुट विपक्ष का हिस्सा बनने के विकल्प खुले हैं. हालांकि, ये दल एनडीए का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन उन्हें भाजपा के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्ते रखने वाला माना जाता है.

बीजद कई मौकों पर भाजपा की तरफ से पेश विधेयकों का समर्थन कर चुका है और भाजपा काफी समय तक वाईएसआरसीपी को अपने पाले में लाने की कोशिशें करती रही है, जिसे वह दक्षिण भारत में एक बेहतरीन संभावित सहयोगी के रूप में देखती है.

बीजद के राज्यसभा सदस्य सुजीत कुमार ने रविवार को दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘हमने अभी इस मामले पर कोई फैसला नहीं लिया है. हम वही करेंगे जो राज्य (ओडिशा) के लिए सबसे अच्छा होगा.’

वाईएसआरसीपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘हमें इस मुद्दे पर तभी टिप्पणी करनी चाहिए जब शीर्ष नेतृत्व इस पर कुछ तय करे. लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है.’


यह भी पढ़ें: ओवैसी बोले- पहले जो BJP करती थी अब उसकी हूबहू नकल ‘सो-कॉल्ड धर्मनिरपेक्ष’ पार्टियां कर रही हैं


कांग्रेस के साथ बदलते समीकरण

ममता बनर्जी ने इस साल मई में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में पार्टी की शानदार जीत के बाद ही विपक्षी ताकतों को एकजुट करने और बंगाल से बाहर टीएमसी के विस्तार के प्रयास तेज कर दिए थे.

जुलाई में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कांग्रेस नेता सोनिया और राहुल गांधी सहित विपक्षी दलों के कई नेताओं से मिलने के लिए दिल्ली का दौरा किया. चार महीने बाद नवंबर में दिल्ली की एक और यात्रा के दौरान बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कई विपक्षी नेताओं से मुलाकात की, लेकिन कांग्रेस के दोनों शीर्ष नेताओं से नहीं मिलीं.

इस यात्रा के दौरान ही मेघालय में कांग्रेस के 12 विधायक टीएमसी में शामिल हो गए, जिससे दोनों दलों के बीच कड़वाहट बढ़ गई. बनर्जी ने कांग्रेस नेता कीर्ति आजाद और अशोक तंवर का भी पार्टी में आने पर स्वागत किया.

इसके बाद अभी पिछले हफ्ते मुंबई में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार के साथ बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान ममता ने कहा, ‘यूपीए क्या है? अब कोई यूपीए नहीं है.’ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने पिछले हफ्ते अपनी मुंबई यात्रा के दौरान शिवसेना नेताओं आदित्य ठाकरे और संजय राउत से भी मुलाकात की थी.

पवार के साथ बैठक के बारे में जानकारी रखने वाली एक पार्टी के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि ममता ने उनसे भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष को खड़ा करने में मदद मांगी, जिसमें वह खुद को विपक्ष के चेहरे के तौर पर आगे रखना चाहती हैं.

शिवसेना के मुखपत्र सामना में अपने साप्ताहिक कॉलम में राज्यसभा सांसद राउत लिखते हैं कि ममता कांग्रेस के बिना एक भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने की इच्छा रखती हैं.

उन्होंने आगे कहा कि टीएमसी महाराष्ट्र की राजनीति में उतरने पर विचार नहीं कर रही, क्योंकि शिवसेना और एनसीपी इस राज्य में भाजपा के खिलाफ एक प्रभावी ताकत के तौर पर खड़ी हैं. उन्होंने लिखा, ‘ऐसा लगता है कि वह कांग्रेस को छोड़कर कुछ नया करने की सोच रही हैं.’ हालांकि, उन्होंने बनर्जी की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को लेकर अपनी पार्टी के रुख के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं बताया.

इससे पहले, एनसीपी नेता नवाब मलिक ने कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता की संभावना से इनकार करते हुए कहा था कि टीएमसी और कांग्रेस के बीच मतभेदों को अंततः सुलझा लिया जाएगा. सामना में एक संपादकीय में ममता बनर्जी की ‘नो यूपीए’ वाली टिप्पणी की भी आलोचना की गई थी.

राज्य में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार में कांग्रेस का शिवसेना और एनसीपी के साथ गठबंधन है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: गठबंधन, ममता के साथ भारतीय राजनीति में फिर लौट आया है 90 का दशक, लेकिन ये केवल एक नक़ल है


 

share & View comments