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Saturday, 18 May, 2024
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नोबेल विजेता मार्गदर्शक पर विश्वास है तो कांग्रेस राज्यों में लागू करे न्याय: मुकुल कानिटकर

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ईकाई भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री मुकुल कानिटकर ने अभिजीत बनर्जी को नोबेल मिलने पर सवाल खड़ा किया है.

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नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ईकाई भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री मुकुल कानिटकर ने अभिजीत बनर्जी को नोबेल मिलने पर सवाल खड़ा किया है. यह पहली दफा है कि संघ या उससे जुड़े किसी भी संगठन के प्रमुख ने अभिजीत बनर्जी को लेकर कुछ ​कहा है. बुधवार को अर्थशास्त्री बनर्जी ने पीएम नरेंद्र मोदी से उनके निवास पर मुलाकात की थी. लिहाजा, इस मुलाकात के बाद एक ब्लॉग के ज़रिए आरएसएस के किसी व्यक्ति का बनर्जी के खिलाफ खुलकर लिखना आश्चर्य की बात है.

कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधते हुए कानिटकर ने सवाल पूछा कि अगर उसको अपनी योजना ‘न्याय’ पर इतना भरोसा है तो वो उसे अपने शासित राज्यों में लागू क्यों नहीं करती. उनका कहना था ‘आशा है कि अब तो ‘न्याय’ जैसे काल्पनिक जुगाड़ को कहीं न कहीं प्रयोग में लाया जाएगा ताकि उसकी संभावना पर स्पष्ट परिणाम प्राप्त हों. देश में पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में कांग्रेस का शासन है. यदि उन्हें अपनी सोच और नोबेल विजेता मार्गदर्शक पर थोड़ा भी विश्वास है तो वे इन राज्यों में इन जुगाड़ों को अपनाकर देखेंगे.’


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कानिटकर ने तंज कसते हुए कहा कि इस वर्ष अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार जिन तीन विद्वानों को मिला है उनमें से एक अभिजीत बनर्जी भारत के हैं. हम सबके लिए वह गर्व का विषय है. किन्तु सोचने वाली बात यह है कि पुरस्कार किस कार्य पर मिला? उनकी यूरोपीय पत्नी एस्थर डुफ्लो और उनके साथी विद्वान माइकल क्रेमर के साथ ‘उनके वैश्विक गरीबी निर्मूलन हेतु प्रायोगिक दृष्टिकोण’ के लिए मिला. लेकिन पूरा सिद्धांत अभी अध्ययन के लिए उपलब्ध नहीं है. किंतु नोबेल देते समय जो बातें लिखी गईं उस आधार पर दो बातें स्पष्ट हैं कि उन सिद्धांतों पर अभी तक कोई भी प्रत्यक्ष काम नहीं हुआ है. या कहीं भी प्रयोग नहीं हुआ है. यह केवल परिकल्पना मात्र है.

कानिटकर का कहना है कि पति-पत्नी के शिक्षा प्रसार के किसी जुगाड़ को अफ्रीका में प्रयुक्त किया गया. किन्तु नोबेल पुरस्कार प्राप्त अभिजीत बनर्जी के सिद्धांत को कहां अपनाया गया, क्या प्रयोग किए गए? केवल परिकल्पना के आधार पर नोबेल पुरस्कार देना कहां तक साइंटिफिक है?

उन्होंने कहा, ‘चुनाव के पहले अत्यंत आशा के साथ यह घोषणा की गई थी कि प्रत्येक गरीब नागरिक को प्रतिवर्ष 72000 रुपए प्रदान किए जाएंगे. उस समय किसी प्रसार माध्यम द्वारा पूछे जाने पर अभिजीत बनर्जी ने स्पष्ट उत्तर दिया था कि बिना कर बढ़ाए यह योजना संभव नहीं है. भारत की जनता ने भिक्षा के आश्वासन के इस चुनावी घूस को स्पष्ट नकार दिया.’


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कानिटकर ने आगे लिखा, ‘गरीबी दूर करने के लिए रोजगार के अवसर और स्वावलंबन की शिक्षा यह स्थायी मार्ग वर्तमान केंद्र सरकार ने अपनाया है जिसकी भर्त्सना अभिजीत बनर्जी अपनी विचारधारा के कारण करते हैं. एक ओर बिना परिश्रम सीधे शासन द्वारा भत्ते के रूप में नकदी प्रदान करने को उचित तो दूसरी ओर स्वयं परिश्रम द्वारा अपनी गरीबी का निवारण करने हेतु शासन द्वारा प्रोत्साहन तथा सुविधा प्रदान करना अनुचित बताते हैं, इस प्रकार के विरोधाभासी वैचारिक दृष्टिकोण के कारण ही उन्हें दिए गए नोबेल पुरस्कार के पीछे राजनीतिक दबाव की आशंका व्यक्त की जा रही है.’

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