नई दिल्ली : मध्य-पूर्व में उथल-पुथल का माहौल है, क्योंकि इज़रायल और हमास के बीच संघर्ष अपने दूसरे महीने में प्रवेश कर गया है और इसका कोई अंत नजर नहीं आ रहा है.
यह टकराव, जो 7 अक्टूबर को चरमपंथी समूह हमास द्वारा इज़रायल पर एक आश्चर्यजनक हमले के साथ शुरू हुआ, इसमें लेबनान में हिजबुल्लाह और यमन में हौथी विद्रोहियों जैसे विभिन्न क्षेत्रीय लोग शामिल हैं. वैश्विक शक्तियां- अमेरिका और रूस भी इस अस्थिर स्थिति में प्रभाव जमाने और लाभ उठाने के लिए होड़ कर रही हैं.
विदेश नीति विशेषज्ञों से दिप्रिंट ने यह जानने के लिए बात की कि कैसे मध्य-पूर्व, अमेरिका और रूस के लिए एक नया युद्ध क्षेत्र बन गया है.
जबकि अमेरिकी विदेश सचिव एंटनी ब्लिंकन ने कथित तौर पर रविवार को रामल्ला में फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण के अध्यक्ष महमूद अब्बास से मुलाकात की, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 26 अक्टूबर को मास्को में हमास प्रतिनिधिमंडल की मेजबानी की.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रूसी और मध्य एशियाई अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर संजय कुमार पांडे के अनुसार, “पुतिन अमेरिका पर सवाल उठाने के लिए इज़रायल-हमास संघर्ष का इस्तेमाल कर रहे हैं – मानवाधिकारों पर उसके दोहरे मानकों की ओर इशारा करने से लेकर उसकी असफल मध्य-पूर्व नीति तक पर सवाल उठा रहे हैं.”
ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इज़रायल स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर और निदेशक खिवराज जांगिड़ ने दिप्रिंट को बताया, दूसरी ओर, अमेरिका, रूस के खिलाफ प्रतिरोध खड़ा करने के लिए मध्य-पूर्व का इस्तेमाल कर रहा है.
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अमेरिका बनाम रूस
पिछले हफ्ते, रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने एक टेलीविज़न स्पीच में इज़रायल-हमास संघर्ष के लिए अमेरिका को दोषी ठहराया, वाशिंगटन और उसके “उपग्रहों” को “विश्व अस्थिरता का मुख्य लाभार्थी” बताया.
पुतिन ने कथित तौर पर कहा, “मेरी राय में, घातक उथल-पुथल का माहौल कौन बना रहा है और आज इससे किसे लाभ हो रहा है, यह पहले ही स्पष्ट हो गया है… यह अमेरिका के वर्तमान सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग और उनके उपग्रह हैं जो विश्व अस्थिरता के मुख्य लाभार्थी हैं.”
अमेरिका ने, पिछले महीने, यूएनजीए (यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली) के एक बड़े प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया था, जिसमें “मानवीय संघर्ष विराम” का आह्वान किया गया था, क्योंकि इस संघर्ष को लेकर उसने हमास की निंदा नहीं की थी. भारत समेत 42 अन्य देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया था.
अमेरिका ने भी बार-बार युद्धविराम का विरोध किया है, लेकिन आवश्यक चीजों की आपूर्ति और नागरिकों को शिफ्ट करने के लिए मानवीय गलियारे की मांग की है, ब्लिंकन ने जोर देकर कहा कि युद्धविराम “हमास को गाज़ा में फिर से संगठित होने का मौका देगा.”
पुतिन ने पहले भी क्षेत्र में अशांति के लिए अमेरिका को दोषी ठहराया था और अब्राहम समझौते का जिक्र करते हुए कहा था कि यह वाशिंगटन की विफल मध्य-पूर्व नीति का “प्रत्यक्ष परिणाम” था.
समझौते पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक, बहरीन ने पिछले सप्ताह इज़रायल के साथ संबंध समाप्त कर लिए हैं.
पांडे ने दिप्रिंट को बताया, “पुतिन को उम्मीद है कि अमेरिका द्वारा इज़रायल को समर्थन देने पर अपना ध्यान केंद्रित करने से यूक्रेन को कम सहायता मिल सकती है.”
पांडे ने बताया कि पुतिन, इज़रायल में पश्चिम की उन्नत खुफिया जानकारी, प्रौद्योगिकी और हथियारों पर शक जताने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि शुरुआती दिनों में हमास के हमलों की आशंका और प्रतिक्रिया देने में इज़रायल की खुफिया विफलता भी पश्चिम की इस बात को जाहिर करती है.
हालांकि, जांगिड़ ने कहा, अमेरिका, मध्य-पूर्व का इस्तेमाल रूसी ऊर्जा वर्चस्व को खत्म करने के माध्यम के तौर पर कर रहा है. उन्होंने कहा, “भारत मध्य-पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईईसी) रूस के प्रभाव को कम करने का वाशिंगटन का एक जरिया है और रूसी व चीनी आक्रामकता को रोकने के तौर पर काम करने वाला है.”
जांगिड़ ने कहा, इसलिए, सऊदी अरब और इज़रायल के बीच संबंधों को सामान्य बनाना, बाइडेन प्रशासन के लिए जरूरी है.
जबकि सऊदी अरब ने संघर्ष के लगभग एक सप्ताह बाद इज़रायल के साथ बातचीत रोक दी थी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और सऊदी अरब के नेता मोहम्मद बिन सलमान के बीच एक कॉल को लेकर व्हाइट हाउस के एक बयान ने संकेत दिया था कि संघर्ष समाप्त होने के बाद बातचीत फिर से शुरू हो सकती है.
24 अक्टूबर को जारी बयान में कहा गया है, “उन्होंने संकट कम होते ही इज़रायल और फ़िलिस्तीनियों के बीच स्थायी शांति की दिशा में काम करने के महत्व की भी पुष्टि की, जो हाल के महीनों में सऊदी अरब और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच पहले से ही चल रहे काम को आगे बढ़ा रहा है.”
जांगिड़ ने बताया कि जैसे-जैसे चीन, रूस और ईरान करीब आ रहे हैं, अमेरिका इज़रायल और सऊदी अरब के बीच संबंधों को सामान्य बनाने में देरी नहीं करना चाहता है.
उन्होंने कहा, “हालांकि इज़रायल ने सऊदी अरब के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के लिए बहुत कुछ नहीं किया और इसे मुख्य रूप से अमेरिका ने आगे बढ़ाया, इज़रायल एक सहयोगी के रूप में इतना महत्वपूर्ण है कि उसे बाहर नहीं रखा जा सकता है.”
उन्होंने कहा, “अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों में ऊर्जा ट्रांसपोर्ट के लिए एक वैकल्पिक चैनल के रूप में IMEEC का इस्तेमाल करते हुए, सैन्य रणनीति के बजाय यूक्रेन में रूस के गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए आर्थिक रणनीति का इस्तेमाल कर रहा है.”
यह संघर्ष किस ओर जा रहा है?
पिछले महीने में, गाज़ा पट्टी में लगभग 1,400 इज़रायली और 10,000 से अधिक फ़िलिस्तीनी कथित तौर पर इज़रायल-हमास संघर्ष में मारे गए हैं.
जबकि कई लोगों को डर है कि ईरान समर्थित संघर्ष मध्य-पूर्व के अन्य हिस्सों जैसे सीरिया, लेबनान और अन्य में फैल सकता है, विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी संभावना कम है.
जांगिड़ ने बताया, “दो फैक्टर्स हैं जो संकेत देते हैं कि इस संघर्ष के फैलने की संभावना कम है. सबसे पहले, ईरान ने मुख्य रूप से इज़रायल को उसकी परमाणु महत्वाकांक्षाओं पर हमला करने से रोकने के लिए हिज़्बुल्लाह का समर्थन किया. इज़रायली परमाणु दबदबे को देखते हुए, हिज़्बुल्लाह, ईरान की सबसे बड़ी संपत्ति है. इस प्रकार, हमास का समर्थन करके उसकी ताकत बर्बाद नहीं होंगी.”
हिज़बुल्लाह प्रमुख सैयद हसन नसरल्लाह ने शुक्रवार को जोर देकर कहा कि हमास का 7 अक्टूबर के हमले का “निर्णय और इसे कार्यान्वित करने, दोनों मामले में यह 100 प्रतिशत फ़िलिस्तीनी था.” और लेबनानी चरमपंथी समूह ने हमले में कोई भूमिका नहीं निभाई.
ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) के फेलो कबीर तनेजा ने कहा, “ईरानी अनियंत्रित क्षेत्रीय संघर्ष नहीं चाहते हैं. मिलिशिया को आगे बढ़ाते हुए भी, उन्हें केवल एक निश्चित सीमा तक ही नियंत्रित किया जा सकता है.
जांगिड़ ने कहा, “संघर्ष के शुरुआती दिनों में भूमध्य सागर में अमेरिका की भारी आवाजाही ने भी ईरान को डरा दिया. ईरान का इज़रायल के साथ कोई सीधा विवाद नहीं है और उसने अमेरिका पर हमला करने के लिए केवल यहूदी विरोधी एजेंडे का इस्तेमाल किया है.”
सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका ने मध्य पूर्व में लगभग 1,200 अमेरिकी सैन्य सदस्यों को तैनात किया है, साथ ही दो नौसेना वाहक हमला समूहों और एक समुद्री अभियान इकाई में हजारों अन्य लोगों को तैनात किया है.
जबकि हो सकता है कि संघर्ष न फैले, लेकिन आने वाले समय में हिंसा समाप्त होने की संभावना नहीं है. विशेषज्ञों के अनुसार, इज़रायली सैन्य अभियान अगले 2 महीनों तक जारी रहेगा, जबकि गाज़ा शहर के भीतर लक्ष्य बनाकर किए गए हमले, मुख्य रूप से हमास मुख्यालय और सुरंग प्रणालियों को नष्ट करने के लिए, अगले कुछ दिनों में तेज होंगे.
इज़रायल ने अभी तक अपने मजबूत सहयोगी अमेरिका के साथ-साथ जॉर्डन और मिस्र जैसे अरब देशों से संघर्ष को लेकर युद्धविराम के सभी सुझावों को खारिज कर दिया है.
इज़रायली सेना के मुताबिक, हमास ने 224 लोगों को बंधक बना रखा है. अब तक, समूह ने कतर की मध्यस्थता से हुए समझौते में चार बंधकों को रिहा कर दिया है, जिनमें एक अमेरिकी-इजरायली मां और बेटी व दो बुजुर्ग इज़रायली महिलाएं शामिल हैं.
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नेतान्याहू की सरकार के भीतर मतभेद
7 अक्टूबर के हमलों के लगभग एक हफ्ते बाद, नेतान्याहू और विपक्षी राष्ट्रीय एकता के नेता बेनी गैंट्ज़ ने युद्ध संचालन, सैन्य कार्रवाई के आदेश, एग्जिट रणनीतियों और काफी कुछ के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए एक अस्थायी पांच सदस्यीय युद्ध कैबिनेट व एक “यूनिटी गवर्नमेंट” बनाई है.
युद्ध मंत्रिमंडल के गठन के कई कारणों में से एक नेतान्याहू के दक्षिणपंथी और धार्मिक सहयोगियों की भूमिका को कम करना और इसके बजाय व्यापक सैन्य पृष्ठभूमि वाले सदस्यों को शामिल करना था.
हालांकि, इस कैबिनेट के भीतर विभाजन दिखाई देने लगा है.
पिछले सप्ताह नेतान्याहू द्वारा कथित तौर पर 7 अक्टूबर के हमलों पर देर से प्रतिक्रिया को लेकर खुद को जिम्मेदारी से मुक्त करने का प्रयास के बाद, कैबिनेट सदस्य गैंट्ज़ समेत कई इज़रायली राजनेताओं ने उनके बयान की आलोचना की और माफी की मांग की.
नेतान्याहू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट किया था कि उन्हें कभी भी “हमास की ओर से युद्ध के इरादों के बारे में चेतावनी नहीं दी गई” और उन्होंने खुफिया प्रमुखों पर उन्हें “बार-बार” आश्वस्त करने का आरोप लगाया कि समूह को “डराकर रखा गया है.”
जवाब में, विभिन्न नेताओं के साथ गैंट्ज़ ने उनसे बयान वापस लेने की मांग करते हुए कहा, “जब हम युद्ध में हों, तो हमारे नेताओं को जिम्मेदारी दिखाने की ज़रूरत होती है.”
इसके बाद, इज़रायली पीएम ने तुरंत बयान हटा लिया और माफी जारी की.
कथित तौर पर इज़रायली नेता को रविवार को अपने आवास के बाहर विरोध प्रदर्शन का भी सामना करना पड़ा, जिसमें बंधकों की तत्काल रिहाई के साथ-साथ उनकी गिरफ्तारी और इस्तीफे की मांग की गई.
तनेजा के अनुसार, नेतान्याहू “केवल सैन्य अभियान के साथ एक कमजोर पायदान पर बने हुए हैं”
जांगिड़ ने कहा, “7 अक्टूबर के बाद, इज़रायल अपने नेता के बजाय अपनी सेना के पीछे एकजुट खड़ा हुआ है. घरेलू राजनीति नेतान्याहू के खिलाफ है, उन्हें आखिर में हटा दिया जाएगा.”
उन्होंने कहा, “यदि वह सभी बंधकों को बचा सकें तो वह अपना चेहरा बचाने में सक्षम होंगे. लेकिन, जब तक सैन्य अभियान जारी रहेगा, स्थिति की जटिलता उन्हें सत्ता में बनाए रखेगी.”
(अनुवाद और संपादन : इन्द्रजीत)
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