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Thursday, 21 November, 2024
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असंतुष्ट नेताओं को शांत करने के लिए BJP ने लंबे समय से लंबित शिवराज कैबिनेट के विस्तार को हरी झंडी दी

आखिरी कैबिनेट विस्तार जुलाई 2020 में हुआ था जब एक दर्जन ज्योतिरादित्य सिंधिया के वफादारों सहित 28 मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल किया गया था. यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब चुनाव तेजी से नजदीक आ रहे हैं.

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नई दिल्ली: पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच नाराजगी को रोकने के लिए अंतिम समय में उठाए गए कदम के तहत, भाजपा शासित राज्य में मतदान की तारीखों की घोषणा से ठीक डेढ़ महीने पहले शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश कैबिनेट का विस्तार किया जाएगा.

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, इसमें भाजपा आलाकमान का आशीर्वाद है, जिसने पिछले तीन वर्षों में चौहान के अनुरोधों को अपनी मंजूरी नहीं दी है.

नए मंत्रियों को शामिल किए जाने के बाद उन्हें काम करने के लिए सिर्फ डेढ़ महीने मिलने की संभावना है क्योंकि अक्टूबर में चुनाव की घोषणा होने की संभावना है. 2018 में चुनाव आयोग ने अक्टूबर के पहले हफ्ते में मध्य प्रदेश में चुनाव की घोषणा की थी.

वर्तमान में, मध्य प्रदेश में 30 मंत्री हैं जबकि चार और मंत्री पद रिक्त हैं. मंत्रिमंडल का आखिरी विस्तार जुलाई 2020 में हुआ था जब चौहान ने 28 मंत्रियों को शामिल किया था. इसके बाद नवंबर 2020 के उपचुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के तीन मंत्री हार गए.

चौहान ने मंगलवार देर शाम राज्यपाल मंघुभाई पटेल से मुलाकात की. इसके बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वी.डी. शर्मा से मुलाकात की. अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि शर्मा, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पार्टी के संगठन महासचिव हितानंद शर्मा ने बुधवार और गुरुवार को नामों को अंतिम रूप दिया, लेकिन आम सहमति बन चुकी है.

बीजेपी के एक राज्य पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “कैबिनेट विस्तार का निर्णय अमित शाह की यात्रा के दौरान राज्य चुनाव प्रभारी भूपेन्द्र यादव के फीडबैक के बाद लिया गया. कई नेताओं से मुलाकात के बाद उन्हें (चौहान को) फीडबैक दिया गया कि कई लोग पिछले तीन वर्षों में मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज थे.”

उन्होंने कहा, “लेकिन सीएम के कई बार संपर्क करने के बावजूद आलाकमान ने पिछले तीन वर्षों में कैबिनेट विस्तार पर सहमति नहीं दी. अब, यह उन नेताओं को शांत करने के लिए विस्तार पर जोर दे रहा है जिनकी भावनाएं आहत हुई हैं.”

बीजेपी के एक पूर्व राज्य मंत्री ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी के सामने दुविधा उन नेताओं और क्षेत्रों के नाराज होने की है, जिन्हें प्रस्तावित विस्तार में जगह नहीं मिलेगी.

पूर्व मंत्री ने दावा किया, “कुछ को शामिल करना प्रतिकूल हो सकता है, क्योंकि जो बचे रहेंगे वे पार्टी के खिलाफ काम करना शुरू कर देंगे. दिल्ली में निर्णय न लेने और सत्ता के अतिकेंद्रीकरण के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है. डेढ़ महीने तक विस्तार का क्या मतलब है?”

मंत्री पद के दावेदार पूर्व मंत्री अजय बिश्नोई ने पहले कहा था कि इस समय कैबिनेट विस्तार से पार्टी नेता और अधिक परेशान होंगे.

इस बीच, भाजपा के राज्य महासचिव हरिशंकर खटीक ने कहा कि मुख्यमंत्री पार्टी के हित में कोई भी निर्णय लेंगे. उन्होंने कहा, “अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करना उनका विशेषाधिकार है. कुछ पद खाली हैं और अगर वह ऐसा सोचते हैं तो वह उन्हें भर सकते हैं.”

पार्टी के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा कि पार्टी कर्नाटक से सबक ले सकती है जहां केंद्रीय नेतृत्व ने बी.एस. येदियुरप्पा और बसवराज बोम्मई के इसी तरह के अनुरोधों पर ध्यान नहीं दिया था.

बीजेपी पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “मध्य प्रदेश में पार्टी के लिए सबसे बड़ा खतरा कांग्रेस नहीं है, बल्कि हमारे कैडर के बीच नाराजगी और थकान है. हमने कई नेताओं को घोषणापत्र और विभिन्न प्रबंधन समितियों में जगह देकर शांत किया है. अगर हम सत्ता साझा करके और सम्मान देकर क्षेत्रों और जातियों तक पहुंच सकते हैं तो कोई मौका क्यों छोड़ें?”

इसी सप्ताह चौहान ने अपने वफादार और पूर्व मंत्री रामपाल सिंह को कैबिनेट मंत्री स्तर का दर्जा देते हुए दीनदयाल अंत्योदय समिति का अध्यक्ष बनाया. रायसेन जिले के एक नेता, सिंह, पहले 2020 में बस से चूक गए थे क्योंकि सिंधिया के वफादारों को कैबिनेट में जगह दी गई थी.


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महाकौशल, बुन्देलखण्ड क्षेत्र फोकस में

भाजपा हलकों में, संभावित मंत्री पद के उम्मीदवारों के नाम गौरी शंकर बिसेन, राजेंद्र शुक्ला, जालम सिंह पटेल और राहुल लोधी हैं.

सात बार के विधायक बिसेन मध्य प्रदेश में, खासकर महाकौशल क्षेत्र में भाजपा का ओबीसी चेहरा हैं. बालाघाट विधायक मप्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हैं. बिसेन मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने को लेकर मुखर थे और उन्होंने कई मौकों पर इस बात पर प्रकाश डाला था कि 2018 में बालाघाट से जीतने के बावजूद उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया था.

उनका उत्थान ओबीसी मतदाताओं और महाकौशल क्षेत्र में एक सकारात्मक संदेश भेज सकता है जहां 2018 में कांग्रेस ने 24 सीटें और भाजपा ने 13 सीटें जीती हैं.

रीवा का एक प्रमुख ब्राह्मण चेहरा शुक्ला, विंध्य क्षेत्र से आते हैं. 2018 में, भाजपा ने कुल 30 सीटों में से 24 सीटों पर कब्ज़ा करके इस क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था. हालांकि, चौहान मंत्रिमंडल में इस क्षेत्र का केवल एक ही प्रतिनिधि है.

बताया जा रहा है कि ओबीसी के साथ-साथ महाकौशल क्षेत्र में भी पैठ बनाने के लिए पटेल के नाम पर विचार चल रहा है. उमा भारती के भतीजे राहुल लोधी भी बुन्देलखण्ड क्षेत्र से ही आते हैं. राज्य की आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी 45 फीसदी से भी अधिक है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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