scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमविदेशतालिबान के डर से भाग रहे हैं अफगानी, वीजा देने से इनकार कर रहा है पड़ोसी देश उज्बेकिस्तान

तालिबान के डर से भाग रहे हैं अफगानी, वीजा देने से इनकार कर रहा है पड़ोसी देश उज्बेकिस्तान

हाल के महीनों में उज्बेकिस्तान के वीजा के लिए आवेदन देने वाले अफगान नागरिकों ने बताया कि मध्य एशियाई देश कोरोनावायरस की चिंताओं का हवाला देते हुए अफगान नागरिकों को वीजा देने से इनकार कर रहा है.

Text Size:

तिरमिज (उज्बेकिस्तान): अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के तेजी से कब्जा जमाने के बाद हजारों लोग देश छोड़कर भागने की जुगत में हैं लेकिन पड़ोसी देश उज्बेकिस्तान अफगान शरणार्थियों की बाढ़ आने को लेकर चिंतित है.

हाल के महीनों में उज्बेकिस्तान के वीजा के लिए आवेदन देने वाले अफगान नागरिकों ने बताया कि मध्य एशियाई देश कोरोनावायरस की चिंताओं का हवाला देते हुए अफगान नागरिकों को वीजा देने से इनकार कर रहा है.

विशेषज्ञों का कहना है कि उज्बेकिस्तान के प्राधिकारी अफगानिस्तान के साथ सीमा पर कड़ी सुरक्षा बरतते रहे हैं और उन्हें चरमपंथियों के देश में घुसने का डर रहता है तथा उन्होंने अस्थिर पड़ोसी देश से केवल कुछ ही शरणार्थियों को पनाह दी है.

अफगानिस्तान में हाल के महीनों में तालिबान के एक के बाद एक शहर पर कब्जा करने के कारण उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान में प्राधिकारियों ने सीमा पर सुरक्षा बढ़ा दी है. अफगानिस्तान की सीमा ईरान, पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और चीन के शिनजियांग प्रांत से लगती है.

समी एल्बिगी ने जब तालिबान के उत्तर अफगानिस्तान के शहर मजार-ए-शरीफ की ओर बढ़ने की खबर सुनी तो उन्हें पता चल गया कि अब भागने का समय आ गया है. उन्होंने अपने फोन, एक सूट और कुछ कपड़े लिए और अपने मां से विदायी ली. कहीं न कहीं उनके दिमाग में यह बात घूम रही थी कि वह शायद आखिरी बार अपनी मां को देख रहे हैं.

एल्बिगी (30) अपने घर को छोड़कर उज्बेकिस्तान की सीमा पर आ गया. उनके पास व्यापार करने के कारण वैध वीजा है इसलिए उन्हें उज्बेकिस्तान में प्रवेश करने में दिक्कत नहीं होगी. उन्होंने कहा, ‘तालिबान ने इतनी जल्दी सत्ता पर कब्जा किया जिसकी उम्मीद नहीं थी. मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा. मेरे वीजा की अवधि एक महीने में खत्म हो रही है और मुझे नहीं पता कि आगे मैं क्या करूंगा. मेरे पास कोई योजना नहीं है. मैंने सबकुछ पीछे छोड़ दिया है.’

एक मानवाधिकार वकील स्टीव स्वर्डलॉ ने कहा कि 1990 में अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के बाद से उज्बेकिस्तान सरकार शरणार्थी संधि पर हस्ताक्षर करने से लगातार इनकार करती रही है क्योंकि इसके तहत उसे उत्पीड़न के डर से भागे लोगों को शरण देनी होगी.

फारसी भाषी शहर तिरमिज उज्बेकिस्तान आने वाले कई अफगान नागरिकों का पसंदीदा शहर रहा है.


यह भी पढ़ें: भाजपा के साथ स्थानीय चुनावों में गठबंधन के खिलाफ क्यों उठ रहे हैं AIADMK में स्वर


 

share & View comments