नई दिल्ली: राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अंदर अब राजपूत और मराठा पहचान को लेकर टकराव शुरू हो गया है. राजसमंद की BJP सांसद महिमा कुमारी और उनके पति, नाथद्वारा के बीजेपी विधायक व महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराज सिंह ने एनसीईआरटी की संशोधित आठवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की किताब में एक नक्शे पर आपत्ति जताई है, जिसमें जैसलमेर, बूंदी और मेवाड़ को मराठा साम्राज्य में दिखाया गया है.
राजस्थान की कई पुरानी रियासतों के वंशज—चाहे वे किसी भी पार्टी से हों उन्होंने एकसाथ इस मुद्दे पर नाराज़गी जताई है. इनमें मेवाड़ के बीजेपी नेता विश्वराज सिंह, अलवर के कांग्रेस नेता भंवर जितेंद्र सिंह और जैसलमेर के चैतन्य राज सिंह भाटी शामिल हैं. इनका कहना है कि किताब में मराठाओं का महिमामंडन किया गया है और राजपूतों के बारे में बहुत कम जानकारी दी गई है.
सबसे विवादित बात यह है कि किताब के तीसरे अध्याय “The Rise of the Marathas” के नक्शे में मराठा साम्राज्य को कोल्हापुर से कटक (पूर्व) और कोल्हापुर से पेशावर (उत्तर) तक फैला हुआ दिखाया गया है. इसमें ग्वालियर, जयपुर, दिल्ली के साथ-साथ जैसलमेर, मेवाड़, बूंदी और पंजाब के कई हिस्से भी मराठा शासन के अंतर्गत दिखाए गए हैं. इसी नक्शे ने राजस्थान के नेताओं को नाराज़ कर दिया.
महिमा कुमारी ने बुधवार को दिल्ली में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात की. बाद में उन्होंने एक्स पर लिखा कि दोनों ने “NCERT द्वारा इतिहास की गलत प्रस्तुति के गंभीर मुद्दे” पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने बताया कि प्रधान ने मामले पर गंभीरता से विचार कर आवश्यक कार्रवाई करने का भरोसा दिया है. NCERT ने अब एक विशेषज्ञ समिति बनाई है जो खासकर इस नक्शे की समीक्षा करेगी.
इससे पहले महिमा कुमारी ने NCERT की किताब की आलोचना करते हुए कहा था कि इसमें राजपूत वंश को नज़रअंदाज़ कर सिर्फ मराठा वंश को महत्व दिया गया है. उन्होंने एक्स पर लिखा, “पहले ब्रिटिश के अधीन गलत दिखाया, अब मराठाओं के अधीन—NCERT के शिक्षा विशेषज्ञों को कौन शिक्षित करेगा?! क्या वे भारत का तथ्यात्मक इतिहास प्रस्तुत करने में सक्षम हैं—इस पर गंभीर संदेह है.”
विश्वराज सिंह ने कहा कि राजपूत वंश का इतिहास मराठा वंश से कहीं बड़ा है और NCERT के नक्शे में की गई गलत प्रस्तुति से राजस्थान की रियासतों के शौर्य और योगदान को कम करके दिखाया गया है. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “राजस्थान कभी भी मराठा साम्राज्य का हिस्सा नहीं रहा. उन्होंने कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिली. राजपूताना का इतिहास मराठाओं से कहीं बड़ा है. मराठा साम्राज्य को बड़ा दिखाने और उन्हें ज्यादा वीर बताने की कोशिश, राजस्थान की रियासतों के योगदान को कम करने के लिए की गई है. NCERT एक के बाद एक गलती कर रहा है—पहले राजस्थान को ब्रिटिश शासन के अधीन दिखाया, अब मराठाओं के अधीन. ज़रूरत है कि NCERT के शिक्षा विशेषज्ञों को ही शिक्षित किया जाए.”
नक्शा किताब में एक पंक्ति के संदर्भ के रूप में दिया गया है—“मराठाओं ने भारत के बड़े हिस्से पर नियंत्रण कर लिया…”. नक्शे में केसरिया रंग मराठा साम्राज्य को दर्शाता है, जो राजस्थान तक फैलता दिखाया गया है, जबकि नक्शे के टेक्स्ट में राजस्थान या किसी राजपूत राज्य का ज़िक्र नहीं है. अगले पैराग्राफ में लिखा है—“उत्तर की ओर बढ़ते हुए, मराठाओं ने थोड़े समय के लिए लाहौर, अटक और यहां तक कि पेशावर पर भी नियंत्रण किया.”
NCERT की नई सामाजिक विज्ञान की किताबें तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष मिशेल डैनिनो ने पहले कहा था कि यह नक्शा पहले से प्रकाशित सार्वजनिक नक्शों पर आधारित है और विशेषज्ञों से सलाह लेकर बनाया गया है. उन्होंने यह भी माना कि सातवीं कक्षा की किताब में ऐतिहासिक सीमाओं के अनुमानित होने का डिस्क्लेमर है, लेकिन आठवीं कक्षा की किताब में यह गलती से छूट गया—जिससे गलतफहमी से बचा जा सकता था.

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‘NCERT की साख कहां है?’
जैसलमेर राजवंश के वंशज चैतन्य राज सिंह ने एक्स (ट्विटर) पर पोस्ट कर इस नक्शे की निंदा की, जिसमें जैसलमेर को मराठा साम्राज्य का हिस्सा दिखाया गया है. उन्होंने इस नक्शे को “इतिहास के हिसाब से भ्रामक, तथ्यों से परे और बेहद आपत्तिजनक” बताया.
उनके मुताबिक, 1178 ईस्वी में भाटी वंश के राव जैसल द्वारा स्थापित जैसलमेर पर मराठाओं का कोई नियंत्रण, कर वसूली या आक्रमण कभी दर्ज नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि मुगलों तक ने जैसलमेर पर कब्ज़ा नहीं किया था और यह सदियों तक एक स्वतंत्र रियासत रही, जो आज़ादी के बाद भारत में शामिल हुई, लेकिन इसे अनदेखा कर दिया गया.
किताब के बारे में उन्होंने लिखा, “ऐसी अप्रमाणित और इतिहास से रहित बातें न सिर्फ NCERT जैसी संस्थाओं की साख पर सवाल उठाती हैं, बल्कि हमारे गौरवशाली इतिहास और जनता की भावनाओं को भी ठेस पहुंचाती हैं. यह सिर्फ किताब की गलती नहीं, बल्कि हमारे पूर्वजों के बलिदान, संप्रभुता और वीरता की गाथा को कलंकित करने की कोशिश लगती है.”
चैतन्य से पहले, बूंदी रियासत के ब्रिगेडियर भूपेश सिंह ने भी नक्शे पर आपत्ति जताते हुए एक्स पर लिखा, “ये कौन-सा काल्पनिक साम्राज्य है जिसने राजपूताना पर शासन किया? हम कभी भी मराठाओं के अधीन नहीं रहे—झूठी कहानियों से हमारा गौरव मत आहत कीजिए. अपने ही लोगों को लूटना और सताना साम्राज्य नहीं कहलाता…कृपया यह झूठ बंद कीजिए, हमारे बच्चों का ब्रेनवॉश मत कीजिए.”
कांग्रेस नेता और अलवर रियासत के वंशज भंवर जितेंद्र सिंह ने भी NCERT की आलोचना की और कहा कि इसमें “इतिहास से छेड़छाड़ कर क्षेत्रीय और राजनीतिक सोच के आधार पर भ्रामक तथ्य” दिए गए हैं.
उन्होंने एक्स पर लिखा, “हैरानी की बात है कि इस नक्शे में पूरे राजस्थान को मराठाओं के अधीन दिखाया गया है, जो कभी नहीं हुआ. मराठा इतिहास तो हमेशा पाठ्यपुस्तकों में रहा है, लेकिन इस बार जुलाई 2025 के नए संस्करण में पूरा राजस्थान मराठाओं के अधीन दिखाना नया जोड़ा गया है…यह ऐतिहासिक तथ्य है कि 18वीं सदी में राजस्थान की रियासतें—चाहे मारवाड़, मेवाड़, बीकानेर, जयपुर, भरतपुर, जैसलमेर, अलवर या अन्य—अपनी स्वतंत्रता और स्वायत्तता बनाए रखने में सक्षम थीं.”
उन्होंने आगे कहा कि 18वीं सदी में दो राज्य अपनी स्वतंत्र शासन व्यवस्था, सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक पहचान के लिए मशहूर थे—राजस्थान की राजपूत रियासतें और भरतपुर की जाट रियासत. इन राज्यों के शासक लगातार मुगलों, मराठाओं और बाद में अंग्रेज़ों के खिलाफ अपनी आज़ादी बचाने के लिए संघर्ष करते रहे.
भंवर जितेंद्र सिंह ने लिखा, “इतिहास के साक्ष्य बताते हैं कि राजस्थान में मराठों का असर सीमित था—सिर्फ कुछ हमलों तक। यहां प्रभुत्व या विस्तार का सवाल ही नहीं उठता! जब इतिहास को धार्मिक या क्षेत्रीय आधार पर तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है, तो तथ्य मिथक में बदल जाते हैं. NCERT की यह गलती, राजस्थान के वीर शासकों की बहादुरी, स्वतंत्रता और सांस्कृतिक योगदान को कमजोर करने की कोशिश है.”
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‘मराठा प्रभुत्व’ का मामला
राजस्थान की पूर्व रियासतों के शाही परिवारों से जुड़े कई राजनीतिक नेताओं की चिंता है कि NCERT की किताब में मराठा शासकों की ताकत और वीरता को इस तरह दिखाया गया है, मानो वह उत्तर भारत के राजवंशों से भी ऊपर हों.
राजस्थान भाजपा इकाई के एक नेता ने दिप्रिंट से नाम न बताने की शर्त पर कहा, “किताब में मराठा साम्राज्य पर 22 पेज हैं, लेकिन उत्तर भारत के राजवंशों पर सिर्फ 2-3 पेज. न राजपूत वास्तुकला का ज़िक्र है, न युद्धनीतियों या ऐतिहासिक लड़ाइयों का. क्या यह मराठी वर्चस्व नहीं है?”
उन्होंने सवाल किया, “एक राज्य को इतना महत्व क्यों दिया गया, जबकि उत्तर भारत की रियासतें आक्रमणकारियों के खिलाफ सबसे आगे रही हैं? आने वाली पीढ़ियों को महान उत्तर भारतीय राजाओं के बारे में क्यों न बताया जाए?”
राजस्थान के ही एक और भाजपा नेता ने भी नाम न बताने की शर्त पर कहा, “भैरों सिंह शेखावत के निधन के बाद से, राजस्थान की राजनीति में राजपूत समुदाय का वर्चस्व नहीं रहा. अब भाजपा, राजपूतों से ज्यादा मराठा वोट बैंक को मजबूत करने पर ध्यान दे रही है.”
उन्होंने आगे कहा कि औरंगज़ेब विवाद के दौरान महायुति गठबंधन (जिसमें भाजपा भी शामिल है) ने मराठा वीरता का खूब जश्न मनाया, शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज पर कई फिल्में भी इसी वजह से बनीं—महाराष्ट्र में वोटरों को जोड़ने के लिए. उन्होंने कहा, “भाजपा राजस्थान में पहले से मजबूत है, इसलिए यहां राजपूत वीरता का उतना प्रचार नहीं किया जाता, जितना मराठों का.”
NCERT की किताब के दूसरे अध्याय ‘Reshaping India’s political map’ में राजपूत इतिहास सिर्फ दो पन्नों में ‘Surge of the Rajputs’ शीर्षक के तहत दिया गया है. इसमें लिखा है— “राणा सांगा (16वीं सदी की शुरुआत) ने कई राजपूत कबीलों को एकजुट किया, सुल्तानों के खिलाफ कई युद्ध जीते, लेकिन खानवा की लड़ाई में बाबर से हार गए.”
राजपूत–मुगल संघर्ष पर किताब में लिखा है— “मेवाड़ के महाराणा प्रताप ने मुगल सत्ता स्वीकार करने से इनकार कर दिया और राजपूत प्रतिरोध का प्रतीक बने…1576 में अरावली के हल्दीघाटी दर्रे पर संघर्ष हुआ, जिसमें मुगलों का पलड़ा भारी रहा, लेकिन महाराणा प्रताप बच निकले और कई वर्षों तक गुरिल्ला युद्ध करते रहे…”
आगे लिखा है, “कुछ राजपूत राज्यों ने कूटनीति और विवाह–संबंधों के जरिए मुगलों से हाथ मिला लिया, लेकिन खासकर मेवाड़ ने कभी मुगल प्रभुत्व नहीं माना. औरंगज़ेब के शासन में कई राजपूत सरदार, जैसे मारवाड़ के दुर्गा दास राठौड़, बगावत पर उतर आए और जोधपुर की आज़ादी बचाने के लिए लड़े. नतीजा यह हुआ कि राजस्थान में मुगल सत्ता सीमित ही रही.”
इसके उलट, ‘The Rise of the Marathas’ नाम का अध्याय पूरे 22 पन्नों का है, जिसमें सिर्फ मराठा शासकों की चर्चा है. विवादित नक्शा भी इसी अध्याय के पेज 71 पर है. इसमें ‘Who are the Marathas?’, ‘Foundations of Maratha power and the rise of Shivaji’ (जिसमें शिवाजी के अचानक हमलों का विवरण है), ‘The Marathas after Shivaji’ और ‘Maratha administration’ जैसे खंड हैं. इसमें मराठा सेना, नौसैनिक ताकत, न्याय व्यवस्था और मराठा महिलाओं ताराबाई और अहिल्याबाई होल्कर के योगदान का भी ज़िक्र है.
कई इतिहासकारों ने लिखा है कि मराठों ने राजपूत राज्यों पर हमले किए और कुछ से कर भी वसूला, लेकिन कब्जा कभी नहीं किया. इतिहासकार जे.एन. सरकार ने लिखा कि 1724 में बूंदी राजवंश के उत्तराधिकार विवाद के दौरान मराठों ने मौका देखकर राजस्थान में प्रवेश किया और कोटा, डूंगरपुर, जोधपुर और आमेर से कर वसूला, लेकिन इन पर पूरा नियंत्रण नहीं पाया.
मराठों पर लिखी प्रामाणिक किताब ‘The Marathas’ (लेखक: स्टुअर्ट गॉर्डन) में लिखा है— “बाजीराव ने 1728 में ही उत्तर की ओर पश्चिमी मालवा और फिर राजस्थान में कर वसूली अभियान चलाया. उनकी मृत्यु के बाद, मराठा सेनाएं लगभग हर साल राजस्थान में घुसपैठ करती रहीं. जयपुर के राजा जयसिंह की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार विवाद में पेशवाओं ने मध्यस्थता की, जयपुर पर चढ़ाई की और भारी कर मांगा.”
उन्होंने आगे लिखा, “हम शिंदे, होल्कर और पेशवा के बढ़ते दावों को राजस्थान में देख सकते हैं. उन्होंने बड़े कर की बकाया राशि वसूलने के लिए सेना भेजी. कोटा, बूंदी, जयपुर और उदयपुर से कुछ कर मिला, लेकिन शासन का कोई ढांचा नहीं था. जैसे ही मराठा सेना का मुख्य दल लौटा, उनके प्रतिनिधियों को बाहर निकाल दिया गया और कर देना बंद हो गया.”
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