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Wednesday, 24 April, 2024
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चीन में बना है तेलंगाना का ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी’, BJP ने इसकी आलोचना को बताया ‘अप्रासंगिक’

इस मूर्ति को चीन में एरोसन कॉरपोरेशन द्वारा ढाला गया था, जिसने इसे भारत में संयोजित किये जाने के कार्य भी मदद की. लेकिन बीजेपी का कहना है कि यह मूर्ति इंसानियत का संदेश देती है और हमारा फोकस उसी बात पर होना चाहिए.

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हैदराबाद: ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी’, तेलंगाना में लगी संत रामानुजाचार्य की 216 फुट की विशाल प्रतिमा, जिसका उद्घाटन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को किया था, दरअसल चीन में बनाई गई है.

यह तथ्य कि इस तरह की एक प्रतिष्ठित परियोजना का काम एक चीनी फर्म को प्रदान किया गया – वह भी ऐसे समय में जब नरेंद्र मोदी सरकार, भाजपा और इसका वैचारिक आधार वाला परिवार – संघ परिवार- लगातार चीनी सामानों पर भारत की निर्भरता को कम करने की बात कर रहा है – ने कई लोगों की भौंहें चढ़ा दी हैं. लेकिन भाजपा का कहना है कि यह बात एकदम से ‘अप्रासंगिक’ है की यह प्रतिमा कहां बनाई गई थी. तेलंगाना में पार्टी के नेता एन.वी. सुभाष ने कहा कि इस प्रतिमा के पीछे का मकसद मानवता का प्रचार-प्रसार करना है.

हैदराबाद के बाहरी इलाके में स्थापित की गयी यह मूर्ति 11वीं सदी के महान भक्ति संत श्री रामानुजाचार्य की 1,000वीं जयंती पर उनकी यादगार के रूप में लगाई गई है. इस प्रतिमा, जिसकी लागत 1,000 करोड़ रुपये है, की स्थापना की अवधारणा के बारे में सबसे पहले आध्यात्मिक गुरु चिन्ना जीयर स्वामी ने सोचा थे, जो स्वयं भी रामानुजाचार्य आश्रम से संबंधित हैं.

एन.वी. सुभाष ने दिप्रिंट को बताया, ‘संत रामानुजाचार्य 11वीं शताब्दी में एक महान समाज सुधारक थे जिन्होंने समानता और मानवता का उपदेश दिया. यहां बस यही बात मायने रखती है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह चीन में बनी है या फिर अफ्रीका में – इसके पीछे का विचार यह है कि हम सभी एक समान हैं, यही इसका संदेश है. प्रधानमंत्री ने भी ऐसा ही सोचा था.’

उन्होंने कहा, ‘पीएम के इस कार्यक्रम (उद्घाटन समारोह) में शामिल होने का फैसला कुछ दिनों के बेहतर नहीं लिया गया था. यह पिछले छह महीने से चल रहा था और इसमें सभी तरह की चर्चाएं हुई होंगीं. उसके बाद ही वह यहां आये थे.’

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इस परियोजना की वेबसाइट के अनुसार, चीनी कंपनी एरोसन कॉर्पोरेशन ने इसके के लिए बाकायदा एक अनुबंध हासिल किया था. इस परियोजना के लिए दुनिया भर से सबसे ऊंची मूर्तियां बनाने वाले प्रतिष्ठानों से ठेके में शामिल होने की मांग की गई थी. एक भारतीय कंपनी भी ठेके की दौड़ में शामिल थी.

इस प्रतिमा को बनाने का काम 15 महीनों के दौरान हुआ और इसकी ढलाई चीन में की गई. प्रतिमा को 1,600 टुकड़ों में भारत लाया गया था, और एरोसन कॉर्पोरेशन के लगभग 70 सदस्य इसे एक साथ संयोजित (अस्सेम्ब्ल) करने में मदद करने के लिए परियोजना स्थल पर आये थे.

ऐसे कामों के लिए चीनी कंपनियों को काम पर रखना कोई नई बात नहीं

इतनी विशालकाय परियोजनाओं के लिए चीनी कंपनियों को काम पर रखना कोई नई बात नहीं है. प्रख्यात मूर्तिकार और हैदराबाद आर्ट्स सोसाइटी के अध्यक्ष एम.वी. रमना रेड्डी ने कहा कि चीनी कंपनियों के पास आवश्यक बुनियादी ढांचा, ट्रैक रिकॉर्ड आदि है और वे काफी काम लागत पर ऐसे परियोजनाओं की पेशकश करते हैं.

रमना रेड्डी ने कहा, ‘चाहे यह सरकार हों, निजी कंपनियां हों या बड़े कॉरपोरेट प्रोजेक्ट हों, वे सब काम करने वाली कंपनी का यह ट्रैक रिकॉर्ड देखना पसंद करते हैं कि क्या उन्हें पहले भी इसी तरह की किसी अन्य परियोजना के लिए काम पर रखा गया है अथवा नहीं. ऐसा नहीं है कि हम यहां कांसे की ढलाई नहीं कर सकते. लेकिन वे इसका ट्रैक रिकॉर्ड देखना चाहते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘चीनी कंपनियों के पास अच्छा बुनियादी ढांचा है और ट्रैक रिकॉर्ड है तथा वे न्यूनतम श्रम लागत की वजह से काफी कम लागत पर परियोजनाओं की पेशकश करते हैं और यही कारण है कि ऐसी परियोजनाओं के लिए उन्हें पसंद करना कोई असामान्य बात नहीं है.’

रमना रेड्डी, जो ललित कला अकादमी, नई दिल्ली की जेनरल कौंसिल (सामान्य परिषद) के सदस्य भी हैं, ने कहा कि अंततः, स्थानीय मूर्तिकारों को ऐसी परियोजनाओं पर काम करने का मौका मुश्किल से ही मिलता है.

यहां तक कि गुजरात में स्थापित दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ की सतह को 553 कांस्य पंखुड़ियों से बनाया गया था, जो चीन की ही एक फाउंड्री (ढलाई का कारखाना) में ढालीं गई थीं.


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चाइनीज सामानों के आयत में कटौती के प्रयास

चूंकि चीन से कच्चे माल की आपूर्ति कोविड महामारी और भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच 2020 की गर्मियों में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हुए आमने सामने के टकराव की वजह से काफी हद तक प्रभावित हुई थी, अतः भारतीय विनिर्माण जगत को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा पूरी दृढ़ता के साथ जोर दिया गया था

2020 में हुए सीमा संघर्ष ने भारत में एक मजबूत चीन विरोधी भावना को बढ़ाने में योगदान दिया था और इसके बाद भारतीय व्यापारियों के परिसंघ, कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT), द्वारा चीनी सामानों का बहिष्कार करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी आह्वान किया गया था.

भारत सरकार ने जून 2020 में कड़े गुणवत्ता नियंत्रण उपायों को लागू करने और टैरिफ बढ़ाने की भी योजना बनाई थी.

जून 2020 में, मोदी सरकार ने राष्टीय सुरक्षा, देश की अखंडता और अन्य रक्षा सम्बन्धी चिंताओं का हवाला देते हुए 59 चीनी ऐप्स पर भी प्रतिबंध लगा दिया था.

दिसंबर 2021 में, वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने चीन के साथ तनावपूर्ण संबंधों का हवाला देते हुए आम जनता और उद्योग जगहत की तरफ से चीनी सामानों के आयात का बहिष्कार करने की मांगों पर ध्यान दिलाया था.

पटेल, जो भाजपा के सहयोगी दल अपना दल (एस) से संबंधित हैं, ने संसद में दिए गए एक लिखित जवाब में कहा था, ‘भारत और चीन दोनों विश्व व्यापार संगठन के सदस्य हैं और इसी कारण से किसी भी व्यापार प्रतिबंध को विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुरूप होना चाहिए. एक समग्र वैश्विक व्यापार रणनीति बनाये रखने के साथ-साथ विभिन्न हितधारकों द्वारा उठाई गई चिंताओं को दूर करने के लिए, सरकार ने समय-समय पर समीक्षा की है और विश्व व्यापार संगठन के अनुरूप उपाय किए हैं.’

टीआरएस-भाजपा के बीच टकराव का बिंदु बन रही है यह मूर्ति

अब ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी’ के इर्द-गिर्द उठे इस विवाद ने सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और भाजपा के बीच एक राजनीतिक तनातनी का रूप ले लिया है.

मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के इस उद्घाटन समारोह में शामिल नहीं होने के बाद उनके बेटे और राज्य के आईटी मंत्री के.टी. रामाराव ने पीएम मोदी पर कटाक्ष करते हुए उन्हें ‘आइकॉन ऑफ़ पर्सिअलिटी यानि कि पक्षपात का प्रतीक’ कहा.

भाजपा ने भी ‘प्रोटोकॉल का उल्लंघन’ करने के लिए सीएम की कड़ी आलोचना करते हुए केसीआर को निशाना बनाया क्योंकि वे उद्घाटन समारोह से दूर रहे थे और वे पीएम मोदी के इस शहर में पहुंचने पर उनकी अगवानी करने में भी विफल रहे थे.

हालांकि, टीआरएस के राज्यसभा सांसद के. केशव राव ने दिप्रिंट को बताया कि मुख्यमंत्री ‘बुखार से पीड़ित’ थे.

ज्ञात हो कि चिन्ना जीयर स्वामी, जो केसीआर के आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी माने जाते हैं, द्वारा पीएम और सीएम दोनों को इस उद्घाटन समारोह हेतु औपचारिक रूप से आमंत्रित किया गया था.

साथ ही, इस उद्घाटन की व्यवस्था की सारी देखरेख तेलंगाना सरकार ने ही की थी.

मूर्ति की अन्य विशेषताएं

श्री रामानुजाचार्य, जिन्हें किसी बैठे हुए व्यक्ति की दुनिया की सबसे ऊंची मूर्तियों में से एक माने जाने वाली ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी’ में चित्रित किया गया है, एक प्रख्यात समाज सुधारक थे, जिनका जन्म वर्ष 1017 में श्रीपेरुंबुदूर (अब तमिलनाडु में) में हुआ था. यह प्रतिमा स्थल हैदराबाद के बाहरी इलाके में स्थित मुचिन्तल गांव में 45 एकड़ में फैला हुआ है.

इस परियोजना के प्रबंधकों के अनुसार, पूरी तरह से कॉरपोरेट्स और दुनिया भर के भक्तों द्वारा दिए गए निजी दान का उपयोग करके बनाई गई इस प्रतिमा की लागत लगभग 1,000 करोड़ रुपये है. अगस्त 2015 में अनुमानित शुरुआती लागत में यह आंकड़ा 130 करोड़ रुपये के करीब आंका गया था. इसकी आधारशिला 2014 में रखी गई थी.

यह प्रतिमा 108 ‘दिव्य देशम’ (देश के पवित्र हिंदू मंदिर) की प्रतिकृतियों से घिरी हुई है, जो पत्थर में बनी हुई हैं और ऑडियो गाइड के साथ अलंकृत स्थापत्य के निशानों के साथ ढंकी हुई हैं.

216 फीट की इस मूर्ति के अलावा, इस परियोजना में 120 किलोग्राम का सुनहरा आंतरिक गर्भगृह – जो उनके जीवन के 120 वर्षों का प्रतीक है – भी शामिल है, जिसके अंदर संत रामानुजाचार्य देवता क रूप में विराजमान हैं.

परियोजना प्रबंधकों द्वारा दिए गए एक बयान के अनुसार, राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद 13 फरवरी को इस आंतरिक कक्ष का अनावरण करेंगे.

इस बयान में कहा गया है कि इस प्रतिमा के ऊंचे आधार के रूप में बनी 54 फीट ऊंची इमारत में एक वैदिक डिजिटल पुस्तकालय और अनुसंधान केंद्र, एक ओमनीमैक्स थिएटर, एक शैक्षिक गैलरी और संत रामानुजाचार्य के कई कार्यों का विवरण देने वाला एक बहु-भाषा ऑडियो टूर की भी व्यवस्था है.

बयान में यह भी बताया गया है कि आरम्भ में आगामा और शिल्पा शास्त्र (कला और वास्तुकला पर प्राचीन हिंदू ग्रंथों) के सूत्रों पर आधारित इस मूर्ति के लगभग 14 मॉडल बनाए गए थे, जिनमें से तीन मॉडल को चुना गया था. बाद में इन तीनों मॉडलों की विशेषताओं को शामिल करते हुए प्रतिमा निर्माण हेतु अंतिम मसौदा तैयार किया गया था. इसके बाद एक 3D स्कैन किया गया था और एक अंतिम मॉडल चुना गया जिसकी चीन में कास्टिंग शुरू की गई.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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