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Thursday, 18 April, 2024
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विश्वासमत साबित करने की तरफ गहलोत के बढ़ते कदम से राजस्थान में भाजपा और पायलट के पास कम समय बचा है

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शक्ति परीक्षण सुनिश्चित करने के लिए विधानसभा का एक अल्पकालिक सत्र बुलाने की संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं. एक बार विश्वासमत हासिल करने पर उनकी सरकार को छह माह के लिए अभयदान मिल जाएगा.

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नई दिल्ली: राजस्थान में पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और 19 अन्य असंतुष्ट कांग्रेस विधायकों को भेजे गए अयोग्यता संबंधी नोटिस पर राज्य विधानसभा अध्यक्ष का फैसला आने में सिर्फ दो दिन बचे होने के साथ ऐसा नहीं लगता कि भाजपा के पास अशोक गहलोत की सरकार को गिराने के लिए बहुत ज्यादा समय बचा है.

दलबदल विरोधी कानून के तहत जारी नोटिस के खिलाफ 19 विधायकों ने राजस्थान उच्च न्यायालय का रुख किया था. इस पर शुक्रवार को अदालत ने स्पीकर की समयसीमा मंगलवार शाम तक बढ़ा दी थी. हालांकि, इस मामले में आगे की अदालती कार्यवाही सोमवार को जारी रहेगी.

इस सबके बीच, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत शक्ति परीक्षण सुनिश्चित करने के लिए विधानसभा का एक अल्पकालिक सत्र बुलाने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं, उनके खेमे के एक विधायक ने दिप्रिंट को यह जानकारी दी. विश्वासमत में सफल रहने पर उनकी सरकार को छह महीने का अभयदान मिल जाएगा क्योंकि संविधान छह महीने के भीतर किसी अन्य शक्ति परीक्षण की इजाजत नहीं देता है.

गहलोत ने शनिवार शाम राज्यपाल कलराज मिश्र के साथ करीब 45 मिनट तक चली मुलाकात के दौरान उन विधायकों की सूची सौंपी जिनके समर्थन का वह दावा कर रहे हैं. मुख्यमंत्री 200 सदस्यीय विधानसभा में 101 विधायकों का समर्थन हासिल होने का दावा कर रहे हैं.

विधायक ने कहा, ‘मुख्यमंत्री इस संकट को ज्यादा लंबा नहीं खींचना चाहते हैं क्योंकि लंबे समय तक खींचतान की स्थिति में पायलट और भाजपा आंकड़े जुटाने में सक्षम हो सकते हैं. वे पहले से ही अपनी तरफ से ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और आईटी (आयकर) विभाग के जरिये विधायकों पर दबाव बनाने जैसे हरसंभव प्रयास कर रहे हैं. यदि पायलट और अन्य विधायक उच्च न्यायालय में बच जाते हैं तो उन्हें अयोग्य घोषित करना ही एकमात्र विकल्प बचेगा.’

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विधायक ने कहा कि यदि अगले कुछ दिन में विधानसभा सत्र बुलाया जाता है, तो असंतुष्ट कांग्रेस विधायकों को जयपुर लौटना होगा या फिर पार्टी व्हिप के उल्लंघन में दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य ठहराने की कार्यवाही का सामना करना होगा.

गहलोत खेमे के विधायक ने कहा, ‘चार से पांच और विधायकों को मुख्यमंत्री के साथ लाना आसान ही होगा क्योंकि वे अपनी सदस्यता बचाने के इच्छुक होंगे. लेकिन अभी उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है क्योंकि उन्हें एक होटल में बंधक बनाकर रखा जा रहा है. एक बार जब जयपुर पहुंच जाएंगे तो फिर उन तक पहुंचना आसान हो जाएगा.’


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‘भाजपा को पता है समय बीत रहा’

मौजूदा स्थिति को देखते हुए भाजपा को अच्छी तरह पता है कि पायलट और उनके असंतुष्ट विधायकों के पास कोई विकल्प नहीं है.

राज्य के एक भाजपा नेता ने कहा, ‘अब भी एक मौका है लेकिन शर्त यह है कि भले ही गहलोत विधानसभा सत्र बुलाएं लेकिन पायलट स्पीकर द्वारा अयोग्य घोषित न किए जा सकें. एक बार विधायकों के होटल से बाहर आने के बाद सदन में चौंकाने वाली चीजें सामने आ सकती हैं. हमने विधानसभा में कई बार अप्रत्याशित घटते देखा है, लेकिन ऐसा कुछ हो इसके लिए अध्यक्ष का निर्णय टालने की आवश्यकता है. लेकिन राजनीति में हर क्षण मायने रखता है इसलिए कौन जाने कि ऐसी अस्थिर स्थिति में कल क्या होगा.’

यदि पायलट और उनके विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया जाता है तो सदन में कुल आंकड़ा 181 पर पहुंच जाएगा जिसमें साधारण बहुमत के लिए 91 का ही आंकड़ा पार करना होगा. ऐसे में संभवतः कांग्रेस सरकार के लिए बहुमत साबित करना आसान हो जाएगा.

हालांकि, भाजपा के एक वर्ग का मानना है कि गहलोत शक्ति परीक्षण को लेकर काफी सजग हैं क्योंकि वह अपने संख्याबल को लेकर असमंजस में हैं.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘अगर गहलोतजी अपने संख्याबल को लेकर इतने ही आश्वस्त हैं तो विधानसभा सत्र क्यों नहीं बुला रहे हैं. अगर उन्हें लगता है कि पायलट के पास संख्याबल नहीं हैं, तो उन्हें विधानसभा सत्र बुलाना चाहिए और अपना बहुमत साबित करना चाहिए और असंतुष्टों को अयोग्य घोषित करना चाहिए. वह विश्वासमत क्यों नहीं ला रहे?’

भाजपा की अगली रणनीति अब अगले दो से तीन दिनों में और कांग्रेस विधायकों को अपने खेमे में लाने की पायलट की क्षमता पर निर्भर करेगी. पार्टी यह उम्मीद भी लगाए बैठी है कि अदालती लड़ाई पूर्व उपमुख्यमंत्री को विधायकों को तोड़ने के लिए और समय मुहैया करा देगी.

भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी ने कहा, ‘जब अदालत में सुनवाई जारी है तो अध्यक्ष अयोग्यता नोटिस पर फैसला नहीं ले सकते हैं.’ साथ ही कहा कि भाजपा राज्य में विभिन्न परिस्थितियों पर नज़र रखे हुए हैं.

चतुर्वेदी ने कहा, ‘एक परिदृश्य यह है कि अदालत स्पीकर को कुछ दिनों के लिए कोई निर्णय लेने से रोक सकती है. दूसरा परिदृश्य यह है कि यदि स्पीकर जल्दबाजी में निर्णय लेते हैं, तो विधायक स्टे पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं, जबकि तीसरी संभावना यह है कि गहलोत विधानसभा सत्र बुलाएं और सदन में अपना बहुमत साबित करें. लेकिन यह पायलट की लड़ाई है न कि भाजपा की.’

भाजपा के एक अन्य नेता ने कहा, ‘दोनों खेमे दिन-रात विधायकों को लुभाने में लगे हैं लेकिन इसका कोई अंदाजा नहीं है कि आगे क्या होगा. कोई आश्वस्त नहीं है. गहलोत खेमा अभी बढ़त हासिल किए हुए है लेकिन गतिरोध जारी रहा तो ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है.’


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बसपा का विलय

गहलोत सरकार का विरोध करने वालों के पास एक और विकल्प है कि बसपा के छह विधायकों के कांग्रेस में विलय को चुनौती दें. छह विधायकों ने सितंबर 2019 में सत्तारूढ़ दल के साथ विलय कर लिया था.

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, बसपा प्रमुख मायावती गहलोत सरकार के शक्ति परीक्षण की स्थिति में छह विधायकों को वोट डालने से रोकने के लिए कानूनी चुनौती की ओर बढ़ रही हैं. उन्होंने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग भी की है.

उन्होंने 16 जुलाई को कहा था, ‘अशोक गहलोत ने खुले तौर पर दलबदल विरोधी कानून का उल्लंघन किया है और विधायकों के मामले में बसपा के साथ धोखा किया है. अब वह राजनेताओं के फोन टैप करा रहे हैं. राज्यपाल को इस सारी राजनीतिक अस्थिरता पर संज्ञान लेना चाहिए और राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करनी चाहिए.’

अब तक मुख्यमंत्री सारे पत्ते सही खेलते आ रहे हैं. उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपनी ताकत दिखाने के लिए पिछले मंगलवार को विधायक दल के नेताओं की एक बैठक बुलाई थी. उन्होंने ‘अपनी सरकार के खिलाफ साजिश’ का खुलासा करने के लिए एक विशेष जांच भी शुरू कर दी है, जो कांग्रेस सरकार को भाजपा नेताओं और पायलट खेमे पर दबाव बनाने का मौका देती है.

शनिवार को गहलोत ने भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के दो विधायकों- राजकुमार रोत और राम प्रसाद डिंडोर का समर्थन हासिल कर लिया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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