रांची: लद्दाख के गलवान घाटी में भारत-चीन सेना के बीच मंगलवार को हुई झड़प में भारत के 20 सैनिकों की मौत के बाद जारी तनाव के बीच वहां सड़क निर्माण के लिए गए झारखंड के मजदूरों के परिजन काफी चिंतित हैं. निर्माण के लिए जाने वाले मजदूरों के दूसरे जत्थे को रोक दिया गया है. दोनों देशों के बीच यहां तनातनी की वजह भारत के हिस्से वाले इलाके में बन रही सड़क है. इसके निर्माण में ये मजदूर वहां पहुंचे हैं.
बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) की तरफ से इन इलाकों में सड़क निर्माण के लिए बीते 13 जून को झारखंड से 1630 मजदूरों की पहली खेप को स्पेशल ट्रेन से ले जाई गई है. अगली खेप जाने को तैयार ही थी कि इसे रोक दिया गया.
मंगलवार को भी 1100 मजदूरों का एक जत्था रवाना होने जा रहा था. दुमका जिले की जिलाधिकारी राजेश्वरी बी ने मीडिया को बताया कि बॉर्डर के हालात को देखते हुए रक्षा मंत्रालय और राज्य सरकार की ओर से मिले निर्देश के मुताबिक फिलहाल मजदूरों के जाने पर रोक लगा दी गई है. उन्होंने यह भी बताया कि तब तक मजदूरों के रजिस्ट्रेशन का काम जारी रहेगा. जैसी ही सुविधाजनक स्थिति बनेगी, मजदूरों को दोबारा भेजने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. हाल ही में बीआरओ ने झारखंड से 11,000 मजदूरों के ले जाने के लिए राज्य सरकार के साथ समझौता किया है.
ना कोई सूचना, ना बात, चिंता में हैं मजदूरों के परिजन
सीमा पर चल रहे घमासान से इन मजदूरों के परिजन चिंता में हैं. मजदूर बैजू मारिक की पत्नी चुनिया देवी पहले तो सवाल समझ नहीं पाई, समझते ही डरते हुए पूछा, ’कुछ हो गया है क्या सर?’ तसल्ली होने पर बताया, ‘वह एक सरकारी अधिकारी के यहां झाड़ू-पोछा का काम करती हैं. उसके पति और बेटा दोनों बीआरओ में काम करने चला गया है. जबकि मैंने पति से कहा भी था कि बेटा को यहीं रहने दो लेकिन उसने कहा कि कुछ नहीं होगा, जाने दो. दो दिन से बात भी नहीं हो पाई है. बहुत डर लग रहा है.’
एक और मजदूर अमित कुमार बाउरी की मां कल्पना बाउरी ने बताया, ‘जाने के बाद बेटा से बस एक बार बात हुई है. आसपास के लोग चीन बॉर्डर के बारे में बता रहे थे. डर लग रहा है, पता नहीं क्या होगा. फोन पर भी बात नहीं हो पा रही है.’
वहीं मजदूर पवन कुमार मंडल पहली खेप में जाने वाले मजदूरों में से एक हैं. उन्होंने बताया कि वह ऋषिकेश में हैं. उनके जैसे लगभग 250 से अधिक मजदूर वहीं क्वारेंटाइन में हैं. उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि गलवान में कोई घटना हुई है. कहते हैं क्वारेंटाइन पीरियड खत्म करके जाएंगे काम करने. संजय कुमार ने भी यही कहा.
जोगीखोप गांव के शरीफ अंसारी के दो भाई भी इन्हीं मजदूरों में शामिल हैं. बातचीत के क्रम में शरीफ ने मारे गए सैनिकों के नाम पूछे. बताने पर कह, ‘नहीं, ये हम लोगों के घर के लड़के नहीं हैं. मतलब फिलहाल वो लोग सुरक्षित हैं.’ उन्होंने बताया, ‘बीते दो दिनों से लगातार बात करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन दोनों के पास झारखंड का सिमकार्ड है. शायद इसी वजह से बात नहीं हो पा रही है. परिवार चिंतित है.’
लद्दाख सहित अन्य सीमावर्ती इलाकों में चल रहे इस सड़क निर्माण के इस काम में हर साल लगभग एक लाख मजदूर, जिसमें 60 हजार स्थानीय और 40 हजार बाहरी राज्यों के, काम करते हैं. इसमें लगभग 15 हजार मजदूर झारखंड के आदिवासी इलाकों के होते हैं. बीते 20 सालों से मजदूरों को बीआरओ रिक्रूट करके ले जा रही है.
शिकारीपाड़ा प्रखंड के झावाडीह गांव के सिराज अंसारी ने बताया, ‘उन्होंने भी रजिस्ट्रेशन कराया है लेकिन फिलहाल जाने में डर लग रहा है. वहां जो लोग गए हैं, उसमें कुछ जानने वाले भी हैं. एक दो दिन में उनसे बात करेंगे, अगर वह कहेंगे कि आना सही रहेगा, तो अगली ट्रेन में वह जाएंगे’ वहीं सनाउल अंसारी ने कहा कि, ‘वह रजिस्ट्रेशन कराने जा रहे हैं. उम्मीद है थोड़े दिन में माहौल शांत हो जाएगा.’
यहीं के बखारत अंसारी ने बताया कि, ‘वह 19 तारीख को जा रहे हैं. उन्हें चीन की हरकतों के बारे में जानकारी तो है. लेकिन ट्रेनें रद्द हो गई हैं, इसके बारे में जानकारी नहीं है.’ बातचीत में उन्होंने पूछा, ‘वहां जाने पर चीन हम लोगों को भी मार देगा क्या. क्या करें जाएं कि नहीं जाएं.’
मजदूरों को नहीं दी गई ट्रेन रद्द होने की सूचना
मजदूरों के ना जाने और ट्रेन रद्द होने की सूचना उन्हें ना मिलने की बात पर दुमका डीसी राजेश्वरी बी ने बताया कि, ‘उन्हें इस संबंध में राज्य सरकार से दिशा-निर्देश मिला है. जहां तक मजदूरों को सूचना देने की बात है, तो यह नई तारीख की घोषणा होने के बाद ही बताया जाएगा. अगर पूर्व निर्धारित समय पर वह आते हैं तो इसके लिए पहले उन्हें ब्लॉक ऑफिस आना होता है, जिला प्रशासन उन्हें फिर बस से दुमका स्टेशन लेकर आती है. ऐसे में अगर किसी के पास ट्रेन रद्द होने की सूचना नहीं पहुंचती है तो भी उन्हें बहुत ज्यादा परेशानी नहीं होगी.’
ऐसा पहली बार हो रहा है जब बीआरओ जैसा संस्थान इन मजदूरों का हिसाब रख रहा और सरकार के साथ साझा कर रहा है. तय नियमों के मुताबिक मजदूरों को पैसा और सुविधा भी देने जा रहा है. यही वजह है कि राज्य सरकार ने 11 हजार मजदूरों को ले जाने की अनुमति बीआरओ को दी है.
यह भी पढ़ेंः झारखंडः लॉकडाउन के बाद जब मजदूरों को लेकर पहुंची पहली ट्रेन और रात 11 बजे स्वागत हुआ फूलों से
ऐसे में जिन मजदूरों के ले जाया गया है, सरकार को पहले उन्हें विश्वास दिलाना चाहिए कि उनके परिजन सुरक्षित हैं. साथ ही जो मजदूर जाने वाले हैं, परिस्थिति बदलने पर उन्हें भी भरोसा देना होगा कि आने वाले समय में अगर सीमा पर स्थिति खराब भी होती है तो उनकी सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाएगी.
बीआरओ के बारे में
भारत के सीमावर्ती इलाकों में सामरिक महत्व से जुड़े सड़कों के निर्माण का काम बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) ही करता है. ताकि देश के जवानों को इन इलाकों में पहुंचने में ज्यादा परेशानी ना हो. साथ ही भारत से सटे पड़ोसी देशों भूटान, अफगानिस्तान, तजाकिस्तान जैसे देशों के सीमावर्ती इलाके में भी सड़क निर्माण का काम यही करता है. यह भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय से जुड़ा यह एक सरकारी विंग है. इसकी स्थापना साल 1960 में की गई थी.