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Sunday, 28 April, 2024
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राजस्थान के गुर्जर कांग्रेस और सचिन पायलट के ‘विश्वासघात’ से नाराज हैं, बीजेपी के लिए यह एक अवसर है

2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में गुर्जरों ने बड़े पैमाने पर कांग्रेस को इस उम्मीद में वोट दिया था कि सचिन पायलट सीएम बनेंगे. उस संभावना के धूमिल होने के साथ, BJP इसका फायदा उठाना चाह रही है.

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कोटपूतली/सवाई माधोपुर: सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनते देखने की आकांक्षा के कारण राज्य भर के गुर्जरों ने 2018 के विधानसभा चुनावों में मुख्य रूप से कांग्रेस का समर्थन किया. हालांकि, पांच साल बाद, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पायलट के बीच के रिश्तों में खटास आ गई, जिससे कोटपूतली सहित कई लोग निराश हो गए.

कोटपूतली के सुंदर पुरा गांव के किसान उमराव गुर्जर ने कहा, “गुर्जरों ने 2018 में कांग्रेस का समर्थन किया क्योंकि उन्हें विश्वास था कि सचिन मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन हर कोई जानता है कि जब तक सत्ता में रहेंगे तब तक गहलोत सचिन को कभी सीएम नहीं बनने देंगे.”

ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र वर्तमान में कोटपूतली बहरोड़ जिले का हिस्सा है, जिसे इस साल की शुरुआत में जयपुर और अलवर जिलों से अलग किया गया था. यहां मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 2.25 लाख है, और स्थानीय भाजपा सर्वेक्षणों के अनुसार, सबसे बड़े वोटिंग ब्लॉक गुर्जर हैं, जिनकी संख्या लगभग 55,000 है, इसके बाद यादव 40,000 हैं.

कोटपूतली ने परंपरागत रूप से कांग्रेस को वोट दिया है, जिसमें साल 2013 भी शामिल है, जब वसुंधरा राजे ने राजस्थान विधानसभा में 200 में से 163 सीटें हासिल करके भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाई थी. उस चुनाव में, जयपुर जिले की 19 विधानसभा सीटों में से कोटपूतली एकमात्र निर्वाचन क्षेत्र था, जिस पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी.

आगामी चुनाव के लिए, कांग्रेस ने फिर से मौजूदा विधायक और मंत्री राजेंद्र सिंह यादव पर अपनी उम्मीदें लगाई हैं, जो क्षेत्र के दूसरे सबसे बड़े समुदाय से हैं, लेकिन जमीन पर सेंटीमेंट्स बदल गए हैं.

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मंत्री और कोटपूतली से विधायक राजेंद्र सिंह यादव (काले चश्मे में) 2023 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के उम्मीदवार हैं | फोटो: X/@@RajenderSYadav

यादव ने 2018 में सैनी, दलित और अनुसूचित जनजाति लामबंदी के समर्थन से यह सीट जीती थी. उन्हें गुर्जरों का भी समर्थन मिला, जो सचिन पायलट के पहले गुर्जर सीएम बनने को लेकर काफी उत्सुक थे. हालांकि, उनकी यह इक्छा अधूरी रह गई, और पार्टी के भीतर गहलोत के कथित प्रभुत्व के बारे में स्थानीय असंतोष ने कोटपूतली में यादव की संभावनाओं पर भी पड़ी.

चुनावी डायनामिक्स में एक और लेयर को जोड़ते हुए, क्षेत्र के किसान सीमेंट की दिग्गज कंपनी

अल्ट्राटेक के कारण क्षेत्र में होने वाले कथित पर्यावरणीय खतरों के खिलाफ पिछले नौ महीनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. यह यहां एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया है, कथित तौर पर कई निवासी अपनी चिंताओं पर राजनीतिक उदासीनता पर गुस्सा व्यक्त कर रहे हैं.

कोटपूतली में सीमेंट प्लांट के विरोध में प्रदर्शन करते स्थानीय लोग | फोटो: विशेष व्यवस्था द्वारा

इस बीच, भाजपा ने गुर्जर वोटों को सुरक्षित करने के लिए 2018 के चुनाव में गुर्जर उम्मीदवार और पूर्व भाजपा बागी हंसराज पटेल को मैदान में उतारा है. विशेष रूप से, भाजपा के 2018 के उम्मीदवार मुकेश गोयल अब बागी हो गए हैं, जो भाजपा के अभियान के लिए चुनौतियां खड़ी कर रहे हैं.

हालांकि, गुर्जर प्रभाव केवल कोटपूतली तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कई अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में भी है, जहां इस समुदाय का प्रभाव है, खासकर पूर्वी राजस्थान में.


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‘गुर्जरों का वोट सचिन के लिए था’

कोटपूतली में, मौजूदा कांग्रेस विधायक राजेंद्र यादव ने 2013 में राजस्थान में भाजपा की प्रचंड जीत के दौरान भी निर्वाचन क्षेत्र पर लंबे समय तक पकड़ बनाए रखी है. हालांकि, गुर्जरों में असंतोष बढ़ रही है.

सुंदर पुरा गांव के उमराव गुर्जर ने दिप्रिंट को बताया कि गहलोत में कोई “कमी” नहीं थी, लेकिन समुदाय को कमी महसूस होती थी. उन्होंने कहा, ”इस क्षेत्र में गुर्जर भाजपा को वोट देंगे. सचिन के स्पष्ट भाषणों और शिक्षित शहरी व्यक्तित्व से आकर्षित आकांक्षी युवा अब भाजपा की ओर रुख कर रहे हैं.”

गांव के अन्य किसानों के साथ बैठे अरदान गुर्जर उमराव के दृष्टिकोण से सहमत नजर आए.

उन्होंने भविष्यवाणी करते हुए कहा, “गुर्जरों ने सचिन के कारण कांग्रेस को वोट दिया था. हालांकि इस बार भी, माली, दलित और यादव मतदाता कांग्रेस का समर्थन करेंगे, लेकिन भाजपा को गुर्जर, राजपूत, ब्राह्मण और कुछ दलित और एसटी वोट मिलेंगे.”

अर्दान के अनुसार, हालांकि, अगर पार्टी स्थिति को नियंत्रित करने में कामयाब नहीं हुई तो बीजेपी के बागी मनोज गोयल बिगाड़ने की भूमिका निभा सकते हैं.

Residents of Sawai Madhopur
सवाई माधोपुर में किसानों ने की राजनीति पर चर्चा | फोटो: शंकर अर्निमेश | दिप्रिंट

कोटपूतली से लगभग 200 किमी दूर सवाई माधोपुर में ज़मीनी भावनाएं एक समान थीं, जहां पहले मीना और फिर गुर्जर समुदाय मतदाताओं का सबसे बड़ा हिस्सा हैं.

दोनों समुदायों का रणनीतिक रूप से एक-दूसरे के खिलाफ मतदान करने का इतिहास रहा है, लेकिन 2018 में दोनों ने मुख्य रूप से कांग्रेस के लिए मतदान किया.

सवाई माधोपुर के खेड़ी गांव के धनझेव गुर्जर ने कहा, “गुर्जरों के लिए चुनाव में ज्यादातर वोट का फैक्टर पायलट थे.”

उन्होंने कहा, “हमें कांग्रेस पर अपना वोट क्यों बर्बाद करना चाहिए? हमने 2018 में स्थानीय उम्मीदवार को वोट नहीं दिया, लेकिन सचिन के कारण हमने कांग्रेस का समर्थन किया. हमने सोचा कि हमारे मुद्दे हल हो जाएंगे और वसुंधरा राजे के दौर में दर्ज मामले (गुर्जर नेताओं के खिलाफ) वापस ले लिए जाएंगे.” “लेकिन सचिन के पास निर्णय लेने का अधिकार नहीं हैं. बीजेपी के साथ जाना हमारे लिए ज्यादा फायदेमंद होगा.”

मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) से जुड़े संजय लोढ़ा ने बताया, “मीणा पूर्वी राजस्थान में प्रमुख जाति है, जिसके पास भूमि स्वामित्व और नौकरशाही में प्रभाव है. गुर्जरों का परंपरागत रूप से मीनाओं के साथ तनाव रहा है और उन्होंने दशकों तक आरक्षण के लिए लड़ाई लड़ी है. हालांकि, 2018 में, दोनों समुदायों ने आंशिक रूप से सचिन पायलट से प्रभावित होकर कांग्रेस को वोट दिया.”

उन्होंने कहा, “हालांकि, अब गुर्जरों के मन में कांग्रेस के लिए कोई प्यार नहीं रह गया है और वे बीजेपी के साथ जा सकते हैं- और अगर वे ऐसा करते हैं, तो मीणा रणनीतिक रूप से वोट कर सकते हैं.”

कांग्रेस के लिए सिरदर्द!

पिछले वर्षों में, राजस्थान में कांग्रेस आलाकमान के लिए गहलोत और पायलट के बीच कड़वी लड़ाई सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दा रही है.

सबसे नाटकीय क्षण वह था जब पायलट और 18 विधायकों ने 2020 में गहलोत के खिलाफ विद्रोह किया था. विद्रोह को तुरंत दबा दिया गया था, यहां तक ​​कि उन अटकलों के बीच भी कि गहलोत ने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए तत्कालीन डिप्टी सीएम पायलट को विद्रोह करने के लिए उकसाया था.

दोनों के बीच समझौता कराने की पार्टी आलाकमान की कोशिशें आंशिक रूप से ही सफल होती दिख रही हैं.

इस महीने की शुरुआत में, गहलोत ने कथित तौर पर इस चुनाव में भी खुद को सीएम उम्मीदवार घोषित करते हुए कहा था कि वह “पद छोड़ना चाहते थे”, लेकिन पद उन्हें नहीं छोड़ रहा था. इसे व्यापक रूप से पायलट और उनकी अपनी कथित सीएम आकांक्षाओं पर कटाक्ष माना गया.

Congress MLA Sachin Pilot and Rajasthan CM Ashok Gehlot | ANI file photo
कांग्रेस विधायक सचिन पायलट और राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत | एएनआई फाइल फोटो

इस बीच, पायलट ने मई में अपनी ही सरकार में भ्रष्टाचार के खिलाफ पांच दिवसीय जन संघर्ष यात्रा शुरू की. यात्रा के दौरान उन्होंने भ्रष्ट व्यक्तियों को बचाने के लिए गहलोत की आलोचना की. उन्होंने पत्रकारों से यह भी कहा कि ऐसा लग रहा है जैसे “सीएम की नेता सोनिया गांधी नहीं, बल्कि वसुंधरा राजे सिंधिया हैं.”

गहलोत और सचिन के बीच चल रहे झगड़े ने गुर्जर मतदाताओं को निराश कर दिया है, जिससे संभावित रूप से भाजपा के लिए इस समुदाय को लुभाने का रास्ता खुल गया है. जहां प्रियंका गांधी और सचिन पायलट ने अपना समर्थन सुरक्षित करने के लिए गुर्जर बेल्ट में रैलियों को संबोधित किया है, वहीं भाजपा भी इस दिशा में अपने प्रयासों को दोगुना कर रही है.


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बीजेपी को गुर्जरों का झटका

2018 में, राजस्थान में भाजपा की हार का एक प्रमुख कारक महत्वपूर्ण गुर्जर वोट था, जो कांग्रेस के पक्ष में भारी पड़ गया. गुर्जर समर्थन में इस बदलाव ने राजस्थान के गुर्जर-मीणा बहुल पूर्व-मध्य क्षेत्र में कांग्रेस को 39 में से 35 सीटें जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जबकि भाजपा सिर्फ तीन सीटों से पीछे रह गई.

कुल मिलाकर, राजस्थान में लगभग 7 प्रतिशत मतदाता हैं, जिनका 40 विधानसभा क्षेत्रों में प्रभाव है. 2018 के चुनावों में, कांग्रेस ने 11 गुर्जर उम्मीदवार उतारे और उनमें से आठ विजयी हुए. इसके विपरीत, भाजपा के सभी आठ गुर्जर उम्मीदवार हार गए.

आगामी चुनाव में, भाजपा ने पांच गुर्जर उम्मीदवारों को नामांकित किया है, जबकि कांग्रेस ने समुदाय से चार को मैदान में उतारा है.

भाजपा के गुर्जर उम्मीदवारों में से एक विजय बैंसला हैं – किरोड़ी लाल बैंसला के बेटे, जिन्होंने 2008 में वसुंधरा राजे के कार्यकाल के अंत के दौरान आरक्षण के लिए गुर्जर विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया था. विजय बैंसला टोंक जिले के देवली-उनियारा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं.

हंसराज पटेल भाजपा द्वारा मैदान में उतारे गए एक और गुर्जर उम्मीदवार हैं, जो कोटपूतली से चुनाव लड़ रहे हैं, और उदय लाल भड़ाना भीलवाड़ा जिले की मांडल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.

विशेष रूप से, जनवरी में, प्रधान मंत्री मोदी ने भीलवाड़ा के देवनारायण मंदिर का दौरा किया, जहां कई गुर्जर भक्त आते हैं. इस महीने की शुरुआत में, कांग्रेस की प्रियंका गांधी ने दावा किया था कि पीएम ने इस मंदिर को केवल 21 रुपये का दान दिया था, जिस पर भाजपा द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद उन्हें चुनाव आयोग से कारण बताओ नोटिस मिला था.

भाजपा ने इस साल अपनी गुर्जर पहुंच को मजबूत करने के लिए संगठनात्मक बदलाव भी किए हैं. सवाई माधोपुर टोंक से गुर्जर और लोकसभा सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया को राजस्थान इकाई का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया, अलका गुर्जर को राष्ट्रीय सचिव बनाया गया, और नीलम गुर्जर को दौसा में राज्य सचिव नियुक्त किया गया, जहां एक महत्वपूर्ण गुर्जर आबादी है, और अंकित गुर्जर चेची को राज्य में भाजपा युवा मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया.

गुर्जर मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में करने के लिए समुदाय के कई नेताओं को राजस्थान में तैनात किया गया है. यूपी के राज्यसभा सांसद और गुर्जर नेता सुरेंद्र नागर को पूर्वी क्षेत्र में गुर्जरों को एकजुट करने का काम सौंपा गया है, जबकि केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर को सवाई माधोपुर जिले में तैनात किया गया है.

हाल ही में संसद में बसपा सांसद दानिश अली के खिलाफ सांप्रदायिक टिप्पणी कर विवाद पैदा करने वाले दिल्ली के सांसद रमेश बिधूड़ी को टोंक जिले का प्रभारी नियुक्त किया गया है.

ऐसी अटकलें हैं कि सचिन पायलट के गढ़ टोंक में बिधूड़ी की नियुक्ति का उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम आधार पर चुनाव का ध्रुवीकरण करना है. टोंक जिले में मुस्लिम जनसंख्या 10.77 प्रतिशत है, जबकि टोंक शहर में यह 47.18 प्रतिशत है.

‘टूटे वादों’ पर भरोसा

भाजपा गुर्जरों के बीच समर्थन जुटाने के लिए सचिन पायलट मुद्दे को उजागर कर रही है. उदाहरण के लिए, इस महीने भरतपुर में एक सार्वजनिक बैठक में, सवाई माधोपुर के सांसद जौनापुरिया ने दावा किया कि सचिन पायलट के पास “मुख्यमंत्री बनने का कोई मौका नहीं था क्योंकि गहलोत इसे कभी अनुमति नहीं देंगे” और उन्होंने गुर्जरों से भाजपा को वोट देने का आग्रह किया.

राजस्थान बीजेपी सचिव नीलम गुर्जर ने दिप्रिंट को बताया कि गहलोत सरकार ने लोगों से किए गए “अपने वादे पूरे नहीं किए” और पार्टी इसे उजागर कर रही है.

उन्होंने कहा.“अपराध और भ्रष्टाचार व्यापक हैं, और महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं. कांग्रेस को वोट देकर गुर्जर समाज ठगा हुआ महसूस कर रहा है. इस चुनाव में, भाजपा को उम्मीद है कि समाज का हर वर्ग पार्टी को वोट देगा. ”

कांग्रेस नेता हिम्मत सिंह गुर्जर, जिन्होंने पहले सचिन के दिवंगत पिता राजेश पायलट के लिए प्रचार किया था, ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें भी लगता है कि पार्टी के लिए गुर्जर वोट कुछ सीटों पर अनिश्चित स्थिति में है.

उन्होंने कहा, ”कांग्रेस को वहां गुर्जर वोट मिलेगा जहां उसने गुर्जर उम्मीदवार खड़ा किया है. लेकिन अन्य सीटों पर, 25-30 प्रतिशत गुर्जर वोट भाजपा में चले जाएंगे. ”

उन्होंने कहा, “हालांकि, हम अपने अभियान में गुर्जर मतदाताओं को समझाएंगे कि भाजपा को वोट देने से सचिन सशक्त नहीं होंगे, इससे उनकी प्रतिष्ठा कम हो जाएगी. हम उन्हें यह भी बता रहे हैं कि यह वसुंधरा के शासन में भाजपा थी जिसने गुर्जरों के खिलाफ मामले दर्ज किए और 70 लोगों की जान चली गई.

हालांकि, राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर नारायण बारेठ ने दिप्रिंट को बताया कि 2008 के गुर्जर आंदोलन और जान गंवाने के बावजूद, समुदाय ने 2013 में वसुंधरा राजे को वोट दिया. उन्होंने कहा, “इसलिए, 2018 को छोड़कर, गुर्जर पारंपरिक रूप से भाजपा को वोट देते हैं.”

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)
(इस ख़बर को अंग्रज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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