लखनऊ: केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के मुख्य चुनावी रणनीतिकार अमित शाह उत्तर प्रदेश में इस चुनावी मौसम के दौरान अपने प्रतिद्वंद्वियों को साधने की कोशिश करते नज़र आ रहे हैं, शायद कहीं चुनाव बाद किसी साझेदारी की जरूरत न पड़ जाए. कम से कम राज्य के मतदाताओं और राजनीतिक पर्यवेक्षकों के बीच तो यही संदेश पहुंच रहा है, जो शाह के इंटरव्यू और रैलियों में दिए भाषणों पर गहन नज़र रखे हुए हैं.
लेकिन देशभर में भाजपा के विस्तार में अहम भूमिका निभाने वाले और अक्सर पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले शाह की तरफ से रालोद प्रमुख जयंत चौधरी और बसपा प्रमुख मायावती की तारीफ के पीछे उन्हें पसंद करने से कहीं ज्यादा कुछ छिपा है.
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि शाह का अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के समर्थन में खुलकर बोलना दरअसल एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है जिसके पीछे इरादा यूपी में व्यापक स्तर पर दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों— भाजपा और सपा— के बीच सीधे मुकाबले को भाजपा के फायदे के लिए बहुध्रुवीय चुनावी जंग में बदलना है.
इसे यूपी विधानसभा चुनाव के छठे (3 मार्च) और सातवें (7 मार्च) चरण में होने वाले मतदान के लिए खास तौर पर काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है जिसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश की 164 सीटों में से 111 पर मतदान होना है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश राज्य में भाजपा की जीत के लिए खास मायने रखता है क्योंकि पार्टी ने इस क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन के बलबूते 2017 के राज्य चुनावों में जबर्दस्त सफलता हासिल की थी. अंतिम दो चरणों में मतदान वाली 111 सीटों में से 84 सीटें 2017 में भाजपा के खाते में आई थीं.
यहां दलितों की आबादी सबसे अधिक है, इसके बाद यादव, मुस्लिम, ब्राह्मण, कुर्मी, राजपूत और बनिया हैं. आजमगढ़, जौनपुर और मऊ सपा के गढ़ हैं, जबकि संत कबीर नगर बसपा का गढ़ माना जाता है.
भाजपा का मानना है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी की जीत के लिए शाह यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि बसपा लड़ाई में बनी रहे और सपा के वोट काटती रहे. 2017 में मायावती की पार्टी ने अपनी 19 में से 11 सीटें पूर्वी क्षेत्र में जीती थीं और पूरे यूपी में उसका वोट शेयर 21 फीसदी रहा था. 2019 के लोकसभा चुनावों में बसपा-सपा गठबंधन ने जौनपुर, आजमगढ़, गाजीपुर, घोसी और अंबेडकर नगर में भाजपा को हरा दिया था.
पार्टी के एक अंदरूनी सूत्र ने कहा, ‘शाह का इरादा यूपी चुनाव के बाकी दो चरणों के लिए मतदान से पहले बसपा कैडर को सक्रिय करने का रहा है, जहां मुख्य चुनावी मुकाबला सीधे तौर पर भाजपा और सपा के बीच है.’
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तारीफ के बोल
शाह ने पिछले हफ्ते एक टीवी इंटरव्यू में कहा था, ‘यह सच नहीं है कि मायावती की प्रासंगिकता खत्म हो गई है’— इसके साथ ही उन्होंने तमाम राजनीतिक पंडितों के इस तर्क को खारिज कर दिया कि यूपी में पूर्व मुख्यमंत्री की पार्टी बसपा कोई बड़ी ताकत नहीं रह गई है.
उन्होंने कहा, ‘मुझे पूरा भरोसा है कि बसपा को वोट मिलेंगे. हालांकि, यह नहीं कह सकता कि इसका कितना हिस्सा सीटों में बदलेगा, लेकिन इसे वोट मिलेंगे. मुझे नहीं पता कि इससे भाजपा को कोई फायदा होगा या नहीं…यह सीट-विशेष पर निर्भर करता है.’
प्रशंसा से आश्चर्यचकित मायावती ने बदले में यह कहकर उनकी तारीफ की: ‘ये उनका बड़प्पन है कि उन्होंने सच को स्वीकर किया.’
गौरतलब है कि शुरुआती चरणों में पश्चिमी यूपी में मतदान से पहले शाह ने एक रैली में खुले तौर पर रालोद (सपा के सहयोगी दल) नेता जयंत चौधरी के साथ ‘नजदीकी’ दिखाने की कोशिश करते हुए कहा था, ‘जयंत बाबू एक सही इंसान हैं लेकिन गलत पाले में खड़े हैं…जयंत को लगता है कि (सपा प्रमुख) अखिलेश यादव उनकी बात सुनेंगे…जयंत बाबू, आप गलत हैं. जो अपने पिता और चाचा की नहीं सुनता, वह आपकी क्यों सुनेगा? अगर सपा की सरकार बनी तो तीसरे दिन ही आप दरकिनार हो जाएंगे और (सपा सांसद) आजम खान जेल से रिहा होकर आपकी जगह ले लेंगे.’
कई लोगों को इस तरह के बयान के पीछे शाह के उद्देश्यों और इरादों को लेकर अचरज हो रहा है, जबकि कुछ का तर्क है कि त्रिशंकु विधानसभा से पहले विरोधियों को दाना डालने का यह उनका तरीका है.
लेकिन एक भाजपा नेता ने कहा, ‘यह चुनावी संदेश चुनाव-बाद के अंकगणित को ध्यान में रखकर नहीं, बल्कि चुनाव के बीच में समीकरणों पर असर डालने के लिए दिया गया है.’
नेता ने आगे कहा, ‘चुनाव बाद समर्थन के लिए मायावती को खुश करने के उद्देश्य से शाह को ‘माहौल’ बनाने की कोई जरूरत नहीं है. इस तरह के गठबंधन टीवी इंटरव्यू के जरिए नहीं होते हैं. अगर भाजपा को मायावती (सरकार गठन में) की मदद की जरूरत होगी, तो वह शीर्ष नेतृत्व से सिर्फ एक फोन कॉल की दूरी पर हैं. पर्दे के पीछे कुछ राजनीतिक लेन-देन के साथ उनका समर्थन सुनिश्चित किया जाएगा.’
भाजपा ने पूर्व में 1995 के कुख्यात गेस्टहाउस प्रकरण के बाद पहली बार मायावती को मुख्यमंत्री बनने में समर्थन दिया था. साथ ही, भाजपा के दिग्गज नेता लालजी टंडन, जो भाजपा-बसपा गठबंधन के रणनीतिकारों में से एक थे, को बहनजी के राखी भाई के रूप में जाना जाता है.
भाजपा नेता ने कहा, ‘शाह की तरफ से मायावती की तारीफ के दो पहलू हैं. एक, जिसमें उनका कहना है कि बसपा के प्रत्याशी चयन की वजह से भाजपा को कुछ ‘खास सीटों’ पर फायदा हो सकता है. दूसरा, शाह ने संकेत दिया कि बसपा को जाटव वोट मिल रहे हैं और साथ ही वह सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगा रही है.’
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क्या कहते हैं चुनावी समीकरण
छठे और सातवें चरण में मतदान वाली सीटों के लिए भाजपा ने 24 दलित और एसटी उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जबकि बसपा ने 26 और सपा ने 25 ऐसे उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. बसपा ने 16 मुस्लिम उम्मीदवारों को भी टिकट दिया है और सपा ने 11 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं. यहां तक कि कांग्रेस ने भी इन दोनों चरणों में 17 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है.
भाजपा के एक सूत्र के मुताबिक, पहले दो चरणों में पश्चिमी यूपी में चुनाव के दौरान भाजपा को ‘कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा और जाटों के गुस्से, रालोद-सपा गठबंधन और सपा के प्रति मुस्लिम ध्रुवीकरण के कारण चुनावी जंग सपा और भाजपा के बीच सीधे मुकाबले जैसे हो गई थी.’
सूत्र ने कहा, ‘हालांकि, बसपा ने 28 से अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जिसने कई सीटों पर सपा को नुकसान पहुंचाया और ये भाजपा के लिए फायदेमंद रहा है. शुरुआती चरणों में मिली बढ़त को बरकरार रखने के लिए भाजपा को उम्मीद है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में बसपा अपने गढ़ माने जाने वाले जिलों में सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाकार अच्छा प्रदर्शन करेगी.’
पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक नेता ने कहा कि बसपा का अकेले चुनाव लड़ना भाजपा के लिए सबसे अच्छा है लेकिन पार्टी को बसपा को ‘खाद पानी तो देना ही होगा ताकि वह लड़ाई में बनी रहे.’ भाजपा नेता ने आगे कहा, ‘हम जानते हैं कि बसपा कभी भाजपा के लिए चुनौती नहीं बन सकती.’
यूपी की 403 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव में सपा के 61 की तुलना में बसपा ने 88 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. पश्चिमी यूपी की 28 सीटों पर बसपा ने अपने मुस्लिम प्रत्याशी सपा के मुस्लिम उम्मीदवारों के खिलाफ खड़े किए थे और इससे मुस्लिम वोट बंटने के आसार हैं. अन्य 44 सीटों पर बसपा ने सपा के गैर-मुसलमान प्रत्याशियों के खिलाफ अपने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं.
यूपी भाजपा के एक अन्य नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘शाह साहब ने पूरे यूपी चुनाव से पहले और उसके दौरान सिर्फ दो नेताओं की प्रशंसा की है, इसमें एक हैं जयंत चौधरी जिनके बारे में उन्होंने पश्चिमी यूपी के पहले दो चरणों के मतदान से पहले कहा था कि उनके लिए भाजपा के दरवाजे खुले हैं. यह जाट मतदाताओं को भ्रम में डालने और भाजपा के प्रति उनकी नाराजगी घटाने की कोशिश थी. चौथे चरण की वोटिंग के बाद इस दूसरे बयान में मायावती की प्रशंसा के पीछे उद्देश्य सत्ता विरोधी और सपा के मुस्लिम वोटों को बांटना और जाटवों की सहानुभूति हासिल करना है.’
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बसपा का वोट बैंक ‘कमजोर’ कर रहे
भाजपा की जीतने की रणनीति अब तक पटेल, मौर्य, निषाद और लोध जैसे गैर-यादव ओबीसी और पासी, नाई, धोबी, वाल्मीकि और सोनकर जैसे गैर-जाटव दलितों को अपने साथ जोड़ने पर केंद्रित रही है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश में नाथपंथी, रविदासिया और कबीरपंथी संप्रदाय से जुड़ा दलित अनुयायियों का एक बड़ा वर्ग है. यूपी में आधा जाटव समुदाय या तो कबीर पंथी हैं या रविदासिया. कुशवाहा और कुर्मी कबीर के उपासक हैं.
2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी के पास स्थित मगहर गए थे जहां कबीर ने अंतिम सांस ली थी. भाजपा वाराणसी में कबीर के नाम पर एक कंवेन्शन सेंटर केंद्र भी बना रही है और पिछले महीने गुरु रविदास जयंती पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य भाजपा नेताओं ने उनके जन्मस्थान का भी दौरा किया था.
सामाजिक विज्ञानी बद्री नारायण अपने लेख में स्पष्ट करते हैं कि, ‘आरएसएस ने पासी समुदाय के नायकों बालदेव और डालदेव की स्मृति में आयोजन करके इस समुदाय के बीच अपनी पैठ बना ली है’ और इसके साथ ही ‘बसपा के गढ़ में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए खुद को ‘जाटव समुदाय के रविदास सुपच ऋषि और मुसहर समुदाय के दीना बद्री तक से जोड़ा है.’
उनके मुताबिक, इस चुनावी मौसम में ‘बसपा के लिहाज से कुछ कमजोर सीटों पर भाजपा अपने प्रति उदार रुख वाले कुछ जाटव मतदाताओं और दलितों के वोट हासिल करने की कोशिश में जुटी है.’
भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘जाटव समुदाय की बेबी रानी मौर्य को (आगरा से) मैदान में उतारकर पार्टी ने इस समुदाय को यह संदेश देने की ही कोशिश की है कि वे भाजपा पर भरोसा कर सकते हैं. भाजपा ने भी अखिलेश की ही तरह मायावती पर सीधे हमला नहीं किया है ताकि जाटवों के साथ सद्भाव दर्शाया जा सके. मायावती की प्रशंसा करके भाजपा चाहती है कि उसके प्रति उदार रुख रखने वाले जाटव मतदाता एक साझे दुश्मन सपा को हराने में उसके लिए मददगार बनें.’
यूपी अनुसूचित जाति वित्त और विकास निगम के अध्यक्ष लालजी निर्मल ने दिप्रिंट को बताया, ‘दलित समाजवादी पार्टी की पिछली गलतियों और समुदाय के प्रति अत्याचारों के कारण उसे अपने करीब नहीं पाते हैं. लेकिन भाजपा को लेकर उनमें कोई पूर्वाग्रह नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘वे जानते हैं कि वो मोदी ही थे जिन्होंने लंदन में आंबेडकर हाउस म्यूजियम का उद्घाटन किया था. यह भाजपा ही है जिसने उन्हें ग्राम समाज की जमीन पट्टे पर देने का वादा किया है.’
भाजपा की राज्य सभा सांसद कांता कर्दम ने कहा, ‘जब शाह जैसे वरिष्ठ नेता किसी नेता की प्रशंसा करते हैं तो इसका असर पड़ता है. भाजपा के प्रति उनमें सहानुभूति का भाव बढ़ता है. पार्टी के प्रति उनकी आपत्तियां तो पहले ही काफी कम हो चुकी हैं.’
उन्होंने कहा, ‘पहले दूर के कुओं से पानी भरकर लाने में दलित महिलाओं का अच्छा-खासा समय बर्बाद होता था और काफी मेहनत भी लगती थी, लेकिन अब नल से जल योजना के तहत पानी की पाइपलाइन घर तक पहुंच गई है और पीएम आवास योजना के तहत पैसा मिल रहा है. दलित लड़कियां भी दूसरी जातियों से डरे बिना स्कूल-कॉलेज जा रही हैं. यह सब भाजपा के प्रति उनके भरोसे को मजबूत कर रहा है.’
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