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Sunday, 3 November, 2024
होमविदेश'तालिबान नहीं बदला है, अफगानी नागरिकों का प्रतिरोध बढ़ेगा'- अमेरिकी सुरक्षा पूर्व अधिकारी कर्टिस

‘तालिबान नहीं बदला है, अफगानी नागरिकों का प्रतिरोध बढ़ेगा’- अमेरिकी सुरक्षा पूर्व अधिकारी कर्टिस

अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ लिसा कर्टिस ने दिप्रिंट को बताया कि अमेरिका को उनके साथ तब तक नहीं जुड़ना चाहिए जब तक कि वे अपनी की गई प्रतिबद्धताओं का पालन नहीं करते हैं.

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नई दिल्ली: दक्षिण एशिया का व्यापक अनुभव रखने वाली अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (एनएससी) की पूर्व अधिकारी लिसा कर्टिस के मुताबिक, अफगानी धीरे-धीरे तालिबान पर भारी पड़ने लगेंगे और इससे शासन के खिलाफ राष्ट्रीय प्रतिरोध आंदोलन को मजबूती मिलेगी.

अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के एक साल पूरे होने पर दिप्रिंट के साथ एक खास इंटरव्यू में, कर्टिस ने पिछले अगस्त में सेना की घेराबंदी वाले देश से अमेरिका की ‘अचानक और अराजक’ वापसी को कट्टरपंथी विद्रोही समूह के फिर से उभरने के लिए जिम्मेदार ठहराया है.

कर्टिस पहले सीआईए में दक्षिण एशिया, अमेरिकी विदेश विभाग और कैपिटल हिल में एक वरिष्ठ विश्लेषक के रूप में काम कर चुकी हैं. मौजूदा समय में सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी (CNAS)- वाशिंगटन स्थित एक थिंक टैंक- में इंडो-पैसिफिक सिक्योरिटी प्रोग्राम की सीनियर फेलो और निदेशक हैं.

अफगानिस्तान पिछले साल एक गंभीर सुरक्षा संकट का सामना कर रहा था क्योंकि अमेरिका के नेतृत्व वाला नाटो, जो 2001 में 9/11 के बाद ‘आतंकवाद के खिलाफ युद्ध’ लड़ने के लिए देश में आया था, तालिबान के साथ वार्ता के बाद देश से बाहर निकल गया. उसके इस कदम की काफी आलोचना की गई थी.

जैसे ही तालिबान ने 15 अगस्त 2021 को काबुल में कूच किया, सैकड़ों लोगों ने देश से भागने के लिए हवाई अड्डों पर भीड़ लगा दी. ये लोग तालिबान के पिछले दमन और क्रूरता भरे शासनकाल (1996-2001) की यादों को भूले नहीं थे.

हालांकि तालिबान ने पिछली बार की तुलना में अधिक उदार होने के वादे के साथ सत्ता संभाली थी. कर्टिस ने कहा कि पिछले साल के उनके कार्यकाल ने दिखा दिया कि यह संगठन बहुत ज्यादा नहीं बदला है. उन्होंने आगे कहा कि इसने न सिर्फ आतंकवादियों को पनाह देना जारी रखा है बल्कि अफगान महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों से भी इनकार किया है.

काबुल में अमेरिकी ड्रोन हमले में अल-जवाहिरी के मारे जाने का जिक्र करते हुए कर्टिस ने कहा, ‘31 जुलाई को (अल-कायदा प्रमुख) अयमान अल-जवाहिरी का खात्मा अमेरिका के लिए आतंकवाद के खिलाफ एक बड़ी जीत थी. इससे पता चलता है कि अमेरिका जब ऐसा करना चाहे, तो उसके पास आतंकवादियों को युद्ध के मैदान से हटाने की क्षमता है.’ वह आगे कहती हैं, ‘ इसलिए एक तरह से यह राष्ट्रपति बाइडन और उनके उन दावों की पुष्टि करता है, जिसमें उन्होंने आने वाले समय में आतंकवाद विरोधी अभियानों के प्रभावी हो सकने की बात कही थी.’

कर्टिस ने कहा, लेकिन यह एक साल पहले अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के दुर्भाग्यपूर्ण कदम को सही नहीं ठहराता है.

उन्होंने बताया, ‘दुनिया ने देखा कि उनके जाने के बाद से अफगान में रहने वाले लोग देश से बाहर जाने के लिए विमानों से किस तरह चिपके हुए थे. यह बहुत कम तैयारी के साथ, बेहद ही अराजक और अचानक की गई वापसी थी. मुझे लगता है कि इसने बाइडन की विदेश नीति के साथ-साथ अमेरिका पर भी आम तौर पर एक दाग छोड़ दिया है.’

तालिबान के आने के साथ ही अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी देश को अधर में छोड़कर भाग गए. तालिबान ने सत्ता संभालने के तुरंत बाद काबुल में मुख्य हवाई अड्डे को बंद कर दिया ताकि अफगान से लोगों को देश छोड़ने से रोका जा सके. उसी महीने हवाई अड्डे के बाहर एक विस्फोट में लगभग 180 अफगान और 13 अमेरिकी सैन्यकर्मी मारे गए थे. इस्लामिक स्टेट ने हमले की जिम्मेदारी ली थी.

कर्टिस ने कहा, ‘इससे भी बुरी बात यह है कि हम एक साल बाद भी तालिबान को बदलते नहीं देख रहे हैं. वह नहीं बदला है. वे अभी भी महिलाओं का दमन कर रहे हैं, लड़कियों को हाई स्कूल नहीं जाने दे रहे हैं. वे महिलाओं को ज्यादातर नौकरी करने की इजाजत नहीं दे रहे हैं, वे पुरुष साथी के बिना अपने घरों से बाहर नहीं जा सकती हैं.’

उन्होंने कहा, यह साफ है कि तालिबान ने अल-कायदा के साथ अपने संबंध नहीं तोड़े हैं.

वह कहती हैं, ‘हम जानते हैं क्योंकि अल-जवाहिरी सिराजुद्दीन हक्कानी के घर में शरण लिए हुए था. तो हम कह सकते हैं कि तालिबान नहीं बदला है. अफगान के लोगों के लिए यह काफी भयानक स्थिति है.’

सिराजुद्दीन हक्कानी अफगानिस्तान के कार्यवाहक आंतरिक मंत्री और खूंखार हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख हैं. इसे 2012 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक विदेशी आतंकवादी संगठन नामित किया था. हक्कानी अभी भी यूएस एफबीआई की ‘मोस्ट वांटेड’ सूची में है, जिसके सिर पर 10 मिलियन डॉलर का इनाम है.

अपने इंटरव्यू में कर्टिस ने तालिबान पर यात्रा प्रतिबंधों को बहाल करने और अफगानिस्तान के राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा (एनआरएफ) – खासतौर से आंदोलन के नेता जो फिलहाल ताजिकिस्तान में हैं- को एक संवाद में शामिल किए जाने का आह्वान किया.


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प्रतिरोध आंदोलन

कर्टिस ने लगातार तीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के तहत 2017 से 2021 तक दक्षिण और मध्य एशिया के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति और एनएससी के वरिष्ठ निदेशक के उप सहायक के रूप में काम किया है. उनके मुताबिक, आगे चलकर तालिबान के लिए अफगानिस्तान पर शासन करना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि अफगानी अब धीरे-धीरे हार मानना छोड़ने लगे हैं और एनआरएफ के तहत प्रतिरोध आंदोलन को तेज करना शुरू कर देंगे.

उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि हक्कानी सहित तालिबान नेतृत्व द्वारा किए जा रहे कठोर व्यवहार को अफगान लोग स्वीकार करेंगे. मुझे लगता है कि आप जो देखेंगे वह यह है कि अधिक लोग प्रतिरोध की ओर बढ़ रहे हैं.’

उन्होंने एनआरएफ का जिक्र करते हुए कहा कि पहले से ही प्रतिरोध के क्षेत्र हैं. एनआरएफ जिसका नेतृत्व ‘पंजशीर के शेर’ अहमद शाह मसूद – 2001 में तालिबान के खिलाफ अपनी लड़ाई के लिए अफगानिस्तान में सम्मानित – के बेटे अहमद मसूद और पूर्व में अफगानिस्तान निवासी अमरुल्ला सालेह कर रहे हैं.

एनआरएफ नियमित रूप से पंजशीर घाटी में तालिबान से लड़ने में जुटा हुआ है.

कर्टिस के मुताबिक, मसूद और सालेह दोनों फिलहाल ताजिकिस्तान में रह रहे हैं.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘आप देखेंगे कि तालिबान जो करने की कोशिश कर रहा है उसका ज्यादा से ज्यादा लोग विरोध कर रहे हैं. आप लोगों को दबाकर नहीं रख सकते हैं. उनके अधिकार नहीं छीन सकते हैं, उन्हें लाभ और सेवाएं नहीं देकर, उनसे उम्मीद नहीं कर सकते कि वे उठेंगे नहीं और इस तरह के शासन का विरोध नहीं करेंगे.’

लेकिन उन्होंने कहा कि एनआरएफ का पूर्ववर्ती उत्तरी गठबंधन– कई मिलिशिया समूहों का गठबंधन जिन्होंने मसूद के तहत 1996 से 2001 तक तालिबान से लड़ाई लड़ी और अमेरिकी सेना का समर्थन किया- की तरह ‘विभिन्न विपक्षी ताकतों’ के साथ आना इस समय ‘मुश्किल’ लग रहा है.

उसने दिप्रिंट से कहा, ‘अभी, अफगानों के बीच बहुत सारे गुट हैं जो देश छोड़कर भाग गए हैं. इसलिए यह वास्तव में निर्भर करता है कि क्या विभिन्न गुटों के बीच कुछ सामंजस्य और एकता हो सकती है.’ वह आगे कहती हैं, ‘उत्तरी गठबंधन विभिन्न गुटों का एक समूह था, जो एक उद्देश्य के लिए एक साथ आए थे. अभी हमारे पास ऐसा कुछ नहीं है. हमारे पास राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा है लेकिन विभिन्न विपक्षी ताकतें एक साथ नहीं आ रही हैं.’

उन्होंने कहा, हालांकि अमेरिका मौजूदा समय में एनआरएफ को कोई वास्तविक सहायता नहीं दे रहा है लेकिन उसे उन्हें चर्चा में शामिल करना चाहिए.

वह कहती हैं, ‘अमेरिका अचानक से इन लोगों की उपेक्षा नहीं कर सकता है. यह उनके साथ पिछले 20 सालों से जुड़ा हुआ है. अमेरिकी दूतावास को प्रतिरोध आंदोलन के नेताओं को शामिल करना चाहिए जो ताजिकिस्तान में स्थित हैं, इसकी जानकारी इकट्ठा करें. वे अफगानिस्तान में खिलाड़ी हैं.’


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‘तालिबान पर यात्रा प्रतिबंध को बहाल करें’

दक्षिण और मध्य एशिया में आतंकवाद विरोधी रणनीति की विशेषज्ञ कर्टिस ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) को तालिबान पर लगे अपने यात्रा प्रतिबंध को बहाल कर देना चाहिए.

तालिबान नेतृत्व को पूर्व डोनल्ड ट्रम्प प्रशासन के साथ शांति वार्ता के लिए दोहा की यात्रा करने के लिए यात्रा प्रतिबंध 2019 में रद्द कर दिया गया था. यह फरवरी 2020 में एक समझौते के तौर पर अंतिम परिणाम पर पहुंची, जिसने नाटो की वापसी का मार्ग प्रशस्त किया.

20 अगस्त को, UNSC यात्रा प्रतिबंध पर दी गई छूट को बढ़ाने का मुद्दा उठाएगा. कर्टिस ने कहा, ‘मुत्ताकी (तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी) और अन्य तालिबान नेताओं के लिए उज्बेकिस्तान में सम्मेलन जैसे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लेने के लिए विदेश यात्रा कर पाना गलत है.’

जुलाई में उज्बेकिस्तान की सरकार ने तालिबान शासन के तहत अपने भविष्य पर चर्चा करने के लिए अफगानिस्तान पर एक विशेष सम्मेलन की मेजबानी की थी. सम्मेलन में 30 से अधिक देशों ने भाग लिया. उस सम्मेलन में तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से निवेश की मांग की थी.

उन्होंने कहा, ‘महिलाओं और लड़कियों पर भयावह प्रतिबंध लगाने के बावजूद उन्हें यात्रा करने, वैधता हासिल करने की अनुमति कैसे दी जा सकती है, जो दुनिया के किसी अन्य देश में नहीं है? यह अपमानजनक है.’

उन्होंने बताया कि शांति वार्ता, जिसके लिए यात्रा प्रतिबंध पहले हटा लिया गया था, ‘उसका अस्तित्व अब खत्म हो चुका है और कोई वजह नहीं है कि तालिबान को अफगानिस्तान से बाहर यात्रा करने की जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘वास्तव में 20 अगस्त को इस पर विचार किया जाना चाहिए. अमेरिका के पास यह दिखाने का मौका कि वह महिलाओं के दमन और आतंकवाद पर तालिबान के झूठ को जारी नहीं रखने देने वाला है. अब हम जानते हैं कि वे अल-कायदा शरण दे रहे हैं.’

कर्टिस के मुताबिक, ‘अमेरिका या अन्य विश्व शक्तियों का तालिबान के साथ किसी भी तरह का जुड़ाव इस पर बात पर निर्भर होना चाहिए कि वे अपने लोगों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए वे क्या कर रहे हैं ताकि देश एक आतंकवादी सुरक्षित पनाहगाह के रूप में नहीं उभरेगा.’

उन्होंने कहा, ‘जब तक हम उस मोर्चे पर उन्हें कोई विशेष कदम उठाते हुए नहीं देखते हैं, मुझे नहीं लगता तब तक अफगानिस्तान के साथ कोई साझेदारी या निवेश होना चाहिए.’

तालिबान के साथ भारत की भागीदारी

तालिबान के साथ भारत के जुड़ाव पर कर्टिस ने कहा कि नई दिल्ली ने काबुल में अपना दूतावास फिर से खोलने का फैसला किया है लेकिन अमेरिका को ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि उसे लोकतंत्र और मानवाधिकारों के मूल्यों को बनाए रखने की जरूरत है.

उन्होंने बताया, ‘यह भारत की अपनी पसंद है लेकिन मुझे लगता है कि अमेरिका के लिए, यह लोकतंत्र (और) मानवाधिकारों से जुड़ा है. बाइडेन प्रशासन ने (विशेष रूप से) अपनी विदेश नीति के हिस्से के रूप में इसका काफी ढिंढोरा भी पीटा है. अगर ऐसा है, तो उन्हें अफगानिस्तान की महिलाओं और लड़कियों के लिए खड़ा होना चाहिए, जिसका अर्थ है उसके साथ न भागीदारी करना, न निवेश करना. अमेरिका को अपनी नेतृत्वकारी भूमिका निभानी चाहिए.’

वह कहती हैं, ‘लेकिन लब्बोलुआब यह है कि अमेरिका अफगानिस्तान में उतना प्रभावशाली नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘यह एक तथ्य है. इसलिए हमें संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय भागीदारों और अन्य देशों की ओर भी देखना होगा जो लोकतंत्र और मानवाधिकारों पर अमेरिका के मूल्यों को साझा करते हैं. तालिबान को प्रभावित करने के लिए उन साझेदारों को भी इस्तेमाल करने के लिए देखा जा सकता है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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