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Friday, 29 March, 2024
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कैसे अमित शाह ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को रबर स्टैम्प में बदल दिया है

संगठन से संबंधित मामलों में भी नड्डा की अधिक पूछ नहीं है. वह अपने एक वफादार हिमाचल भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी नहीं बचा पाए और न ही वह अपने एक अन्य विश्वस्त को दिल्ली में पार्टी प्रमुख की कुर्सी दिला सके.

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नई दिल्ली: असम के स्वास्थ्य मंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के बुधवार शाम के दो ट्वीटों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में पहले से ही सबको मालूम बात को जगजाहिर कर दिया कि जेपी नड्डा केवल रस्मी उद्देश्यों के लिए भाजपा अध्यक्ष हैं और गृह मंत्री अमित शाह कृष्ण मेनन मार्ग स्थित अपने आवास से पार्टी का संचालन करते हैं.

पूर्वोत्तर में भाजपा के मुख्य प्रतिनिधि सरमा नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के उन चार मंत्रियों के साथ दिल्ली में थे, जिनके इस्तीफों के कारण मणिपुर में भाजपा नीत सरकार के गिरने का संकट बन गया था. बुधवार की शाम, उन्होंने 45 मिनट के अंतराल में दो ट्वीट पोस्ट किए थे. पहला, एनपीपी नेताओं की अमित शाह से मुलाकात के बाद मणिपुर में राजनीतिक संकट खत्म होने के बारे में था, जबकि दूसरा ट्वीट नड्डा से मुलाकात के बाद पहले वाले का ही रीट्वीट था.

मानो वह भाजपा के संकट के समाधान का श्रेय सार्वजनिक रूप से गृह मंत्री को देने की बात में सुधार करना चाहते हों, सरमा ने इस विषय में तीसरी बार ट्वीट करते हुए एनपीपी शिष्टमंडल से नड्डा की मुलाकात की तस्वीर पोस्ट की. वैसे देखा जाए तो असम के मंत्री राजनीतिक मर्यादा को लेकर नाहक परेशान थे. उनके पार्टी सहयोगियों की मानें तो पांच महीने पहले भाजपा अध्यक्ष बनने वाले नड्डा ने रबर स्टाम्प बनना स्वीकार कर लिया है.

उनको आश्चर्य सिर्फ इस बात पर है कि नड्डा राज्यों में अपनी पसंद का भाजपा अध्यक्ष चुनने में या अपने गृह राज्य हिमाचल प्रदेश तक में अपने वफादारों को संरक्षण देने में विफल रहे हैं.


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नियुक्तियां और बदलाव

हिमाचल प्रदेश में नड्डा के निकट सहयोगी और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के प्रतिद्वंदी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राजीव बिंदल को कथित पीपीई किट घोटाले के कारण पिछले महीने इस्तीफा देना पड़ा था. माना जाता है कि ठाकुर ने बिंदल के इस्तीफे पर शाह का समर्थन हासिल कर लिया था क्योंकि घोटाले के सिलसिले में गिरफ्तार एक अधिकारी को बिंदल का करीबी बताया जा रहा था.

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स्वास्थ्य मंत्रालय की कमान खुद मुख्यमंत्री के हाथ में थी लेकिन कीमत चुकानी पड़ी पूर्व मंत्री और प्रदेश भाजपा प्रमुख को.

पिछले दिनों दिल्ली भाजपा प्रमुख की नियुक्ति में भी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की नहीं चली. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार नड्डा राष्ट्रीय राजधानी में पार्टी प्रमुख के रूप में मनोज तिवारी की जगह आशीष सूद को लाना चाह रहे थे. सूद और नड्डा का साथ बहुत पुराना है. 1980 के दशक में नड्डा के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) का संगठन सचिव रहने के दौरान सूद संगठन में उनके साथ काम कर चुके हैं.

पार्टी पदाधिकारियों के अनुसार दिल्ली मामलों से जुड़े नड्डा के कुछ कनिष्ठ सहयोगियों ने उनको नजरअंदाज़ करते हुए दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए अमित शाह से आदेश कुमार गुप्ता के नाम पर मुहर लगवा ली.

ये केवल संगठन में नियुक्तियों का मामला ही नहीं है जिसमें कि वर्तमान भाजपा अध्यक्ष की अवहेलना और उनके पूर्ववर्ती द्वारा फैसले किए जाने की बात उजागर हुई है. पार्टी ने 10 दिन पहले जब कार्यकर्ताओं से जुड़ने और जनता तक अपनी बात पहुंचाने के लिए वर्चुअल रैलियों का अभियान शुरू किया था तो उसकी अगुआई भाजपा अध्यक्ष नहीं बल्कि गृह मंत्री शाह कर रहे थे. उन्होंने ही बिहार के लोगों को संबोधित कर अभियान की शुरुआत की. नड्डा की बारी बाद में आई.

भाजपा नेताओं का मानना है कि नड्डा के पास शिकायत करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि ये शाह ही थे जिन्होंने अपनी मेहनत और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सहारे पार्टी का पुनर्गठन किया. वे कहते हैं कि मोदी के मान्य उत्तराधिकारी के रूप में शाह के लिए पार्टी पर नियंत्रण बनाए रखना आवश्यक है, खासकर जब विधानसभा चुनावों में पार्टी की पकड़ कमज़ोर पड़ने के संकेत दिखते हों.


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अधिकारों की दावेदारी नहीं

नड्डा ने अपने अधिकारों की दावेदारी का कोई इरादा ज़ाहिर नहीं किया है. वह दिल्ली विधानसभा चुनावों से करीब तीन सप्ताह पहले 20 जनवरी को भाजपा का अध्यक्ष चुने गए थे. फिर भी वह आगे नहीं आए और चुनाव अभियान का नेतृत्व अमित शाह ने ही किया.

मार्च में, भाजपा जब मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए कांग्रेसी खेमे में दल-बदल को हवा देने में व्यस्त थी, नड्डा अपने बेटे की शादी की तैयारियों में जुटे हुए थे.

दिल्ली में शादी की रिसेप्शन के दौरान ही शिवराज सिंह चौहान ने भाजपा नेतृत्व को ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके वफादारों की कांग्रेस सरकार को गिराने की योजना के बारे में बताया. जब पार्टी नेता शानदार डिनर पार्टी के दौरान इस विषय को छेड़ने के बाद आगे की चर्चा के लिए दूसरे स्थान पर गए, तो नड्डा राजधानी के सत्ता तंत्र के रसूखदार लोगों के स्वागत में व्यस्त थे.

सिंधिया के भाजपा में शामिल होने की शर्तों पर मोदी और शाह के साथ चर्चा कर चुकने के कई दिनों बाद नड्डा भाजपा मुख्यालय में सिंधिया के पार्टी से जुड़ने की औपचारिकताओं को पूरा करते नज़र आए. पार्टी सूत्रों के अनुसार चौहान के फिर से मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके मंत्रिमंडल का विस्तार मोदी और शाह ने रोक रखा है, जबकि नड्डा और मुख्यमंत्री उनकी हरी झंडी का इंतजार कर रहे हैं.

इसलिए हिमंता बिस्वा सरमा ने अमित शाह के मणिपुर की भाजपा सरकार को बचाने की बात दुनिया को बताई तो भी नड्डा बुरा नहीं मानेंगे. एक वरिष्ठ भाजपा सांसद के अनुसार, नड्डा अमित शाह की जगह कभी नहीं ले सकते और अच्छी बात ये है कि वह अपनी सीमाएं जानते हैं.

यही कारण है कि शाह से कार्यभार लेने के पांच महीने बाद भी नड्डा को संगठनात्मक बदलावों को लेकर कोई जल्दी नहीं है.


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आमतौर पर किसी पार्टी का नवनिर्वाचित अध्यक्ष अपनी खुद की टीम बनाना तथा पार्टी और उसकी राजनीति पर अपनी छाप छोड़ना चाहता है. पर नड्डा के मामले में ऐसा नहीं है. वह अपने पूर्ववर्ती के मातहत- खुशीपूर्वक काम करते रहेंगे, यदि अस्तित्व बचाए रखने के लिए यही अपेक्षित है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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