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Sunday, 22 December, 2024
होम2019 लोकसभा चुनावआखिर क्यों चुनाव आयोग के लिए बड़ी चुनौती है, 2016 से खाली पड़ी अनंतनाग सीट

आखिर क्यों चुनाव आयोग के लिए बड़ी चुनौती है, 2016 से खाली पड़ी अनंतनाग सीट

अनंतनाग लोकसभा सीट पर शांतिपूर्वक व सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न करवाना चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा से जुड़ चुका है.

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एक लोकसभा सीट, तीन चरण. जी हां देश में एक ऐसी भी लोकसभा सीट है यहां इस बार तीन चरणों में चुनाव होगा, एक ही लोकसभा क्षेत्र के लिए मतदाता तीन अलग-अलग तारीख़ों पर मतदान करेंगे. देश में ऐसा पहली बार हो रहा है.
जम्मू कश्मीर की अतिसंवेदनशील अनंतनाग लोकसभा सीट देश की एकमात्र ऐसी सीट है यहां पर तीन अलग-अलग चरणों में चुनाव होने जा रहा है. न सिर्फ मतदान अलग-अलग तारीख़ों पर होगा बल्कि चुनाव आयोग तीनों चरणों के लिए अलग-अलग अधिसूचना भी निकालेगा.

किसी तरह की असुविधा व उलझन से बचने के लिए चुनाव आयोग ने अनंतनाग लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले चार जिलों के आधार पर तीन ज़ोन में बांटा है.पहले चरण में अनंतनाग जिले में 23 अप्रैल 2019 को मतदान होगा जबकि दूसरे चरण में कुलगाम जिले में 29 अप्रैल 2019 को वोट डाले जाएंगे. जबकि तीसरे चरण में पुलवामा और शोपियां जिलों में 6 मई 2019 को मतदान होगा.


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अपने आप में चुनाव आयोग का यह फ़ैसला बेशक अभूतपूर्व है मगर इस फ़ैसले से साफ पता चलता है कि कुछ साल पहले खराब हुए दक्षिण कश्मीर में हालात अभी भी किस क़दर ख़तरनाक बने हुए हैं. उल्लेखनीय है कि गत 14 फरवरी को भीषण आतंकवादी हमले की वजह से सुर्ख़ियो में आया पुलवामा भी दक्षिण कश्मीर का ही एक हिस्सा है.

‘दक्षिण कश्मीर में ही सक्रिय हैं 100 से अधिक आतंकवादी’

दक्षिण कश्मीर में हालात कितने ख़राब हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के ठीक चार दिनों बाद वीरवार(14 मार्च 2019) को आतंकवादियों ने अनंतनाग जिले के बिजबिहाडा क्षेत्र में नेशनल काफ्रेंस के जोनल प्रधान मोहम्मद इस्माईल वानी पर जानलेवा हमला कर उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया.

श्रीनगर के एक अस्पताल में वानी जिन्दगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं. गत 10 मार्च को लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद कश्मीर में किसी राजनीतिक व्यक्ति पर होने वाला यह पहला हमला है.

गत तीस वर्षों से कश्मीर में जारी आतंकवाद के दौरान कभी भी दक्षिण कश्मीर के हालात इतने विस्फोटक नही रहे जितने पिछले कुछ वर्षों से बन गए हैं. कश्मीर घाटी में आतंकवाद आने के बाद चार बार विधानसभा और छह बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं मगर कभी भी दक्षिण कश्मीर में चुनाव करवा पाना इतना मुश्किल नही रहा जितना इस बार है.

इस समय कश्मीर में सक्रिय लगभग 250 आतंकवादियों में सबसे अधिक दक्षिण कश्मीर में ही सक्रिय है. अधिकारिक सूत्रों के अनुसार दक्षिण कश्मीर से ही सबसे अधिक संख्या में स्थानीय युवक आतंक का रास्ता चुन रहे हैं. एक अनुमान केअनुसार दक्षिण कश्मीर में इस समय 100 से अधिक आतंकवादी सक्रिय हैं, इन आतंकवादियों में स्थानीय व विदेशी दोनों शामिल हैं.

दक्षिण कश्मीर की विषम परिस्थितियों को देखते हुए ही चुनाव आयोग को अनंतनाग लोकसभा सीट के लिए होने वाले चुनाव को तीन अलग-अलग चरणों में बांटना पड़ा है.

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के नेतृत्व में चुनाव आयोग के दल ने लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले बकायदा जम्मू कश्मीर दौरा कर राज्य और विशेषकर अनंतनाग के हालात की समीक्षा की थी. राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ सलाह मशवरे के बाद ही चुनाव आयोग ने अनंतनाग लोकसभा सीट के लिए ऐसा कार्यक्रम बनाया है कि बिना किसी अड़चन के चुनाव संपन्न करवाया जा सके.

उल्लेखनीय है कि अनंतनाग लोकसभा सीट पर शांतिपूर्वक व सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न करवाना चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा से जुड़ चुका है.

‘2016 से रिक्त पड़ी है अनंतनाग सीट’

2014 में इस सीट से पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) नेता महबूबा मुफ़्ती ने जीत हासिल की थी मगर बाद में जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने अप्रैल 2016 में इस सीट से इस्तीफ़ा दे दिया था. तब से अतिसंवेदनशील समझे जाने वाली अनंतनाग लोकसभा सीट रिक्त पड़ी हुई है.

महबूबा मुफ़्ती द्वारा इस्तीफ़ा दिए जाने के कुछ ही दिनों बाद कुख्यात आतंकवादी बुरहान वानी के एक मुठभेड़ में मारे जाने के बाद अचानक दक्षिण कश्मीर के हालात बिगड़ गए थे. कईं दिनों तक दक्षिण कश्मीर के विभिऩ्न हिस्सों में भड़की हिंसा से दक्षिण कश्मीर जलता रहा.कुछ लोगों की मौत हुई व कईं अन्य घायल हो गए थे.


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आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद दक्षिण कश्मीर में लगातार ख़तरनाक ढंग से हालात ख़राब होते चले गए और आतंकवादियों की गतिविधियां बढ़ती रहीं इस कारण गत तीन सालों में अनंतनाग लोकसभा सीट पर उपचुनाव करवाना संभव नही हो सका. बीच में चुनाव आयोग ने कईं बार उपचुनाव करवाने की कोशिश भी की मगर क्षेत्र के ख़राब हालात ने तमाम कोशिशों को विफल कर दिया.

2017 में चुनाव आयोग ने बकायदा उपचुनाव की घोषणा भी कर दी मगर आख़िरी मौक़े पर ख़राब हालात के चलते चुनाव रद्द करना पड़ा. अनंतनाग लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव न करवा पाने के लिए चुनाव आयोग, केंद्र सरकार और राज्य सरकार की समय समय पर अलोचना भी होती रही. लेकिन अनंतनाग में चुनाव करवा पाना संभव नही हो पाया.
आज भी अनंतनाग लोकसभा सीट एक ऐसी सीट है यहां सुरक्षा कारणों से चुनाव करवा पाना चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती है.

‘पीडीपी का गढ़ है दक्षिण कश्मीर’

दक्षिण कश्मीर और अनंतनाग लोकसभा सीट का कश्मीर की राजनीति में विशेष महत्व रहा है. देश के पूर्व गृह मंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद इसी क्षेत्र के बिजबिहाडा इलाके के रहने वाले थे और उन्होंने अपनी राजनीति इसी क्षेत्र से शुरू की. नेशनल कांफ्रेस को टक्कर देने के लिए उन्होंने अपनी पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक दक्षिण कश्मीर के लिए यहीं से ज़मीन तैयार की और अपनी पार्टी पीडीपी के गठन के दो साल के भीतर ही हुए 2002 के विधानसभा चुनाव में क्षेत्र की 16 में से 10 विधानसभा सीटें जीत कर कश्मीर में एक मज़बूत विकल्प दिया.

तब से दक्षिण कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का मज़बूत गढ़ रहा है. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने 2008 के विधानसभा चुनाव और 2014 के विधानसभा चुनाव में भी शानदार प्रदर्शन कर दक्षिण कश्मीर की अधिकतर सीटे जीतीं.


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मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने भी अपना राजनीति सफ़र इसी क्षेत्र से शुरू किया. महबूबा 1996 में पहली बार दक्षिण कश्मीर की बिजबिहाडा विधानसभा सीट से ही कांग्रेस की टिकट पर विधायक चुनी गईं. बाद में महबूबा पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के प्रत्याशी के रूप में अनंतनाग लोकसभा सीट से 2004 और 2014 में सांसद भी रहीं.

पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की दादी, फ़ारूक़ अब्दुल्ला की अम्मी और शेख़ अब्दुल्ला की पत्नी बेगम अकबर जहां भी 1977 और 1984 में अनंतनाग लोकसभा सीट से सांसद रह चुकी हैं.

अनंतनाग लोकसभा क्षेत्र से लोकसभा में कांग्रेस के महोम्मद शफ़ी क़ुरैशी (1967),निर्दलीय शमीम अहमद शमीम(1971),नेशनल कांफ्रेस की बेगम अकबर जहां(1977),नेशनल कांफ्रेस के गुलाम रसूल कोचक(1980), नेशनल कांग्रेस के प्यारे लाल हांडू(1989),जनता दल के महोम्मद मकबूल डार(1996) कांग्रेस के मुफ़्ती मोहम्मद सईद (1998) नेशनल कांफ्रेस के अली महोम्मद नायक(1999) पीडीपी की महबूबा मुफ़्ती(2004) नेशनल कांफ्रेस के महबूब बेग(2009) और पीडीपी की महबूबा मुफ़्ती(2014) प्रतिनिधितत्व कर चुके हैं.

(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं .लंबे समय तक जनसत्ता से जुड़े रहे अब स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं .)

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