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Sunday, 22 December, 2024
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उपचुनाव के सहारे प्रासंगिक होने का मौका तलाश रही INLD लेकिन अब मतदाताओं को चौटाला पर विश्वास नहीं

पार्टी ने तीन बार के विधायक और वरिष्ठ नेता अभय सिंह चौटाला को चुनाव मैदान में उतारा है, जिनके इस साल जनवरी में किसान आंदोलन के मुद्दे पर सीट से इस्तीफा देने के कारण, उप-चुनाव की ज़रूरत आन पड़ी है.

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जींद: भारतीय राष्ट्रीय लोक दल (आईएनएलडी) पार्टी इसी महीने, एलनाबाद उपचुनाव में एक लिटमस टेस्ट से गुज़रने जा रही है, जिसमें पिछले असेम्बली चुनावों में लगभग सूपड़ा साफ होने के बाद, वो राजनीतिक प्रासंगिकता हासिल करने की कोशिश कर रही है.

पार्टी ने तीन बार के विधायक और वरिष्ठ नेता अभय सिंह चौटाला को चुनाव मैदान में उतारा है, जिनके इस साल जनवरी में किसान आंदोलन के मुद्दे पर सीट से इस्तीफा देने के कारण, उप-चुनाव की ज़रूरत आन पड़ी है.

चौटाला के बेटे करन के अनुसार, उनका इस्तीफा प्रतीकात्मक था और लोगों के लिए एक संदेश था, कि अगर उनके साथ कुछ ‘ग़लत’ हुआ, तो आईएनएलडी उनके लिए खड़ी होगी. उन्होंने दावा किया कि चौटाला के पास, अब उस सीट पर फिर से लड़ने के लिए लोगों का आशीर्वाद है.

चौटाला के पराए भतीजे और हरियाणा के उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत ने, जो जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के प्रमुख हैं, फैसला किया है कि वो अपनी पार्टी का उम्मीदवार नहीं उतारेंगे. जेजेपी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ मिलकर, एक साझा उम्मीदवार घोषित करेगी.

बीजेपी सूत्रों के अनुसार, संभावना ये है कि दोनों पार्टियां हरियाणा लोकहित पार्टी चीफ गोपाल काण्डा के भाई, गोबिंद काण्डा को मैदान में उतार सकती हैं. गोबिंद पिछले सप्ताह बीजेपी में आए हैं. कांग्रेस ने अभी तक अपना उम्मीदवार नामित नहीं किया है.

एलनाबाद उपचुनाव 30 अक्तूबर को होंगे, और वोटों की गिनती 2 नवंबर को की जाएगी.


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प्रासंगिकता के लिए संघर्ष

1996 के बाद से, जब पूर्व उप-प्रधानमंत्री और किसान नेता चौधरी देवी लाल ने इसका गठन किया (हरियाणा लोकदल के नाम से), तब से किसी न किसी हैसियत से आईएनएलडी राज्य की सियासत में बनी रही है. 2009 में वो मुख्य विपक्षी पार्टी थी.

लेकिन 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीजेपी की कमान संभालने के बाद से आईएनएलडी हरियाणा में प्रासंगिक बने रहने के लिए संघर्ष करती रही है.

2014 के असेम्बली चुनावों में पार्टी का वोट शेयर 24.1 प्रतिशत था और इसकी कुल सीटें 19 थीं. दुष्यंत चौटाला के पार्टी तोड़कर जेजेपी बनाने के बाद, 2019 असेम्बली चुनावों में ये आंकड़ा गिरकर, क्रमश: 2.4 प्रतिशत और 1 सीट रह गया.

चुनावी राजनीति में ये आईएनएलडी का सबसे ख़राब प्रदर्शन था. केवल अभय सिंह चौटाला एलनाबाद सीट बचा पाए. दूसरे अधिकतर आईएनएलडी उम्मीदवारों की ज़मानतें ज़ब्त हो गईं.

2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी, आईएनएलडी ने शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के साथ मिलकर तीन सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन कोई भी जीत नहीं पाई.

अपने घरेलू मैदान पर आगामी चुनावों में पार्टी अपनी खोई हुई ज़मीन फिर से हासिल करने की कोशिश कर रही है.

आईएनएलडी की अगुवाई करने वाले देवी लाल परिवार के एक सदस्य ने कहा, ‘इस चुनाव से निश्चित रूप से आईएनएलडी को एक बढ़त मिलेगी. बीजेपी के पास तो इसके लिए कोई उम्मीदवार ही नहीं है. उन्हें गोविंद काण्डा को लाना पड़ेगा. बीजेपी बड़ोदा उपचुनाव भी हार गई है. अभी तक, पार्टी कह रही थी कि ज़मीनी स्तर पर कोई नाराज़गी नहीं है, लेकिन अब उसके उम्मीदवार का सामना किया जाएगा’.

चौटाला देवी लाल के पोते हैं. उनके पिता और पांच बार के सीएम, ओम प्रकाश चौटाला पार्टी अध्यक्ष हैं.

ऊपर हवाला दिए गए परिवार के सदस्य ने कहा, ‘दुष्यंत पहले ही नैतिक आधार खो चुके हैं. वो तो देवी लाल के मैदान में कोशिश भी नहीं कर रहे हैं, जबकि उनकी विरासत का दावा करते हैं’.


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‘इस्तीफा प्रतीकात्मक था’

जनवरी में, हरियाणा असेम्बली में आईएनएलडी विधायकों की संख्या घटकर एक इकाई में रह जाने के कुछ महीने बाद, अभय सिंह चौटाला ने किसानों के समर्थन में इस्तीफा दे दिया, जो उन तीन कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे थे, जिन्हें मोदी सरकार पिछले साल लेकर आई थी.

दिप्रिंट से बात करते हुए करन चौटाला ने, सीट छोड़ने के कुछ महीने बाद अपने पिता के चुनाव लड़ने का बचाव किया. उन्होंने 1980 के दशक की एक घटना की याद दिलाई, जिसमें उनके पड़दादा देवी लाल ने एक ‘प्रतीकात्मक’ क़दम उठाते हुए, विधायकी से इस्तीफा दे दिया था.

करन ने कहा, ‘विपक्ष पूछ रहा है कि अगर मेरे पिता को उसी सीट से फिर चुनाव लड़ना था, तो उन्होंने विधान सभा से इस्तीफा क्यों दिया था? 1980 के दशक में देवी लाल ने मेहम सीट से इस्तीफा दे दिया था, जब उनके बहुमत में होने के बावजूद राज्यपाल ने भजन लाल को बुलाकर मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी थी. बाद में, देवी लाल ने उसी सीट से फिर चुनाव लड़ा और विजयी हुए. इस्तीफा प्रतीकात्मक था’.

उन्होंने कहा, ‘अभय सिंह चौटाला की लड़ाई भी प्रतीकात्मक है. उनका इस्तीफा न्याय युद्ध के लिए था. ये लोगों के लिए एक संदेश है कि जब भी उनके साथ कुछ ग़लत होगा, आईएनएलडी उनके लिए खड़ी होगी. हमारी जींद रैली एक सबूत थी, कि हमारे काडर हमारे साथ वापस आएंगे’.

आईएनएलडी ने 23 सितंबर को ‘सम्मान दिवस समारोह’ के परचम तले जींद में एक रैली आयोजित की थी. उसमें देवी लाल की 108वीं वर्षगांठ मनाई गई. मनोहर लाल खट्टर-दुष्यंत चौटाला सरकार के खिलाफ बढ़ती लोगों की नाराज़गी के बीच, इस रैली की अगुवाई परिवार के मुखिया ओम प्रकाश चौटाला ने की.

करन ने आगे कहा, ‘आईएनएलडी रैली में मंच पर जितने लोग जमा थे, उतने दुष्यंत की पूरी रैली (उसी दिन मेवात में) में भी नहीं थे’.


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मतदाताओं ने कहा अब चौटाला परिवार पर भरोसा नहीं

लेकिन, पार्टी के भ्रष्टाचार के इतिहास को देखते हुए, मतदाता आईएनएलडी को लेकर संशय में नज़र आते हैं- ओम प्रकाश चौटाला ने जुलाई में अध्यापक भर्ती घोटाले में अपनी 10 साल की सज़ा पूरी की है. मतदाताओं ने ये भी कहा कि इस बात की पूरी संभावना है, कि पार्टी बीजेपी से हाथ मिला लेगी.

संदीप नैन, जो जींद रैली में शरीक होने वाले हज़ारों लोगों में से थे, कहते हैं कि चौटाला भी बीजेपी से हाथ मिला लेंगे, जैसा दुष्यंत ने किया. 26 वर्षीय संदीप जिनका परिवार आईएनएलडी का वफादार रहा है कहते हैं, ‘हमने दुष्यंत को वोट दिया, उसने क्या किया?’

दनोदा कलां गांव के निवासी नैन ने कहा, ‘हम तो केवल ‘ताऊ’ देवी लाल की वर्षगांठ के लिए रैली में गए थे. आईएनएलडी अब पहले जैसी नहीं रही है. जाट अब चौटाला परिवार पर भरोसा नहीं करते. वो 2019 के पहले से ही जाटों के साथ जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं’.

दनोदा कलां और आसपास के ख़ुर्द गांवों में 15,000 से अधिक मतदाता हैं. ये गांव कभी आईएनएलडी का गढ़ हुआ करते थे, लेकिन पार्टी का बंटवारा होने के बाद, मतदाता जेजेपी के समर्थन में चले गए.

‘परिवार’ में भ्रष्टाचार की बात करते हुए, मतदाताओं ने उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के खिलाफ भी रिश्वत लेने के आरोप लगाए. दुष्यंत के पास सरकार में कई महत्वपूर्ण विभाग हैं, जिनमें राजस्व, उत्पाद शुल्क, और कराधान आदि शामिल हैं.

जींद के घोगरियां गांव में, 58 वर्षीय राजेश दलाल ने कहा कि इस परिवार ने सिर्फ हरियाणा को लूटा है. उन्होंने कहा, ‘वो सिर्फ ये जानते हैं कि घोटाला कैसे किया जाता है. दुष्यंत ने अपने दादा के नाम पर हमसे वोट लिए’.

रिटायर्ड सेना अधिकारी से किसान बने 56 वर्षीय राजबीर सिंह ने कहा, कि जाट जानते हैं कि चौटाला को वोट देने का मतलब, अपना वोट बेकार करना है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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