नई दिल्ली: अपने हरे-पीले ऑटो का रियर-व्यू मिरर ठीक करते हुए सोनाली ने खुद पर एक गहरी नज़र डाली. सिर पर फूलों वाले प्रिंट का हरा दुपट्टा ढका हुआ था. लेकिन फरीदाबाद की इस ब्लू-कॉलर वर्कर को दिन का पहला यात्री मिलने से पहले ही, उसने अपने नए ख़रीदे हुए iPhone से इंस्टाग्राम पर अपने लगभग 50,000 फ़ॉलोअर्स के लिए एक छोटा सा संदेश रिकॉर्ड किया. “हेलो दोस्तों, हम अपना दिन शुरू कर रहे हैं. मैं अब घर से निकल रही हूं, मैं आपको दिनभर अपडेट देती रहूंगी.”
इसके बाद उसने फोन को ग्लव बॉक्स में रख दिया और इंजन स्टार्ट करते हुए “जय भीम” कहकर अपना दिन शुरू किया.
यह उन कई वीडियोज़ में से एक है जो सोनाली पूरे दिन एनसीआर शहर में घूमते हुए शूट करती हैं. दो महीने पहले उसके पास सिर्फ कुछ सौ फ़ॉलोअर्स थे. अब यह संख्या तेज़ी से बढ़ गई है. पड़ोसी, जिन्होंने उसे एक महिला ऑटो ड्राइवर के रूप में संघर्ष करते देखा है, उसे “झांसी की रानी” कहते हैं. कई बार यात्री उसके ऑटो में बैठते ही पहचान लेते हैं. “अरे, आप वही ऑटो इन्फ्लुएंसर नहीं हैं?”
“लोग मुझे Sonaliautodriver के नाम से जानते हैं,” उसने बिना झिझक अपनी नई पहचान बताई.
सोनाली उन बढ़ते हुए ब्लू-कॉलर वर्कर्स में से एक है जो भारत में इंटरनेट पर अपनी जगह बना रहे हैं—इंस्टाग्राम से लेकर यूट्यूब और फ़ेसबुक तक. सोशल मीडिया पर पेंटर, राजमिस्त्री, कंस्ट्रक्शन वर्कर, मज़दूर, डिलीवरी बॉय, ट्रक ड्राइवर—सब अपनी कार्य-ज़िंदगी को बेझिझक दिखा रहे हैं. वे अपनी स्किल, संघर्ष और रोज़मर्रा की जद्दोजहद पूरे आत्मविश्वास के साथ दुनिया को दिखा रहे हैं. उनकी ज़िंदगी अब सिर्फ निजी मेहनत नहीं रह गई, बल्कि कंटेंट देखने वाली दुनिया उसे देख रही है, शेयर कर रही है. ट्रक ब्लॉगर राजेश रवानी का अपनी केबिन में मछली पकाना, ब्लिंकिट डिलीवरी पर्सन बेंजामिन रयान के पर्सनल केयर वीडियो, या कंस्ट्रक्शन वर्कर दीपक महतो के साइट से आने वाले वीडियो—ब्लू कॉलर वर्कर्स ने एक ऐसा स्पेस पा लिया है जहाँ न कोई जजमेंट है, न कोई रोक.
मैकिंज़ी एंड कंपनी की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में संगठित और असंगठित दोनों सेक्टरों में 80 प्रतिशत से ज़्यादा ब्लू कॉलर गैर-कृषि मज़दूर काम करते हैं. लाइवमिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार इंस्टाग्राम पर ब्लू कॉलर नौकरियों से जुड़े एक लाख से ज़्यादा पोस्ट मिलते हैं. ब्लू कॉलर वर्कर्स भारत की क्रिएटर इकोनॉमी में बड़ा योगदान दे रहे हैं, जो इंस्टाग्राम रील्स के आने के बाद और बढ़ी है. उनका कंटेंट भारत के सख्त वर्ग-ढांचे और जाति से जुड़े पूर्वाग्रहों को चुनौती देता है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर दि स्टडी ऑफ सोशल सिस्टम्स के प्रोफेसर और प्रमुख सुरिंदर जोधका ने कहा, “सोशल मीडिया कई तरह की वर्चुअल जगहें बना रहा है और इन जगहों की अपनी एक भाषा होती है. यह भाषा किसी न किसी रूप में पुराने पदानुक्रम और फर्क की संरचनाओं को चुनौती देती है. हम सांस्कृतिक छवियों का लोकतंत्रीकरण होते देख रहे हैं.”
कोड क्रैक करना
सुबह के सात बज रहे हैं. फरीदाबाद सेक्टर 22 के जाटव परिवार में चारों महिलाएं जाग चुकी हैं. चाय धीरे-धीरे उबल रही है और पुष्पा, मां, प्याज़ काट रही हैं. वह जल्दी में हैं ताकि उन दो बेटियों का नाश्ता तैयार कर सकें जो रोज़ बाहर काम पर जाती हैं.
चार साल पहले तक जाटव परिवार ने कभी संघर्ष नहीं देखा था. उनका एक छोटा सा बिज़नेस था और तीनों बच्चे मध्यवर्गीय सपनों के साथ बड़े हो रहे थे. बड़ी बेटी सोनिया नर्स बनना चाहती थी, सोनाली मेकअप आर्टिस्ट और हेयर स्टाइलिस्ट, और सबसे छोटी बेटी अपनी किशोरावस्था आराम से जी रही थी. फिर 2021 में कोविड के दौरान पिता का निधन हो गया. परिवार की आर्थिक हालत बिगड़ गई और सपने पीछे छूट गए. एक रात में जीने के संघर्ष ने प्राथमिकता ले ली.
ऑटो चलाने की रोज़मर्रा की मेहनत के अलावा, सोनाली ने इंटरनेट में एक मौका देखा. शुरुआत में वह गाने और नाचने के वीडियो डालती थी. साल की शुरुआत में पोस्ट किए गए एक रील में सोनाली डार्क ब्लू ट्रैकसूट पहने भोजपुरी गाने ‘फलाना बो फरार भइली’ पर नाचती दिखती है. वीडियो एक बेसिक स्मार्टफोन से शूट किया गया था और फिल्टर से थोड़ा बेहतर दिखता था. वीडियो पर सिर्फ 300 लाइक्स थे. तब उसके पास iPhone नहीं था.

इंस्टाग्राम पर नाचने वालों की भीड़ में वह अलग नहीं दिख पा रही थी. उसे एक ‘एक्स फैक्टर’ चाहिए था. फिर उसने साधारण चीज़ को चुना.
अप्रैल में उसने ऑटो चलाते हुए एक वीडियो पोस्ट किया. इसी रील में उसने फ़ॉलोअर्स बढ़ाने का वादा किया और कहा कि लक्ष्य पूरा होते ही वह यूट्यूब भी शुरू करेगी. वीडियो में वह फोन उठाकर फरीदाबाद की सड़कें और गलियां दिखाती है, अपना जीवन साझा करती है. इसके बाद वह नियमित रूप से ऐसे वीडियो पोस्ट करने लगी. उसकी पहचान ही लोगों के लिए उत्सुकता का कारण बन गई और फ़ॉलोअर्स बढ़ने लगे.
एक बार फॉर्मूला समझ गया तो उसने उसी पर काम किया. तीन महीने पहले पोस्ट किए गए एक वीडियो में सोनाली कैमरे से सेल्फी मोड में बात कर रही है, अपने दिन के बारे में बता रही है.
एक और वीडियो में, काले चश्मे पहने सोनाली कहती है, “मैंने ऑटो ESI हॉस्पिटल के बाहर पार्क किया है.”
धीरे-धीरे उसके वीडियो की क्वालिटी सुधर गई. खराब विज़ुअल अब iPhone की वजह से चमकदार दिखने लगे. टूटी स्क्रीन वाले फोन से OnePlus और फिर iPhone तक का सफर तय किया. अब उसे कैमरा एंगल और प्लेसमेंट की भी समझ है.
पिता की मौत के बाद उनका ट्रांसपोर्ट बिज़नेस बंद हो गया था. सबकुछ बेचना पड़ा. संभालने वाला कोई नहीं था. लेकिन सोनाली अड़ी रही कि ऑटो नहीं बिकेगा.
“उन्होंने ही मुझे ऑटो और चार पहिया चलाना सिखाया. वही व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे ऑटो ड्राइवर के रूप में करियर दिया,” सोनाली ने मेकअप करते हुए कहा, एक बड़े शीशे के सामने खड़ी—जो सिर्फ किसी सलून में मिलता है.
सोनाली का घर बिखरा हुआ सा है. अंदर ही बंद पड़ा सलून और छोटी सी दुकान होने के कारण जगह कम बचती है जहां परिवार सो सके. लेकिन सोनाली को उम्मीद है कि वह एक-एक रील के सहारे परिवार को इस संकट से निकाल लेगी.
“मुझे पता है कि घर की हालत मुश्किल है, हम जैसे-तैसे चल रहे हैं. लेकिन मुझे विश्वास है कि हम संभल जाएंगे,” उसने मेकअप की दराज़ से वायलेट लिपस्टिक निकालते हुए कहा.

इन्फ्लुएंसर जैसे कुशा कपिला या साक्षी सिंदवानी कैमरे पर आने से पहले हर बार मेकअप करती हैं. सोनाली समझती है कि एक इन्फ्लुएंसर बनने के लिए दिखावट जरूरी है.
वह बड़ा शीशा उसकी मां के बंद पड़े सलून का हिस्सा है. वैक्स मशीन में जमी हुई पीली वैक्स, पाउडर, लिपस्टिक, कंटूर, फाउंडेशन—सब दराज़ में रखा है. सोनाली जल्दी में है. पहले फाउंडेशन, फिर कंटूर, फिर ब्रश से सब स्मूद.
“मैं ड्यूटी पर जाने से पहले मेकअप करती हूं. इससे अच्छा लगता है,” उसने कहा. हल्की सी थप-थप और स्विश, और मेकअप तैयार. फिर उसने अपनी खुद की डिज़ाइन की हुई ग्रे यूनिफॉर्म पहनी—ग्रे कुर्ता-शर्ट और पायजामा.
दिवाली और त्योहारी सीज़न में सोनाली ने ऑटो रील्स से थोड़ा ब्रेक लिया. चाहे उसे एल्गोरिद्म की ज़्यादा जानकारी न हो, पर वह जानती है कि इंटरनेट पर कहां ट्रैफिक रहता है. बॉलीवुड डांस, मेहंदी रील्स—वह लगातार पोस्ट करती रहती है. और इसका असर दिखने लगा है. उसे FM 89.6 और लोकल इंस्टाग्राम चैनल thekolientertainmentpodcast ने इंटरव्यू किया है. वह एक स्थानीय अखबार में भी छप चुकी है.
ETV Bharat ने हेडलाइन दी: “फरीदाबाद की ‘Sonali Auto Driver’ संघर्षों को चीरते हुए आगे बढ़ रही है, वकील बनने का सपना देखती है.”
“अब लोग मुझे पहचान लेते हैं, चाहे मेट्रो में या फरीदाबाद में कहीं भी. लोग मुझसे सेल्फी मांगते हैं,” वह मुस्कुराकर बताती है.

सोशल मीडिया ने ब्लू-कॉलर वर्कर्स को अपनी आकांक्षाएं दिखाने और अपने काम से जुड़ी हीनभावना मिटाने का मौका दिया है. वे अपनी तरह से सितारे बन रहे हैं. उनके अपने प्रशंसक हैं. कंटेंट क्रिएशन की दुनिया थोड़ी बराबरी वाली हुई है.
“सोशल मीडिया ने ब्लू-कॉलर वर्कर्स को एहसास कराया है कि वे भारतीय अर्थव्यवस्था में कितने अहम हैं. जब हम इन्फ्लुएंसर कहते हैं, तो सिर्फ बड़े नामों के बारे में सोचते हैं. लेकिन ब्लू-कॉलर कंटेंट क्रिएटर्स भी इन्फ्लुएंसर हैं,” व्यंग्यकार और फिल्ममेकर अनुराग माइनस वर्मा ने कहा.
मिलकर, उन्होंने अपनी एक मिनी-इंडस्ट्री बना ली है.
49 वर्षीय राजेश रवानी झारखंड के रामगढ़ के एक ट्रक ड्राइवर हैं. उनका काम देशभर में सामान ढोना है. 10 घंटे सड़क पर बिताने वाले रवानी को अपनी यात्रा फिल्माना बहुत पसंद था. वह अपने सफर के वीडियो बनाते—खाना, पहाड़, लोग, रास्ते. फिर जब उनके बेटों ने यह सारे वीडियो जोड़कर यूट्यूब पर डाले, तो वह वायरल हो गया. आज उस वीडियो पर 4 लाख से ज़्यादा व्यूज़ हैं.
इस वायरल वीडियो ने रवानी और उनके बेटों को और कंटेंट बनाने की प्रेरणा दी. रवानी अपनी सादगी भरी रोज़मर्रा की ज़िंदगी के वीडियो के लिए पसंद किए जाते हैं.
अब उनके बेटे भी इस सफर का हिस्सा हैं, उन्हें सोशल मीडिया तकनीक समझाते हैं. उनका बड़ा बेटा सागर उनके साथ ट्रक में चलता है और वीडियो शूट करता है.
दो महीने पहले रवानी और सागर गुवाहाटी गए थे. ट्रक आसाम की हरी-भरी घाटियों से गुज़रा. बीच में रुके और स्थानीय घुघनी-पूरी खाई—घर के स्वाद जैसा. वीडियो पर दो लाख से ज़्यादा व्यूज़ हैं. सरल कट, साफ विज़ुअल, सब मिलकर इसे खूबसूरत बनाते हैं.
पांच साल से ज़्यादा समय हो गया है. रवानी के यूट्यूब पर 2.66 मिलियन सब्सक्राइबर्स हैं और इंस्टाग्राम पर लगभग 20 लाख फ़ॉलोअर्स.
उनका नया यूट्यूब वीडियो, 21 अक्टूबर 2025 को पोस्ट हुआ, तीन घंटे में 1.61 लाख व्यूज़ पा गया. पंजाब में नया ट्रक ख़रीदने और दिवाली पर घर लौटने का साधारण सा वीडियो—पर 1,200 से ज़्यादा कमेंट्स. लोग तारीफें करते हैं, शुभकामनाएं देते हैं.
“मैंने अपनी साधारण ज़िंदगी दिखाई—मेरी यात्राएं, मेरी मुलाकातें. मैं संस्कृति दिखाता हूं, खाना, परंपरा, भाषा. अच्छा भी, बुरा भी,” रवानी ने कहा.
दर्शकों से जुड़ा कंटेंट
फरीदाबाद की सड़कें पहले से ही एसयूवी, ट्रक और साइकिल चलाने वाले मर्दों से भरी रहती हैं. पूरा माहौल अफरातफरी वाला है. लेकिन सोनाली बहुत अच्छी ड्राइवर है. उसका ऑटो लगभग सात साल पुराना है और अक्सर खराब हो जाता है. लेकिन इस युवा इन्फ्लुएंसर के लिए उसका ऑटो—जिसका नाम उसने ‘चमकी’ रखा है—अभी उसका एकमात्र सहारा है.
वह इंजन स्टार्ट करती है, तेज़ी पकड़ती है और यू-टर्न लेती है. एनसीआर के इस इलाके में जब लोग एक महिला ऑटो ड्राइवर को देखते हैं तो सबकी नज़रें उसकी ओर उठ जाती हैं. वे इसके आदी नहीं हैं. उसका पहला स्टॉप गैस स्टेशन है, जहां पूरा स्टाफ पुरुष है.
इलाके के यात्री उसे पहचानते हैं और उसका हौसला बढ़ाते हैं. “आजकल महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं, और सोनाली तो ऑटो चलाने में बहुत अच्छी है,” बीना ने कहा, जो उसकी ऑटो में बैठी थीं.
उधर सोनाली लंबी कतार में लगी है, उसकी ‘चमकी’ कारों और मर्दों द्वारा चलाए जा रहे अन्य ऑटों के बीच फंसी हुई है.
“एक महिला ऑटो ड्राइवर होना आसान नहीं है. मर्द हमें गंभीरता से नहीं लेते. कई बार ताना भी मारते हैं कि मैं यह काम इसलिए कर रही हूं क्योंकि मुझे स्टार बनना है. लेकिन कोई नहीं समझता कि इसी ऑटो को चलाकर मैं अपने परिवार का पेट पाल रही हूं,” सोनाली कहती है.
इन्फ्लुएंसर के तौर पर सोनाली की यात्रा अभी शुरुआती दौर में है. किसी भी नए क्रिएटर के लिए यह पहला चरण काफ़ी संघर्ष से भरा होता है. इसी समय उन्हें दर्शकों का ध्यान खींचना होता है—जो सोनाली पहले ही कर रही है.
अब सोनाली की बारी है. वह ऑटो से उतरकर गैस का भुगतान करती है. सिर सीधा, बातें छोटी, तेज़ और आत्मविश्वासी. दिनभर के लिए वह 300 रुपये का गैस भरवाती है. अब बारी है ग्राहकों को लेने की. वह तेज़ी से ऑटो चलाकर मेट्रो स्टेशन पहुंचती है.
वह ऑटो लेन में खड़ी होती है, जहां बाकी सब ड्राइवर पुरुष हैं. सोनाली निडर और आत्मविश्वासी है. कंधे ऊंचे, जैसे कोई सैनिक मैदान में खड़ा हो, वह स्टैंड को स्कैन करती है.
“ओल्ड फरीदाबाद! मेट्रो स्टेशन! हार्डवेयर चौक!” वह पूरी ज़ोर से पुकारती है और दिन का पहला यात्री मिल जाता है. उधर ट्रैफिक पुलिस ड्राइवरों को लगातार आगे बढ़ने को कह रही है.
कभी-कभी ‘चमकी’ रास्ते में ही बंद हो जाती है. आज भी वैसा ही दिन था. सोनाली फ्लाईओवर पर थी कि ऑटो ने तेज़ी पकड़नी बंद कर दी.
“फिर वही दिक्कत दिखा रहा है,” उसने कहा और गियर बदलकर किसी तरह फ्लाईओवर के अंत तक पहुंचकर यात्री को उतारा. आगे क्या हुआ, यह उसकी सोशल मीडिया पर दिखता है. उसके पेज पर टायर की दुकान पर जाने के कई रील हैं.
“मैं यहां टायर ठीक कराने आई हूं… पता नहीं क्यों हमेशा मेरे साथ ही ऐसा होता है,” उसने 25 अक्टूबर को पोस्ट की गई एक रील में कहा.
एक और वीडियो ‘Miss you Papa’ में वह अपने दर्शकों को ऐसे ही एक वर्कशॉप के अनुभव से गुज़ारती है. “आज बहुत काम है मेरे पास, मैं आपको दिखाऊंगी कि मैं दिनभर क्या करती हूं.”
वह ऑटो में कोई ट्राइपॉड इस्तेमाल नहीं करती. फोन हाथ में पकड़कर या फोन होल्डर में रखकर शूट करती है. इसी कच्चेपन और सहजता में उसके कंटेंट की असली ताकत है.
“ब्लू-कॉलर वर्कर्स का कंटेंट घर-सा अपनापन देता है. दर्शक उस चीज़ से जुड़ने की कोशिश करते हैं जो उनकी नहीं होती. उन्हें एक तरह की सामाजिक सहजता मिलती है,” जोधका ने दिप्रिंट से कहा.
हकीकत को मान लेना
बेंजामिन रयान गौतम, ठीक सोनाली और रवानी की तरह, कैमरे के सामने भी अपनी हकीकत दिखाने में झिझकते नहीं हैं. वह कोशिश करते हैं कि जैसा असल में हैं, वैसे ही नज़र आएं.
इस साल जनवरी में उन्होंने एक वीडियो बनाया जिसने उन्हें टॉप ब्लू-कॉलर इन्फ्लुएंसर्स की लिस्ट में पहुंचा दिया. यह 30 सेकंड की सेल्फ-केयर रील थी. आम-सी बात थी, लेकिन उनकी एक्सप्रेशन ऐसे थे कि लोग वीडियो से जुड़े रहे. इस रील को 40 लाख से ज़्यादा व्यू और 41 हज़ार लाइक्स मिले हैं.
गौतम, अब 17, उनकी उम्र इस्तेमाल न करने को कहा गया है, ने माना कि यह एक अचानक बनाया गया वीडियो था, जो उन्होंने तैयार होते समय शूट किया था.

मेकअप लगाने पर उन्हें कुछ लोगों ने ट्रोल किया, लेकिन इंस्टाग्राम पर कई लोगों ने उनकी साफ-सफाई की आदत की तारीफ़ भी की. कई ने उनकी लुक्स की भी तारीफ़ की. और यहीं से उनकी इन्फ्लुएंसर जर्नी शुरू हुई.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “पुरुष भी किसी खास मौके पर मेकअप लगाते हैं. मैंने भी लगाया था, इसमें गलत कुछ नहीं है.”
टिकटॉक के समय से ही गौतम सोशल मीडिया की ताकत समझ गए थे. करियर शुरू करने के लिए उन्हें बस एक सही मौका चाहिए था. वायरल हुआ ग्रूमिंग वीडियो उनका ब्रेकआउट मोमेंट था.
उन्होंने कहा, “कभी-कभी दर्शक स्क्रीन पर दिखाई गई हकीकत (खासकर पुरुषों की सेल्फ-केयर) स्वीकार नहीं करना चाहते, लेकिन जो है वही है.”
कुछ महीनों बाद, गौतम को ब्लिंकिट में नौकरी मिली, जो उनकी ऑनलाइन पहचान का हिस्सा बन गई—काम पर जाने से पहले तैयार होता एक गिग वर्कर.
समय के साथ उनका कंटेंट और बोल्ड, बेबाक और करिश्माई होता गया. इंस्टाग्राम पर उनके फॉलोअर्स की संख्या बढ़कर 1.4 लाख हो गई है.
वह GRWM (Get Ready With Me) ट्रेंड पर कूद पड़े. उनके आत्मविश्वास से भरे वीडियो की तारीफ़ होती है, लेकिन किराना डिलीवर करते वक्त उन्हें ग्राहकों से बदसलूकी भी झेलनी पड़ी है. ऑनलाइन पहचान और ज़मीन की सच्चाई अलग होती है.
गौतम ने कहा, “कुछ दिनों में लोग मुझे ‘छपरी’ कह देते हैं (एक अपमानजनक शब्द), मेरे कंटेंट और काम की वजह से. दर्शकों का व्यवहार थोड़ा बदला है, वर्गभेद कम हो रहा है, लेकिन यह बहुत धीमी गति से हो रहा है.”
उनकी ताज़ा रील ‘Get Ready With Me – Diwali Edition’ को तीन लाख से ज़्यादा व्यू और आठ लाख लाइक्स मिले हैं. बड़े से मुस्कुराते हुए उन्होंने अपने फॉलोअर्स को दिवाली की शुभकामनाएँ दीं और कहा, “अब समय है GRWM का… मैं क्या पहनने वाला हूं वही सबसे बड़ा सवाल है.”

संघर्ष, भाषा और वित्त
गौतम हरिद्वार के एक परिवार से आते हैं. उन्हें 17 साल की उम्र में घर से बाहर निकलने के लिए जिस चीज़ ने प्रेरित किया, वह उनकी अपनी महत्वाकांक्षा थी. वह एक्टर बनना चाहते हैं. लेकिन उससे पहले, वह एक स्टार बन चुके हैं.
उन्होंने हरिद्वार के एक CBSE स्कूल में पढ़ाई की है और जॉन सीना तथा रोमन रेंस उनके पसंदीदा हैं. बचपन में वह WWF देखते थे और इंग्लिश कमेंट्री को ध्यान से सुनते थे. वह कहते हैं कि उनकी इंग्लिश वहीं से आई है. वह टूटी-फूटी इंग्लिश बोलने लगे. अब वह भाषा में अपनी फ्लुएंसी बढ़ाना चाहते हैं ताकि उनकी पहुँच बढ़ सके.
गौतम ने अपनी इन्फ्लुएंसर जर्नी टिकटॉक से शुरू की थी, जहां वह अपने दोस्तों के साथ वीडियो बनाते थे. चीन का यह ऐप भारत में बैन हो गया, लेकिन गौतम ने हार नहीं मानी. उन्होंने जल्दी ही इंस्टाग्राम पर कदम रख दिया.
गौतम ने कहा, “मैं चाहता हूं कि दुनिया भर के लोग कनेक्ट हों और मेरे कंटेंट को समझें.”
उनके फॉलोअर्स में डिलीवरी बॉय से लेकर एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा जोनस तक शामिल हैं.

जहां गौतम इंग्लिश सीखने पर ज़ोर देते हैं, वहीं रवानी अपने सभी वीडियो हिंदी में बनाते हैं.
रवानी ने कहा, “भाषा दर्शकों का ध्यान खींचने में बहुत अहम है. हम हिंदी बोलते हैं, क्योंकि हमारे दर्शक ट्रक ड्राइवर से लेकर आनंद महिंद्रा तक हैं. हर कोई हिंदी समझता है.”
सोनाली हिंदी और इंग्लिश, दोनों का मिश्रण बोलती हैं. वह अपने चैनल पर इंग्लिश में ग्रीटिंग देती हैं, लेकिन तुरंत हिंदी पर लौट आती हैं. वह सहजता और आराम को सख़्ती पर तरजीह देती हैं.
सोनाली ने कहा, “मैं वही भाषा बोलती हूं जिसमें मैं सहज हूं.”
उन्हें दिन शुरू किए एक घंटे से ज़्यादा हो चुका है. उसने यात्रियों को उतारा, ऑटो स्टैंड पर गाड़ी खड़ी की और ग्लव बॉक्स से फोन निकालकर एक छोटा व्लॉग रिकॉर्ड किया. कोई स्क्रिप्ट नहीं होती—बस सहज बातें होती हैं. वह धीरे-धीरे समझ रही हैं कि क्या काम करता है और क्या नहीं.
“हेलो गाइज, आज हम यहाँ हैं…”, तभी दूसरा ऑटो ड्राइवर टोकता है.
“ओ ओ! तेरा तो टायर पंचर हो गया.” सोनाली फोन छोड़कर बाहर निकलती हैं. वह घबरा जाती हैं. “क्या, कहां, कैसे? मैंने तो देखा भी नहीं,” वह टायर चेक करते हुए कहती हैं.
टायर पंचर नहीं था. उस आदमी ने बस मज़ाक किया था.
सोनाली ने कहा, “ये आम बात है. कई बार मैं रोते हुए घर लौटी हूं. लेकिन मैं इन मर्दों को जीतने नहीं दूंगी.”
जैसे-जैसे ब्लू-कॉलर इन्फ्लुएंसर अपना इंटरनेट स्पेस बना रहे हैं, वे अपने कंटेंट में विविधता भी लाना चाहते हैं. रवानी ने ट्रक ट्रैवल वीडियो से शुरुआत की. बाद में वह ट्रक में खाना बनाते हुए वीडियो बनाने लगे. अब उनकी नई वीडियो सीरीज़ नए ट्रक की खरीद और उसे फ्रिज व बेड से कस्टमाइज़ करने पर है. गौतम, जिन्होंने “क्रिंज कंटेंट” से शुरुआत की थी, अब GRWM जैसे परिष्कृत ट्रेंड अपनाते हैं.
रवानी अपने वीडियो में हमेशा ट्रक चालकों की मुश्किलों के बारे में बात करते हैं. उन्होंने 50 साल से ऊपर के ड्राइवरों के लिए पेंशन की मांग भी की है. दिल्ली में एक कार्यक्रम में उन्होंने नौकरशाहों के सामने बताया कि ट्रक ड्राइवरों की ज़िंदगी कैसे बेहतर हो सकती है.
गौतम ने कहा, “मैं कभी ब्लिंकिट वाला लड़का बनकर नहीं रहना चाहता था. मैं हमेशा एक कंटेंट क्रिएटर बनना चाहता था.”
हरियाणा के इलेक्ट्रिशियन पवन बिश्नोई ने भी टिकटॉक से शुरुआत की थी. बैन के बाद वह इंस्टाग्राम पर आए. टिकटॉक पर ज़्यादा लोकप्रिय होने के बावजूद इंस्टाग्राम पर उनके सिर्फ़ 13,000 फॉलोअर्स हैं.
वर्मा ने कहा, “सोशल मीडिया पर वायरल होना एक बड़ा फैक्टर है. कुछ वीडियो बहुत ट्रैक्शन पाते हैं, लेकिन वह ध्यान ज़्यादा समय तक नहीं टिकता.”
वर्मा के अनुसार, सिर्फ़ एक प्रतिशत क्रिएटर्स ही वह स्टारडम पा पाते हैं जो रवानी ने हासिल किया है.
एक इंटरव्यू में रवानी ने माना कि वह सिर्फ़ इंस्टाग्राम से ही महीने के चार लाख रुपये से ज़्यादा कमाते हैं. कुछ महीनों में यह आय 10 लाख रुपये से भी ऊपर चली जाती है. उनके नए घर से पता चलता है कि ब्लू-कॉलर इन्फ्लुएंसर कितनी सफलता पा सकते हैं.
सोनाली, जो अभी अपनी इन्फ्लुएंसर जर्नी शुरू ही कर रही हैं, भी ऐसी सफलता का सपना देखती हैं.
वह जल्द ही यूट्यूब पर आने की योजना बना रही हैं और अपने कंटेंट में और विविधता जोड़ना चाहती हैं. लेकिन उन्हें पता है कि हर कोई राजेश रवानी या अमन शर्मा नहीं बन सकता.
जब तक सफलता नहीं मिलती, उनके लिए उनकी ‘चमकी’ ही रोज़ी-रोटी है.
दिन खत्म करने से पहले, सोनाली ने अपनी आमदनी गिनी. यह 200 रुपये से भी कम थी.
उन्होंने कहा, “मैंने आज सिर्फ़ 200 रुपये कमाए हैं, और 300 रुपये की गैस भरवाई है.”

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