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Saturday, 20 April, 2024
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सोनिया गांधी और ममता बनर्जी की दोस्ती क्या आपसी हितों के टकराव की चुनौती का हल निकाल पाएगी

विडंबना यह है कि कांग्रेस-मुक्त उत्तर-पूर्व में पैर फैलाने की ममता बनर्जी की कोशिश में चुनाव रणनीतिज्ञ प्रशांत किशोर मदद कर रहे हैं, जो राहुल गांधी के मित्र हैं.

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विपक्षी एकता के प्रदर्शन के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 20 अगस्त को 19 विपक्षी दलों के साथ जो वीडियो बैठक की थी उसका एक अंदरूनी प्रसंग दिलचस्प है. सोनिया ने विपक्षी नेताओं से तालमेल करने की जिम्मेवारी राहुल गांधी के भरोसेमंद पार्टी महासचिव के.सी. वेणुगोपाल को सौंपी और केरल के कांग्रेस नेता वेणुगोपाल ने यह जिम्मेवारी सोशल मीडिया का काम संभालने वाले एक कार्यकर्ता के हवाले कर दी.

कई विपक्षी नेताओं को यह नागवार गुजरा क्योंकि पहले ऐसी बैठकों का निमंत्रण उन्हें पार्टी अध्यक्ष के पूर्व राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की ओर से मिलता था. पटेल का पिछले साल नवंबर में निधन हो गया.

बहरहाल, इन नेताओं को जब कांग्रेस अध्यक्ष के दफ्तर से इस बैठक का एजेंडा मिला तो उसमें बैठक में वक्ताओं की सूची इस प्रकार थी- सोनिया गांधी, शरद पवार, मल्लिकार्जुन खड़गे, सीताराम येचुरी…. आदि-आदि. कई नेताओं को इस पर कड़ी आपत्ति थी. मुख्यमंत्रियों का नाम सूची में नीचे क्यों है? वक्ताओं में ममता बनर्जी का नाम माकपा नेता के बाद कैसे रख दिया? येचुरी को राहुल का दोस्त, विचारक और मार्गदर्शक माना जाता है लेकिन जाहिर है, दूसरे विपक्षी नेता ऐसा नहीं मानते. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी इस बैठक के संयोजन के तरीके से नाखुश थे.

जब तृणमूल कांग्रेस ने घंटी बजा दी तो सोनिया ने खुद हस्तक्षेप किया. तब वक्ताओं का क्रम इस तरह रखा गया- सोनिया गांधी, पवार, ममता, एम.के. स्टालिन, उद्धव ठाकरे, आदि-आदि. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने बैठक में खरी-खरी बात की और सवाल किया कि बैठक से पहले ही वक्तव्य का मसौदा तैयार करने की क्या जरूरत थी? (कई विपक्षी नेताओं को यह लगा कि इसमें येचुरी की भूमिका थी).

ममता ने यह सवाल भी उठाया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को क्यों नहीं बुलाया गया? (ये बातें कई सूत्रों के हवाले से पता चलीं, हालांकि तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने इस लेखक को रविवार की शाम बताया कि किसी तरह की कोई समस्या नहीं खड़ी हुई. वैसे, उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि बैठक से पहले वक्तव्य का कोई मसौदा नहीं तैयार किया जाएगा और विपक्षी दलों के बीच तालमेल के लिए एक कोर ग्रुप का गठन किया जाएगा).

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सोनिया गांधी की इस वीडियो बैठक के आठ दिन बाद, शनिवार को ममता ने गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाने का विचार रखा. उनका आरोप था कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार उन्हें परेशान कर रही है. इस संदर्भ में उन्होंने दिल्ली और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों का नाम लिया.

अब देखने वाली बात यह होगी कि जब भी यह बैठक होती है, तो उसमें कौन-कौन भाग लेते हैं. क्या कांग्रेसी मुख्यमंत्री ममता की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में भाग लेंगे? लेकिन, जब सोनिया विपक्षी नेताओं की बैठक कर सकती हैं, तो ममता थोड़ी अलग तरह की ऐसी बैठक क्यों नहीं कर सकतीं? इंडियन नेशनल लोक दल के नेता ओम प्रकाश चौटाला पहले ही गैर-भाजपाई, गैर-कांग्रेसी मोर्चा बनाने की कोशिश में लगे हैं.

यहां मंशा विपक्षी खेमे में दरारों को उजागर करने की नहीं है. ऐसे मोर्चों के पैरोकारों के हितों में होड़ और टकराव इतने जाने-पहचाने हैं कि उन्हें विस्तार से बताने की जरूरत नहीं है.


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ममता-सोनिया मैत्री और हितों के टकराव भी

इस राजनीतिक धारावाहिक में सोनिया और ममता के बीच की शतरंजी चालें दिलचस्प हैं. एक इस कोशिश में हैं कि संभावित विपक्षी मोर्चे का नेतृत्व संभाल कर अपने बेटे का भविष्य सुरक्षित करें, तो दूसरे की कोशिश इस मोर्चे के अंदर ऐसा बड़ा दबाव गुट बनाने की है ताकि 2024 में सारे विकल्प खुले रहें.

माना जाता है कि आज भारतीय राजनीति की दो शक्तिशाली महिला नेताओं के बीच जबरदस्त आपसी समझदारी है और इसका श्रेय राजीव गांधी के प्रति ममता की अटूट श्रद्धा को दिया जाता है.

लेकिन इसने दोनों को अपने-अपने व्यक्तिगत हितों को, जिनमें कुछ भी साझा नहीं है, आगे बढ़ाने से नहीं रोका है.

सोनिया अगर ममता को उत्तर-पूर्व में कांग्रेस का खात्मा करने की, जिसकी जबरदस्त कोशिश में उनकी तृणमूल कांग्रेस जुटी हुई है, खुशी-खुशी छूट देती हैं तो यही माना जाएगा कि वे बहुत ही बड़े दिल वाली नेता हैं. जरा गौर कीजिए कि ममता असम में महिला कांग्रेस की प्रमुख और पूर्व सांसद सुष्मिता देव को अपनी पार्टी में शामिल करके कांग्रेस को तगड़ा झटका देने के चार दिन बाद सोनिया की वीडियो बैठक में भाग लेती हैं.

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष को जरूर संतों वाला वैराग्य भाव वरदान में मिला होगा तभी तो उन्होंने भाजपा के खिलाफ संयुक्त मुकाबले की रणनीति पर बात करने के लिए वीडियो बैठक में ममता का स्वागत किया. और तो और, ममता त्रिपुरा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष प्रद्योत देववर्मा से बात कर रही हैं कि वे कांग्रेस से पल्ला झाड़ कर अपनी ‘त्रिपा’ पार्टी का विलय तृणमूल कांग्रेस में करके एक गठबंधन बनाएं. असम और त्रिपुरा, दोनों राज्यों में कांग्रेस की कीमत पर तृणमूल कांग्रेस फायदा लेने के फिराक में है. और, ये ज्यादा समय की बात नहीं होगी जब ममता उत्तर-पूर्व के दूसरे राज्यों में भी सत्ता दल को चुनौती देने से पहले कांग्रेस को प्रमुख विपक्षी दल की हैसियत से वंचित करने की कोशिश शुरू कर देगी.


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ममता और सोनिया के बीच किशोर

विडंबना यह है कि ‘कांग्रेस-मुक्त’ उत्तर-पूर्व में ममता को पैर फैलाने में चुनाव रणनीतिज्ञ प्रशांत किशोर मदद कर रहे हैं, जो राहुल के दोस्त माने जाते हैं और कांग्रेस में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं.

किशोर ने हाल में गांधी परिवार से मुलाकात की और बताया जाता है कि कांग्रेस संगठन को मजबूत बनाने का एक खाका प्रस्तुत किया. चुनावों के प्रबंधन से निवृत्त होने की घोषणा पिछली मई में करने के बाद से चुनाव रणनीतिज्ञ किशोर व्यस्त हैं. उन्होंने सुष्मिता देव के लिए कांग्रेस से दलबदल करके तृणमूल कांग्रेस में जाने का रास्ता बनाया, असम में अखिल गोगोई और त्रिपुरा में प्रद्योत के रूप में ममता के संभावित सहयोगियों से वे वार्ता कर रहे हैं, त्रिपुरा में कांग्रेस और वाममोर्चे की जगह तृणमूल कांग्रेस को भाजपा के मुख्य प्रतिद्वंदी के रूप में स्थापित करने के लिए ‘आई-पीएसी टीम’ को तैनात कर रहे हैं और दिल्ली में गांधी परिवार से मिल कर उसे सलाह दे रहे हैं कि कांग्रेस में कैसे जान फूंकी जा सकती है.

गांधी परिवार और ममता बनर्जी के परस्पर विरोधी हितों के बीच संतुलन साधने का श्रेय तो चुनाव रणनीतिज्ञ किशोर को दिया ही जा सकता है.

उत्तर-पूर्व में पैर फैलाने की ममता की योजना अगर 2024 में सफल हो जाती है और कांग्रेस की हालत अगर दूसरे राज्यों में काफी हद तक नहीं सुधरती तो वे केंद्र में सत्ता के संभावित दावेदार के रूप में उभरने वाले विपक्षी गठबंधन में गांधी परिवार के मुकाबले में खड़ी हो सकती हैं. कांग्रेस संख्याबल में भले आगे हो सकती है लेकिन उसमें कांग्रेस विरोधी क्षेत्रीय खिलाड़ियों की कमी नहीं होगी, जो गांधी परिवार को बेअसर करने के लिए ममता को समर्थन दे सकते हैं. और, इस तथ्य को भी मत भूलिए कि इनमें से कई खिलाड़ियों को किशोर उनके चुनावी अभियानों में मदद कर चुके हैं, चाहे वे बिहार में नीतीश कुमार हों या आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी हों या दिल्ली में केजरीवाल. फिलहाल तो चुनाव रणनीतिज्ञ निश्चित ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के साथ हैं.

अपनी अध्यक्षता में केरल में पार्टी की हार देख चुके राहुल गांधी सीताराम येचुरी से दोस्ती आगे बढ़ाते रहे हैं. क्या सोनिया इसी तरह ममता से अपनी मैत्री को आगे बढ़ाएंगी, जबकि ममता उत्तर-पूर्व में कांग्रेस का सफाया करने की मुहिम जारी रखे हुए हैं?

गांधी परिवार कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की भी मदद कर रहे किशोर की ओर जिस तरह अभी भी देख रहा है उससे तो इस सवाल का जवाब हां में ही मिलता है. लेकिन 2024 में भाजपा के खिलाफ संभावित बड़ी चुनौती के रूप में ममता जिस तरह राहुल की जगह खुद को पूरी आक्रामकता के साथ पेश कर रही हैं उससे तो यही लगता है कि यह सोनिया और उनकी मैत्री के लिए बड़ा इम्तिहान साबित होगा.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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