नई दिल्ली: राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और राज्य भाजपा नेतृत्व के बीच अंदरूनी अनबन दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. इस बीच दिप्रिंट को पता चला है कि राजे ने पार्टी की अधिकांश (राज्य स्तरीय) बैठकों में भाग लेना बंद कर दिया है और वे पार्टी की राज्य इकाई द्वारा आयोजित गतिविधियों में भी शामिल नहीं हो रही हैं.
राज्य के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने बताया कि ‘हाल में सैकड़ों वर्चुअल बैठकें समय-समय पर आयोजित की गई हैं, लेकिन राजे उनमें से अधिकांश में शामिल नहीं हुईं. हाल ही में जयपुर स्थित राज्य मुख्यालय में लगाए गए नए पोस्टरों में राजे, जो भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं- को दरकिनार किए जाने की घटना भाजपा राज्य इकाई की बढ़ती दरारों को ही उजागर करती है.
साथ ही, भाजपा राज्य इकाई के कई लोगों का यह भी दावा है कि राजे एक ‘समानांतर प्रणाली’ चलाने की कोशिश कर रही हैं, जिसका सारा ध्यान केवल उन पर केंद्रित है, न कि पार्टी पर.
9 जून को, राज्य भाजपा ने अशोक गहलोत सरकार को टार्गेट करने के उद्देश्य से एक हैशटैग अभियान शुरू किया था. हालांकि पूरी राज्य इकाई ने इसमें भाग लिया, पर राजे ने अपनी ओर से एक भी ट्वीट पोस्ट नहीं की.
दूसरी ओर, भाजपा के नए होर्डिंग्स में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया और प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया की तस्वीरें तो हैं पर इसमें राजे कहीं नहीं दिखती हैं.
इससे पहले लगी मुख्य होर्डिंग में पूर्व सीएम के साथ विपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौर के अलावा पूनिया, कटारिया सहित पीएम, नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी थे.
जनवरी में राजे समर्थकों ने ‘वसुंधरा राजे समर्थन मंच राजस्थान’ के नाम से एक नया संगठन बनाया था. राजनीतिक हलकों में जिस बात ने हलचल पैदा की वह इसे लेकर थी की ऐसे समय में जब भाजपा कोविड-19 महामारी के दौरान जरूरतमंदों की मदद के लिए शुरू किय गए अपने ‘सेवा ही संगठन’ कार्यक्रम का समापन कर रही थी, राजे अपने दम पर एक समानांतर सामाजिक कल्याण कार्यक्रम चला रही थीं.
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एक असहज सा संबंध
वसुंधरा राजे, जिन्हें पार्टी के दिग्गज नेता एल.के.आडवाणी का काफी करीबी माना जाता है, के भाजपा आलाकमान के साथ संबंध 2014 में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र की राजनीति में आने के बाद से ही काफी असहज रहे हैं.
2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की शानदार जीत का नेतृत्व करने और 2014 में भाजपा के लिए राज्य की सभी 25 लोकसभा सीटें हासिल करने के बाद से राजे ने केंद्रीय नेतृत्व द्वारा राज्य के मामलों में किसी हस्तक्षेप की कभी पसंद नहीं किया. 2018 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने गजेंद्र सिंह शेखावत को राज्य भाजपा अध्यक्ष नियुक्त करने के अमित शाह के कदम का खुलकर विरोध किया और इसे दो महीने के लिए टलवा दिया.
शाह ने आखिरकार राजे पर ही भरोसा किया और मदन लाल सैनी को राज्य इकाई का प्रमुख नियुक्त किया गया. 2018 में भाजपा की हार के बाद से- जब पार्टी को 200 सदस्यीय विधानसभा में 73 सीटें मिलीं- राजे को पार्टी में दरकिनार कर दिया गया और पार्टी की राज्य इकाई में अधिकांश नियुक्तियां उनके साथ बिना किसी परामर्श के की गईं.
राज्य भाजपा के नए होर्डिंग्स के बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए सतीश पूनिया ने कहा, ‘भाजपा में हर चीज़ एक निश्चित प्रोटोकॉल के तहत होती है जो केंद्रीय नेतृत्व द्वारा तय किया जाता है. उन्होंने प्रोटोकॉल तय किया और हम सभी इसका पालन करते हैं.’
उन्होंने बताया, ‘केंद्रीय नेतृत्व ने यह फैसला किया है कि जिन राज्यों में पार्टी सत्ता में है वहां के होर्डिंग्स में पीएम मोदी, नड्डा और राज्य के मुख्यमंत्री की तस्वीरें लगाई जाएंगी गैर भाजपा शासित राज्यों के होर्डिंग में विपक्ष के नेता और प्रदेश अध्यक्ष की तस्वीर होगी.’
पुनिया ने आगे कहा कि, ‘मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूं कि इन होर्डिंग्स के संबंध में कोई समस्या नहीं है. अगर कोई इसे राजनीतिक रंग दे रहा है तो यह पूरी तरह गलत है.’
दिप्रिंट ने वसुंधरा राजे की इस बारे में दिप्पणी पाने के लिए उनसे टेक्स्ट मैसेज और कॉल के द्वारा पहुंचने का प्रयास किया, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक हमें उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
एक और नेता ने हमें बताया कि ‘राजस्थान भाजपा की एक वर्चुअल कोर कमेटी की बैठक के अलावा, उन्होंने किसी भी अन्य बैठक में भाग नहीं लिया है. अपनी तरफ से वह अपने सहयोगियों के साथ कई जिलों के लिए समानांतर बैठकें बुलाती रहती हैं.’
भाजपा के एक तीसरे वरिष्ठ नेता ने कहा. ‘वह काफी समय से गायब थीं और अब, जब वह एक बार फिर से राजनीति में सक्रिय हो गई हैं, तो आंतरिक लड़ाई के मुद्दे आम चर्चा का विषय बन गए हैं. वह नियमित रूप से पार्टी की बैठकों में शामिल नहीं हो रही हैं और राज्य भाजपा के कार्यक्रमों से भी गायब रहती हैं.’
हालांकि, राजे के एक करीबी सहयोगी का इस बारे में कहना था कि कुछ स्वास्थ्य संबंधी आपात परिस्थियों के बावजूद वे इस महामारी के दौरान लोगों की मदद करने में सक्रिय रूप से शामिल रही हैं.
इस करीबी सहयोगी ने यह भी कहा कि ‘ट्विटर पर भी ऑफिस ऑफ वसुंधरा राजे के माध्यम से वह लोगों की मदद कर रही हैं. जब भी संभव होता है वे बैठकों में भाग लेती रही हैं. लोग जानबूझकर इस तरह की खबरें फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.’
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लग रहे है समानांतर व्यवस्था के आरोप
जनवरी में, राजे समर्थकों ने ‘वसुंधरा राजे समर्थक मंच राजस्थान‘ का गठन किया था और यह मांग की थी कि राजे को 2023 के चुनावों के लिए पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया जाए.
इस बारे में भाजपा नेताओं का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री का इस नए संगठन से गहरा जुड़ाव है.
भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने बताया, ‘इस संगठन ने राज्य और जिला स्तर पर टीमों का गठन कर रखा है और वे अपने स्वयं के कार्यक्रम संचालित करते हैं. वह कह सकती हैं कि इसे उनके समर्थकों द्वारा शुरू किया गया है लेकिन वह स्वयं सक्रिय रूप से इसमें शामिल हैं.’
इस नेता ने कहा कि ‘उनके समर्थकों को वसुंधरा जन रसोई नामक एक अभियान के तहत राज्य के विभिन्न हिस्सों में गरीब परिवारों को भोजन के पैकेट बांटते देखा गया.’ इस नेता ने आगे कहा कि ‘इसका (इस कायर्क्रम का) सारा ध्यान पार्टी या राज्य इकाई पर नहीं बल्कि पूरी तरह से उन पर केंद्रित है. जन रसोई के सभी पोस्टर और बैनर में केवल राजे की तस्वीर है और पार्टी का कोई जिक्र नहीं है.’
एक चौथे भाजपा नेता ने कहा कि इस अभियान में करोली, भरतपुर, जोधपुर, सवाई माधोपुर और जयपुर सहित 5-7 जिलों को शामिल किया गया. इस नेता ने कहा, ‘यहां सारा प्रयास उन्हें एक मुख्य नेता के रूप में दिखाने और भाजपा पर यह दबाव बनाने का है कि उन्हें अनदेखा करना महंगा पड़ सकता है.’ यह कार्यक्रम सभी जिलों में चलाया जा रहा है.
इस नेता ने आगे कहा कि ‘यह कोई पहली बार नहीं है जब राजे ने सुर्खियों को पूरी तरह से अपने पर लाने की कोशिश की है. मार्च में अपने जन्मदिन समारोह में उन्होंने अपने ताकत के विशाल प्रदर्शन के साथ एक धार्मिक यात्रा की थी. उन्होंने इस अवसर का उपयोग उस जन समर्थन को दिखाने के लिए किया जो उन्हें अभी भी प्राप्त है और उन्होंने एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करते हुए अपने परिवार के योगदान के बारे में केंद्रीय नेतृत्व को याद भी दिलाया.’
एक सूत्र के मुताबिक, राजे को राज्य में यात्रा करनी थी. इस सूत्र ने कहा कि ‘राज्य नेतृत्व ने केंद्रीय नेताओं को इस बात से अवगत कराया और उन्होंने उन्हें सख्ती से कहा कि वे ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल न हों.’
इस सूत्र ने आगे बताया, ‘वह अधिकांश वर्चुअल बैठकों में शामिल नहीं हुई हैं. हमने अब तक लगभग 400 ऐसी बैठकों का आयोजन किया होगा. वह बैठक में केवल तभी भाग लेती हैं जब उनमें केंद्रीय नेतृत्व भी शामिल होता है. जैसे कि एक बैठक में अरुण सिंह (भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव) आए थे, हालांकि तब भी वह काफी देर से पहुंची थी.’
‘उन्होंने अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ राज्य इकाई द्वारा चलाए गए किसी भी हैशटैग अभियान में भी भाग नहीं लिया. जबकि अध्यक्ष से लेकर विपक्ष के नेता हर किसी ने ट्वीट किया, उन्होंने एक भी ट्वीट पोस्ट नहीं किया. उनका ध्यान सिर्फ उन पर ही केंद्रित है, पार्टी पर नहीं.‘
हालांकि राजे समर्थक इन आरोपों से इनकार करते हैं.
कोटा उत्तर के पूर्व विधायक और राजे के वफादार प्रह्लाद गुंजाल ने कहा, ‘कोविड-19 के दौरान कई दिहाड़ी मजदूर और अन्य श्रमिक बेरोजगार हो गए थे. गहलोत सरकार ने इंदिरा रसोई के माध्यम से उन्हें भोजन परोसने का वादा किया था. लेकिन बमुश्किल कुछ दिनों तक चलने के बाद उन्हें बंद कर दिया गया क्योंकि सरकार ने इसके लिए कोई धन नहीं दिया था.’
‘तभी वसुंधरा राजे जी ने हमसे कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं को इसमें शामिल होना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी भूखा न सोए. लोग इस नेक काम पर आपत्ति क्यों उठा रहे हैं?’
जन रसोई कार्यक्रम, जिसमें केवल राजे का ही नाम है और पार्टी का कोई जिक्र नहीं किया गया है, के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘वह दो बार मुख्यमंत्री रही हैं, वर्तमान में पार्टी की उपाध्यक्ष हैं तो उनकी तस्वीर लगाने में क्या समस्या है? दरअसल पार्टी तो लोगों से ही बनती है. उनका चेहरा और नाम दिखाने में क्या गलत है? उनके बिना, भाजपा के लिए राज्य में सत्ता में वापस आना मुश्किल होगा.’
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