नई दिल्ली: गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका को जनवरी के बाद से करीब 4 बिलियन डॉलर की अभूतपूर्व सहायता मुहैया कराने के बाद भारत अब निजी और सार्वजनिक दोनों तरह की कंपनियों के माध्यम से वहां नए क्षेत्रों में भारी निवेश की योजना बना रहा है. श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त गोपाल बागले ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में यह बात कही.
भारत जिन क्षेत्रों पर खास तौर पर फोकस करेगा उनमें अक्षय ऊर्जा, हाइड्रोकार्बन, बंदरगाह और बुनियादी ढांचा और आईटी आदि शामिल हैं. दोनों देश काफी समय से लंबित आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर करने पर भी विचार कर रहे हैं.
कोलंबो में पदासीन शीर्ष भारतीय राजनयिक ने कहा कि श्रीलंका को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की तरफ से बेलआउट पैकेज के संदर्भ में बातचीत की व्यवस्था करने में नई दिल्ली कार्यकारी और राजनीतिक दोनों ही स्तरों पर वहां की नई सरकार के साथ मिलकर काम करेगी, जो पैकेज पूर्व में द्वीप राष्ट्र में स्थिति और ज्यादा खराब होने के कारण अटक गया था.
द्वीप राष्ट्र एक बड़े संकट का सामना कर रहा है, जहां इसके नागरिकों की तरफ से 100 दिनों तक चले विरोध प्रदर्शन का नतीजा पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को सत्ता से बेदखल किए जाने के तौर पर सामने आया और गोटाबाया को अंततः देश छोड़कर भागना पड़ा है. इसके बाद रानिल विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति और दिनेश गुणावर्धने को प्रधानमंत्री के तौर पर चुना गया है.
बागले ने दिप्रिंट को बताया, ‘श्रीलंका एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसके पास राजस्व के तीन मुख्य स्रोत हैं- निर्यात, पर्यटन और रेमिटेंस. कोविड के कारण इनमें से कुछ स्रोत पूरी तरह से बंद हो गए हैं. श्रीलंका में अब कामकाज सामान्य स्तर पर लौटाने की कोशिश हो रही है और अधिक निवेश से अर्थव्यवस्था में सुधार होगा. नतीजतन, अब हम इस देश में और अधिक निवेश पर विचार कर रहे हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हम दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच अधिक व्यापार, अधिक निवेश और अधिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए नई श्रीलंकाई सरकार के साथ मिलकर काम करेंगे.’
इस साल जनवरी से अब तक भारत ने श्रीलंका को करीब 4 बिलियन डॉलर की वित्तीय मदद और मानवीय सहायता मुहैया कराई है, जो किसी भी देश को दी गई सबसे बड़ी सहायता है. यह मदद द्वीप राष्ट्र को भोजन, ईंधन, दवाओं और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कमी को पूरा करने के लिए मुहैया कराई गई है.
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नए क्षेत्रों में निवेश
बागले के मुताबिक, वहां की नई सरकार से इस मसले पर बातचीत शुरू हो चुकी है कि किस सेक्टर में निवेश किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि भारतीय निवेशक— सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के— वहां बंदरगाहों और बुनियादी ढांचे, अक्षय ऊर्जा, बिजली, हाइड्रोकार्बन, कृषि और डेयरी, शिक्षा और सूचना प्रौद्योगिकी आदि प्रमुख क्षेत्रों में निवेश के अवसरों का पता लगाएंगे.
उन्होंने कहा, ‘मूल रूप से ये वे क्षेत्र हैं जहां भारत खुद मजबूत स्थिति में है…और हम पड़ोस में होने के नाते इन क्षेत्रों में व्यापक संबंध बनाने के लिए बेहतर स्थिति में हैं. हम अभी बात कर रहे हैं लेकिन इसकी शुरुआत पहले ही हो चुकी है.’ साथ ही जोड़ा कि एनटीपीसी लिमिटेड (नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड) की एक टीम इस माह के शुरू में श्रीलंका का दौरा कर चुकी है.
एनटीपीसी सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) के साथ मिलकर संयुक्त रूप से पूर्वी श्रीलंका में त्रिंकोमाली के पास समपुर में एक सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने पर विचार कर रहा है.
बागले ने इस पर स्पष्टता के साथ बताया, ‘इस स्थिति में भी, जिसमें कुछ अलग ही तरह की चुनौतियां हैं, हम श्रीलंका सरकार के साथ मिलकर काम करते हुए जहां तक संभव हो संयुक्त उद्यम और साझा परियोजनाएं आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे. साथ ही, नई सरकार के साथ भारत से नए निवेश के अधिक अवसर पैदा करने पर भी चर्चा कर रहे हैं.’
उन्होंने कहा कि अक्षय ऊर्जा और आईटी के अलावा अब दवा उत्पादों के निर्माण पर भी फोकस किया जाएगा.
बागले ने कहा, ‘श्रीलंका अभी फार्मास्युटिकल्स का आयात करता है, जिसमें 70 फीसदी की आपूर्ति भारत से होती है. इसलिए, सोचा यह जा रहा है कि क्या ऐसा हो सकता है कि श्रीलंका न केवल अपनी जरूरत के लिहाज से दवाओं का उत्पादन करे, बल्कि अंततः उन्हें निर्यात करके विदेशी मुद्रा भी अर्जित कर सके.’
उच्चायुक्त ने कहा कि इसी तरह श्रीलंका में सौर और पवन ऊर्जा की अपार संभावनाएं हैं, वह इससे अपनी जरूरतें पूरी करने के बाद भारत को निर्यात भी कर सकता है.
उन्होंने कहा, ‘इस तरह यह राजस्व का एक और स्रोत खोलेगा…श्रीलंका को इसमें लाभ दिखाई दे रहा है. मौजूदा स्थिति में श्रीलंका को भारत के साथ घनिष्ठ आर्थिक साझेदारी के लाभ नजर आ रहे हैं. उन्हें हमारी जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था और एक बड़े और विविध बाजार से भी फायदा हुआ है.’
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आईएमएफ पैकेज पर सहायता करेगा भारत
श्रीलंका जहां पटरी से उतरी अपनी अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने के लिए आईएमएफ की तरफ से बेलआउट पैकेज की रूपरेखा बनाने और उसकी पेशकश का बेसब्री से इंतजार कर रहा है, वहीं कर्ज मुहैया कराने वाली बहुपक्षीय संस्था ने सख्त रुख अपना रखा है क्योंकि देश में स्थिति एकदम अराजक हो गई थी. यही नहीं चीन के कर्ज से जुड़ा डेटा पूरी तरह स्पष्ट न होना भी एक चुनौती बनी हुई है.
बागले ने इस बात को रेखांकित किया, ‘भारत आईएमएफ में श्रीलंका के हितों का ख्याल रखता है क्योंकि दोनों इसके सदस्य हैं…जब भी हमसे मदद को कहा गया हम इसके लिए आगे आए हैं. वैसे तो एक संप्रभु राष्ट्र के तौर पर आईएमएफ के साथ उनकी बातचीत उनका अपना मसला है. लेकिन हमने संकट के इस समय में श्रीलंका के लिए प्रक्रिया आसान बनाने के उपाय किए हैं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उसके प्रति मदद का भाव बढ़ाने की कोशिश की है.’
उन्होंने कहा कि भारत ने अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय वार्ता के दौरान भी श्रीलंका की मदद के लिए आगे आने के लिए ‘एक मजबूत मामला’ बनाया.
इस माह के शुरू में आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टलीना जॉर्जीवा ने श्रीलंका संकट को उन देशों के लिए एक ‘चेतावनी का संकेत’ बताया था, जिनके ऊपर काफी ज्यादा कर्ज है लेकिन नीतिगत दायरा सीमित है.
आईएमएफ के एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने जून अंत में श्रीलंका का दौरा किया था लेकिन एक व्यापक पैकेज पर बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई.
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‘एफटीए से आगे’ होगा ईटीसीए
बागले ने बताया कि निवेश के अलावा दोनों देश अब काफी समय से लंबित आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते (ईटीसीए) को अंजाम पर पहुंचाने की दिशा में तेजी लाने पर भी काम कर रहे हैं, जो मौजूदा भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) से कहीं आगे होगा जो मार्च 2000 में अमल में आया था.
उन्होंने कहा, ‘ईटीसीए एक ऐसी चीज है जो एफटीए से कहीं आगे जाती है क्योंकि इससे कई अन्य पहलू भी खुलते हैं. प्रौद्योगिकी यहां प्रमुख ड्राइविंग फोर्स है.’
ईटीसीए पर शुरू में 2016 में हस्ताक्षर होने थे, जब राष्ट्रपति विक्रमसिंघे श्रीलंका के प्रधानमंत्री थे. इससे दोतरफा व्यापार में बाजार तक पहुंच और असमानता से जुड़े तमाम बड़े मुद्दे हल होने की उम्मीद है.
श्रीलंका में भारत की तरफ से अनुदान सहायता के तहत नागरिकों के लिए एक विशिष्ट आईडी परियोजना पर भी काम चल रहा है. यह भारत के आधार मॉडल पर आधारित है.
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