नई दिल्ली: आर्कटिक पहले की तुलना में बहुत तेज गति से गर्म हो रहा है. गुरुवार को प्रकाशित एक नए अध्ययन में यह चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है.
फिनलैंड में फिनिश मौसम विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने पाया है कि हाल के दशकों में आर्कटिक दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है. उन्होंने आर्कटिक वार्मिंग के पिछले अनुमानों को लेकर कहा कि इन्हें कम करके आंका गया था.
जर्नल ‘कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट’ में गुरुवार को प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक 1979 और 2021 के बीच, आर्कटिक में वार्मिंग का अनुपात दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में चार गुना अधिक था. यह एक प्रक्रिया है जिसे आर्कटिक एम्पलीफिकेशन या प्रवर्धन के रूप में जाना जाता है.
शोधकर्ताओं ने पाया कि ज्यादा चिंता की बात तो यह है कि जलवायु मॉडल आर्कटिक एम्पलीफिकेशन के परिमाण को सटीक रूप से कैप्चर नहीं कर रहे थे और शायद इसलिए इसके प्रभावों को व्यवस्थित रूप से कम करके आंका गया. शोधकर्ता सोचते थे कि आर्कटिक दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में दोगुना तेजी से गर्म हो रहा है लेकिन इस नए शोध ने इसे चुनौती देते हुए बताया की इसकी गति चार गुना ज्यादा है.
फिनिश मौसम विज्ञान संस्थान के एक शोधकर्ता मिका रेंटानेन ने एक बयान में कहा, ‘कुछ हद तक आर्कटिक एम्पलीफिकेशन का परिमाण इस बात पर निर्भर करता है कि आर्कटिक क्षेत्र को कैसे परिभाषित किया गया है और गणना करते समय किस समय अवधि को प्रयोग किया गया है. जलवायु मॉडल आर्कटिक एम्प्लीफिकेशन को कम आंकते हुए पाए गए.’
अध्ययन के निष्कर्ष 11 अगस्त को प्रकाशित शोध के अनुरूप हैं जिसमें पाया गया था कि पिछले 20 से 40 सालों में बैरेंट्स समुद्र में – आर्कटिक सर्कल के उत्तर में- अधिकतम सतह का तापमान गर्म हो रहा है.
पिछले साल वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन ने आर्कटिक में 38 डिग्री सेल्सियस के नए रिकॉर्ड तापमान को यह कहते हुए मान्यता दी थी कि यह ‘भूमध्यसागर के लिए अधिक उपयुक्त है.’
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ऑब्जर्वेशन एक समान नहीं
आर्कटिक सर्कल के रूप में परिभाषित ‘आर्कटिक’ में अध्ययन के अवलोकन एक समान नहीं हैं.
यह पाया गया कि 1979 और 2021 के बीच स्वालबार्ड (नॉर्वे) और नोवाया ज़ेमल्या (रूस) के पास आर्कटिक महासागर के यूरेशियन क्षेत्र में अधिकतम वार्मिंग हुई.
अध्ययन के मुताबिक, इस क्षेत्र के तापमान में बढ़ोतरी ‘वैश्विक औसत से सात गुना तेजी से’ हुई. पिछले 43 सालों में सबसे ज्यादा वॉर्मिंग- – दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में पांच गुना तेज – अक्टूबर से दिसंबर के बीच हुई है.
शोध में पाया गया कि अत्याधुनिक जलवायु सिमुलेशन मॉडल भी आर्कटिक एम्प्लीफिकेशन को कैप्चर करने में सक्षम नहीं थे.
शोध बताता है, ‘हमने ऑब्जर्व किए कि आर्कटिक एम्प्लीफिकेशन अनुपात की तुलना अत्याधुनिक जलवायु मॉडल द्वारा सिम्युलेटेड अनुपात से की और पाया कि 1979 और 2021 के बीच, आर्कटिक में वार्मिंग का अनुपात दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में चार गुना अधिक था. यह जलवायु मॉडल सिमुलेशन में एक अत्यंत दुर्लभ घटना है.’
शोधकर्ताओं का कहना है कि आर्कटिक एम्प्लीफिकेशन के उनके अनुमान पिछले अनुमानों से अलग हैं क्योंकि वे अपडेटिड उपग्रह डेटा का इस्तेमाल करते हैं. साथ ही सच यह भी है कि आर्कटिक में निरंतर वार्मिंग के कारण पहले के अनुमान पुराने हो सकते हैं.
अध्ययन में कहा गया है, ‘हमने उपग्रह युग (1979-2021) का इस्तेमाल किया जब आर्कटिक से रिमोट-सेंसड ऑब्जर्वेशन उपलब्ध हैं और आर्कटिक सर्कल का इस्तेमाल दक्षिणी सीमा (66.5∘–90∘N) के रूप में आर्कटिक के क्षेत्र के लिए किया गया. इन मापदंडों के साथ, आर्कटिक में वार्मिंग की देखी गई दर वैश्विक औसत से 3.8 गुना ज्यादा है.’
शोधकर्ता ने बताया कि पिछले 43 सालों में आर्कटिक एम्प्लीफिकेशन के स्तर के लिए न सिर्फ मनुष्य जिम्मेदार है बल्कि जलवायु में प्राकृतिक विविधताओं ने भी योगदान दिया है जिसे आंतरिक परिवर्तनशीलता कहा जाता है. आंतरिक परिवर्तनशीलता जलवायु में होने वाला वो परिवर्तन है जिसके प्राकृतिक कारण होते हैं. इसके लिए मानव जिम्मेदार नहीं होता है. इस प्वाइंट को उजागर करने के लिए, शोधकर्ताओं ने एक अन्य अध्ययन का हवाला दिया जिसमें पाया गया था कि 37 सालों में आर्कटिक में 40 से 50 प्रतिशत समुद्री बर्फ का नुकसान आंतरिक परिवर्तनशीलता के कारण हो सकता है. आर्कटिक एम्पलीफिकेशन के लिए समुद्री बर्फ की कमी भी जिम्मेदार होती है.
उन्होंने कहा कि अगर आंतरिक परिवर्तनशीलता देखे गए आर्कटिक एम्प्लीफिकेशन और मॉडल सिमुलेशन के बीच अंतर का एक महत्वपूर्ण स्रोत साबित होती है, तो ‘कोई उम्मीद कर सकता है कि लंबे समय में ऑब्जर्व किया गया यह आर्कटिक एम्प्लीफिकेशन कम हो जाएगा.’
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