भोपाल/सिलवानी/बुधनी: कांग्रेस आएगी, खुशहाली लाएगी — इस टैगलाइन के साथ मध्य प्रदेश में विपक्षी पार्टी के पोस्टरों में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को दिखाया गया है, जिनमें ज्यादातर किसी अन्य नेता की तस्वीर नहीं है. कुछ पोस्टर हैं जिनमें राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा और मल्लिकार्जुन खरगे शामिल हैं, लेकिन उन्हें नाथ की तुलना में बहुत छोटे पैमाने पर दिखाया गया है.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पोस्टर — फिर इस बार, भाजपा सरकार टैगलाइन के साथ — बहुत अलग दिखाई दे रहे हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक बड़ी तस्वीर के साथ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा सहित अन्य 11 अन्य नेताओं की बड़ी तस्वीर है.
मंगलवार को जब दिप्रिंट ने भोपाल से सिलवानी तक यात्रा की — 125 किलोमीटर के रास्ते में लगभग एक दर्जन गड्ढों को पार करते हुए — लंबे पोस्टरों ने दोनों पार्टियों की विपरीत कहानियों, रणनीतियों और चुनौतियों का खुलासा किया, क्योंकि वे मतदाताओं के विश्वास और समर्थन के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे. राज्य में 17 नवंबर को मतदान होगा और वोटों की गिनती 3 दिसंबर को होगी.
विरोधाभासी पोस्टर राज्य में चुनावी चर्चा को दर्शाते हैं. भाजपा के पोस्टरों से दिखता है कि पार्टी किसी एक नेता पर निर्भर नहीं है, बल्कि उसके पास नेताओं की एक विविध और प्रतिनिधि टीम है, जो “समाज के विभिन्न वर्गों और क्षेत्रों की ज़रूरतों को पूरा कर सकती है” जैसा कि मध्य प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता हितेश बाजपेयी ने बताया है.
जब बात आती है कि वे क्या चाहते हैं कि लोग वोट करें, तो पार्टियों के संदेश काफी समान होते हैं. कांग्रेस के पोस्टर में अन्य बातों के अलावा 200 यूनिट मुफ्त बिजली, महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह और 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर देने की बात कही गई है.
और भाजपा? भाजपा के एक पोस्टर में कहा गया है, “बेटियां अब बोझ नहीं, जन्म से बनाती है लखपति” जिसमें किनारे पर एक समूह तस्वीर में मोदी 11 पार्टी नेताओं के साथ खड़े हैं. एक अन्य पोस्टर में, “लाडली बहना के बच्चों को पौष्टिक आहार, अब मिलेंगे 3,000 रुपये.”
दोनों पार्टियां स्पष्ट रूप से प्रतिस्पर्धी लोकलुभावनवाद के साथ मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही हैं. हालांकि, भाजपा ने अयोध्या राम मंदिर को भी चुनावी चर्चा में लाने की कोशिश की है. भाजपा के एक पोस्टर में कहा गया है, “भव्य राम मंदिर बन कर हो रहा तैयार, फिर इस बार भाजपा सरकार.”
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रणनीतियां और चुनौतियां
इन पोस्टरों के बारे में दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों अपने कमजोर बिंदुओं पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हैं.
उदाहरण के लिए, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, जो नाथ के साथ कांग्रेस के अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं, पार्टी के पोस्टरों से पूरी तरह गायब हैं.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ऐसा इसलिए है क्योंकि 1993 से 2003 तक मुख्यमंत्री के रूप में सिंह के 10 साल के कार्यकाल के दौरान शासन और विकास के रिकॉर्ड को लेकर भाजपा ने अक्सर कांग्रेस पर हमला किया है.
पदाधिकारी ने कहा, “कमलनाथ जी के छोटे कार्यकाल के बारे में भाजपा के पास कहने को कुछ नहीं है.” उन्होंने आगे कहा, “तो, यह कांग्रेस के पिछले कार्यकाल (सिंह के 10 साल लंबे कार्यकाल) और उस दौरान शासन में कथित विफलताओं पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर तलाशने की कोशिश कर रहा है.”
पदाधिकारी ने कहा, “हम उस जाल में नहीं फंसने वाले हैं. इस चुनाव में हमारा ध्यान स्थानीय मुद्दों पर है और हम उसी पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.”
पिछले तीन विधानसभा चुनावों – 2008, 2013 और 2018 में – भाजपा ने मुख्यमंत्री के रूप में सिंह के कार्यकाल के दौरान सड़कों में गड्ढे, बिजली कटौती और विकास की कमी का हवाला देते हुए कांग्रेस को घेरा था.
उनके करीबी एक अन्य पदाधिकारी ने कहा, यह सिंह ही थे जिन्होंने पोस्टरों में न दिखने का फैसला किया. कांग्रेस नेता ने कहा, “मैं ही वह व्यक्ति था जिसने दिग्विजय सिंह को फोन किया और उनसे पूछा कि क्या वह जन आक्रोश यात्रा के लिए होर्डिंग पर लगाए गए अपने पोस्टरों को लेकर सहज हैं. उन्होंने ‘मना’ कर दिया.”
मध्य प्रदेश, उज्जैन स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस रिसर्च, (एमपीआईएसएसआर) के निदेशक, प्रोफेसर यतीन्द्र सिसौदिया ने कहा कि नाथ पर ध्यान केंद्रित करने की कांग्रेस की रणनीति 2018 में भी दिखाई दे रही थी, जब सिंधिया और नाथ को आधिकारिक पोस्टरों पर देखा गया था.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस को लगता है कि बीजेपी इस चुनाव को 2003 बनाम 2023 बनाना चाहती है, इसलिए व्यावहारिक और रणनीतिक रूप से पार्टी अपने विरोधियों को सिंह के कार्यकाल का ज़िक्र करने का मौका नहीं देना चाहती है. उन्होंने कहा, “वे नहीं चाहते कि यह बात सार्वजनिक तौर पर सामने आए क्योंकि दिग्विजय के कार्यकाल के आखिरी कुछ वर्षों ने जनता के मुंह में कड़वा स्वाद छोड़ दिया है.”
“बीजेपी दिग्विजय सिंह को प्रचार में लाने की कोशिश कर रही है, लेकिन उन्हें पोस्टरों पर न आने देकर कांग्रेस बातचीत को स्थानीय मुद्दों पर अधिक रखने की कोशिश कर रही है.”
उन्होंने कहा कि, जहां तक कांग्रेस के राज्य नेतृत्व का सवाल है, उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि नाथ ही सीएम होंगे.
दूसरी ओर, भाजपा के पोस्टर, चौहान की भूमिका को कम करने का एक सचेत प्रयास दिखाते हैं, जो समूह चित्रों में 11 नेताओं में से एक हैं – 2018 के विपरीत, जब वह पार्टी का चेहरा थे और ‘माफ़ करो महाराज हमारे नेता शिवराज’ जैसे नारे सड़कों पर गूंज रहे थे.
भाजपा प्रवक्ता बाजपेयी ने कहा, “हमारे पास नेताओं की एक पूरी श्रृंखला है और जबकि चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में लड़े जा रहे हैं, भाजपा में मुख्यमंत्री के संबंध में निर्णय केंद्रीय नेतृत्व द्वारा लिया जाता है.”
उनके अनुसार, विभिन्न नेताओं की तस्वीरों वाले भाजपा के पोस्टर “समाज के विभिन्न वर्गों और विभिन्न क्षेत्रों” का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्होंने बुधवार को दिप्रिंट से कहा, “कांग्रेस के विपरीत हमारे पास नेताओं का एक गुलदस्ता है.”
सिसौदिया के मुताबिक, “कांग्रेस ने जहां एक चेहरे पर फोकस किया है, वहीं बीजेपी ने पीएम मोदी पर ज्यादा फोकस करके केंद्रीय नेतृत्व और सामूहिक नेतृत्व पर फोकस कर सभी चेहरों को छोटा कर दिया है.”
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, चौहान को लेकर एक थकान भी है. “जनता एक ही चेहरा देखकर थक गई है. हालांकि, उनके लिए गुस्सा नहीं है, लेकिन 2018 के अंत और चौहान के लगभग 17-18 साल के शासन का मतलब है कि बीजेपी यह आभास देना चाहती है कि कोई भी सीएम बन सकता है.”
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चौहान बनाम नाथ
भोपाल से लेकर सिलवानी तक, ज़मीन पर ऐसी आवाज़ें थीं जो भाजपा से थकान को दर्शाती थीं, जिसने कांग्रेस के नेतृत्व वाली 15 महीने की सरकार को छोड़कर, 2003 से राज्य पर शासन किया है. हालांकि, चौहान के खिलाफ कोई स्पष्ट गुस्सा नहीं था, लेकिन कुछ लोगों का मानना था कि उन्होंने कई वर्षों तक सेवा की है और एक नए चेहरे को मौका दिया जाना चाहिए.
लोगों ने भाजपा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की सराहना की और चौहान के लिए प्रशंसा के शब्द भी बोले, लेकिन थकान के कारण बदलाव की इच्छा स्पष्ट थी.
चौहान के निर्वाचन क्षेत्र बुधनी में, जबकि मतदाताओं को भरोसा था कि वह अपनी सीट बरकरार रखेंगे, लेकिन वे सीएम के रूप में उनकी वापसी के बारे में पूरी तरह आश्वस्त नहीं थे.
बुधनी में एक कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी हेमराज आसरे ने कहा, “एक समय था जब बुधनी में रात में इस सड़क को पार करना मुश्किल था, लेकिन आज, न केवल सड़कें बेहतर हो गई हैं, बल्कि कानून-व्यवस्था की स्थिति भी बेहतर हो गई है. शिवराज जी ने काम किया है, लेकिन पिछले कार्यकाल में उन्होंने अपनी कुछ चमक खो दी है.”
इछावर निर्वाचन क्षेत्र के 24-वर्षीय इमरत पांडे के अनुसार, अब नेतृत्व परिवर्तन का समय आ गया है.
उन्होंने कहा, “वह (शिवराज) 17 साल से अधिक समय से मुख्यमंत्री रहे हैं. अब समय आ गया है कि किसी और को मौका दिया जाए. कोई कब तक एक ही चेहरा देख सकता है? नेतृत्व में बदलाव से शासन में भी बदलाव आएगा.”
भोजपुर में एक कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी मधु सूदन दुबे ने कहा, “एक फिल्म आई थी जिसका एक डायलॉग था- ठाकुर तू तो गयो. आज शिवराज जी का वही हाल है – मामा तो गियो. बीजेपी अगर आई, तो भी वो सीएम नहीं बनेंगे.”
दुबे ने कहा कि उन्होंने अपनी बचत अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने में खर्च कर दी, लेकिन इसके बावजूद, उन्हें एक कारखाने में काम करने के लिए मजबूर किया गया, जहां तक कमलनाथ की बात है तो उनकी छवि अच्छी लगती है.
ओबेदुल्लागंज नगर अंतर्गत गौतमपुर जोंड्रा निवासी सुमेर सिंह पंवार के लिए चुनाव अप्रत्याशित है.
नाथ के कार्यकाल से खुश होकर उन्होंने कहा, “कमलनाथ की सरकार में मेरा लोन माफ हुआ था. उन्हें जो कहा वो किया, साफ-सुथरी छवि है उनकी.”
उन्होंने आगे कहा कि बीजेपी का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं है, लेकिन चुनाव में अभी काफी दिन बाकी हैं. उन्होंने कहा, “तो कुछ भी हो सकता है.”
ऐसे भी कई लोग हैं जो दावा करते हैं कि यह चुनाव ‘मुश्किल का मैदान’ है. बुधनी के एक गांव, आगरा के एक अन्य निवासी हिमरत लाल ने कहा, “कमलनाथ जी को जनता से और अधिक जुड़ने की ज़रूरत है. वह प्रचार के लिए आते हैं और लोगों से बातचीत करने के बजाय चले जाते हैं, लेकिन हां, उनकी छवि अच्छी है.”
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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