नई दिल्ली: यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन के नई दिल्ली दौरे के कुछ दिनों के भीतर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रमुख यूरोपीय राजधानियों- पैरिस, कोपनहेगन और बर्लिन के दौरे ने भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) के बीच और गहरे मेल-मिलाप का रास्ता साफ कर दिया है, हालांकि यूक्रेन पर रूसी हमले को लेकर इनके बीच मतभेद बरक़रार हैं.
पीएम मोदी फ्रांस, डेनमार्क, और जर्मनी का अपना दौरा ख़त्म करके बृहस्पतिवार को भारत लौट आए. अपनी यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने वहां के नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें कीं.
शीर्ष-स्तर के राजनयिक सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि हालांकि यूरोपीय नेताओं के साथ मोदी की बैठकों के एजेंडे में यूक्रेन युद्ध का मुद्दा छाया रहा, लेकिन उनमें रूस पर भारत के रुख़ के प्रति भी व्यापक स्वीकार्यता देखी गई, जिसमें नेताओं ने ‘कार्रवाई योग्य आइटम्स’ पर काम करने की इच्छा जताई.
भारत के साथ बेहतर मेल-मिलाप की दिशा में काम करते हुए, यूक्रेन युद्ध के कारण रूस के साथ सभी रिश्ते ख़त्म करने की कोशिश में यूरोप दीर्घ-कालिक योजनाओं तथा साझेदारियों पर भी विचार कर रहा है. यूरोप और चीन के बीच एक ज़माने से चले आर्थिक रिश्ते भी अब दबाव में आ गए हैं, चूंकि मॉस्को और बीजिंग ने एक ‘सीमा-रहित’ मित्रता क़ायम करने का वचन लिया है.
अपने दौरे में मोदी दूसरे भारत-नॉर्डिक शिखर में भी शरीक हुए, जिसमें उन्होंने नॉर्डिक देशों के नेताओं के साथ द्विपक्षीय वार्त्ताएं कीं, जिनमें डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैण्ड, आइसलैण्ड और नॉर्वे शामिल हैं.
एक यूरोपीय राजनयिक के अनुसार प्रधानमंत्री का ये दौरा ‘बहुत आवश्यक’ था, चूंकि ‘सभी कठिन मुद्दों पर काम किया गया’. राजनयिक ने आगे कहा कि दोनों पक्ष अब यूक्रेन युद्ध को ‘बेहतर ढंग से समझते’ हैं, और ईयू ने अब भारत के साथ अपने रिश्तों को ‘प्राथमिकता’ देने का फैसला किया है.
रिसर्च एंड इनफरमेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज़ (आरआईएस) के अध्यक्ष मोहन कुमार ने कहा, ‘इस दौरे के साथ हमने अमेरिका और अपने दूसरे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझीदारों को एक संकेत दिया है, कि हम अपने सारे अंडे एक ही टोकरी में नहीं रख सकते, और हमारी इच्छा है कि एक वास्तविक बहु-ध्रुवीय दुनिया में यूरोप एक स्वतंत्र और मज़बूत सैन्य ध्रुव बनकर उभरे’.
सूत्रों ने ये भी कहा कि जैसे जैसे युद्ध की स्थिति बिगड़ी है, भारत का रुख़ उसके ‘साथ साथ विकसित हुआ है’, और इसे युक्रेन के बुका में हुई हत्याओं की नई दिल्ली की ओर से खुली निंदा में देखा जा सकता है, हालांकि नई दिल्ली ने ‘मुख्य आक्रांता’ के तौर पर मॉस्को का नाम नहीं लिया है.
सूत्रों ने कहा कि 24 फरवरी को जब रूस ने यूक्रेन में अपना ‘सैन्य अभियान’ शुरू किया, तो भारत ने शुरू में इस मामले में एहतियात से प्रतिक्रिया दी. जैसे जैसे युद्ध आगे बढ़ा यूरोपीय मंत्रियों का भारत में तांता लग गया जो उसके रुख़ का आंकलन करना चाहते थे, और देखना चाहते थे कि क्या पीएम मोदी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के साथ अपने रिश्तों का इस्तेमाल करके युद्ध का ख़ात्मा करा सकते हैं.
फ्रांस में भारत के पूर्व राजदूत कुमार ने आगे कहा: ‘भारत चाहता है कि एक बहु-ध्रुवीय दुनिया में ईयू एक स्वतंत्र ध्रुव बने, इसलिए उसमें हमारा एक बुनियादी हित शामिल है. भारत ने चतुराई के साथ आक्रमणकारी का नाम लिए बिना आक्रमण तथा हिंसक कार्रवाइयों की निंदा करनी शुरू कर दी है, और हमने कहा है कि इस लड़ाई में कोई विजेता नहीं होगा’.
जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज़ के साथ मोदी की मीटिंग में, एक साझा वक्तव्य में यूक्रेन पर हमले करने के सिलसिले में पहली बार रूस का उल्लेख किया गया, और उसके बाद डेनमार्क तथा फ्रांस के साथ साझा वक्तव्यों में भी यही किया गया.
डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन ने पीएम मोदी से कहा कि रूसी राष्ट्रपति पर ‘प्रभाव’ डालकर युद्ध को बंद कराएं.
बर्लिन में शोल्ज़ के साथ एक साझा प्रेस वार्त्ता को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा: ‘हमारा मानना है कि इस लड़ाई में कोई विजेता नहीं होगा, और सभी को नुक़सान उठाना पड़ेगा. इसलिए हम सब शांति के साथ हैं’.
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भारत और EU के बीच मेल-मिलाप के क्षेत्र
एक अन्य सूत्र के अनुसार, यूरोप भारत के साथ अपने निवेश और व्यापारिक रिश्तों को बढ़ाने की तैयारी कर रहा है, जिसके लिए वो काफी समय से लंबित भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को हासिल करने के लिए बातचीत में तेज़ी ला रहा है.
ईयू के दो सबसे अहम खिलाड़ियों- शोल्ज़ और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैन्युएल मैक्रों के साथ मोदी की बैठकों में, एक निर्णय लिया गया कि एफटीए के लिए बातचीत उस बिंदु से फिर शुरू की जाएगी जहां वो 2013 में थम गई थी, और अलग से एक निवेश समझौते पर भी चर्चा की जाएगी.
सूत्र ने कहा कि भारत ने ईयू को ये भी स्पष्ट कर दिया है, कि जिस तरह वो रूस से तेल और गैस की ख़रीद जारी रखे हुए है, उसी तरह नई दिल्ली को भी मॉस्को से हथियार और तेल ख़रीदना पड़ेगा.
पिछले महीने भारत और ईयू ने इंडिया-ईयू ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल शुरू करने का फैसला किया- वो पहल जो ब्रसेल्स की पहले सिर्फ अमेरिका के साथ थी.
मोदी की पैरिस में मैक्रों के साथ बैठक के बाद जारी साझा वक्तव्य के अनुसार, ‘भारत और फ्रांस ने दोनों की इस प्रतिबद्धता को फिर से दोहराया कि भारत-ईयू रणनीतिक साझेदारी को और गहरा किया जाएगा, और भारत-ईयू कनेक्टिविटी साझेदारी के क्रियान्वयन, तथा मई 2021 में पोर्तो में हुई भारत-ईयू नेताओं की बैठक में लिए गए निर्णयों को लागू करने के लिए साथ मिलकर काम किया जाएगा’.
उसमें आगे कहा गया, ‘उन्होंने हाल ही में इंडिया-ईयू ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल की शुरूआत का स्वागत किया, जिससे व्यापार, टेक्नॉलजी और सुरक्षा के रणनीतिक पहलुओं पर उच्च-स्तरीय समन्वय को प्रोत्साहन मिलेगा, और साथ ही व्यापार, निवेश, तथा भौगोलिक संकेतकों पर भारत-ईयू समझौतों पर बातचीत भी फिर से शुरू की जा सकेगी’.
विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने पैरिस के लिए निकलने से पहले पत्रकारों से कहा, कि ‘रक्षा के क्षेत्र में बातचीत का ज़ोर इस पर ज़्यादा था, कि दोनों देश किस तरह भारत में विभिन्न रक्षा उपकरणों की सह- डिज़ाइनिंग, सह-विकास, और सह-उत्पादन के क्षेत्र में ज़्यादा मज़बूती के साथ साझेदारी कर सकते हैं’.
मोदी के यूरोप दौरे से एक महीना पहले ही ईयू और चीन ने एक वर्चुअल शिखर वार्ता की थी, जिसे ईयू के विदेशी मामलों के प्रमुख जोज़प बोरेल ने ‘बहरों की बातचीत’ क़रार दिया था.
जर्मन मार्शल फंड की सीनियर फेलो (एशिया प्रोग्राम) गरिमा मोहन ने कहा: ‘यूरोपीय नेता और नीति निर्माता भारत की स्थिति से संतुष्ट हैं, और उसने जो रुख़ लिया है उसे समझते हैं. ये भी ग़ौरतलब है कि (यूक्रेन) युद्ध की स्थिति बिगड़ने के साथ ही भारत का रुख़ भी विकसित हुआ है, हताहत नागरिकों की संख्या बढ़ी है और लड़ाई का असर अब यूरोप की सीमाओं से आगे भी महसूस होने लगा है.
‘नॉर्डिक शिखर सम्मेलन के बाद सभी प्रधानमंत्रियों के साझा बयान में यही बदलाव नज़र आता है. भारत और यूरोप ‘इस मुद्दे पर नज़दीकी से जुड़ने’ पर भी सहमत हो गए- जिसमें संचार का एक चैनल खुला रहेगा.
मोहन ने आगे कहा कि ‘यूक्रेन इस दौरे में एक अकेला मुद्दा नहीं था’.
उन्होंने कहा, ‘यूरोप इंडो-पैसिफिक के महत्व से वाकिफ है. उसने पिछले कुछ वर्षों में भारत के साथ साझेदारी में बहुत निवेश किया है, और यही कारण है कि यूक्रेन पर कुछ मतभेद होने के बावजूद, यूरोप-भारत साझेदारी मज़बूती के साथ चलती रही है’.
‘यूरोप के साथ व्यापार और टेक्नॉलजी परिषद के गठन, महत्वपूर्ण टेक्नॉलजी में सहयोग, नवीनीकरण, 5जी, दूरसंचार तथा अन्य इनफ्रास्ट्रक्चर में निवेश, और रक्षा सहयोग के ज़रिए, यूरोप-भारत साझेदारी का आधार काफी विस्तृत हो गया है’.
रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में भी भारत और ईयू ने अपने साझा सैन्य-अभ्यासों को फैलाते हुए, इंडो-पैसिफिक फ्रेमवर्क के तहत और अधिक काम करने का फैसला किया है.
भारत-फ्रांस साझा बयान में कहा गया, ‘भारत और फ्रांस ने रक्षा के सभी क्षेत्रों में निरंतर गहन सहयोग का स्वागत किया, और बेहतर एकीकरण तथा इंटरऑपरेबिलिटी के लिए अपने साझा अभ्यासों- शक्ति, वरुणा, पिगेस, डेज़र्ट नाइट और गरुड़ को विस्तार देने का फैसला किया’.
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