नई दिल्ली: दिवाली के एक दिन बाद मंगलवार को दिल्ली की हवा की गुणवत्ता गिरकर ‘बेहद खराब’ श्रेणी में पहुंच गई. सोमवार को राजधानी ने उत्साह और उल्लास के साथ दिवाली मनाई थी.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार, सुबह 7 बजे दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 350 दर्ज किया गया. शहर के अधिकांश इलाकों में एक्यूआई ‘बेहद खराब’ श्रेणी में रहा, जबकि कई जगहों पर यह ‘गंभीर’ स्तर तक पहुंच गया.
जहांगीरपुरी में एक्यूआई 407, बवाना में 423 और वजीरपुर में 408 दर्ज किया गया.
सीपीसीबी के पैमाने के अनुसार, वायु गुणवत्ता को छह श्रेणियों में बांटा गया है. 0 से 50 के बीच एक्यूआई ‘अच्छा’, 51 से 100 ‘संतोषजनक’, 101 से 200 ‘मध्यम’, 201 से 300 ‘खराब’, 301 से 400 ‘बेहद खराब’ और 401 से 500 के बीच ‘गंभीर’ माना जाता है.

पर्यावरण विशेषज्ञों ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण स्तर बढ़ने का मुख्य कारण दिवाली से पहले और दिवाली के दिन बड़े पैमाने पर पटाखे फोड़ना रहा. 15 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ ग्रीन पटाखे फोड़ने की अनुमति दी थी.
देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि केवल ‘ग्रीन पटाखे’—जो पारंपरिक पटाखों की तुलना में लगभग 30 प्रतिशत कम प्रदूषण फैलाते हैं—को 20 और 21 अक्टूबर के बीच राष्ट्रीय राजधानी में फोड़ने की अनुमति दी जाएगी.
अदालत ने निर्देश दिया था, “जिला प्रशासन और पुलिस यह सुनिश्चित करें कि पटाखों का उपयोग केवल सुबह 6 से 7 बजे और रात 8 से 10 बजे तक ही हो, यानी दिवाली से एक दिन पहले और दिवाली के दिन.”
यह पहली बार था जब 2020 के बाद दिल्ली में पटाखों की बिक्री और सीमित उपयोग की अनुमति दी गई. 2020 में इन्हें स्वास्थ्य और पर्यावरण पर हानिकारक प्रभावों के कारण प्रतिबंधित किया गया था.
दिल्ली स्थित पर्यावरण कार्यकर्ता भावरीन कंधारी ने कहा, “जब आप पहले से प्रदूषित शहर में पटाखे फोड़ने की अनुमति देते हैं, तो यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि नियमों का पालन होगा? 10 बजे की समयसीमा के बाद भी पटाखे लगातार फूटते रहे, और सभी ने देखा कि हवा कितनी धुंधली और खतरनाक हो गई थी.”
दिवाली से पहले ही हवा बिगड़ने लगी
सीपीसीबी के आंकड़ों के अनुसार, दिवाली से एक हफ्ता पहले ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में हवा की गुणवत्ता गिरने लगी थी. देर से खत्म हुए मानसून के बाद हवा का बहाव धीमा हो गया, जिससे प्रदूषक तत्व जमा होते चले गए.
दिलचस्प बात यह रही कि पिछले कुछ वर्षों की तुलना में इस बार पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं का दिल्ली की हवा पर बहुत कम असर पड़ा. इससे यह साफ हुआ कि इस साल प्रदूषण बढ़ने में मुख्य भूमिका पटाखों और प्रतिकूल मौसम की रही.
चंडीगढ़ स्थित पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) के पर्यावरण स्वास्थ्य विशेषज्ञ रविंद्र खैवाल ने कहा, “दिवाली से पहले के सप्ताह में पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामले काफी घटे हैं, लेकिन हमने पाकिस्तान की ओर से पराली प्रदूषण का असर दर्ज किया है.”
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