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Saturday, 23 November, 2024
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गहलोत को हटाने की राजस्थान बीजेपी की लड़ाई से क्यों गायब हैं राज्यवर्धन सिंह राठौड़

जयपुर (ग्रामीण) सांसद राठौड़ पिछले साल से राजनीतिक वनवास में हैं, जब केंद्रीय मंत्रिमंडल में उनकी वापसी नहीं हुई थी. वो अपने चुनाव क्षेत्र में काम करते हैं, लेकिन प्रदेश संगठन में उनका कोई दख़ल नहीं है.

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नई दिल्ली: पिछले कुछ हफ्ते से राजस्थान के सभी बीजेपी नेता अशोक गहलोत सरकार को ‘हटाने के लिए काम कर रहे हैं’, चाहे वो प्रदेश इकाई के अध्यक्ष सतीश पूनिया हों या वरिष्ठ नेता गुलाब चंद कटारिया. लेकिन एक चेहरा जो इस पूरी लड़ाई के बीच से ग़ायब है. वो हैं किसी समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चहेते रहे राज्यवर्धन सिंह राठौड़.

जयपुर ग्रामीण से लोकसभा सांसद, जो मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) थे, राजनीतिक वनवास झेल रहे हैं, जबसे 2019 में उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया था.

बीजेपी सूत्रों ने बताया कि न तो अब वो राजस्थान में पार्टी का काम देख रहे हैं और ना ही राजपूताना स्टेट में शाही तख़्तापलट के लिए विधायकों को सांभाल रहे हैं.

सूत्रों ने बताया कि इस जोखिम भरी राजनीतिक मुहिम की कमान राज्य में पूनिया, कटारिया और अरुण चतुर्वेदी के हाथों में है, जबकि केंद्र में ये काम जल संसाधन मंत्री गजेंद्र शेखावत और पार्टी उपाध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर देख रहे हैं.

ओलम्पिक सिल्वर मेडल विजेता राठौड़ को राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के वारिस के तौर पर तैयार किया गया था. लेकिन अब वो बस दिल्ली और जयपुर के बीच घूमते रहते हैं, जहां वो अपने चुनाव क्षेत्र के लिए काम करते हैं.

जहां तक संगठन के मामलों में भूमिका का सवाल है, तो अपने उत्साह और अंग्रेज़ी व राजस्थानी दोनों पर पकड़ और मंत्री के नाते अपने प्रदर्शन के बावजूद वो न तो प्रदेश के कोर ग्रुप में हैं, जिसमें राज्य इकाई के शीर्ष नेता होते हैं और ना ही पार्टी के बड़े संगठन में हैं. वो बीजेपी की किसी केंद्रीय टीम में भी नहीं हैं.

बहुत से बीजेपी नेता जिनसे दिप्रिंट ने बात की उन्होंने कहा कि उन्हें कुछ पता नहीं कि राठौड़ को 2019 में क्यों हटाया गया और उनसे कृपा दृष्टि क्यों हट गई.

एक पार्टी नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘उनके अलग थलग पड़ने का कारण वही है, जो उन्हें कैबिनेट से निकालने का था. प्रधानमंत्री कार्यालय हर मंत्री के आचरण पर नज़र रखता है. 2019 में कुछ को उनके काम के आधार पर निकाला गया और कुछ को केवल राजनीतिक कारणों से बाहर करना पड़ा. कुछ को वित्तीय घपलों और दूसरे आरोपों के चलते निकाला गया. एक को सिर्फ इसलिए हटा गया कि परिजन उसके प्रभाव का दुरुपयोग कर रहे थे.’

लेकिन एक सांसद ने, नाम न बताने की शर्त पर कहा कि राठौड़ के इस सारे राजनीतिक एक्शन से ग़ायब रहने का कारण ये है कि फैसले लेने वाले दो शीर्ष नेता अब उनपर मेहरबान नहीं हैं. उनका इशारा पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की तरफ था.


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दिप्रिंट ने टेक्स्ट मैसेज के ज़रिए राठौड़ से संपर्क का प्रयास किया लेकिन इस रिपोर्ट के छपने तक उनका कोई जवाब नहीं आया था.

केंद्रीय कैबिनेट से बाहर

पिछले साल सीट भारी अंतर से अपनी सीट जीतने के बाद भी राज्यवर्धन राठौड़ को मंत्रीमंडल से बाहर कर दिया गया. उस समय ये सोचा गया था कि जून 2019 में, तब के प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष मदन लाल सैनी की मौत के बाद, पार्टी अध्यक्ष उन्हें प्रदेश इकाई का ज़िम्मा दे सकते हैं.

इसका आधार ये माना जाता था कि सूचना-प्रसारण मंत्री के उनके कार्यकाल के दौरान, पीएम ने राठौड़ की ओर थोड़ा झुकाव दिखाया था.

सरकार के पहले कार्यकाल में तीन मंत्रियों- अरुण जेटली, एम वेंकैया नायडू और स्मृति ईरानी- ने आईएंडबी का चार्ज संभाला, लेकिन बाद में उन्हें हटा दिया गया. राठौड़ को, जो उन तीनों के आधीन राज्य मंत्री थे, ईरानी के जाने के बाद, ये विभाग दे दिया गया. वो अकेले मंत्री थे जिनके पास ये विभाग रहा और उन्हें बनाए रखा गया.

इससे पहले, टोक्यो ओलम्पिक आने से पहले उन्हें खेल मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी मिल गया. ख़ासकर रियो ओलम्पिक में भारत का ख़राब प्रदर्शन देखते हुए किसी खिलाड़ी को इस पद पर बिठाने को मोदी का एक सबसे अच्छा फैसला क़रार दिया गया.

लेकिन, जब सरकार दोबारा चुनकर आई, तो राठौड़ ने अचानक ख़ुद को कैबिनेट से बाहर पाया.

राजस्थान बीजेपी की सियासत

उन्हें केंद्र से हटाए जाने के बाद सतीश पूनिया, जो एक हल्क़े क़द के प्रदेश इकाई महासचिव थे, सितम्बर 2019 में बीजेपी के राजस्थान प्रमुख बना दिए गए.

राजस्थान के एक सीनियर लीडर ने कहा कि वसुंधरा राजे ने 2018 में प्रदेश बीजेपी के पद पर गजेंद्र सिंह शेखावत की नियुक्ति का इस आधार पर विरोध किया था, इससे जाट नाराज़ हो जाएंगे क्योंकि शेखावत राजपूत समुदाय से आते हैं. बाद में दिसम्बर 2018 में हुए प्रदेश विधान सभा चुनावों में, बीजेपी को कुछ जाट बहुल सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा.

उस लीडर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘तो, जून 2019 में मदन लाल सैनी की मौत के बाद केंद्र ने जातीय समीकरण को संतुलित करने के लिए, एक जाट को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया, क्योंकि कैबिनेट में गजेंद्रसिंह शेखावत राजपूत समुदाय और अर्जुन राम मेघवाल अनुसूचित जातियों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला प्रभावशाली मारवाड़ी समुदायों के नुमाइंदे हैं. पूनिया एक जाट हैं.

लेकिन, पहले हवाला दिए गए नेता ने कहा, कि राठौड़ के पतन का कारण वही है, जिसकी वजह से पीएम ने उन्हें बाहर किया था. उन्होंने कहा, ‘पीएम हर मंत्री के आचरण पर नज़र रखते हैं. अगर उन्हें मंत्री के खिलाफ कुछ लगता है, तो वो उसे तुरंत बाहर नहीं करते बल्कि किसी फेर-बदल का इंतज़ार करते हैं. वो मीडिया में अनावश्यक सुर्ख़ियां नहीं चाहते.’

नेता ने आगे कहा, ‘उन्हें बाहर करके पीएम ने संदेश दिया कि ये उनके काम करने का अंदाज़ था. लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं कि उनका वनवास स्थाई रहे. समय की सियासी ज़रूरत के हिसाब से उनकी फिर से पूछ हो जाएगी.’

अब चुनाव क्षेत्र पर ध्यान

सूत्रों ने बताया कि केंद्रीय सरकार से रुख़्सती के बाद से राज्यवर्धन राठौड़ मुख्य रूप से अपने चुनाव क्षेत्र में ही सक्रिय रहे हैं. प्रवासी संकट के दौरान वो खाना और कोविड-19 महामारी के दौरान मास्क व सौनिटाइज़र्स वितरित करवाने में शामिल रहे हैं. पिछले महीने जब राजस्थान पर टिड्डियों का हमला हुआ, तो उन्होंने ज़िला कलेक्टरों और दूसरे अधिकारियों के साथ बैठकें भी कीं.

ऊपर हवाला दिए गए सीनियर स्टेट लीडर ने कहा, ‘लेकिन वो राज्य में पार्टी की रणनीतिक बैठकों में शामिल नहीं हैं, इसलिए उनका काम अपने चुनाव क्षेत्र पर ही केंद्रित है. अच्छा वक्ता होने के बावजूद, वो टीवी चर्चाओं से बचते हैं.’

इस हफ्ते के शुरू में उन्होंने केंद्र सरकार का एक साल पूरा होने पर एक महीने के संगठन कार्यक्रमों और सांसद के नाते आत्म-निर्भर भारत पैकेज के कार्यान्वयन के अपने काम को लेकर जयपुर में एक प्रेस कॉनफ्रेंस आयोजित की.

लोकसभा में उनके साथी और मोदी सरकार में पूर्व राज्य मंत्री, निहाल चंद ने कहा कि राठौड़ काफी हद तक अपने चुनाव क्षेत्र में लगे रहते हैं.

चंद ने कहा, ‘इस महामारी के दौरान उन्होंने ज़बर्दस्त काम किया है. जिसकी सराहना भी हुई. उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र की हर विधान सभा सीट का दौरा किया और सहायता के लिए हमेशा मौजूद रहे.’


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ऊपर हवाला दिए गए सांसद ने कहा, ‘उनकी कम भागीदारी का एक कारण ये भी है कि वो स्वभाव से इंट्रोवर्ट हैं और विधायकों से बात करने में झिझकते हैं. पार्टी वालों के साथ उनकी बातचीत कम ही रहती है. वो दूसरे नेताओं जैसे सोशल नहीं हैं, इसलिए विधायक भी उनसे दूरी रखते हैं.’

इस महीने के शुरू में जब राजस्थान कांग्रेस में बग़ावत फूटी, तो राठौड़ ने ट्वीट किया कि विपक्ष के राज में सत्य की जीत होगी. उन्होंने कांग्रेस विधायक सचिन पायलट को टैग किया, जो बाग़ी ख़ेमे की अगुवाई कर रहे हैं.

लेकिन, इस महीने उनकी एक और ट्वीट में जो बॉलीवुड स्टार अमिताभ बच्चन के कोविड से उबरने की कामना में की गई थी, उनके अपने राजनीतिक करियर पर भी एक गुप्त संदेश है.

‘मैं पलट कर आउंगा, शाख़ों पर ख़ुशबू लेकर, अभी पतझड़ की ज़द में हूं, मौसम ज़रा बदलने दो…’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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