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Friday, 29 March, 2024
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₹20 के लिए 20 साल लड़ाई: रेलवे पर मुकदमा करने और जीतने वाले वकील ने कहा- सिर्फ पैसों की बात नहीं थी

लगभग 22 साल बाद चतुर्वेदी ने 20 रुपये के लिए दायर किया गया यह मुकदमा जीत लिया है. आखिरकार, 5 अगस्त को मथुरा की एक उपभोक्ता अदालत ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया.

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नई दिल्ली: 25 दिसंबर 1999 को तुंगनाथ चतुर्वेदी मुरादाबाद के लिए दो टिकट खरीदने मथुरा छावनी रेलवे स्टेशन की बुकिंग खिड़की पर पहुंचे. उस समय एक टिकट की कीमत 35 रुपये थी. चतुर्वेदी ने वहां मौजूद क्लर्क को सौ रुपये का नोट दिया. लेकिन उन्हें तीस रुपये लौटाए जाने के बजाये सिर्फ 10 रुपये वापस मिले.

उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के एक वकील चतुर्वेदी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे एक हस्तलिखित टिकट दिया गया था क्योंकि तब कंप्यूटर इस्तेमाल में नहीं होते थे. बुकिंग क्लर्क ने हमसे 20 रुपये अतिरिक्त लिए और बाकी राशि वापस करने से इनकार कर दिया. हालांकि मैंने तुरंत ही उसे ये बात बताई थी.’

चतुर्वेदी ने तब ‘पूर्वोत्तर रेलवे’ (गोरखपुर) और ‘बुकिंग क्लर्क’ के खिलाफ जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराई और मथुरा छावनी रेलवे स्टेशन को भी इसमें एक पक्षकार बनाया.

इसके बाद शुरू हुई अदालती लड़ाई एकदम अंतहीन साबित होने लगी और सौ से अधिक बार कोर्ट में सुनवाई हुई. लेकिन अब, लगभग 22 साल बाद चतुर्वेदी ने 20 रुपये के लिए दायर किया गया यह मुकदमा जीत लिया है. आखिरकार, 5 अगस्त को मथुरा की एक उपभोक्ता अदालत ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया.

जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, मथुरा के अध्यक्ष नवनीत कुमार ने भारतीय रेलवे को वकील को 20 रुपये लौटाने और उस पर 1999 से 2022 तक 12 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के भुगतान का निर्देश दिया है. रेलवे को कानूनी खर्चों के अलावा वादी को आर्थिक और मानसिक तनाव के एवज में 15,000 रुपये का हर्जाना भी देना पड़ेगा.

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कुमार ने यह आदेश भी दिया है कि यदि उक्त राशि का एक माह के भीतर भुगतान नहीं किया गया तो ब्याज दर बढ़ाकर 15 प्रतिशत प्रतिवर्ष की जाएगी.

अब 66 वर्ष के हो चुके चतुर्वेदी का मानना है कि मुआवजे की राशि बहुत कम है और केस लड़ने में उन्होंने जितने साल बिताए, उसकी भरपाई नहीं हो पा रही है. लेकिन उन्होंने कहा कि उनके लिए यह लड़ाई ‘पैसे की नहीं न्याय’ की बात अधिक थी.


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सालों लग गए लेकिन पता था कि जीत होगी

भारत में उपभोक्ता अदालतें सेवाओं से संबंधित शिकायतों का निपटारा करती हैं. लेकिन मामलों का अधिक बोझ होने के कारण उन्हें कभी-कभी सीधे-साधे मामलों में आदेश पारित करने में भी सालों लग जाते हैं.

उन्होंने कहा, ‘उन दिनों, ऐसे बहुत ज्यादा अखबार भी नहीं होते थे जो आज की तरह किसी मामले को सुर्खियों में ला सकें.’

हालांकि, मामला सुलझाने में सालों लग गए लेकिन चतुर्वेदी का कहना है कि उन्हें शुरू से ही भरोसा था कि जीत उन्हीं की होगी. उन्होंने कहा कि खुद एक वकील होने के नाते, उन्हें किसी वकील का भुगतान नहीं करना पड़ता था या अदालत आने-जाने का खर्च वहन नहीं करना पड़ता था. अन्यथा 22 सालों में अच्छी-खासी राशि इसी पर खर्च हो जाती.

चतुर्वेदी कहते हैं, ‘आप उस ऊर्जा और समय की कीमत नहीं लगा सकते, जो मैंने यह केस लड़ने में गंवाई है.’ लेकिन इतने वर्षों तक डटे रहने के बावजूद उन्होंने कानूनी प्रक्रिया के प्रति अपना भरोसा कभी नहीं खोया.

चतुर्वेदी ने कहा, ‘कानून के घर देर है, अंधेर नहीं.’ इसका मतलब है कि भले ही समय लगे लेकिन अंतत: न्याय मिलेगा.

चतुर्वेदी बताते हैं कि मुकदमे के दौरान एक बार तो रेलवे ने दावा किया कि उसके खिलाफ शिकायतों को उपभोक्ता अदालत नहीं लाया जा सकता है और उन्हें रेलवे दावा न्यायाधिकरण से संपर्क करना चाहिए. तब चतुर्वेदी ने ये साबित करने के लिए कि मामले की सुनवाई उपभोक्ता अदालत में की जा सकती है, बतौर नजीर सुप्रीम कोर्ट के 2021 के एक फैसले का इस्तेमाल किया.

नाम न छापने की शर्त पर चतुर्वेदी के एक परिचित ने दिप्रिंट को बताया, ‘सर ने बचपन से ही सच्चाई और न्याय का रास्ता अपनाया है. उन्होंने हमेशा उसी के लिए संघर्ष किया, चाहे वह दूसरों के लिए हो या खुद के लिए. उन्होंने समाज में अपने योगदान के लिए कई पुरस्कार भी जीते हैं.’

चतुर्वेदी 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अपनी सेवाओं के लिए संग्राम पदक भी हासिल कर चुके हैं.

चतुर्वेदी ने बताया, ‘मैं उस समय करीब 15 वर्ष का था. मैंने लोगों को भोजन-पानी उपलब्ध कराने में मदद की और यह सुनिश्चित किया कि हर समय रोशनी बंद रहे (ताकि दुश्मन के विमानों को पता न चल पाए) और उस समय सरकार और प्रशासन की सहायता के लिए लोगों के बीच शांति-व्यवस्था बनाए रखने में मदद की.’

वकील के परिवार ने पिछले दो दशकों में कई बार कोशिश की कि वह इस केस को छोड़ दें लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उन्होंने बताया, ‘मैं आगे बढ़ता रहा. मुझे उम्मीद है कि मेरा मामला लोगों को न्याय के लिए प्रेरित करेगा, भले ही परिस्थितियां उनके पक्ष में न हों.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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