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Saturday, 4 May, 2024
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UP के मऊ में गैंगस्टर मुख़्तार अंसारी का खिलाड़ी बेटा ‘अपनी साफ छवि’ के दम पर कैसे मांग रहा है वोट

मऊ चुनाव क्षेत्र जहां 7 मार्च को मतदान होने जा रहा है, 1996 से गैंग्सटर से राजनेता बने मुख़्तार अंसारी का गढ़ रहा है. वो इस सीट से लगातार पांच बार जीत चुके हैं.

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मऊ: अंतरराष्ट्रीय स्तर के पूर्व शूटर अब्बास अंसारी हर तरह से एक मंझे हुए राजनेता लगते हैं, हालांकि अपने एविएटर चश्मे और पोनीटेल के साथ, उत्तर प्रदेश में मऊ के सरवान गांव के एक-एक घर में घूमते हुए, वो थोड़ा फैशनेबल ज़रूर दिखाई देते हैं. उनके पिता मुख़्तार अंसारी मौजूदा विधायक हैं, लेकिन इस बार इस सीट पर जूनियर अंसारी अपनी क़िस्मत आज़मा रहे हैं.

पिता और बेटा प्यार से रखी गई अपनी मोटी मूछों, जिनकी नोक बस ज़रा सी ऊपर की ओर उठी होती है, और सफेद कुर्तों के शौक़ के साथ, बहुत हद तक एक जैसे दिखते हैं, लेकिन दोनों की छवि बिल्कुल अलग-अलग है.

मुख़्तार अंसारी और बंदूक़ें, जब यूपी के परिवेश में आप इन्हें एक साथ सोचें, तो फौरन इन्हें आपराधिक मामलों से जोड़ देंगे. जिनमें हत्या, डराना-धमकाना, जबरन वसूली शामिल हैं. इस बीच हाथ में बंदूक़ लिए अब्बास अंसारी को, निशानेबाज़ी के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शूटिंग प्रतियोगिताओं से जोड़कर देखा जाता है.

मऊ चुनाव क्षेत्र में 7 मार्च को मतदान होने जा रहा है. यह साल 1996 से गैंग्सटर से राजनेता बने मुख़्तार अंसारी का गढ़ रहा है. वो लगातार पांच बार इस सीट से जीत चुके हैं, जिनमें 2017 का चुनाव उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के टिकट पर जीता था, जबकि उस समय राज्य में बीजेपी लहर थी.

हालांकि इस बार ‘बाहुबलि’ की छवि के चलते, बीएसपी चीफ मायावती के उन्हें टिकट देने से मना करने के बाद, मुख़्तार ने मशाल अपने बेटे के हाथ में थमा दी है.

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तस्वीर- प्रवीण जैन. दिप्रिंट

अंसारी जूनियर, जो 30 साल के हैं, ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के उम्मीदवार के तौर पर लड़ रहे हैं, जो समाजवादी पार्टी (एसपी) के साथ चुनावी गठबंधन में है.

बीजेपी ने इस क्षेत्र में माफिया के खिलाफ अपने मौखिक हमले तेज़ कर दिए हैं, लेकिन अब्बास न सिर्फ अपनी ‘साफ’ छवि को आगे बढ़ा रहे हैं, बल्कि अपने पिता के नाम का बचाव भी कर रहे हैं, जो इन दिनों बांदा जेल में बंद हैं.

उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता एक ऐसे इंसान हैं जो हमेशा अपने लोगों के लिए खड़े रहते हैं- और मऊ के लोग इस बात को अच्छे से समझते हैं. ये चुनाव बीजेपी को दिखा देगा कि लोग मेरे पिता, और हमारे परिवार के बारे में क्या सोचते हैं’.


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बीच में छूटा शूटिंग करियर, नया लक्ष्य: मऊ

दिप्रिंट से बात करते हुए अब्बास अंसारी ने कहा कि सोहना, गुड़गांव के महंगे जीडी गोयंका वर्ल्ड स्कूल से 12वीं क्लास पास करने के बाद, वो लगन के साथ अपना शूटिंग करियर बनाने में लग गए.

उन्होंने बताया, ‘खेलों में मेरी रूचि जल्द ही पैदा हो गई थी, और मैंने 2009 में शूटिंग शुरू कर दी थी, जब मैं 11वीं क्लास में था. मैंने कई मौक़ों पर देश के लिए गोल्ड जीता है’.

2014 में अब्बास के साथ, जो स्कीट, राइफल, और पिस्टल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते थे, एक दुर्घटना हो गई और वो एक साल तक अभ्यास नहीं कर सके. 2016 रियो ऑलंपिक्स के लिए वो भारतीय टीम में जगह नहीं बना सके, लेकिन उन्होंने कहा कि 2018 में वो ‘फिर से अंतर्राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बने’.

2017 में अब्बास सियासत में आ गए, और उन्होंने घोसी से यूपी विधान सभा चुनाव लड़ा, लेकिन बहुत कम अंतर से बीजेपी के फगु चौहान के हाथों परास्त हो गए.

वास्तव में राजनीति में आने का संकेत 2019 में मिला, जब लखनऊ पुलिस ने उनके दिल्ली आवास पर छापा मारकर, उनपर कथित रूप से अवैध तरीक़े से हथियार ख़रीदने के आरोप में मुक़दमा दर्ज कर लिया.

उन्होंने कहा, ‘2019 के बाद चीज़ें बदल गईं, और हमारी पार्टी को सक्रिय ढंग से काम करने के लिए ज़्यादा लोगों की ज़रूरत थी, इसलिए मैं ज़्यादा से ज़्यादा इसमें शामिल होता गया.

हालांकि मऊ में मौक़ा ज़रा मुश्किल है.

जहां बीजेपी ने अपना टिकट टिकट अशोक कुमार सिंह को दिया है, जिनका भाई 2009 में कथित रूप से मुख़्तार अंसारी के आदमियों के हाथों मारा गया था (2017 में मुख़्तार अंसारी को इस केस से बरी कर दिया गया), बीएसपी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को मैदान में उतारा है, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है.

मऊ पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक दिलचस्प सीट बनकर उभरा है, जहां बहुत से लोग इसे बीजेपी के राज्य में क़ानून व्यवस्था सुधारने के पिच, और अंसारी परिवार के रसूख़ के बीच की लड़ाई के रूप में देख रहे हैं.

पिछले साल, योगी आदित्यनाथ सरकार ने ऐलान किया कि उसने चार वर्षों में, मुख़्तार अंसारी समेत कई गैंग्सटर्स की क़रीब 1,000 करोड़ रुपए मूल्य की संपत्ति को ज़ब्त करके तबाह किया है. चुनावों से पहले भी मुख्यमंत्री ने वादा किया, कि नतीजों की घोषणा होने के बाद, अपराधियों को उनके ‘बुलडोज़र’ का सामना करना होगा.

दिप्रिंट के दौरे के दौरान, सीएम आदित्यनाथ ने मऊ में एक रैली को संबोधित किया, जहां उन्होंने एक बार फिर इस इस पर प्रकाश डाला, कि सुरक्षा बीजेपी के लिए एक प्रमुख एजेंडा है, और सरकार माफिया के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर रही है.

सूबे के इस हिस्से में, ज़रा भी शक नहीं था कि योगी का इशारा मुख़्तार अंसारी की ओर था, जब उन्होंने अपनी रैली में कहा कि ‘बुलडोज़र्स बोलते नहीं बल्कि काम करते हैं’. बीजेपी ने अपने प्रचार में इस पर भी ज़ोर दिया, कि अगर ‘एसपी सत्ता में लौटती है’, तो आराजकता फैल जाएगी, और आज़म ख़ान, अतीक़ अहमद, तथा मुख़्तार अंसारी जैसे कथित गैंग्सटर्स जेल से बाहर आ जाएंगे.

लेकिन अब्बास अंसारी ऐसे सभी आरोपों को ख़ारिज कर देते हैं, और कहते हैं कि मऊ के लोग उनके पिता के प्रति ‘प्यार और सम्मान’ रखते हैं, इसीलिए उन्होंने पांच चुनामो में अंसारी को वोट दिया है.

मऊ निवासी अब्बास अंसारी के साथ सेल्फी लेते हुए. तस्वीर- प्रवीण जैन. दिप्रिंट

‘BJP के प्रचार और पिता के लिए लोगों के प्यार के बीच लड़ाई’

अब्बास अंसारी ज़ोर देकर कहते हैं, कि उनके पिता की लोकप्रियता को, बीजेपी के प्रचार से कम नहीं किया जा सकता.

उन्होंने कहा, ‘हम न्याय में विश्वास रखते हैं, और हम जानते हैं कि वो हमें मिलेगा. ताक़त के बल पर आप एक या दो बार जीत सकते हैं, पांच बार नहीं’.

जब उनसे इस आरोपों के बारे में पूछा गया, कि मुख़्तार अंसारी ‘डर की राजनीति’ करते हैं, तो अब्बास मुस्कुरा उठे.

उन्होंने कहा, ‘डर की राजनीति कितने दिन चलती है? पिछले कई सालों से (बीजेपी सरकार ने) उन्हें जेल में रखा हुआ है, और लोग ये सब समझते हैं. उन्हें सिर्फ मुसलमानों का ही नहीं, बल्कि हमारे हिंदू भाईयों और बहनों का भी समर्थन मिलता है. वो हमें धर्म के आधार पर बांटने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस मरतबा ये मुमकिन नहीं होगा’.

ये पूछने पर कि इस बार उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया, अब्बास ने समझाया कि उनके पिता के जेल जाने, और उनकी मां के खिलाफ केस दर्ज होने की वजह से, उन्हें मैदान में उतरना पड़ा.

उनके अनुसार, संपत्ति की ज़ब्ती की वजह से, उनके परिवार को मुश्किलों का सामना करना पड़ा है, लेकिन वो हार मानने को तैयार नहीं हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमारा घर और संपत्तियां ज़ब्त कर ली गईं, इसलिए मैंने (मऊ में) एक छोटा सा घर किराए पर लिया, जहां मैं अपनी मां, पत्नी और 3 माह के बेटे के साथ रहता हूं. ये चुनाव बीजेपी के प्रचार और उस प्यार के बीच की लड़ाई है, जो मेरे पिता को लोगों से मिलता है’.

अब्बास ने आगे कहा कि वो फोन के ज़रिए अपने पिता के संपर्क में हैं. ‘हम हर रोज़ बात करने की कोशिश करते हैं, लेकिन कभी कभी वो लोग जानबूझकर कॉल को ख़ामोश कर देते हैं, या उसे अचानक काट देते हैं. लेकिन हम बात करते हैं और बहुत सारी मुश्किलें पेश आने के बावजूद, वो हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाने की कोशिश करते हैं’.

मऊ में मिले-जुले भाव

मऊ में मुस्लिम और राजभर समुदायों के मतदाता अच्छी ख़ासी तादाद में हैं. मऊ विधान सभा क्षेत्र के लगभग 5 लाख अनुमानित मतदाताओं में, कथित तौर पर क़रीब 1.25 लाख मुसलमान हैं, 1 लाख दलित हैं, और 55,000 राजभर हैं. अब्बास जिस एसबीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, उसका राजभर समुदाय में अच्छा प्रभाव है, जो ओबीसी में आता है.

अब्बास के एक क़रीबी सहयोगी ने कहा, ‘समीकरण ऐसा है कि अंसारी सीट निकाल सकते हैं.

लेकिन, इलाक़े के मतदाताओं के बीच मिले-जुले भाव हैं.

कुछ लोग कहते हैं कि मऊ को अब एक गैंग्स्टर के चुनाव क्षेत्र के तौर पर जाना जाता है. मऊ निवासी श्याम सिंह ने कहा, ‘मुख़्तार अंसारी की वजह से हमारा चुनाव क्षेत्र बदनाम हो गया है. हम जहां भी जाते हैं, जैसे ही लोग ‘मऊ’ का नाम सुनते हैं, वो हमारे में एक राय बनाने लगते हैं’.

लेकिन, दूसरे लोगों का मानना है कि मुख़्तार अंसारी ने ग़रीबों के लिए काम किया है, और वो उन्हें रॉबिनहुड सरीखी हस्ती मानते हैं.

सुल्तानपुर के एक निवासी सुभाष कुमार ने कहा, ‘आपके लिए खराब होगा, मेरे लिए नहीं है. उन्होंने कभी गरीबों को नुकसान नहीं पहुंचाया है, बस केवल अमीरों को. वो एक बड़े दिल के व्यक्ति हैं और जब आप उनसे किसी काम को कहते हैं, तो वो उसे करने की कोशिश करते हैं’.

कुमार का मानना है कि हो सकता है अब्बास को अपने पिता के यश का फायदा मिल जाए, लेकिन बीएसपी ने एक दूसरा उम्मीदवार खड़ा किया है, इसलिए उनके लिए मुख़्तार अंसारी के हाथ की मशाल को आगे बढ़ाए रखना, उनके लिए थोड़ा मुश्किल साबित हो सकता है.

(इस खबर को अंंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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