नई दिल्ली: महाराष्ट्र की सियासी हलचल पर टिप्पणी करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अंग्रेज़ी मुखपत्र ऑर्गेनाइज़र ने कहा कि जिस दिन शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ अपने ‘जिताऊ गठबंधन’ को तोड़कर, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के साथ हाथ मिलाने का फैसला किया, उसी दिन उसने अपनी ‘मौलिक वैचारिक स्थिति’ के साथ समझौता कर लिया था.
इस सप्ताह हिंदू राइट प्रेस की अधिकतर तवज्जो महाराष्ट्र में चल रहे संकट की ओर बनी रही. जैसे-जैसे नाटकीय घटनाक्रम आगे बढ़ा, ऑर्गेनाइज़र ने इस संकट को, महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन बनाने के लिए सेना के कांग्रेस तथा एनसीपी से हाथ मिलाने का एक लाज़िमी नतीजा करार दिया और दावा किया कि ये गठबंधन ही समस्याओं से निपटने के सेना प्रमुख और सीएम उद्धव ठाकरे के कथित इनकार की वजह था.
सेना संस्थापक बाल ठाकरे की सहज ज्ञान वादी विचारधारा की ओर इशारा करते हुए संपादकीय में कहा गया, ‘कांग्रेसवाद-विरोध, मराठी मानूस (मिट्टी के बेटे) और आक्रामक हिंदुत्व तेवर की तिकड़ी, बालासाहेब की शिवसेना की बानगी रही है. महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के आरंभ से ही ये स्पष्ट था कि कांग्रेस तथा एनसीपी ने मिलकर धर्मनिर्पेक्षता की अपनी व्याख्या को आक्रामक शिवसेना पर थोप दिया था, जो किसी भी कीमत पर मुख्यमंत्री का पद हासिल करना चाहती थी’.
महाराष्ट्र में उथल-पुथल के अलावा, हिंदुत्व-समर्थक मीडिया ने मंगलवार को उदयपुर में एक टेलर की हत्या पर भी तवज्जो दी- जिसे विश्व हिंदू परिषद ने ‘बर्बर’ करार दिया और साथ ही अगले महीने राष्ट्रपति चुनाव के लिए सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) द्वारा आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने के निर्णय पर भी विचार व्यक्त किए.
दिप्रिंट आपके लिए लाया है कि पिछले कुछ हफ्तों में हिंदुत्व-समर्थक प्रेस में क्या सुर्खियां रहीं.
महाराष्ट्र संकट
ऑर्गेनाइज़र के संपादकीय ने कहा कि महाराष्ट्र का एमवीए गठबंधन न केवल वैचारिक रूप से, बल्कि ज़मीन पर मौजूद सामाजिक समीकरणों के आधार पर भी ‘विरोधाभासों का एक बंडल’ रहा है.
उसने कहा, ‘शिवसेना का जनाधार, खासकर मुंबई-कोंकण के उसके गढ़ में, कांग्रेस तथा एनसीपी के जनाधार का पूरक नहीं रहा है, जैसा कि बीजेपी के साथ था. अपने संबंधित चुनाव क्षेत्रों से जुड़े प्रतिनिधि इस खराब समीकरण का बोध कर सकते थे’.
संपादकीय में आगे कहा गया कि कथित रूप से सेना के जमीनी नेताओं को हाशिए पर करने के बाद सीएम के बेटे आदित्य ठाकरे की ताकत का उभरना और ‘बड़बोले प्रवक्ता संजय राउत की संदिग्ध भूमिका ने’ पार्टी की मुश्किलों को और बढ़ा दिया.
संपादकीय ने लिखा, ‘गठबंधन के लिए जनादेश हासिल करने के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने का मुख्य कारण था सत्ता का लाभ उठा पाने में असमर्थता, जिसे शिवसेना महसूस करती थी’.
संपादकीय में आगे कहा गया कि कांग्रेस-एनसीपी के मामले में, मुख्य वैचारिक मुद्दे और सत्ता लाभ दोनों हाथ से दूर ही बने रहे. मुख्यमंत्री की अनुपलब्धता को लेकर लोगों की नाराज़गी बढ़ रही थी. उन्हें एक अनुभवहीन और अक्षम प्रशासक के तौर पर देखा जा रहा था’.
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उदयपुर हत्या पर VHP
विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने एक वीडियो संदेश में उदयपुर हत्या की निंदा की, और कहा कि हत्या की ‘बर्बर तस्वीरें’ और उनके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दी गई धमकी ‘भारत की संप्रभुता, धर्मनिर्पेक्षता, और उदारवाद के लिए एक चुनौती थीं’.
कुमार ने कहा, ‘और मैं कहना चाहूंगा कि देश के लोग, वीएचपी, और सरकार इस चुनौती का मुक़ाबला करेंगे, इससे लड़ेंगे, और इसपर विजयी होंगे’.
कुमार ने आगे कहा कि उन्हें डर है कि पूर्व बीजेपी नेता नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल को कुछ नुक़सान पहुंचाया जा सकता है, जिनकी पैग़म्बर मोहम्मद के खिलाफ की गई टिप्पणियों से देश भर में विरोध प्रदर्शन भड़क उठे थे. उदयपुर में टेलर कन्हैया लाल की हत्या के दो संदिग्धों ने उसे मारने के पीछे, सोशल मीडिया पर उसके शर्मा का कथित समर्थन करने को वजह बताया था.
सोमवार को चेन्नई में एक सम्मेलन में संगठन ने ये भी कहा, कि 2024 में अपनी स्थापना की 64वीं वर्षगांठ के मौक़े पर वो ‘लव-जिहाद, अवैध धर्मांतरण, जिहादी-मिशनरी हिंसा’ और हेट-स्पीच के ख़ात्मे की मांग करेगी.
वीएचपी ने कहा कि ‘इस्लामी रूढ़िवाद की वजह से’ देश हिंसा का दंश झेल रहा है.
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शनों और कर्नाटक के शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर लगी पाबंदी से उठे विवाद का उल्लेख करते हुए, वीएचपी ने अपनी वेबसाइट पर छपे एक लेख में कहा, ‘सीएए, कोरोना, हिजाब, और नुपुर विवाद के नाम पर, वो देश को उन्मादी हिंसा की आग में झोंकने की कोशिश कर रहे हैं. इस्लामी कट्टरपंथी आतंकवाद को भी बढ़ावा दे रहे हैं’.
लेख में कहा गया, ‘विश्व हिंदू परिषद हमेशा विचारों की अभिव्यक्ति की समर्थक रही है. लेकिन अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर हमारा संविधान किसी को भी दूसरों की आस्था का अपमान करने की अनुमति नहीं देता. दुर्भाग्यवश, उन अपराधियों पर सख्त क़ानूनी कार्रवाई नहीं की जाती, जो हिंदू मान्यताओं और देवी-देवताओं के खिलाफ नफरत के भाषण देते हैं, जिसकी वजह से हिंदू समाज में रोष है’.
उसमें आगे कहा गया, ‘उन लोगों के खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई की जा रही है, जो देश भर में ग़ैर-हिंदू मान्यताओं और नेताओं पर अपमानजनक बयान देते हैं, लेकिन उन अपराधियों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही जो हिंदू देवा-देवताओं और मान्यताओं का अपमान करते हैं’.
अग्निपथ
आरएसएस के हिंदू मुखपत्र पाञ्चजन्य ने दावा किया कि केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना के विरोध के पीछे एक ‘राजनीतिक गठजोड़’ काम कर रहा है. स्कीम के तहत पुरुष और महिला सैनिकों को चार वर्ष के अनुबंध पर सशस्त्र बलों में भर्ती किया जाएगा, जिसके बाद उनमें से केवल एक चौथाई को नियमित तौर पर सेवा में रोका जाएगा. इस घोषणा ने देशभर में व्यापक प्रदर्शन भड़का दिए हैं, और सैन्य दिग्गजों तथा विपक्षी दलों ने भी इसकी आलोचना की है.
संपादकीय में कहा गया, ‘कुछ लोग लगातार राष्ट्रीय मुद्दों का राजनीतिकरण कर रहे हैं, और सामाजिक सरोकार छोड़कर राजनीतिक सरोकार को उठा रहे हैं. इसके लिए वो विभिन्न वर्गों को उकसा रहे हैं’.
उसमें आगे कहा गया, ‘जब वरिष्ठ कांग्रेसी नेता राहुल गांधी बेरोज़गारी और महंगाई पर चर्चा करते हुए लंदन में कहते हैं, कि बीजेपी ने पूरे देश में मिट्टी का तेल छिड़क दिया है जिसकी एक चिंगारी देश को एक बड़े संकट में डाल सकती है, तो वो किस तरह का संदेश दे रहे हैं’.
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जैन धर्म, ‘धर्मांतरण’ और ‘चर्च का नियंत्रण’
ऑर्गनाइज़र के लिए लिखते हुए, भारतीय राजस्व सेवा के रिटायर्ड अधिकारी श्रीकुमार मेनन ने दावा किया, कि धर्म परिवर्तन की वजह से जैन धर्म को ‘अस्तित्व का ख़तरा’ महसूस हो रहा था.
मेनन ने लिखा, ‘जैन समुदाय के नष्ट होने से- जो परंपरागत रूप से एक व्यावसायिक समुदाय रहा है- आर्थिक हित चर्च के नियंत्रण में आ जाएंगे’.
उन्होंने आगे कहा, ‘अगर जैनियों की धार्मिक मान्यताएं नष्ट की जाती हैं, और उनका सफलतापूर्व धर्म परिवर्तन कर लिया जाता है, तो आर्थिक हित स्वत: रूप से चर्च, और परोक्ष रूप से पश्चिमी एजेंसियों के नियंत्रण में आ जाएंगे. धर्मांतरण एक बेहद शैतानी रणनीति है और सरकार तथा सभी खुफिया एजेंसियों को हर समय सतर्क रहना चाहिए’.
ओप-एड में अक्तूबर 2021 के एक प्रदर्शन का उल्लेख किया गया, जब कर्नाटक के बेलगाम में जैन समुदाय ‘विदेशों से वित्त-पोषित ईसाई मिशनरी गिरोहों’ द्वारा कथित रूप से बड़े पैमाने पर धर्मातरण कराए जाने के खिलाफ सड़कों पर उतर आया था.
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में भारत की स्थिति
पाञ्चजन्य में एक लेख भी प्रकाशित किया गया, जिसमें उस अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग सिस्टम को चुनौती दी गई थी, जिसने पर्यावरण संरक्षण के मामले में भारत को 180 देशों में आख़िरी स्थान दिया था.
अधिवक्ताओं सुधीर मिश्रा और स्मिरन गुप्ता द्वारा लिखे गए लेख में दावा किया गया है, कि अमेरिका के येल और कोलंबिया विश्वविद्यालयों द्वारा विकसित किए गए पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआई) में, देशों की वरीयता तय करने में अवैज्ञानिक विश्लेषण और सतह-स्तर के मानदंडों का इस्तेमाल किया गया है.
1 जून को जारी रिपोर्ट में, ईपीआई ने पर्यावरणीय सेहत, ईकोसिस्टम की शक्ति, और जलवायु के अंतर्गत 40 संकेतकों पर देशों के प्रदर्शन का आंकलन किया है.
लेख में कहा गया, ‘भारत की दूसरे देशों से तुलना नहीं की जा सकती, जिनकी आबादी भारत के कुछ शहरों से भी कम हो सकती है. डेनमार्क जिसे सूचकांक में पहला स्थान दिया गया है, उसकी आबादी भारत के किसी भी मोट्रोपोलिटन शहर से कम है’.
लेख में कहा गया, ‘ईपीआई के अनुसार, चीन, रूस, भारत और अमेरिका का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 50 प्रतिशत से अधिक योगदान है, लेकिन उसमें इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि भारत ने पैरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, और उसने 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है’.
मोदी को ‘क्लीन चिट’
एक पूर्व बीजेपी राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2002 के गुजरात दंगा मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दिए जाने को ‘हेट-इंडिया इंडस्ट्री के लिए एक झटका’ क़रार दिया.
उन्होंनेआउटलुक में लिखा, ‘एसआईटी (विशेष जांच टीम) ने जो पता लगाया, और जिसका सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अनुमोदन किया, वो वाम-उदारवादियों के समूह द्वारा संस्थाओं को अस्थिर करने, भारत को गृह-युद्ध के भंवर में ढकेलने, और अंत में देश के टुकड़े करने के गहरे षडयंत्र की एक छोटी सी झलक है’.
पुंज ने लिखा, ‘अपना उद्देश्य हासिल करने के लिए, विदेशी शक्तियों द्वारा वित्त-पोषित ये समूह अलग अलग मुखौटे पहनता है. इसके कामसार पत्रकार और ग़रीबों के लिए काम करने वाले एनजीओज़, मानवाधिकार कार्यकर्त्ता, और सामाजिक कार्यकर्त्ता आदि होने का स्वांग भरते हैं. एक वैश्विक ईकोसिस्टम है जो सामग्री सहायता देने के अलावा, उनका मार्गदर्शन करता है, और उन्हें एक ‘टूलकिट’ मुहैया कराता है’.
उन्होंने आगे दावा किया कि एक दशक से ज़्यादा से धर्मनिरपेक्षता वादियों द्वारा चलाए जा रहे दुष्प्रचार ने सामान्य और सीधे-सादे मुसलमानों की नज़र में बेक़सूर राम सेवकों को ऐसा दानव बना दिया था, जिसे जला दिया जाना चाहिए’.
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द्रौपदी मुर्मू के चुनाव पर
आदिवासी मामलात को समर्पित आरएसएस से संबद्ध संस्था, अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने आदिवासी बीजेपी नेता द्रौपडी मुर्मू को अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने के एनडीए के निर्णय की प्रशंसा की.
एबीवीकेए अध्यक्ष रामचंद्र खराड़ी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, ‘हम इसे भारत के 12 करोड़ जनजातीय लोगों के लिए एक दूरगामी प्रभाव का ऐतिहासिक क्षण मानते हैं. जनजातियां हमारी परंपरा का एक अभिन्न अंग हैं, और महान भारत राष्ट्र की सम्मानित संस्कृति की उत्तराधिकारी हैं. लेकिन, सदियों से वो अनदेखी और अवहेलना का शिकार रही हैं’.
खराड़ी ने आगे कहा कि ये निर्णय सभी राजनीतिक दलों को एक ‘दुर्लभ अवसर’ देता है, कि वो जनजातियों के व्यापक विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का ऐलान करें.
जेएनयू प्रोफेसर और दक्षिण-पंथी टीकाकार मकरंडआर परांजपे ने गल्फ न्यूज़ के लिए एक ओपीनियन पीस में लिखा, कि मुर्मू का चुनाव सामाजिक असमानता हटाने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करेगा, और ये भी लिखा कि ग़ैर-एनडीए सदस्यों ने- जिनमें वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, बीजू जनता दल, जनता दल (युनाइटेड), लोक जनशक्ति पार्टी, जनता दल (सेक्युलर) और बहुजन समाज शामिल हैं, मुर्मू को समर्थन की पेशकश की है.
उन्होंने लिखा, ‘भारत की राष्ट्राध्यक्ष की हैसियत से जब वो दुनिया भर की यात्रा करेंगी, तो तमाम नकारात्मक प्रेस के विपरीत, मुर्मू एक मिसाल पेश करेंगी कि नरेंद्र मोदी, बीजेपी, और पूरा का पूरा भारतीय समाज विविधता को ज़्यादा से ज़्यादा स्वीकारता है, और सामाजिक असमानता मिटाने के प्रति किसी भी तथाकथित उन्नत देश के मुकाबले कहीं अधिक प्रतिबद्ध है’.
परांजपे ने लिखा, ‘ये बात कि वो राम नाथ कोविंद का अनुसरण करती हैं जो एक दलित हैं, या भारतीय संविधान की अनुसूचित जनजातियों की सदस्य हैं, बीजेपी की सामाजिक न्याय की साख को और मज़बूत बनाती है. ये बात और भी सराहनीय है कि ये सरकार पहले की गणना और मजबूरियों से आगे निकलने का साहस दिखाती रही है’.
बेल्ट रोड इनिशिएटिव और चीन के इरादे
स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्वनी महाजन ने प्रभात ख़बर में लिखा, कि चीन के ख़राब इरादों और ‘कर्ज़-जाल कूटनीति’ की वजह से उसकी वैश्विक इनफ्रास्ट्रक्चर विकास रणनीति, बेल्ट रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का भविष्य डांवाडोल स्थिति में है.
महाजन ने हिंदी में लिखा, ‘बीआरआई मंच का पहला सम्मेलन 2017 में बुलाया गया था, जिसमें 100 से अधिक देशों ने शिरकत की थी. भारत ने शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया था क्योंकि वो कथित रूप से चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (सीपीआई) का हिस्सा है, जो जम्मू-कश्मीर के उस हिस्से में बनाया जा रहा है, जो पाकिस्तानी कब्ज़े में है’.
उन्होंने लिखा, ‘अप्रैल 2019 के अंत में जब बीआरआई फोरम का दूसरा सम्मेलन हुआ, तो उसमें पहले से ज़्यादा भागीदारी देखी गई लेकिन साथ ही परियोजना के संदर्भ में बहुत से सवालिया निशान भी उठाए जाने लगे’.
उन्होंने लिखा, ‘बीआरआई की शुरुआत ऐसी स्कीमों के ज़रिए हुई, जो संबंधित देशों के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद नज़र आती थीं, लेकिन दरअसल वो चीन की ‘कर्ज़-जाल कूटनीति’ का हिस्सा थीं.
उन्होंने आगे कहा, ‘आज, जब संबंधित देश बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव की वजह से मुसीबत में हैं, तो चीन के प्रति दुनिया का रवैया तेज़ी से बदल रहा है’.
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