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Saturday, 11 May, 2024
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मध्य प्रदेश के कांग्रेस स्टार प्रचारक कभी चंबल-ग्वालियर में खूंखार डकैत थे

मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में ठाकुर वोटों के लिए कांग्रेस पूर्व डकैत मलखान सिंह पर भरोसा किया है. वह कहते हैं, 'मैं संसद में डकैतों के बारे में कोई कुछ नहीं कहता.'

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करेरा: माथे पर चमकता हुआ तिलक और गालों पर चौड़ी मूंछें रखे 81 वर्षीय मलखान सिंह, जो कभी चंबल के खूंखार डाकू थे. चुनावी राज्य मध्य प्रदेश में वह कांग्रेस पार्टी के लिए प्रचार करते हुए अपने मिलनसार रॉबिन हुड व्यक्तित्व का इस्तेमाल कर रहे हैं.

भूरे रंग का कुर्ता-पायजामा पहने, गले में सफेद दुपट्टा डाले वह अपनी बोलेरो की अगली सीट पर बैठे हैं और उनका काफिला तेज डीजे सेट के साथ शिवपुरी ज़िला के ठाकुर बहुल गांव खिरया की ओर बढ़ रहा है.

उनकी कार की विंडशील्ड पर बड़े बड़े अक्षरों में उनकी पहचान बता रहा है: “ठाकुर मलखान सिंह (दद्दाजी) चंबल”. जैसे ही वाहन राज्य राजमार्ग-3 से गांव में प्रवेश करता है, धूल उड़ती है. वह खिड़की की ओर मुड़ते हुए गांव की सड़कों की खराब स्थिति पर अफसोस जताते हैं.

मप्र कांग्रेस ने मलखान सिंह को ठाकुर बहुल ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी है, जिसमें 34 विधानसभा सीटें शामिल हैं. 34 में से कम से कम 20 सीटों पर बड़ी संख्या में ठाकुर मतदाता हैं, जिनमें परिहार वंश भी शामिल है, जिससे मलखान सिंह आते हैं.

इस सप्ताह की शुरुआत में, भिंड में विपक्ष के नेता डॉ गोविंद सिंह जब कलेक्टरेट में अपना नामांकन दाखिल करने गए तो मलखान सिंह भी उनके साथ मौजूद थे. उनके खिरया गांव के दौरे का उद्देश्य आरक्षित अनुसूचित जाति सीट करेरा से मौजूदा कांग्रेस विधायक प्रागीलाल जाटव के पक्ष में परिहार वोटों को एकजुट करना है. इस निर्वाचन क्षेत्र में ठाकुर किंग-मेकर की भूमिका निभाते हैं.

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खिरया में मलखान का पहला पड़ाव गांव के कांग्रेस से जुड़े सरपंच राम मनोहर परिहार का घर है, जिनका हाल ही में निधन हो गया. उनकी कार घर के सामने अचानक रुकती है और वह भाषण देने के लिए बाहर निकलते हैं.

मलखान सिंह खिरया गांव में गाड़ी चलाते हैं। उनकी विंडशील्ड पर लाल अक्षरों में उनकी पहचान चंबल के ‘दद्दाजी’ के रूप में बताई गई है फोटो: इरम सिद्दीकी | दिप्रिंट

वह कहते हैं, “क्षत्रिय अपने शब्दों के पक्के लोग होते हैं. वो हमेशा से अन्याय के विरुद्ध खड़े होते रहे हैं. और यह चुनाव सिर्फ भाजपा और कांग्रेस के बीच नहीं है बल्कि असमानता और अन्याय के खिलाफ भी एक लड़ाई है.”

मलखान सिंह करेरा और उसके मतदाताओं के लिए नए नहीं हैं. उन्होंने 1998 और 2003 में करेरा से दो बार विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन असफल रहे. बाद में वे ठाकुर और गुर्जर समुदायों से लगभग 14,000 वोटों के साथ चौथे स्थान पर रहे.

1989 में जेल से रिहा होने के बाद से मलखान सिंह ने कई बार अपनी राजनीतिक पार्टियां बदलीं. 1990 के दशक में वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए, 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने नरेंद्र मोदी के समर्थन में प्रचार किया और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में उन्होंने आरएलडी के अजीत सिंह का समर्थन किया. एमपी में 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के लिए प्रचार किया था.

लेकिन अगस्त 2023 में, मलखान ने अपनी वफादारी बदल ली और राज्य पार्टी प्रमुख कमल नाथ की उपस्थिति में कांग्रेस में चले गए.

मलखान दिप्रिंट से कहते हैं, ”मुझे कहना चाहता हूं कि कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो हाशिये पर खड़े लोगों के बारे में सोचती है.”

लेकिन ‘बैंडिट किंग’ ने कभी भी ‘बैंडिट क्वीन’ फूलन देवी जैसी राजनीतिक प्रसिद्धि हासिल नहीं की, जिनकी 2001 में गोली मारकर हत्या कर दी गई वह उस समय समाजवादी पार्टी की सांसद थीं.

ग्वालियर के एक लेखक और पत्रकार राकेश अचल, जिन्होंने क्षेत्र के डकैती के इतिहास पर एक किताब लिखी है, बताते हैं, “मलखान हमेशा एक राजनेता बनने की महत्वाकांक्षा रखते थे, लेकिन फूलन देवी जैसे अन्य डाकुओं के विपरीत, उन्हें ज्यादा चुनावी सफलता नहीं मिली.” लेकिन कहा जा रहा है कि चंबल क्षेत्र में मलखान का अब भी दबदबा है.


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बागी, हैं डाकू नहीं’

मलखान ने डकैत के लेबल को त्याग दिया है और वह खुद को “बागी” या विद्रोही कहलाना पसंद करते हैं. जिस तरह से वह बताते हैं, उन्होंने समाज में व्याप्त अन्याय से लड़ने के एकमात्र साधन के रूप में हिंसा का सहारा लिया.

हालांकि, अपने चरम के दौरान, उन्होंने एक भय से जुड़ी हुई प्रतिष्ठा प्राप्त की.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, मलखान सिंह पर आर्म्स एक्ट के तहत पहला मामला तब दर्ज हुआ था जब वह किशोरावस्था में थे. कुछ ही समय बाद उन्होंने एक स्थानीय उपद्रवी के रूप में उभरी अपनी कुख्यात छवि को भी पार कर लिया, जब उन्होंने अराजक चंबल के बीहड़ों में लगभग 40 सदस्यों का एक गिरोह इकट्ठा किया.

1970 के दशक में, यह गिरोह मध्य प्रदेश के भिंड और दतिया और उत्तर प्रदेश के जालौन, आगरा और इटावा में संचालित होता था. पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, इसमें कथित तौर पर कुल 94 मामले दर्ज हुए, जिनमें 18 डकैती, 28 अपहरण, 19 हत्या के प्रयास और 17 हत्याएं शामिल हैं.

जवानी के दिनों में मलखान सिंह (बीच में) | फोटोः फेसबुक/@स्वर्गीय श्री चंदन सिंह नागर

इस अवधि की एक बड़ी घटना मई 1976 में घटी, इस दौरान मलखान ने स्थानीय मंदिर के पास एक भूमि पार्सल से संबंधित लड़ाई में बिलाव गांव के सरपंच कैलाश नारायण को कथित तौर पर छह गोलियां मार दी थी. नारायण बच गए, लेकिन दुश्मनी कायम रही.

हालांकि, फूलन देवी सहित कुछ अन्य डकैतों की तरह, मलखान का नाम कभी भी अंधाधुंध हत्याओं के लिए नहीं जाना जाता था.

राकेश अचल कहते हैं, “मलखान ने कभी लापरवाही से हत्या नहीं की. उसने फिरौती के लिए लोगों का अपहरण करने का चलन स्थापित किया, लेकिन हत्या केवल दुश्मनी या छींटाकशी के बढ़े मामलों में ही होती थी.”

वर्षों तक, कैलाश नारायण के साथ मलखान की दुश्मनी बढ़ती रही, लेकिन कहा जाता है कि यहां भी उन्होंने एक रेखा खींच दी है.

मलखान सिंह के पोते विजय कुमार बताते हैं कि जब उनके गिरोह के सदस्यों ने कैलाश नारायण के बच्चों को पकड़ लिया और उन्हें बीहड़ों में ले गए, तो मलखान सिंह खुश नहीं हुए थे.

विजय ने दिप्रिंट को बताया, “दद्दाजी ने उन्हें देखने के बाद, न केवल गिरोह के सदस्यों को डांटा, बल्कि कैलाश नारायण की बेटी के पैर भी छुए. उनका मानना था कि दुश्मनी कैलाश से है, उनके परिवार से नहीं.”

अंततः, जून 1982 में, मध्य प्रदेश के भिंड में एक भव्य समारोह में, जिसमें कथित तौर पर 30,000 लोग शामिल थे, मलखान सिंह ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने हथियार डाल दिए. 1989 में रिहा होने से पहले उन्होंने सात साल जेल में बिताए.

विजय के अनुसार, उनके दादा के खिलाफ आखिरी मामला, जिसमें कैलाश नारायण की हत्या का प्रयास शामिल था, 2013 में सबूतों की कमी के कारण मलखान के बरी होने के साथ समाप्त हुआ.

जहां तक मलखान का सवाल है, वह अपने अतीत पर ध्यान देना पसंद नहीं है.

विजय ने दिप्रिंट से कहा, “जो हो गया बस हो गया. सरकार ने उस संपत्ति विवाद को सुलझा लिया जिसने मुझे हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया था. इसके बारे में बात करने का कोई मतलब नहीं है. लेकिन दुख की बात यह है कि मैं अब भी लोगों के लिए डकैत बना हुआ हूं, जबकि संसद में बैठे डकैतों के बारे में कोई कुछ नहीं कहता.”

रॉबिन हुड छवि

अचल कहते हैं कि, मलखान सिंह हमेशा से अपनी छवि रॉबिन हुड की तरह बनाना चाहते रहे हैं. जिसके लिए वो गरीब गांव वालों को वित्तीय मदद भी करते रहे हैं, खासकर उनकी बेटियों की शादी के दौरान, जिससे उन्हें चंबल क्षेत्र में समर्थन हासिल करने में मदद मिली.

हथियार डालने के बाद राजनीति में आने के बारे में पूछे जाने पर मलखान ने तीखा जवाब दिया, ”लोग जाकर प्रधानमंत्री से यह क्यों नहीं पूछते कि जब वह चाय बेचते थे तो राजनीति में क्यों आये? या कोई शिवराज सिंह चौहान से यह क्यों नहीं पूछता कि जब वह एक स्कूल मास्टर के बेटे थे तो उन्होंने राजनीति में क्यों प्रवेश किया?

Malkhan
खिरया गांव में समर्थकों ने मलखान सिंह को फूलमालाओं से लाद दिया | फोटो: इरम सिद्दीकी | दिप्रिंट

वह मप्र में मौजूदा भाजपा सरकार के तहत अपने आसपास के लोगों के साथ हुए अन्याय का हवाला देते हैं, जिसने उन्हें कांग्रेस में शामिल होने के लिए प्रेरित किया.

मल्खान कहते हैं, “मैं हाल ही में एक युवक से मिला, जिसकी बाइक का एक्सीडेंट हुआ, लेकिन पुलिस ने उसकी शिकायत दर्ज नहीं की. लोग त्रस्त हैं, उनकी जमीनें भ्रष्ट नेता हड़प रहे हैं. मलखान कहते हैं, ”इसी बात ने मुझे गरीबों के लिए सही मायने में काम करने के लिए प्रेरित किया और मैंने बीजेपी छोड़ दी और कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गया.”

पिछले साल, पूर्व डकैत की दूसरी पत्नी, ललिता राजपूत को गुना के आरोन गांव की सिंगयाई पंचायत के निर्विरोध सरपंच के रूप में चुना गया था. दंपति अपने तीन बच्चों के साथ वहां रहते हैं.

मलखान खिरया में गांव वालों को धैर्यपूर्वक सुनते हैं क्योंकि वे विधायक प्रागीलाल जाटव के तहत क्षेत्र में विकास की कमी, खराब सड़कों और अनियमित बिजली के बारे में शिकायत करते हैं.

एक बरगद के पेड़ के नीचे गांव वालों से घिरे हुए मलखान कहते हैं “कांग्रेस सत्ता में नहीं थी, लेकिन अब वे सरकार बनाएंगे और फिर जिसे आप चुनेंगे वह मंत्री भी बन सकता है और क्षेत्र में विकास ला सकता है. वे पुंजीपथ लोग हैं, भूखे नंगे नहीं हैं.”

वह 2018 में कांग्रेस के सत्ता में आने का संदर्भ में लोगों को यह भी बताते हैं कि भाजपा विधायकों को “खरीदकर” सत्ता में आई थी. इस दौरान वह बताना नहीं भूले कि इसी खरीद फरोख्त के कारण सिर्फ एक साल बाद ही कांग्रेस की सरकार गिर गई, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया और 18 विधायक भाजपा में शामिल हो गए.

मलखान की अपील सुनकर, ग्रामीणों ने उन्हें प्रागीलाल जाटव के लिए अपना समर्थन देने का आश्वासन दिया और कहा कि उनकी यात्रा से उनके लिए बहुत फर्क पड़ा है.

पास के खुर्री गांव के निवासी दिनेश गुर्जर जैसे कुछ लोगों के लिए, मलखान सिंह एक अच्छे व्यक्ति हैं जिन्होंने अत्याचारों के खिलाफ लड़ने के लिए डकैती को अपनाया.

गुर्जर कहते हैं, “मलखान सिंह ने करेरा से चुनाव लड़ा था और मामूली अंतर से हार गए थे और यहां के लोग उन्हें जानते हैं. उन्होंने अच्छी लड़ाई और समाज की भलाई के लिए हथियार उठाए और यहां के लोग उनकी बात सुनते हैं. ”

Malkhan Singh with villagers
ग्रामीणों से बातचीत करते मलखान सिंह | फोटो: ईरान सिद्दीकी | दिप्रिंट

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कम हो रहा प्रभाव?

जबकि कई अन्य डकैतों ने आत्मसमर्पण के बाद एक शांत जीवन चुना, मलखान राजनीति में अपनी वफादारी और पार्टी को बार बार बदला है और सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे लेकिन कभी गुमनामी में नहीं गए.

कांग्रेस के लिए, मलखान राजनीति में एक प्रासंगिक खिलाड़ी हैं क्योंकि उनका स्थानीय प्रभाव अभी भी कायम है.

ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता धर्मेंद्र शर्मा बताते हैं, “उनका परिहार समुदाय के लोगों पर प्रभाव है, जिनके वोट पूरे ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में हैं. कुछ क्षेत्रों में, (परिहार वोट) उम्मीदवारों के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर करीबी मुकाबले में.”

शर्मा कहते हैं कि मलखान सिंह गुना, अशोक नगर, दतिया, शिवपुरी, ग्वालियर और भिंड सहित विभिन्न जिलों में कांग्रेस के लिए सक्रिय रूप से प्रचार कर रहे हैं. वह विभिन्न गांवों में परिहार समुदाय के लिए छोटी सभाएं भी आयोजित करते हैं और किसी विशेष कांग्रेस उम्मीदवार के अनुरोध पर ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के किसी भी निर्वाचन क्षेत्र का दौरा करते हैं.

हालांकि, कुछ लोगों का तर्क है कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में मलखान का प्रभाव कम हो रहा है.

“एक समय था जब ग्वालियर-चंबल में डाकू लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र हुआ करते थे, लेकिन वह समय बहुत पहले बीत चुका है. ग्वालियर-चंबल में भाजपा के वरिष्ठ नेता जयभान सिंह पवैया कहते हैं, ”यहां आमतौर पर जाति-आधारित तनाव पर सवार होकर कांग्रेस को बढ़त मिल जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है.”

उन्होंने आगे कहा, “आज चुनाव जातिगत समीकरणों से नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा किए गए विकास कार्यों से तय होंगे.”

बीजेपी के राज्य सचिव और ग्वालियर-चंबल नेता लोकेंद्र पराशर भी मलखान पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं, “बहुत से लोग जो अन्य कारणों से लोकप्रियता हासिल करते हैं, उन्हें लगता है कि वे राजनीति में भी बड़ा नाम कमा सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं होता.” “आगामी चुनाव में, जब लोग वोट देंगे तो यह स्पष्ट हो जाएगा.”

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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