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Friday, 22 November, 2024
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‘रोहिंग्या विरोधी सामग्री का इको चेंबर’: एमनेस्टी ने कहा, Meta ने म्यांमार की हिंसा को बढ़ावा दिया

रिपोर्ट के मुताबिक, रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ फेसबुक पर जहर उगलते पोस्ट बिना किसी जांच के प्रसारित किए गए. बावजूद इसके मेटा ने समुदाय को हुए नुकसान की भरपाई करने से इंकार कर दिया.

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नई दिल्ली: एमनेस्टी इंटरनेशनल ने गुरुवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया है कि फेसबुक की मूल कंपनी मेटा ने अपने ‘कंटेंट-शेपिंग एल्गोरिदम’ के जरिए म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दिया है.

इसमें कहा गया है कि रोहिंग्याओं के खिलाफ फेसबुक पर कई जहर उगलते पोस्ट व्यापक रूप से साझा किए गए और बिना किसी जांच के इसे प्रसारित किया गया.

74-पेजों के दस्तावेज के अनुसार, 2017 के अत्याचारों से पहले और उन्हीं महीनों और सालों के दौरान फेसबुक म्यांमार में ‘रोहिंग्या के खिलाफ जहरीली सामग्री के प्रसार का चैंबर’ बन गया.

इसमें आगे कहा गया है, ‘म्यांमार सेना और कट्टरपंथी बौद्ध राष्ट्रवादी समूहों से जुड़े लोगों ने रोहिंग्या को निशाना बनाने के लिए भड़काऊ पोस्ट की फेसबुक प्लेटफॉर्म पर बाढ़ सी ला दी. इन पोस्ट ने मुसलमानों द्वारा जल्द ही देश पर कब्जा किए जाने जैसी गलत जानकारी फैलाई और रोहिंग्या मुसलमानों को अवमाननीय आक्रमणकारियों के रूप में चित्रित करने की कोशिश की.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 के आसपास, जब मेटा ‘बाजार’ में अपनी पूरी पकड़ बनाए हुए था, तब म्यांमार के लोगों ने फेसबुक को सूचना और समाचार के प्राथमिक स्रोत के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था.

यहां तक कि म्यांमार के सैन्य शासन के प्रमुख नेता भी इस पर भड़काऊ सामग्री पोस्ट कर रहे थे. रिपोर्ट बताती है, ‘म्यांमार की सेना के नेता सीनियर जनरल मिन आंग हलिंग ने 1सितंबर 2017 को अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया था-  ‘हम खुले तौर पर घोषणा करते हैं कि हमारे देश में कोई रोहिंग्या जाति नहीं है’ मेटा ने आखिरकार 2018 में मिन आंग हलिंग को फेसबुक से बैन कर दिया था.

एमनेस्टी ने फरवरी और जून 2022 के बीच रोहिंग्या समुदाय के सदस्यों के इंटरव्यू को इकट्ठा कर उनका मिलान किया. इन सभी ने खुलासा किया कि कैसे कुछ घृणित फेसबुक पोस्ट वायरल होने के बाद हिंसा बढ़ी और कैसे फर्जी खबरों पर समुदाय आपस में भिड़ गए.

रिपोर्ट में इस बात की ओर भी इशारा किया कि रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ फैलाई जा रही हिंसा को रोकने के लिए मेटा ने कोई कदम नहीं उठाया. रिपोर्ट ने तकनीकी दिग्गज पर अभद्र भाषा पर रोक लगाने के लिए कई नागरिक समाज के सदस्यों द्वारा किए गए सभी अनुरोधों की अनदेखी करने का आरोप लगाया.

दिप्रिंट ने ईमेल के जरिए रिपोर्ट पर मेटा से टिप्पणी मांगी है. प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.


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‘कम स्टाफ और पूरे बाजार पर प्रभुत्व’

रिपोर्ट ने मेटा में ‘अपर्याप्त स्टाफ’ की भी बात कही. रिपोर्ट के मुताबिक, यह एक बड़ी चूक थी क्योंकि उस समय हिंसा की रिपोर्ट काफी ज्यादा थीं और उनसे निपटने के लिए मेटा के पास पर्याप्त स्टाफ नहीं था.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2017 से पहले मेटा के म्यांमार कार्यालय में संचालन में अपर्याप्त स्टाफिंग, फेसबुक प्लेटफॉर्म से रोहिंग्या विरोधी सामग्री को हटाने में कंपनी की चौंका देने वाली विफलताओं का एक महत्वपूर्ण कारक था.’

इसमें कहा गया है, ‘यह ग्लोबल साउथ में कंटेंट मॉडरेशन में पर्याप्त रूप से निवेश करने में कंपनी की व्यापक विफलता का लक्षण है. 2014 के मध्य में मेटा स्टाफ ने स्वीकार किया कि उनके डबलिन कार्यालय में उस समय म्यांमार के लिए सिर्फ एक बर्मी-भाषी कंटेंट मॉडरेटर था.

मेटा ने जून 2018 में अमेरिकी लेजिस्लेटर के जवाब में दर्जनों बर्मी-भाषी समीक्षकों को काम पर रखने का दावा किया था. हालांकि एमनेस्टी की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक जांच के अनुसार, मेटा के पास अप्रैल 2018 में कंटेंट की निगरानी और मॉडरेट करने के लिए सिर्फ पांच बर्मी भाषा बोलने वाले कर्मचारी थे. जबकि उस समय म्यांमार में 1.8 करोड़ फेसबुक यूजर थे.

एमनेस्टी के अनुसार, मेटा के ‘कंटेंट-शेपिंग एल्गोरिदम’, यह सुनिश्चित करने के लिए काफी सक्षम है कि यूजर जितना संभव हो सके फेसबुक पर कंटेंट के साथ जुड़ा रहे और जितना संभव हो उतना समय इस प्लेटफार्म पर बिताएं’. एल्गोरिथम स्ट्रक्चर ही यह निर्धारित करता है कि यूजर क्या देख रहा है और ‘यूजर जितने ज्यादा समय तक इसके साथ जुड़ा रहेगा. क्योंकि उससे उतना ही अधिक विज्ञापन राजस्व मेटा कमाएगा.’

रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि कैसे हिंसा और घृणा को भड़काने वाली पोस्टों बढ़ती चली गईं.

रिपोर्ट ने कहा, ‘मेटा ने अपने खतरनाक एल्गोरिदम और फायदे को देखते हुए रोहिंग्या के खिलाफ गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों में महत्वपूर्ण योगदान दिया.’

यह भी कहा गया है कि मेटा सिर्फ एक ‘निष्क्रिय और तटस्थ मंच’ नहीं था जिसने अपर्याप्त प्रतिक्रिया दी.

नुकसान की भरपाई से इंकार

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 के बाद से रोहिंग्या समुदाय के लोगों ने कई शिकायतें और प्रस्ताव कंपनी के सामने रखे, जो 2017 में हुए अत्याचारों के लिए ‘न्याय और क्षतिपूर्ति’ की मांग करते हैं.

ऐसा ही एक प्रस्ताव रोहिंग्या युवा समूहों की ओर से 2020 के मध्य में रखा गया था. इसमें मेटा से 1 मिलियन अमरीकी डॉलर की शिक्षा परियोजना के लिए फंड करने के लिए कहा गया था.

10 फरवरी 2021 को मेटा ने इस समुदाय के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया. उन्होंने कहा कि फेसबुक ‘सीधे परोपकारी गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकता’

रिपोर्ट में कहा गया है कि रोहिंग्या समुदाय के अनुरोध को ‘परोपकारी गतिविधियों’ बताना मेटा की कंपनी की मानवाधिकार जिम्मेदारियों की दोषपूर्ण समझ को बताती है.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘रोहिंग्या समुदायों ने दान का अनुरोध नहीं किया है. वे सिर्फ इतना चाहते हैँ कि कंपनी उन गंभीर मानवाधिकारों के नुकसान को दूर करने के लिए अपनी जिम्मेदारी को पूरा करे. वो नुकसान जो उन्होंने झेले हैं और जिसमें कंपनी ने योगदान दिया है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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