scorecardresearch
Monday, 18 November, 2024
होमराजनीतिराजस्थान BJP में चुनाव से 2 साल पहले ही CM के चेहरे के लिए रेस शुरू, वसुंधरा राजे ने तेज किया सुर

राजस्थान BJP में चुनाव से 2 साल पहले ही CM के चेहरे के लिए रेस शुरू, वसुंधरा राजे ने तेज किया सुर

राजे ने पिछले हफ्ते कहा था कि मुख्यमंत्री बनने की इच्छा रखने वालों को 36 जातियों का समर्थन हासिल होना चाहिए, जिसके बाद राज्य के भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया ने अपने जन्मदिन पर शक्ति प्रदर्शन किया.

Text Size:

नई दिल्ली: राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए अभी करीब 2 साल का समय बाकी हैं, लेकिन भाजपा का मुख्यमंत्री पद का चेहरा कौन होगा, इसे लेकर रेस अभी से शुरू हो गई है.

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने लंबे समय से जारी अपनी चुप्पी तोड़ते हुए पिछले सप्ताह जोधपुर में कहा था कि केवल चाहने भर से ही कोई मुख्यमंत्री नहीं बन सकता.

उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री बनने के इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति को 36 कौम (जातियों) का समर्थन भी हासिल होना चाहिए.’

उनके इस बयान के ठीक दो दिन बाद सोमवार को ही भाजपा की राजस्थान इकाई के अध्यक्ष सतीश पूनिया ने दावा किया कि उन्होंने अपने जन्मदिन की पार्टी में 36 कौमों का आशीर्वाद हासिल किया है. अपनी पार्टी को उन्होंने शक्ति प्रदर्शन के मेगा शो में बदल दिया था.

राजस्थान भाजपा के आधिकारिक ट्विटर हैंडल ने भी सोमवार को समारोह के संबंध में एक ट्वीट किया था, जिसके साथ लिखा था कि पूनिया ‘भाजपा परिवार और राजस्थान के हर कोने से आने वाले 36 समुदायों से मिले अपार आशीर्वाद के लिए उनके ऋणी हैं.’

भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि हजारों लोगों को इकट्ठा करके पूनिया ने भले ही खुद को वसुंधरा के विकल्प के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की हो, लेकिन अभी पार्टी में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है.

अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि राजे के अलावा केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत और भूपेंद्र यादव के अलावा वरिष्ठ नेता राजेंद्र सिंह राठौर भी रेस में हैं.

हालांकि, पार्टी के कई नेताओं के मुताबिक, इस बात की संभावना अधिक है कि आगामी चुनाव ‘सामूहिक नेतृत्व’ में लड़े जा सकते हैं.


यह भी पढ़ें: ‘राजे को CM पद का चेहरा’ बनाने की मांग कर रहे वसुंधरा समर्थकों ने उठाया अगला कदम, आज जयपुर में खोलेंगे दफ्तर


राजे-पूनिया के बीच खींचतान

राज्य भाजपा में वर्चस्व को लेकर राजे और पूनिया के बीच मची खींचतान ने राज्य में नेतृत्व को लेकर घमासान और तेज कर दिया है.

राजे पिछले हफ्ते गजेंद्र सिंह शेखावत की मां को श्रद्धांजलि देने जोधपुर पहुंची थीं, जिनकी कुछ समय पहले ही मृत्यु हुई थी. इस दौरान उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ी और नेतृत्व के मुद्दे पर कई महीनों से उठाए जा रहे सवालों का जवाब दिया.

उन्होंने कथित तौर पर कहा, ‘यह सब किसी की अपनी इच्छा से नहीं होता है. यह बात ज्यादा मायने रखती है कि जनता क्या चाहती है. और एक और बात ध्यान रखनी होगी कि भविष्य में केवल वही शासन करेगा, जिसे 36 कौम का प्यार और आशीर्वाद हासिल होगा.’ साथ ही जोड़ा कि पार्टी कार्यकर्ताओं को 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए लामबंदी शुरू कर देनी चाहिए.

पूनिया के जन्मदिन पर मेगा शो को राजे के बयान का जवाब माना जा रहा है. पूनिया समर्थकों के मुताबिक, इस अवसर पर 50 विधायक, 30 पूर्व विधायक और आठ मौजूदा सांसद मौजूद थे, इस दौरान उनके समर्थकों ने ‘अबकी बार, पूनिया सरकार’ के नारे भी लगाए.

दोनों नेता एक-दूसरे से काफी अलग हैं.

राजस्थान भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष पूनिया जाट जाति से आते हैं और राजे से लगभग 10 साल छोटे हैं. हालांकि, उन्हें पूरे राज्य में न तो उस तरह का समर्थन ही हासिल है और न ही उतनी मजबूत पकड़ है जितनी वसुंधरा की है.

राजे इस दावे के साथ चुनाव मैदान में उतरती रही हैं कि राज्य के सभी 36 प्रमुख जाति समूहों का प्रतिनिधित्व करती हैं. अपने दावे के संदर्भ में वह ये भी कहती हैं कि खुद एक राजपूत परिवार की बेटी हैं, जाटों की बहू और गुर्जरों (उनके बेटे की पत्नी इसी समुदाय से है) की समधन हैं.

राजे खेमे के एक पूर्व मंत्री ने कहा, ‘मुख्य मुद्दा यह है कि राज्य में भाजपा को सत्ता में कौन ला सकता है. इसके अलावा, 2024 के लोकसभा चुनाव के कुछ समय पहले ही विधानसभा चुनाव होने हैं, अब यह पार्टी आलाकमान को तय करना है कि क्या बाकी नेताओं में से कोई लोकसभा और विधानसभा चुनाव दोनों में अशोक गहलोत को हरा सकता है या नहीं.

पूर्व मंत्री ने कहा, ‘इसमें कुछ नेता तो ऐसे हैं जिन्हें अपनी सीट बचाने के लिए ही कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. इसलिए पार्टी आलाकमान को यह तय करना है कि वे पूरे राज्य में जीत दिला सकते हैं या नहीं.’

इसके जवाब में पूनिया ने दिप्रिंट से कहा, ‘यह तय करना भाजपा आलाकमान और संसदीय बोर्ड का काम है कि चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाएगा, या फिर क्या यह सामूहिक नेतृत्व में होना चाहिए. हमारा काम राज्य में भाजपा की जीत सुनिश्चित करना है. बाकी आलाकमान को तय करना है कि किसे मुख्यमंत्री बनाया जाए.’

उन्होंने आगे कहा, ‘वैसे भी यह तय किए जाने में अभी काफी समय बाकी है. हमें उम्मीद थी कि मेरे जन्मदिन के जश्न के लिए कुछ ही लोग आएंगे लेकिन हजारों की संख्या में लोग मुझे बधाई देने के लिए जुटे.’

लगातार बढ़ रही खींचतान

पूनिया और राजे के समर्थकों के बीच पिछले दो साल से सियासी खींचतान जारी है.

पूनिया ने न केवल राजे के कई समर्थकों को अपनी टीम में जगह नहीं दी, बल्कि उन्होंने उनके कट्टर विरोधी माने जाने वाले मदन दिलावर को आगे बढ़ाकर उनके जख्मों पर नमक भी छिड़का.

इसके अलावा राजे के एक समर्थक और पूर्व मंत्री रोहिताश शर्मा को भी पिछले महीने पार्टी से बाहर कर दिया गया. स्थिति इस हद तक बिगड़ी कि सितंबर में विधानसभा सत्र के दौरान राजे के समर्थकों में से एक कैलाश मेघवाल ने राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता और भाजपा में अपने साथी नेता गुलाब चंद कटारिया के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाने की धमकी तक दे डाली.

इससे पहले, राजे का समर्थन करने वाले 20 विधायकों ने आलाकमान को पत्र लिखकर विधानसभा में उनका समर्थन करने वालों की लगातार उपेक्षा किए जाने का आरोप लगाया था.

अंतत: राजस्थान भाजपा प्रभारी अरुण सिंह को मेघवाल को अपनी योजना आगे बढ़ाने से रोकना पड़ा. इसके बाद जनवरी में राजे समर्थकों की तरफ से राज्य में ‘वसुंधरा राजे समर्थक मंच’ नामक एक संगठन की स्थापना की गई, जिसने अंदरूनी कलह को खुलकर उजागर कर दिया.

एकमात्र दावेदार नहीं

राजे और पूनिया ही मुख्यमंत्री पद के लिए अकेले प्रमुख दावेदार नहीं हैं.

केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र शेखावत, जो मुख्यमंत्री गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को हराकर फिर लोकसभा पहुंचे थे, गृहमंत्री अमित शाह के पसंदीदा नेता बने हुए हैं, और माना जा रहा है कि वह भी उन्हें आलाकमान की तरफ से चुने जाने के लिए एक विकल्प हो सकते हैं.

यद्यपि केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव अजमेर से ही हैं, लेकिन अहिरवाल वोट बैंक की अहमियत को देखते हुए भाजपा आलाकमान उन्हें भविष्य में हरियाणा के नेतृत्व के लिए तैयार कर रहा है.

सात बार के विधायक और विधानसभा में उपनेता राजेंद्र सिंह राठौर, जो कभी राजे के मुखर समर्थकों में शामिल थे लेकिन अब उनके विरोधी बन गए हैं, का नाम भी विकल्पों में एक है.

एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘इस बार पार्टी सामूहिक नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ना चाहेगी और इसकी संभावना अधिक है कि बाकी राज्यों की तरह पूर्ण बहुमत हासिल होने के बाद ही मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा की जाए. इसलिए इस समय पार्टी का पूरा फोकस दो उपचुनाव जीतने पर होना चाहिए.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘टीम राजस्थान’ बना BJP का नया मूलमंत्र, 2023 के चुनाव में किसी को CM का चेहरा न बनाने का संकेत


 

share & View comments