scorecardresearch
Wednesday, 20 November, 2024
होमराजनीति‘टाइगर अभी ज़िंदा है’ पर सिंधिया को अपनी नई पनाहगाह में अपनी जमीन बचाने के लिए जंग लड़नी पड़ेगी

‘टाइगर अभी ज़िंदा है’ पर सिंधिया को अपनी नई पनाहगाह में अपनी जमीन बचाने के लिए जंग लड़नी पड़ेगी

मोदी और शाह द्वारा शिवराज सिंह चौहान को दरकिनार किया जाना सिंधिया को मप्र में भाजपा का वैकल्पिक चेहरा नहीं बनाता है. वंशवाद भी उनकी संभावनाएं क्षीण करता है.

Text Size:

नई दिल्ली : मध्यप्रदेश की राजनीति के ‘मामा’ और ‘महाराज’-शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया-की दो टिप्पणियों ने दिल्ली के सियासी गलियारों में अफवाहों का बाजार गर्म कर दिया है.

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री क्या संदेश देना चाहते थे, जब उन्होंने खुद को भगवान शिव के रूप में चित्रित किया, जिन्होंने समुद्र मंथन से निकला विष या जहर निगल लिया था- चौहान के मामले में कैबिनेट विस्तार? क्या यह टीम चुनने में निर्णायक पक्ष न होने की बेबसी की अभिव्यक्ति थी? या, यह अवहेलना और दुस्साहस का प्रदर्शन था? आखिरकार, भगवान शिव ने जहर गले से नीचे नहीं जाने दिया- पुराणों के मुताबिक उनकी पत्नी पार्वती ने उसे वहीं रोक दिया था- उसे अपने शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाने दिया था.

इसलिए इस टिप्पणी को चौहान के इस संदेश का परिचायक भी माना जा सकता है कि उन्हें विषपान करना पड़ा है, लेकिन उन्हें चुका हुआ न माना जाए.

सिंधिया की ‘टाइगर अभी जिंदा है’ टिप्पणी को लेकर भी राजनेताओं के बीच अलग-अलग तरह से व्याख्या की जा रही है. भाजपा सांसद ने राजनीति के अखाड़े में अपनी वापसी का संकेत 2017 में आई सलमान खान-कैटरीना कैफ स्टारर फिल्म के नाम के जरिये दिया. चौहान के 33 सदस्यीय मंत्रिपरिषद में 12 मुख्यमंत्री समर्थकों के मुकाबले अपने 14 वफादारों के जरिये प्रभावशाली स्थिति में आने के बाद महाराज दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, जिन्होंने अपनी सरकार में उन्हें दरकिनार रखा और दिग्विजय सिंह, जिन्होंने मुख्यमंत्री पद के उनके सपने को ग्रहण लगा दिया के सामने अपनी नाक ऊंची होना दर्शा रहे थे.

संदेशों के निहितार्थ

कांग्रेस में सिंधिया के पूर्व सहयोगी इस टिप्पणी के राजनीतिक निहितार्थ पढ़ने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं. क्या वह अपने पूर्व मित्र राहुल गांधी को एक अलग संदेश भेजने की कोशिश कर रहे थे?

टाइगर जिंदा है में ‘टाइगर’ एक भारतीय जासूस (सलमान खान) था जिसने पाकिस्तानी जासूस, एक दुश्मन के प्यार में पड़कर अपनी खुफिया एजेंसी और देश छोड़ दिया था. हालांकि, वह अपने देश और एजेंसी के प्रति वफादार रहा. वह हमेशा एजेंसी के लिए अपने ठिकाने के सुराग छोड़ता रहा. इसीलिए, जब इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने इराक में भारतीय नर्सों का अपहरण कर लिया, तो वह उन्हें बचाने में मदद के लिए एजेंसी के साथ आ गया.

सिंधिया के संदर्भ में ‘टाइगर’ ने शायद एजेंसी (कांग्रेस) तो छोड़ दी. लेकिन उसे बचाने में मदद के लिए हमेशा तैयार रहेगा- उनके पूर्व सहयोगियों की राय कुछ ऐसी है. संयोग से, सिंधिया की इस टिप्पणी से एक दिन पहले ही राहुल गांधी ने चार नर्सों के साथ वीडियो चर्चा की थी, जिसमें तीन विदेश में कार्यरत थीं.

निश्चित तौर पर सिंधिया भी इन व्याख्याओं पर अचरज करेंगे. वह राज्यसभा सांसद हैं और जब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करेंगे उनको कैबिनेट मंत्री बनाया जाना लगभग तय है. प्रतिभाओं का खासा अभाव झेल रही सरकार, जिसमें मंत्री आकर्षक स्लोगन के जरिये प्रधानमंत्री को प्रभावित करने की कोशिश करते रहते है. मसलन आईटी और संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद का हालिया ‘डिजिटल स्ट्राइक’ में हार्वर्ड और स्टैनफोर्ड से पढ़े सिंधिया चमकते सितारे की तरह उभरने की क्षमता रखते हैं.

मुख्यमंत्री पद का सवाल

भाजपा आलाकमान भी लगातार शिवराज सिंह चौहान की लगातार अनदेखी और एक नए नेता को आगे लाने के अपने इरादे के संकेत दे रहा है. सिंधिया की मदद से कमलनाथ की सरकार गिराने में सफल रहने के बाद चौहान ने मुख्यमंत्री की कुर्सी भले ही हासिल कर ली हो. लेकिन इससे उन्हें भाजपा आलाकमान का विश्वास हासिल करने में सफलता नहीं मिली है.

कांग्रेस के गांधी परिवार की तरह, मोदी और गृह मंत्री अमित शाह लगातार राज्यों में भाजपा के बड़े नेताओं के पर कतरते रहे हैं- मध्यप्रदेश में चौहान, कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा, राजस्थान में वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह आदि ऐसे ही कुछ नाम हैं. सिंधिया को इससे खुश होने के साथ-साथ सावधान भी रहना चाहिए. मोदी और शाह द्वारा चौहान की अनदेखी यह नहीं दर्शाती है कि सिंधिया मप्र में भाजपा का वैकल्पिक चेहरा बन जाएंगे. वास्तव में, मोदी-शाह की पसंद चौहान विरोधी नरोत्तम मिश्रा हो सकते हैं, जिन्हें गृह और स्वास्थ्य विभाग दिए गए हैं.


यह भी पढ़ें : कैसे अमित शाह ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को रबर स्टैम्प में बदल दिया है


सिंधिया के करीबी एक कांग्रेसी नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह सब इतना आसान भी नहीं है. कांग्रेस में तो उन्हें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के बाद हमेशा स्वाभाविक तौर पर नंबर 3 के रूप में देखा जाता था. भाजपा में तो वह शायद अग्रिम पंक्ति में भी जगह न बना पाएं.’

पार्टी के कई नेता इस तर्क से भी सहमति नहीं जताते कि पारिवारिक पृष्ठभूमि -उनकी दादी विजयाराजे सिंधिया, ग्वालियर की ‘राजमाता’ थीं और भाजपा के राजनीतिक पूर्ववर्ती जनसंघ की दिग्गज नेता थी- के कारण वह भाजपा कार्यकर्ताओं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को स्वीकार्य होंगे.

मध्यप्रदेश के एक वरिष्ठ कांग्रेस पदाधिकारी ने कहा, वो समय एकदम अलग था. विजयाराजे सिंधिया ने डीपी मिश्रा की सरकार गिराने के लिए कांग्रेस छोड़ी थी, ऐसा ही उनके पोते ने 52 साल बाद कमलनाथ सरकार में किया.

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘जनसंघ के पास तब अपने ब्रांड एंबेसडर के तौर पर उनके कद का कोई नेता नहीं था. उनकी तुलना में संघ को उनकी ज्यादा जरूरत थी. मोदी की भाजपा को अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए सिंधिया की जरूरत नहीं है, हो सकता है कि उन्हें अस्थायी कारण से शामिल किया गया हो.

उक्त नेता ने एक और आकलन साझा किया कि भाजपा नहीं चाहती कि उसे परिवारवार बढ़ाने वाली पार्टी के तौर पर देखा जाए. ‘क्या आपको लगता है कि भाजपा आलाकमान मध्यप्रदेश में कोई ऐसा चेहरा लाएगा, जिसके खिलाफ पार्टी कार्यकर्ता सालों से लड़ रहे हैं? और क्या आपको लगता है कि चौहान इतनी आसानी से हार मान लेंगे?’

लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि मप्र में अपनी सरकार गिरने को लेकर कांग्रेस नेताओं में सिंधिया के प्रति नाराजगी है, शायद यही वजह है कि वह सिंधिया और चौहान की मात्र एक-एक पंक्ति की टिप्पणियों के निहितार्थ निकालने में इतना समय जाया कर रहे हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

share & View comments