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Wednesday, 15 May, 2024
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पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन को लेकर विवादों में आए इमरान खान के CIA लॉबिस्ट, एक जनरल और जासूस

पूर्व मंत्री ने पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा पर ‘सत्ता परिवर्तन की साजिश रचने’ और 2020 में इमरान के नेतृत्व वाली तत्कालीन पीटीआई सरकार को कमजोर करने के लिए पैसों के भुगतान का आरोप लगाया है.

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नई दिल्ली: दो साल पहले दिसंबर की ही एक सुबह थी जब पाकिस्तान के एक सबसे महत्वपूर्ण जनरल दुबई के एक होटल में एक ऐसे व्यक्ति से मिलने पहुंचे, जिस पर सेना ने कभी राजद्रोह का आरोप लगाया था. बैठक के बारे में जानकारी रखने वाले सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा और पूर्व स्पाईमास्टर लेफ्टिनेंट-जनरल फैज हामिद ने इस इरादे के साथ मीटिंग शुरू की कि राजनयिक और स्कॉलर हुसैन हक्कानी भारत और अमेरिका के साथ इस्लामाबाद के संबंधों को सुधारने में मददगार हो सकते हैं.

सूत्रों ने बताया कि बैठक में कुछ भी नहीं हुआ. लेकिन इसने एक राजनीतिक बवंडर जरूर खड़ा कर दिया है, जब एक पूर्व मंत्री ने जनरल बाजवा पर ‘सत्ता परिवर्तन की साजिश रचने’ का आरोप लगाया. शिरीन मजारी ने दावा किया कि जनरल ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सरकार को कमजोर करने के लिए हक्कानी को भुगतान किया था.

मजारी के आरोपों के साक्ष्य यूनाइटेड स्टेट्स फॉरेन एजेंट्स रजिस्ट्रेशन एक्ट (एफएआरए) के तहत दायर दस्तावेजों में निहित हैं, जिसमें विदेशी संस्थाओं की ओर से लॉबिंग का खुलासा न करने पर कठोर दंड का प्रावधान है. दस्तावेजों से पता चलता है कि केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) के पूर्व अफसर रॉबर्ट ग्रेनियर ने ‘रिसर्च करने’ के लिए हक्कानी को दो भुगतान (20,000 अमेरिकी डॉलर और 10,000 अमेरिकी डॉलर) किए थे.

देश की सेना पर सिविल नियंत्रण सुनिश्चित करने में कथित भूमिका के कारण 2011 में अमेरिका में पाकिस्तानी राजदूत के पद से इस्तीफा देने को मजबूर किए गए हक्कानी को जो धन मिलने का खुलासा हुआ है, पीटीआई उसका इस्तेमाल यह बात फैलाने के लिए कर रही है कि इमरान सरकार गिरने के पीछे अमेरिका का हाथ है.

हालांकि, एफएआरए रिकॉर्ड दिखाते हैं कि ग्रेनियर को इमरान खान के एक प्रमुख सहयोगी ने काम पर रखा गया था, लेकिन इस बात की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है कि उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री के कट्टर आलोचक को पैसा क्यों दिया.

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हक्कानी ने दिप्रिंट को बताया, ‘किसी ने कहीं की बात कहीं और जोड़ दी है. कुछ दोस्तों और सैन्य सेवाएं दे रहे परिवारिक सदस्यों के अलावा मेरा पाकिस्तानी सेना के साथ कोई संबंध नहीं है. यह देखते हुए कि मुझे सालों से पाकिस्तान विरोधी और सेना विरोधी होने के कारण बदनाम किया जाता रहा है, यह सवाल तो सेना से पूछा जाना चाहिए कि क्या तत्कालीन सेना प्रमुख ने मुझसे मुलाकात की थी.’


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इमरान का सीआईए लॉबिस्ट

इस कहानी का सबसे पेचीदा पहलू जुड़ा है अप्रैल की घटना से—जब जनरल बाजवा की तरफ से पद छोड़ने के लिए बढ़ते दबाव के बीच इमरान ने आरोप लगाया कि वह अमेरिकी साजिश के शिकार बने हैं. यह आरोप अमेरिका में तत्कालीन पाकिस्तानी राजदूत असद मजीद की तरफ से भेजे गए एक राजनयिक केबल पर आधारित था, जिसमें दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों के सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू के साथ एक तल्खीभरी बातचीत रिकॉर्ड था. मजीद ने लिखा था, लू ने आगाह किया है कि इमरान के पद पर बने रहने से दोनों देशों के बीच संबंध खराब ही होंगे.

हालांकि, दस्तावेज दर्शाते हैं इमरान की तरफ से यह दावा करने की कि अमेरिका उनकी सरकार को गिराने की साजिश रच रहा है, से करीब एक साल पहले उनके विशेष सलाहकार इफ्तिखार-उर-रहमान दुर्रानी ने ‘अमेरिका और इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान के बीच संबंधों पर ‘सार्वजनिक जानकारी और एडवोकेसी’ के लिए ग्रेनियर को बनाए रखा.’

एफएआरए खुलासे—जिसे सबसे पहले पत्रकार वकास अहमद ने रिपोर्ट किया था—से पता चलता है कि दुर्रानी ने 2021 में ग्रेनियर को चार किस्तों में 150,000 अमेरिकी डॉलर की कंसल्टेशन फीस का भुगतान किया. वहीं, मजारी का दावा है कि भुगतान ‘गोपनीय तौर पर कैबिनेट अनुमोदन के बिना और प्रॉकरमेंट प्रॉसेस को दरकिनार’ करके किया गया. फाइलिंग से यह भी पता चलता है कि ग्रेनियर को जून-जुलाई 2022 के दौरान ‘व्यापक मीडिया शोध’ के लिए 50,000 अमेरिकी डॉलर मिले थे, जो कि इमरान के आरोप लगाने के कुछ ही समय की बात है.

इमरान की तरफ से बार-बार यह आरोप लगाने के बीच कि सीआईए पाकिस्तान और अफगानिस्तान को अस्थिर करने के लिए भाड़े के सैनिकों का इस्तेमाल कर रही है, ग्रेनियर को हायर करने संबंधी खुलासे ने चौका दिया.

लंबे समय से भारत का खुफिया समुदाय यह मानता रहा है कि इस्लामाबाद के प्रति सहानुभूति रखने वाले प्रमुख अमेरिकी अधिकारियों के एक समूह के बीच ग्रेनियर ने 9/11 के समय पाकिस्तान में सेवाएं दी थीं और 2004-2006 तक इसके शीर्ष आतंकवाद-विरोधी अधिकारी रहे. अल-कायदा के हमलों के बाद ग्रेनियर ने एक शीर्ष-गोपनीय केबल में कहा था कि पाकिस्तानी सेना में अब एक एक नया, उदार नेतृत्व है जो ‘आतंक के खिलाफ जंग में सीआईए के साथ पूर्ण सहयोग का इरादा रखता’ है.

हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि दुर्रानी ने ग्रेनियर को भुगतान करने के लिए व्यक्तिगत या सरकारी धन का इस्तेमाल किया, पूर्व विशेष सलाहकार पीटीआई के सदस्य बने रहे. इमरान ने इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है.

वहीं, हक्कानी ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने दुर्रानी से कभी बात नहीं की है.’

उन्होंने कहा, ‘पीटीआई के साथ काम करने में मेरी कभी कोई दिलचस्पी नहीं रही और पाकिस्तान की राजनीति में सेना की भूमिका के खिलाफ मेरा रुख जगजाहिर और पूर्ववत है. मैं वर्तमान में केवल रिसर्च और कंसल्टेंसी से जुड़ा हूं और कई वर्षों से पाकिस्तान की घरेलू राजनीति से मेरा कोई लेना-देना नहीं है.’

जनरल बाजवा की आउटरीच

हालांकि, इस बात के कोई ठोस प्रमाण मौजूद नहीं हैं कि ग्रेनियर की लॉबिंग से इस्लामाबाद को क्या फायदा हुआ, यदि कुछ हुआ है तो. इमरान और राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच फोन पर सीधी बातचीत के प्रयास बिना किसी नतीजे के खत्म हो गए. इमरान ने पूर्व राजनयिक रॉबिन राफेल के साथ आमने-सामने मुलाकात की लेकिन उसका कोई नतीजा स्पष्ट तौर पर सामने नहीं आया. नई दिल्ली में कई राजनयिकों का मानना है कि राफेल भारत विरोधी पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं.

लेन-देन की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा, हक्कानी को दो भुगतान किए गए थे जो ग्रेनियर के लिए राजनीतिक रूप से प्रभावशाली ऐसे लोगों की सूची बनाने के लिए थे, जो 2003 में देश छोड़ने के बाद से पाकिस्तान के साथ बहुत कम संपर्क में थे.

इमरान सरकार गिरने के बाद हक्कानी सहित राजदूतों के एक समूह ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें अमेरिका और पाकिस्तान के बीच ‘मामूली व्यावहारिक संबंध’ रखने का आह्वान किया गया. हालांकि, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि लेकिन ये सिफारिशें लॉबिंग वाली गतिविधियों के जरिये की गई थीं. खैर, जो भी हो वे इमरान को पद से बेदखल किए जाने के बाद की गई थीं.

भारतीय कूटनीतिक सूत्रों का कहना है कि जनरल बाजवा के खुद हक्कानी से संपर्क साधने की कहानी बनने के पीछे एक बड़ा कारण वाशिंगटन में इमरान सरकार की पैरवी के प्रयास विफल रहना भी हो सकता है.

2011 में अल-कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन की हत्या के बाद हक्कानी पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अमेरिका के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष माइक मुलेन को एक निजी मेमो भेजा था, जिसमें पाकिस्तान में नागरिक सरकार की सर्वोच्चता सुनिश्चित करने में मदद मांगी गई थी. हालांकि, हक्कानी ने एक अरबपति व्यवसायी मंसूर एजाज के इन आरोपों को निराधार बताया था. मंसूर एजाज ने एक बार रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) को कश्मीर में शांति कायम करने में मदद देने की पेशकश भी की थी.

मेमो पर पाकिस्तानी सेना की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया जताई गई थी, जिसने इसे देश में अपनी सर्वोच्चता घटाने के प्रयास के तौर पर देखा.

यद्यपि ये आरोप कभी साबित नहीं हुए, लेकिन हक्कानी को इस्तीफा देने के लिए बाध्य कर दिया गया और फिर अमेरिका जाने से पहले उन्होंने कई महीने कैद में बिताए. परिवार के एक सूत्र ने बताया कि मार्च 2021 में अपने भाई के निधन के बाद भी वह पाकिस्तान नहीं लौटे. हालांकि जनरल बाजवा ने सुरक्षित वापसी की गारंटी दी थी. लेकिन, सूत्र ने कहा, हक्कानी का मानना था कि इमरान सरकार उनका जीवन खतरे में डाल सकती है.

इसके अलावा, सत्ता परिवर्तन की साजिश के लिए हक्कानी को जिस रकम के भुगतान का दावा किया जा रहा है, वो अविश्वसनीय तौर पर काफी छोटी लगती है. वैसे भी, हक्कानी और उनकी पत्नी, राजनेता फराहनाज इस्पहानी को काफी धनवान माना माना जाता है. प्रॉपर्टी वेबसाइटों के मुताबिक, उनके वाशिंगटन स्थित घर की कीमत 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है.

(अनुवाद: रावी द्विवेदी/ संपादन: अलमिना खातून)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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