सहारनपुर/मुजफ्फरनगर/शामली: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) में से किसके जातीय समीकरण कितने ज्यादा असरदार साबित हुए यह तो राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में पहले दो चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव से ही पता चलेगा, जहां आगामी 10 और 14 फरवरी को वोट डाले जाने हैं.
पश्चिमी यूपी, जहां मुसलमानों और दलितों का वर्चस्व है, में भाजपा की रणनीति ओबीसी वोटों पर केंद्रित रही है, जो इस क्षेत्र के चुनाव नतीजों में निर्णायक माने जाते हैं.
सपा ने पिछले कुछ साल गैर-यादव ओबीसी वोटबैंक को लुभाने में लगाए हैं लेकिन दिप्रिंट ने जिन मतदाताओं से बात की, उनमें से अधिकांश का कहना है कि वे अभी भी पार्टी का समर्थन नहीं कर सकते क्योंकि कानून-व्यवस्था और सरकारी योजनाओं का फायदा आम लोगों तक पहुंचना सुनिश्चित करने के मामले में इसका रिकॉर्ड खराब है.
मतदाताओं का कहना है कि इन दोनों ही मुद्दों पर योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली पिछली सरकार को पीछे छोड़ दिया है.
जब भाजपा के ओबीसी जनाधार की बात आती है, तो बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर मतदाताओं में नाराजगी जरूर है, फिर भी इस बार भाजपा पर ही दांव लगाने को तैयार नजर आ रहे हैं.
हालांकि, भाजपा इसे लेकर थोड़ा संशकित हो सकती है कि उसके कई कद्दावर नेताओं द्वारा पिछले महीने पार्टी छोड़कर सपा का हाथ थाम लिए जाने से ओबीसी मतदाता उसके खेमे से छिटककर अखिलेश के साथ जा सकते हैं, यही नहीं जाटों के बीच गहरी पैठ रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के साथ गठबंधन भी सपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.
यूपी की कुल आबादी में 40 फीसदी हिस्सेदारी वाले ओबीसी वोटवैंक की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य में जीत की आकांक्षा रखने वाले सभी चार दलों—सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी समुदाय से आते हैं.
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज का डाटा बताता है कि 61 फीसदी ओबीसी मतदाताओं ने 2014 में भाजपा का समर्थन किया था और 2019 के आम चुनाव में यह आंकड़ा बढ़कर 72 फीसदी हो गया था.
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ओबीसी के बीच भाजपा की कितनी पैठ
यूपी का सहारनपुर जिला दलित बहुल है, जहां करीब 50 प्रतिशत मुस्लिम आबादी भी है. बसपा प्रमुख मायावती और भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद यहां से अपनी किस्मत आजमा चुके हैं.
मायावती 1996 और 2002 में सहारनपुर ग्रामीण से चुनाव जीतकर दो बार मुख्यमंत्री बनीं, जबकि उनके राजनीतिक गुरु और बसपा संस्थापक कांशीराम भी इस जिले से चुनाव लड़ चुके हैं. सहारनपुर के तहत सात निर्वाचन क्षेत्र आते हैं, जहां पहले दो चरणों में मतदान होना है.
भाजपा यहां दलित वोटों को लुभाने की कोशिशों में जुटी है, और असल में इस जिले से ही यह बात परखी जा सकेगी कि ओबीसी के बीच पार्टी की पैठ जमीन स्तर पर कितनी मजबूत है.
भाजपा 2017 में चार सीटें जीतकर पहले ही इस क्षेत्र में अपनी पकड़ बना चुकी है, जिसमें मुस्लिम वोटों का विभाजन एक अहम फैक्टर रहा था. भाजपा इस बार सहारनपुर के तीन अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में भी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है.
सहारनपुर ग्रामीण में भाजपा दलित-ओबीसी वोटों के एकीकरण का लक्ष्य लेकर चल रही है. पार्टी के एक अनुमान के मुताबिक इस सीट पर 1.37 लाख मुस्लिम मतदाता भी हैं. यहां भाजपा ने कांग्रेस के मसूद अख्तर के खिलाफ बसपा से पार्टी में आए जगमोहन सिंह को मैदान में उतारा है.
भाजपा के अनुमान के मुताबिक, इस निर्वाचन क्षेत्र में 15,000 सैनियों के अलावा 95,000 जाटव और 12,000 कश्यप (सैनी और कश्यप ओबीसी में आते हैं) रहते हैं. ठाकुर भूमिहार और वैश्यों की संख्या 25,000 के करीब है. भाजपा को उम्मीद है कि मुस्लिम वोट सपा और कांग्रेस के बीच बंट जाएगा, जबकि लंबे समय तक बसपा समर्थक रहे जाटव मतदाताओं के एक बड़े हिस्से के साथ-साथ ओबीसी और सवर्णों का वोट पार्टी को मजबूत बनाने में मददगार साबित होगा.
जहां कुछ जाटव मायावती का समर्थन करते दिख रहे हैं, वहीं कुछ को भाजपा एक बेहतर विकल्प नजर आती है.
जाटव समुदाय के मोहनलाल ने दिप्रिंट को बताया कि वे मायावती को वोट देंगे चाहे वह जीतें या हारें, क्योंकि उन्होंने ‘हमें घर दिया था और इस बार वह हमें रोजगार देंगी.’
वहीं, जाटव समुदाय से ही आने वाले एक छोटे विक्रेता सतपाल ने कहा कि वह भाजपा को वोट देंगे क्योंकि ‘राशन मुफ्त है और यह भाजपा की तरफ से ही दिया जा रहा है.’
एक और अहम सीट है नकुड़, जिसकी मुस्लिम आबादी 1.2 लाख है और यहां करीब 50,000 दलित हैं. भाजपा की उम्मीदें यहां करीब 40,000 गुर्जरों, 35,000 सैनी, 25,000 कश्यप, 12,000 ब्राह्मणों, 9,000 ठाकुरों और 8,000 वैश्यों (समुदायों की कुल संख्या को लेकर पार्टी के अनुमान) के समर्थन पर टिकी हैं. पार्टी ने यहां से एक गुर्जर को मैदान में उतारा है.
नकुड़ विधायक धर्म सिंह सैनी—पूर्व मंत्री और प्रमुख ओबीसी नेता, जिन्होंने पिछड़े वर्गों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए भाजपा छोड़ दी थी—इस बार सपा के टिकट पर इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.
सपा के समर्थन की वजह से वह जाटों के साथ-साथ मुस्लिम और सैनी वोट हासिल करने की उम्मीद कर रहे है, लेकिन इसमें थोड़ा पेंच है. सैनी की मौजूदगी के बावजूद तमाम सैनी मतदाता उनके और सपा के पक्ष में मतदान के लिए उत्साहित नहीं नजर आ रहे.
नकुड़ के जयपाल सिंह सैनी ने दिप्रिंट से कहा, ‘इतने सालों तक धर्म सिंह भाजपा सरकार का हिस्सा थे, लेकिन अब मुस्लिम वोट पाने के लिए सपा में चले गए हैं. हम फिर भी फूल (भाजपा का चुनाव चिह्न कमल) को वोट देंगे. योगी अच्छा काम कर रहे हैं, कानून-व्यवस्था सुधरी है और अपराधी भाग खड़े हुए हैं.’
वहीं, योगी आदित्यनाथ कैबिनेट में मंत्री रहे धर्म सिंह सैनी ने दिप्रिंट को बताया कि ‘कानून-व्यवस्था का मुद्दा भाजपा की तरफ से बनाया गया एक नैरेटिव है.’
उन्होंने कहा, ‘सत्ता और अन्य लाभों को साझा करने के मामले में भाजपा ने पांच सालों तक ओबीसी को नजरअंदाज किया. इस बार मुसलमान ही नहीं, सभी जातियां अखिलेश यादव को वोट देंगी. भाजपा ने अपने शासनकाल में हाथरस और इसी तरह की अन्य बड़ी घटनाओं पर चुप्पी साध रखी है.
विभाजन और ध्रुवीकरण
1.5 लाख से अधिक मुस्लिम मतदाताओं वाला निर्वाचन क्षेत्र बेहट एक और ऐसी सीट है जहां भाजपा की नजरें टिकी हैं क्योंकि पार्टी ने पिछले 30 वर्षों में एक बार भी यहां जीत हासिल नहीं की है. इस बार, इसने यहां थोड़े समय पहले ही पार्टी में शामिल हुए नरेश सैनी को मैदान में उतारा है, जिन्होंने पिछले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी.
भाजपा की रणनीति मुस्लिम वोटों के विभाजन और सैनी, कश्यप और कंबोज जैसे ओबीसी के ध्रुवीकरण पर टिकी है. दिल्ली के शाही इमाम के दामाद उमर अली यहां सपा के उम्मीदवार हैं.
भाजपा जिलाध्यक्ष महेंद्र सैनी ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछली बार, यानी 2017 के चुनाव में हमें पूरे राज्य में सैनी वोट मिले, लेकिन इस सीट पर नहीं. इस बार हमारे पास सैनी समुदाय का एक मजबूत उम्मीदवार है. ओबीसी और उच्च जाति के ध्रुवीकरण के साथ इस बार हमारे यहां जीतने की पूरी संभावना है.’
भाजपा प्रत्याशी नरेश सैनी ने कहा कि ‘जो लोग भी बेहतर शासन चाहते हैं, वे सभी योगी के नाम पर वोट करने वाले हैं.’
मुस्लिम और यहां तक कि जाट समीकरण को बेअसर करने के लिए भाजपा पश्चिमी यूपी की सहारनपुर, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर और शामली जैसी सीटों पर ओबीसी वोटों का एक बड़ा हिस्सा अपने खाते में लाना चाहती है, जहां धार्मिक अल्पसंख्यक मतदाताओं की हिस्सेदारी लगभग 30 प्रतिशत हैं.
सुरक्षा का मुद्दा गैर-प्रमुख ओबीसी जातियों को खास तौर पर प्रभावित कर रहा है, जो कथित तौर पर सपा शासन के दौरान उत्पीड़न के शिकार रहे थे. यही वजह है कि अमित शाह से लेकर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ तक भाजपा के तमाम नेता कानून-व्यवस्था पर पार्टी के ‘अच्छे रिकॉर्ड’ को भुनाने की कोशिश में लगे हैं. इसके अलावा योगी की ‘बुलडोजर बाबा’ छवि और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की किसान-केंद्रित योजनाओं पर भी पूरा जोर दिया जा रहा है.
रेलवे में काम करने वाले बेहट के शोमली गांव निवासी एक दलित रॉबिन ने दिप्रिंट को बताया, ‘रोजगार नहीं मिला ये मुद्दा है लेकिन सुरक्षा ज्यादा बड़ा मुद्दा है. पहले गायें चोरी हो जाती थीं रात में, अब कोई बकरी भी खोलकर नहीं ले जा पाता है.’
उसी गांव के एक दुकानदार मोहित सैनी ने कहा, ‘सपा शासन के दौरान चोरी आम बात थी, लेकिन अब कानून-व्यवस्था सख्त है. मेरे पिता को किसान योजना के तहत 6,000 रुपये मिल रहे हैं जबकि मुझे श्रमिक योजना के तहत 500 रुपये मिल रहे हैं. फिर भी, सबसे अच्छी बात यह है कि योगी शासन में हम सुरक्षित हैं.’
भाजपा ने ज्यादा वर्चस्व न रखने वाली जातियों के प्रतिनिधित्व का भी प्रयास किया है. ओबीसी जोगी आबादी बहुल बसड़ा गांव में कुछ लोगों को भाजपा नेता नरेश सैनी का इंतजार है. वे गोरखपुर मठ के अनुयायी हैं, जिसके महंत खुद योगी आदित्यनाथ हैं.
समुदाय के एक मतदाता ने सवालिया लहजे में कहा, ‘हम किसी अन्य पार्टी को वोट क्यों दें? हम सुरक्षित हैं, हालांकि महंगाई है और बेरोजगारी भी एक मुद्दा है. लेकिन कोई भी सरकार पूर्ण रोजगार नहीं दे सकती, तो सिर्फ मोदी को ही दोष क्यों दें?’
यहां रहने वाले कमल प्रजापति ने कहा, ‘पहले केवल यादव या मुसलमान ही एफआईआर दर्ज करा सकते थे, लेकिन अब कोई भी बिना किसी डर के प्राथमिकी दर्ज करा सकता है.’
गुज्जर बहुल गांव नगला राठी के निवासी बलबीर गुज्जर के मुताबिक, उनका समुदाय भाजपा का समर्थन करता है. बलबीर ने कहा, ‘आम लोगों को सड़क, पानी, बिजली और सुरक्षा चाहिए होती है. बिजली की स्थिति में सुधार हुआ है और कानून-व्यवस्था भी बेहतर हुई है. हां, मिहिर भोज मुद्दे पर कुछ असंतोष है, और कुछ लोग शायद इस बार भाजपा को वोट ना दें. लेकिन हममें से अधिकांश भाजपा को ही वोट देंगे.’
ओबीसी में शामिल एक अन्य प्रमुख जाति कश्यप है. वे ‘दलितों’ का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. इसी वर्ग को लुभाने के लिए भाजपा ने निषाद पार्टी से गठजोड़ किया है.
कश्यप समुदाय से आने वाले दिनेश राज ने कहा, ‘यद्यपि, दलितों की श्रेणी में लाने की हमारी मांग पूरी नहीं हुई है लेकिन हम भाजपा को वोट देंगे. हालांकि, हमारे गांव में कई लोग सपा को भी वोट दे सकते हैं.’
निषाद पार्टी ने पहले कुछ समय के लिए सपा से भी हाथ मिलाया था.
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