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Friday, 22 November, 2024
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चीनी डिजिटल जासूसी के डर ने कैसे ‘RAW को मॉरीशस पहुंचाया, जिस कारण जासूसी कांड हुआ’

आरोप है कि मॉरीशस के पीएम प्रविंद जगन्नाथ ने भारतीय तकनीकी टीम को इंटरनेट ट्रैफिक को बाधित करने के लिए उपकरण स्थापित करने की अनुमति दी है. राजनीतिक स्कैंडल के बीच यह मामला एक बड़ा विवाद बनता जा रहा है.

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नई दिल्ली: रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के तकनीकी विशेषज्ञों ने पिछले साल की शुरुआत में हिंद महासागर में भारत और पश्चिमी देशों के खिलाफ डिजिटल जासूसी करने के लिए मॉरीशस में विवादास्पद चीनी फर्म हुआवेई द्वारा बनाए गए इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करने वाली पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के बारे में कई चेतावनियां जारी कीं थीं. खुफिया सूत्रों ने दिप्रिंट को जानकारी दी है.

सूत्रों ने बताया कि मॉरीशस में बाई-डु-जैकोटेट में एक पनडुब्बी लैंडिंग स्टेशन पर केंद्रित भारत की चिंताओं को उसके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) कुमारसन इलांगो के जरिए देश तक पहुंचाया गया था, जो रॉ के एक पूर्व अधिकारी रह चुके हैं.

अभी पिछले महीने, मॉरीशस टेलीकॉम (एमटी) के मुख्य कार्यकारी शेरी सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दिया था. इस्तीफे के बाद एक इंटरव्यू में उन्होंने दावा किया कि उन्हें मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ से बाई-डु-जैकोटेट पनडुब्बी- केबल स्टेशन में इंटरनेट निगरानी उपकरण स्थापित करने की अनुमति देने का निर्देश मिला था.

सिंह के आरोप के चलते यह मामला एक बड़ा विवाद बनता जा रहा है, विपक्षी दलों ने उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया है.

आरोप है कि रॉ जिन उपकरणों को स्थापित करना चाह रहा था, उनमें डिजिटल स्निफर्स भी शामिल है- ऐसे उपकरण जो इंटरनेट ट्रैफिक को इंटरसेप्ट और स्टोर करने में सक्षम हैं. इन आकड़ों का बाद में विश्लेषण के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.

सूत्रों के मुताबिक, भारत दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस, हिंद महासागर, भारत और मलेशिया में ला रीयूनियन के फ्रांसीसी क्षेत्र को जोड़ने वाले दक्षिण अफ्रीका-सुदूर पूर्व (SAFE) ऑप्टिकल फाइबर पनडुब्बी केबल के लिए लैंडिंग बिंदुओं में से एक कोच्चि में पहले से ही इसी तरह के उपकरण तैनात कर चुका है.

इस क्षेत्र में पीएलए के रडार पर जासूसी के लिए मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुइस से 1,120 किलोमीटर दूर अगालेगा द्वीप पर एक इंडियन बिल्ट फैसिलिटी शामिल है. चीनी नौवहन पर भारतीय समुद्री खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए इस द्वीप को एक स्टैगिंग पोस्ट के तौर पर विकसित किया जा रहा है.

सूत्रों बताया कि फ्रांस ला रीयूनियन द्वीप से नौसैनिक और हवाई सेवाओं को संचालित करता है और वह पीएलए की डिजिटल जासूसी को लेकर चिंतित है.

जगन्नाथ ने इस महीने की शुरुआत में स्वीकार करते हुए कहा था, ‘सुरक्षा को लेकर एक समस्या थी और मॉरीशस में यह सर्वे करना जरूरी था.’ उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने ‘व्यक्तिगत रूप से’ पीएम नरेंद्र मोदी से संपर्क कर उनसे ‘इस सर्वे के लिए एक सक्षम टीम भेजने’ का अनुरोध किया था.

भारत सरकार ने इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है.


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मॉरीशस का बदलता घटनाक्रम

चीन ने 2015 में मॉरीशस के इंटरनेट इन्फ्रास्ट्रक्चर में खुद को मजबूती के साथ जोड़ना शुरू कर दिया था. उसी साल जगन्नाथ के सहयोगी शेरी सिंह ने मॉरीशस टेलीकॉम का कार्यभार संभाला था.

उसी साल, हुआवेई ने मॉरीशस सेफ सिटी प्रोजेक्ट स्थापित करने के लिए अपनी तरफ से एक पेशकश की. यह प्रोजेक्ट क्लाउड-आधारित एनालिटिक्स से जुड़े 4,000 से ज्यादा क्लोज-सर्किट टेलीविज़न कैमरों (सीसीटीवी) का एक घना नेटवर्क है, जो चेहरे की पहचान से लेकर यातायात और भीड़ की आवाजाही की निगरानी करने में सक्षम है.

भले ही मॉरीशस सरकार ने दावा किया कि यह सिस्टम नारकोटिक और संगठित अपराध से निपटने के लिए जरूरी था. लेकिन विश्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि इस परियोजना की शुरुआत के समय देश की अपराध दर रिकॉर्ड निचले स्तर पर थी.

मॉरीशस में हुआवेई निगरानी उपकरण स्थापित करने का दबाव उस एक बड़े प्रयास का हिस्सा था, जिसमें चीन ने फ्रांस, जर्मनी, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और मैक्सिको सहित 52 देशों के 73 शहरों में इसी तरह सिस्टम लगाया था.

मॉरीशस टेलीकॉम को चीन के निर्यात-आयात बैंक से 350 मिलियन डॉलर का कर्ज, सेफ सिटी प्रोजेक्ट की प्रतिस्पर्धी बोली के बिना दिया गया था. यह कर्ज उस छूट के अंतर्गत दिया गया था जो ‘राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए’ की जाने वाली खरीद की अनुमति देता है.

मॉरीशस के राष्ट्रीय लेखा परीक्षा कार्यालय (एनएओ), विद्वान रूकाया कासेनली ने रिकार्ड में सेफ सिटी प्रोजेक्ट के अनुबंध और व्यय प्रबंधन में गंभीर खामियों की ओर इशारा किया था. अन्य मुद्दों के अलावा, लेखा परीक्षकों ने नोट किया कि 25 मिलियन डॉलर का भुगतान वाउचर या इसके लिए जरूरी अन्य दस्तावेज़ो के बिना किया गया था.


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डेटा की फिशिंग

सेफ सिटी प्रोजेक्ट पर काम करते हुए हुआवेई ने देश के दूसरे सबसे बड़े द्वीप रोड्रिग्स को हाई-स्पीड डेटा प्रदान करने वाली 700 किलोमीटर की पनडुब्बी केबल बनाने का अनुबंध भी हासिल किया था.

अफ्रीका में हुआवेई द्वारा बिछाई गई एक दर्जन से अधिक केबल में से एक MARS अंडरसी केबल, बाई-डु-जैकोटेट में भी उतरती है. अफ्रीका में बीजिंग के बढ़ते डिजिटल दबदबे में 15,000 किलोमीटर की 425 मिलियन डॉलर वाली PEACE केबल शामिल है, जो चीन को यूरोप के जरिए महाद्वीप से जोड़ती है.

ब्रिटिश संचार-खुफिया सेवा GCHQ और संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) को विश्लेषण के लिए पनडुब्बी-केबल लैंडिंग बिंदुओं के जरिए बड़ी मात्रा में डेटा एकत्र करने के लिए जाना जाता है.

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि चीन इसी तरह की क्षमताओं की तरफ देख रहा है.

जब से उसने 2015 में डिजिटल सिल्क रोड की घोषणा की है, तब से बीजिंग ने हुआवेई जैसी कंपनियों के उपकरणों की मदद से अपने वैश्विक इंटरनेट बुनियादी ढांचे को लगातार विकसित किया है. विशेषज्ञों का कहना है कि इन उपकरणों में डिजिटल बैक डोर शामिल हैं जो इसकी खुफिया सेवाओं को डेटा एकत्र करने में सक्षम बनाता है.

2018 में ऑस्ट्रेलिया ने हुआवेई को एक ऐसे प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने से रोक दिया था, जो एक पनडुब्बी केबल के जरिए उसके नेटवर्क को सोलोमन द्वीप से जोड़ रहा था.

पिछले साल, नाउरू, किरिबाती और माइक्रोनेशिया के संघीय राज्यों को गुआम- महत्वपूर्ण अमेरिकी सैन्य संपत्तियों का ठिकाने- से जोड़ने के लिए विश्व बैंक के फंडिड प्रोजेक्ट को वाशिंगटन द्वारा सुरक्षा चिंताओं को उठाए जाने के बाद रद्द कर दिया गया था.

कई लोगों का मानना है कि इस परियोजना के लिए अनुबंध एचएमएन टेक्नोलॉजीज, जो पहले हुआवेई मरीन नेटवर्क्स था, के पास जाने की कगार पर था. यह एक ऐसी कंपनी है जिसकी बहुमत हिस्सेदारी शंघाई-सूचीबद्ध हेंगटोंग ऑप्टिक-इलेक्ट्रिक कंपनी लिमिटेड के स्वामित्व में है.

72.5 मिलियन डॉलर की परियोजना के लिए एचएमएन टेक्नोलॉजीज की बिड, प्रतिद्वंद्वी कंपनियों- नोकिया के स्वामित्व वाली अल्काटेल सबमरीन नेटवर्क्स (एएसएन) और जापान के एनईसी कॉरपोरेशन की बोली से 20 प्रतिशत कम थी.


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एक अंतरराष्ट्रीय राजनीति से जुड़ा खेल

मॉरीशस में चीन का बढ़ता प्रभाव यूनाइटेड किंगडम के साथ उसके कानूनी विवादों से भी जुड़ा हुआ है. बीजिंग हिंद महासागर में चागोस द्वीप समूह को अपने क्षेत्र के रूप में मान्यता देने की मांग करता रहा है.

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की एक सलाहकारी राय और संयुक्त राष्ट्र महासभा की मांगों के बावजूद, यूनाइटेड किंगडम ने संयुक्त राज्य अमेरिका के शांत समर्थन के साथ चागोस पर संप्रभुता का दावा करना जारी रखा हुआ है.

द्वीपों के समूह में इसका सबसे बड़ा द्वीप डिएगो गार्सिया शामिल है, जिसे एक सैन्य अड्डे के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका को पट्टे पर दिया हुआ है.

हालांकि भारत मॉरीशस का प्रमुख रणनीतिक साझेदार है. लेकिन 2016 में पोर्ट लुइस में बैंक ऑफ चाइना की एक शाखा खोली गई और फिर दोनों देशों ने पांच साल बाद एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए.

इसके अलावा, वाशिंगटन का मानना है कि मॉरीशस को अफ्रीकी परमाणु-हथियार-मुक्त क्षेत्र संधि में शामिल करने से रणनीतिक हथियारों वाले विमानों और पनडुब्बियों को डिएगो गार्सिया का इस्तेमाल करने से रोका जा सकेगा.

लेकिन अन्य रणनीतिक रूप से स्थित देशों की तरह मॉरीशस का मानना है कि मॉरीशस की जमीन पर सैन्य उपस्थिति बनाने की तरफ देख रही वैश्विक शक्तियों से राजस्व अर्जित करने में कोई बुराई नहीं है..

उदाहरण के लिए अफ्रीका के हॉर्न में स्थित जिबूती को अपने क्षेत्र में दूसरे देशों के सैनिकों को तैनात करने की अनुमति देने से काफी आर्थिक मदद मिलती है. उसे संयुक्त राज्य अमेरिका से 70 मिलियन डॉलर, फ्रांस से 36 मिलियन डॉलर, चीन से 20 मिलियन डॉलर, इटली से 2.6 मिलियन डॉलर और जापान व सऊदी अरब से अघोषित राशि प्राप्त होती है.

मॉरीशस को चागोस में मछली पकड़ने से संभावित राजस्व का भी नुकसान होता है, जिसे यूनाइटेड किंगडम ने एक बहिष्करण क्षेत्र बनाया हुआ है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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