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Saturday, 20 April, 2024
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साध्वी प्रज्ञा ठाकुर दिग्विजय सिंह के लिए वरदान समान

अक्सर कांग्रेस का ‘मुस्लिम चेहरा’ बताए जाने वाले दिग्विजय सिंह अपनी छवि सुधारने और भोपाल के मुकाबले को ‘हिंदू धर्म बनाम हिंदुत्व’ का रूप देने के लिए प्रयासरत हैं.

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भोपाल: मालेगांव बम धमाका मामले में आरोपी और गत सप्ताह भोपाल सीट पर भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार बनाई गई साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने अपने प्रतिद्वंद्वी और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को संयमित बना दिया है.

अल्पसंख्यकों के मामलों में भारी दिलचस्पी के कारण अक्सर पार्टी का ‘मुस्लिम चेहरा’ बताए जाने वाले और काबू में नहीं रहने वाले कांग्रेसी नेता की इस छवि में बदलाव हो रहा है. उनके भाषणों से कुछ प्रमुख शब्द गायब हो गए हैं, जैसे – मुसलमानों के साथ अन्याय, संघी आतंकवाद, धार्मिक कट्टरता, असहिष्णुता और बहुमतवाद.

और इस बदलाव का काफी कुछ श्रेय प्रज्ञा ठाकुर को दिया जा सकता है.

‘हिंदुत्व बनाम नरम हिंदुत्व’

दिग्विजय सिंह भोपाल के मुकाबले को हिंदू धर्म और हिंदुत्व के बीच की लड़ाई के रूप में देखते हैं. वह ‘ईश्वर से अपने व्यक्तिगत संबंध’ और हिंदू धर्म में अपनी आस्था की बात करते हैं, और ज़ोर देकर कहते हैं वे इसे हिंदुत्व को नहीं सौंप सकते- जो कि राजनीतिक ताकत हासिल करने के लिए रची गई संघ की साजिश है.

हालांकि राजनीतिक प्रेक्षक इसे ठाकुर और उनके जैसे लोगों के ‘कट्टर हिंदुत्व’ तथा सिंह, उनके पार्टी प्रमुख राहुल गांधी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ जैसे मंदिरों के चक्कर काटने वाले कांग्रेसियों के ‘नरम हिंदुत्व’ के बीच मुकाबला मानते हैं.

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसके सहयोगी संगठनों के लिए यह कथित ‘हिंदू आतंकवाद’ के बारे में ‘दुष्प्रचार’ के खिलाफ ठाकुर को चुनावी वैधता दिलाने की लड़ाई है. सिंह को ही ‘हिंदू आतंकवाद’ के मुहावरे का जनक बताया जाता है, हालांकि वह इसका खंडन करते हैं. उनका कहना है कि उन्होंने ‘संघी आतंकवाद’ के मुहावरे का इस्तेमाल किया था, और ‘हिंदू आतंकवाद’ का मुहावरा वास्तव में तत्कालीन गृह सचिव और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री आर. के. सिंह ने गढ़ा है.

उम्मीद की जा रही थी कि मालेगांव बम धमाका मामले की आरोपी को सिंह के खिलाफ उतारे जाने पर खूब धमाल मचेगा. पर ऐसा हुआ नहीं. आग उगलने वाली साध्वी ने जुबान पर लगाम लगा रखा है. भाजपा चाहती है कि वह जेल में अपने साथ हुए बर्ताव का उल्लेख करते समय अपने मन की बात करें, पर उन्हें शेष दुनिया की घटनाओं पर अपनी वस्तुपरक राय हरगिज़ नहीं देनी चाहिए.

पार्टी सूत्रों के अनुसार, ये बात ‘शाप’ वाले बयान के बाद रविवार को शिवराज सिंह चौहान, प्रभात झा और भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं द्वारा साध्वी को दी गई सीख में भी शामिल थी. उल्लेखनीय है कि उन्होंने ये कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि मुंबई पुलिस के आतंकवाद विरोधी दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे की 26/11 के आतंकी हमले में मौत उनके दिए श्राप के कारण हुई थी.

सिंह का नया रूप

भोपाल में आज सिंह का एक नया अवतार देखा जा रहा है- एक आस्थावान हिंदू जिसने अपने चुनाव कार्यालय का शुभारंभ स्वामी सुबोधानंद महाराज से कराया और जिसने लोकसभा चुनाव के लिए अपना अभियान शुरू करने से पहले द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का आशीर्वाद ग्रहण किया.


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पवित्र नर्मदा नदी की स्तुति में वह अपने भाषणों का समापन ‘नर्मदा हरे’ के जयघोष से करते हैं. उल्लेखनीय है कि 2017-18 में नर्मदा की परिक्रमा करते हुए उन्होंने 3,500 किलोमीटर की पदयात्रा की थी. यहां तक कि उन्होंने पार्टी की स्थानीय इकाई की दावेदारी वाले ज़मीन के एक विवादित टुकड़े को साथ लगे राम मंदिर को सौंपने का वायदा भी किया है.

ऐसा नहीं है कि सिंह पूर्व में आस्थावान हिंदू नहीं थे. वह हमेशा ही थे, पर अन्य कारणों से सुर्खियों में रहते थे: दिल्ली की 2008 की बाटला हाउस मुठभेड़ को ‘फर्जी’ बता कर, करकरे को आरएसएस कार्यकर्ताओं से धमकी मिलने का दावा कर, और ये बयान दे कर कि मुसलमानों के साथ हो रहे अन्याय के कारण आतंकवादी संगठन उन्हें ज़्यादा आकर्षित करने लगे हैं.

भोपाल में उनका चुनावी भाषण राजधानी भोपाल के विकास की उनकी परिकल्पना पर केंद्रित था, और उन्होंने बताया कि क्यों जनता को 30 वर्षों तक इस सीट से भाजपा सांसद चुनते रहने और बदले में कुछ नहीं पाने के बाद, अब उन्हें मौका देना चाहिए.

वह नोटबंदी, जीएसटी और चुनावी वायदों को पूरा नहीं करने के लिए मोदी सरकार की तीखी आलोचना करते हैं, पर गोरक्षकों या भीड़ द्वारा पिटाई या अल्पसंख्यकों के ज़िक्र से बचते हैं. ऐसा वह इस तथ्य के बावजूद करते हैं कि इस सीट पर हर पांचवां मतदाता मुस्लिम समुदाय से है, जबकि राज्य की आबादी में उनका हिस्सा मात्र 6.5 प्रतिशत है.

‘कड़ा मुकाबला’

पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर भोपाल में ‘कड़े’ मुकाबले की बात करते हैं, पर इसके सांप्रदायिक रंग लेने की आशंका से इनकार करते हैं.

गौर ने दिप्रिंट को बताया, ‘प्रज्ञा की उम्मीदवारी के कारण हिंदू वोटों की गोलबंदी हुई है… मुकाबला सख्त होने जा रहा है. पुराने भोपाल के अलावा और कहीं हिंदू-मुस्लिम लाइन पर मतदान नहीं होने जा रहा.’

हालांकि भाजपा की कुछ और ही योजना है. पार्टी के प्रचार का केंद्रीय विषय है- एक हिंदू संत का कथित रूप से हिंदू-विरोधी दलों और नेताओं के हाथों उत्पीड़न.


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मंगलवार को भोपाल में ठाकुर के रोडशो में एक नारा ये भी था, ‘प्रज्ञा दीदी संत है, दिग्गी तेरा अंत है.’

इस बीच विचारधाराओं की इस लड़ाई में, जिसे दिग्विजय सिंह ‘हिंदू धर्म बनाम हिंदुत्व’ कहते हैं, भाग लेने के लिए देश भर से दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के भोपाल आने का तांता लगा हुआ है.

भाजपा का प्रदेश मुख्यालय भगवा पट्टे, टोपी और रिस्टबैंड पहने विश्व हिंदू परिषद एवं बजरंग दल के कार्यकर्ताओं से अटा पड़ा है.

आने वाले दिनों में, ये कार्यकर्ता हिंदुत्व पर कथित खतरे का युद्धघोष करेंगे. बड़ा सवाल ये है: क्या साध्वी प्रज्ञा दिग्विजय सिंह को इतना उकसा सकेंगी कि वह आत्मसंयम की अपनी प्रतिज्ञा और विकास-केंद्रित विमर्श को भूल जाएं?

भोपाल में मतदान 12 मई को होना है.

(इस खबर को अंग्रेजी को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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