scorecardresearch
Friday, 15 November, 2024
होमराजनीतिकांग्रेस ने 2 बार बदले उम्मीदवार, राजस्थान की भारत आदिवासी पार्टी को मौका देने से क्यों किया इनकार

कांग्रेस ने 2 बार बदले उम्मीदवार, राजस्थान की भारत आदिवासी पार्टी को मौका देने से क्यों किया इनकार

नामांकन वापस लेने की समय सीमा समाप्त होने के बाद अरविंद डामोर सामने आए, जिससे बांसवाड़ा में त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है. कपूर सिंह ने कांग्रेस-बीएपी समझौते को तार-तार करने के लिए वही रास्ता अपनाया.

Text Size:

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के आवंटन को लेकर राजस्थान स्थित भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के साथ आखिरी पल तक बातचीत चलने और कांग्रेस के दो बार अपने उम्मीदवारों को बदलने के बाद बांसवाड़ा में त्रिकोणीय मुकाबला होगा.

कांग्रेस की शर्मिंदगी इस बात से बढ़ गई है कि बांसवाड़ा से चुनाव लड़ रहे अरविंद डामोर और उनके बागीदौरा विधानसभा उपचुनाव के उम्मीदवार कपूर सिंह ने बीएपी के पक्ष में मैदान छोड़ने के आदेश से इनकार कर दिया है.

हालांकि, सोमवार को नामांकन वापस लेने से इनकार करने पर डामोर और सिंह को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए छह साल के लिए निलंबित कर दिया गया था, लेकिन दो सीटों पर नुकसान हुआ था.

आदिवासी पार्टी को दो सीटें आवंटित करने के समझौते की घोषणा करने से पहले कांग्रेस ने रविवार रात तक बीएपी के साथ गहन बातचीत की थी.

बीजेपी के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “भाजपा ने बांसवाड़ा की आदिवासी बहुल सीट पर लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने के लिए केवल कांग्रेस की अंदरूनी कलह का फायदा उठाया. अंदरूनी कलह से हमें मदद मिली क्योंकि कांग्रेस का एक वर्ग नहीं चाहता था कि पार्टी की कीमत पर आदिवासी पार्टी फले-फूले. दिल्ली और स्थानीय नेतृत्व (कांग्रेस के) के बीच कोई तालमेल नहीं था. दिल्ली नेतृत्व गठबंधन चाहता था, जबकि कई स्थानीय नेता इसके खिलाफ थे.”

बांसवाड़ा में डामोर, भाजपा के महेंद्रजीत सिंह मालवीय और बीएपी के राजकुमार रोत अन्य के बीच आमने-सामने होंगे. 26 अप्रैल को जब चुनाव होगा तो कांग्रेस से दलबदल करने वाले मालवीय को डामोर द्वारा काटे गए वोटों से फायदा होने की संभावना है.


यह भी पढ़ें: जब भरोसा नहीं, तो खट्टर के साथ काम करने का कोई मतलब नहीं : हरियाणा के पूर्व गृह मंत्री अनिल विज


कैसे हुआ ड्रामा

चूंकि, राजस्थान में कांग्रेस BAP के साथ गठबंधन पर चर्चा कर रही थी, जो बांसवाड़ा और डूंगरपुर की दो आदिवासी बहुल सीटों पर महत्वपूर्ण उपस्थिति रखती है, क्षेत्रीय पार्टी दो से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने पर अड़ी थी.

कांग्रेस ने 4 अप्रैल को नामांकन के आखिरी दिन राजस्थान के पूर्व मंत्री और बांसवाड़ा विधायक अर्जुन सिंह बामनिया को अपना उम्मीदवार घोषित किया, जबकि युवा कांग्रेस महासचिव अरविंद डामोर को डमी उम्मीदवार की तरह तैयार रखा था.

लेकिन अंतिम समय में बामनिया डामोर के लिए नामांकन दाखिल करने के लिए मैदान खुला छोड़कर पीछे हट गए और इस तरह वे आधिकारिक उम्मीदवार बन गए.

अगला मोड़ तब आया जब कांग्रेस का बीएपी के साथ समझौता हो गया. रविवार रात को राजस्थान कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने बांसवाड़ा में बीएपी के राजकुमार रोत को समर्थन देने की घोषणा की.

बागीदौरा विधानसभा सीट पर बीएपी के जय कृष्ण पटेल को समर्थन देने का एक और फैसला लिया गया, जो फरवरी में महेंद्रजीत सिंह मालवीय के कांग्रेस से भाजपा में चले जाने के बाद खाली हो गई थी. उपचुनाव 26 अप्रैल को होगा.

हाल ही में राजस्थान में विधायक चुने गए रोत ने रविवार रात फैसले का स्वागत किया, लेकिन सोमवार को नामांकन वापस लेने के आखिरी दिन ट्विस्ट आया, जब डामोर कहीं नज़र नहीं आए.

बीएपी का आरोप है कि यह पूरा ऑपरेशन भाजपा उम्मीदवार मालवीय के इशारे पर किया गया था. बीएपी विधायक उमेश मीना ने दिप्रिंट को बताया, “यह मालवीय के इशारे पर किया गया था, जिन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार को प्रभावित किया और बाद में नामांकन वापस लेने के लिए नहीं आए. अब यह कांग्रेस को तय करना है कि वो गठबंधन धर्म कैसे निभाएगी क्योंकि उसका उम्मीदवार भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए वोट काट रहा है.”

हालांकि, मालवीय ने BAP के आरोप का खंडन किया. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि “यह कांग्रेस और BAP की आंतरिक कलह है जिसके कारण उनका उम्मीदवार नामांकन वापस लेने के लिए नहीं आया.”

उन्होंने कहा, “कांग्रेस बीएपी को हराने के लिए दृढ़ थी. हमारी पार्टी इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत से प्रचार कर रही है. उनका घर ठीक नहीं है और वे भाजपा के खिलाफ शिकायत कर रहे हैं. उन्हें पहले अपना घर संभालना चाहिए.”

ट्विस्ट और टर्न

बीएपी-कांग्रेस समझौते की रविवार की घोषणा से पहले, कांग्रेस नेताओं का एक वर्ग मालवीय के लिए राह आसान बनाने के लिए एकजुट हुआ था.

भाजपा के अंदरूनी सूत्रों ने कहा, यह तब स्पष्ट रूप से देखा गया जब 4 अप्रैल को नामांकन दाखिल करने के लिए तीन घंटे बचे होने से ठीक पहले बामनिया ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया और डामोर को उम्मीदवार बनाने के लिए दबाव डाला.

अपनी ओर से बामनिया ने दावा किया कि उन्होंने खुद को रास्ते से एकदम हटा लिया है ताकि सीट से एक युवा चेहरे को मैदान में उतारा जा सके. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “युवा कांग्रेस के नेताओं ने मुझसे डामोर के लिए सीट छोड़ने का आग्रह किया जिसके बाद मैंने सीट छोड़ दी.”

बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि डामोर को अहमदाबाद, गुजरात ले जाया गया और रविवार रात को उनका फोन बंद कर दिया गया, जिससे सोमवार को नामांकन वापस लेने के आखिरी दिन उनसे संपर्क नहीं हो सका.

बीजेपी के एक विधायक ने दिप्रिंट को स्पष्ट किया कि “राजनीति में चुनाव के दौरान ऐसी चीज़ें अनसुनी नहीं होती हैं.” उन्होंने कहा, “कभी-कभी, चुनाव जीतने के लिए ऐसे ऑपरेशन ज़रूरी होते हैं. युद्ध में सब कुछ जायज़ है. कांग्रेस उम्मीदवार ने हमारे आतिथ्य का आनंद लिया.”

कांग्रेस के एक जिला नेता ने दिप्रिंट को बताया कि निर्वाचन क्षेत्र में बीएपी की संभावनाओं को खराब करने के लिए एक “पूर्व नियोजित रणनीति” थी.

“कुछ कांग्रेस विधायक बीएपी के लिए जगह नहीं खोना चाहते क्योंकि आदिवासी पार्टी को दो जिलों में तीन विधानसभा सीटें मिली हैं. वे पांच सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे और उन्होंने हमारे उम्मीदवारों को हराने के लिए भाजपा के साथ हाथ मिलाया. हमने कांग्रेस विधायक (बामनिया) के अनैतिक व्यवहार के खिलाफ आलाकमान से भी शिकायत की है.”

सोमवार रात सामने आए डामोर ने आरोप लगाया कि बामनिया ने उन्हें यह जानते हुए भी मैदान में उतारा कि इस सीट पर गठबंधन हो गया है. उन्होंने कहा, “अगर मुझे हटना ही था तो मुझे भरोसे में लिया जाना चाहिए था. मुझे मूर्ख क्यों बनाया गया?” उन्होंने मीडिया से कहा, “राजनीति में सब कुछ जायज है.”

दिलचस्प बात यह है कि 2019 में भी ऐसा ही परिदृश्य सामने आया था जब भाजपा के कनकमल कटारा ने कांग्रेस के ताराचंद भगोरा को हराकर बांसवाड़ा से जीत हासिल की थी. कटारा की जीत आसान हो गई क्योंकि वोट कांग्रेस, बीएपी और बीएसपी के बीच बंट गए.

भाजपा को बांसवाड़ा में एक मजबूत उम्मीदवार की सख्त ज़रूरत थी क्योंकि कांग्रेस ने जिले में पांच विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की, जबकि भाजपा और बीएपी ने क्रमशः दो और एक पर जीत हासिल की.

जैसे ही मालवीय को लगा कि माहौल उनके खिलाफ हो रहा है, भाजपा को इस सीट के लिए उनके रूप में एक उपयुक्त उम्मीदवार मिल गया. एक समय दक्षिण राजस्थान में कांग्रेस का आदिवासी चेहरा रहे चार बार के विधायक के बारे में कहा जाता है कि जब पार्टी ने उन्हें विधानसभा में विपक्ष के नेता के पद के लिए नजरअंदाज कर दिया तो उनका मोहभंग हो गया.

राजस्थान बीजेपी के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि कांग्रेस की अंदरूनी कलह ने बांसवाड़ा में मुकाबला आसान बना दिया है. बीजेपी के पदाधिकारी ने कहा, “बीएपी को विधानसभा चुनाव में 3 लाख से अधिक वोट मिले और कांग्रेस के साथ गठबंधन के बाद, यह एक मुश्किल सीट थी, लेकिन अब त्रिकोणीय लड़ाई हमारे लिए उपयुक्त है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘हथियार सजाने के लिए नहीं मिले’— राज्य में मुठभेड़ हत्याओं पर यूपी के डीजीपी प्रशांत कुमार


 

share & View comments