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Saturday, 21 December, 2024
होमराजनीति'राम के नाम पर वोट देने का समय’: अयोध्या में सत्ता विरोधी लहर से जूझती BJP खेल रही हिंदुत्व कार्ड

‘राम के नाम पर वोट देने का समय’: अयोध्या में सत्ता विरोधी लहर से जूझती BJP खेल रही हिंदुत्व कार्ड

'हिंदू प्रतिष्ठा' अयोध्या में भाजपा के मुख्य चुनावी मुद्दों में से एक है लेकिन राम जन्मभूमि में भी हिंदुत्व का एजेंडा चुनावी जीत की पक्की गारंटी नहीं है.

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अयोध्या: विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के उपाध्यक्ष और अयोध्या में राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय इन दिनों काफी मशक्कत कर रहें है. आजकल उनका पूरा-पूरा दिन व्यस्त बैठकों, पर्यवेक्षक वाली गतिविधियों और संगठनात्मक योजना से भरा होता है. और यह सब 2024 की समय सीमा तक मंदिर निर्माण कार्य पूरा करने के लिए नहीं, बल्कि भाजपा उम्मीदवार और अयोध्या विधानसभा क्षेत्र के मौजूदा विधायक वेद प्रकाश गुप्ता की फिर से जीत सुनिश्चित करने में मदद के लिए किया जा रहा है.

भाजपा, विहिप और बजरंग दल जैसे उसके सहयोगी संगठन और यहां तक कि स्थानीय साधुओं की टोली भी अयोध्या निर्वाचन क्षेत्र- जो 80 के दशक में राम मंदिर आंदोलन शुरू होने के बाद से ही हिंदुत्व की राजनीति का केंद्रबिंदु रहा है- में 27 फरवरी को हो रहे चुनाव से पहले जारी चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.

राम मंदिर निर्माण की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से यहां का यह पहला चुनाव है और कोई भी किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहता है.

भाजपा नेता और इसकी अयोध्या महानगर इकाई के अध्यक्ष अभिषेक मिश्रा ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमें अयोध्या सीट जीतनी ही है. यह हिंदुत्व और राम की भूमि की प्रतिष्ठा की रक्षा का सवाल है.’

मगर, यहां की लड़ाई इतनी भी आसान नहीं है और जातीय राजनीति और तथा सत्ता विरोधी भावनाएं भाजपा का खेल बिगाड़ रही हैं. यहां भाजपा उम्मीदवार के सामने सबसे बड़ी चुनौती समाजवादी पार्टी के तेज नारायण (उर्फ पवन) पांडे हैं, जो 2012 के विधानसभा चुनाव में अयोध्या सीट से जीते थे. पांडे को ब्राह्मणों और व्यापारियों के बीच अच्छा-खासा समर्थन प्राप्त है और इस चुनाव अभियान में भाजपा से मुकाबला करते हुए उन्होंने अपनी ‘राम भक्त’ वाली साख का प्रदर्शन करना भी सुनिश्चित किया हुआ है.


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‘राम के लिए वोट देने का समय आ गया है’

अयोध्या के साधु-संतों को एक महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है.

चंपत राय और आरएसएस के प्रांत प्रचारकों जैसे विहिप नेताओं के मार्गदर्शन में भगवा वेशधारी साधुओं का जत्था मोहल्ले-मोहल्ले, गांव-गांव जाकर राम लला का विशेष प्रसाद, राम जन्मभूमि क्षेत्र की मिट्टी के पाउच बांटने और लोगों के माथे पर तिलक लगाने के लिए घूम रहें हैं. इस सप्ताह तो 20-25 साधुओं का एक ऐसा ही दल सिराथू भी भेजा गया ताकि वे वहां के भाजपा उम्मीदवार और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के पक्ष में अच्छी बातें कहते हुए प्रचार कर सकें.

अयोध्या में घर-घर जाकर प्रचार करते साधु संत | फोटो: विशेष प्रबंध

प्रचार कार्य के लिए प्रतिनियुक्त किये गए इन सैकड़ों साधुओं में महंत रामदास, नागा साधु अर्जुन दास और बाबा ब्रजेश दास जैसे प्रमुख धार्मिक नेता भी शामिल हैं.

अयोध्या स्थित हनुमान गढ़ी मंदिर के महंत (प्रमुख पुजारी) रमेश दास ने कहा कि हमारा प्राथमिक संदेश ‘हिंदू प्रतिष्ठा’ को बनाए रखने का है.

दास ने कहा, ‘हम मतदाताओं को यह बात बता रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ और मोदी सरकार के तहत ही राम मंदिर का सपना सच होने जा रहा है. इस हिंदुत्ववादी सरकार ने हिंदू प्रतिष्ठा को महत्वपूर्ण बना दिया है. अनुच्छेद 370 और गोहत्या जैसे मुद्दों पर उनके राष्ट्रवादी रुख ने हिंदू समुदाय का हौसला बढ़ाया है.’

वह कहते हैं, ‘अधर्मी लोगों को वोट न दें, अब राम को वोट देने का समय आ गया है. यह हिंदू धर्म की रक्षा करने वालों और हिंदुत्व पर सवालिया निशान लगाने वालों के बीच की लड़ाई है. यह कोई साधारण निर्वाचन क्षेत्र नहीं है.’

हालांकि, अयोध्या में धर्म के इर्द-गिर्द होने वाली राजनीति का निश्चित रूप से एक लंबा इतिहास रहा है, मगर जातिगत दरारों और सत्ता-विरोधी भावनाओं से पार पाना मुश्किल साबित हो रहा हैं. यह तथ्य कि समाजवादी पार्टी के पवन पांडे साल 2012 में यहां से जीतने में कामयाब रहे थे, इस बात को दर्शाता है कि यह जरूरी नहीं है कि हिंदुत्व का एजेंडा अयोध्या में चुनावी जीत की पक्की गारंटी हो.

पिछले साल के जिला पंचायत चुनावों में भी भाजपा को यहां की 40 में से केवल आठ सीटें मिलीं थी, जबकि समाजवादी पार्टी को 24 सीटों पर जीत मिली थी.


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‘सत्ता विरोधी भावना तो है लेकिन विधायक क्या करते हैं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता’

यहां तक कि भाजपा के भीतर भी पार्टी प्रत्याशी और अयोध्या के मौजूदा विधायक वेद प्रकाश गुप्ता को लेकर कुछ भ्रांतियां मौजूद हैं.

भाजपा के एक जिलास्तरीय नेता ने कहा, ‘हम उम्मीद कर रहे थे कि स्वयं योगी आदित्यनाथ इस धर्म स्थली से चुनाव लड़ेंगे. गोरखपुर से उनकी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद भी हम किसी और बड़े नेता के यहां से चुनाव लड़ने की उम्मीद कर रहे थे. वास्तव में तो गुप्ता पिछले पांच वर्षों में ज्यादा दिखाई नहीं दिए हैं. पांडे ने यहां अधिक काम किया है.’

उनके अनुसार व्यापारी वर्ग भी वर्तमान विधायक से नाखुश हैं. इस भाजपा नेता ने कहा, ‘गुप्ता ने उन व्यापारियों की चिंताओं को दूर नहीं किया है जिनकी दुकानें मंदिर निर्माण की वजह से प्रभावित होंगी और इसलिए वे उन्हें लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं.’

अयोध्या में राम मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग के निर्माण हेतु हनुमान गढ़ी क्षेत्र में लगभग 1,000 दुकानों को कहीं और स्थानांतरित करने की आवश्यकता है, जिसकी वजह से यहां के दुकानदारों में खलबली मच गई है. हालांकि राज्य सरकार ने उन्हें नई दुकानें आवंटित करने का वादा किया है, मगर फिर भी यह मामला चुनावी मुद्दा बन गया है.

दिप्रिंट ने फोन के माध्यम से विधायक वेद प्रकाश गुप्ता से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन इस खबर के प्रकाशित होने तक उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. अगर वे कोई जवाब देते हैं तो इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

हालांकि, भाजपा के कई अन्य नेताओं का कहना है कि अयोध्या में मतदान के संदर्भ में गुप्ता का अपना प्रदर्शन कोई मायने नहीं रखता. भाजपा नेता अभिषेक मिश्रा ने कहा, ‘यह विधायक के काम करने या न करने का सवाल नहीं है. यह राम की भूमि है- यहां विधायक का कोई खास मतलब नहीं है.’

पूर्व सांसद और प्रमुख संत रामविलास वेदांती ने कहा कि लोगों को विधायक या जातिगत समीकरणों के बारे में कम और ‘राष्ट्रवादी पार्टी’ के बारे में अधिक सोचना चाहिए.

वेदांती ने कहा, ‘इस बार का चुनाव अयोध्या के विकास और राम मंदिर के लिए लोगों की इच्छा को पूरा करने के बारे में है. निर्माण का काम जोरों पर हो रहा है, होटल और हाई-वे विकसित किए जा रहे हैं…. लोग विधायक को भूल जाएंगे. वे राष्ट्रवादी पार्टी को ही वोट देंगे.’

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के ट्रस्टी अनिल मिश्रा, जो मंदिर निर्माण कार्य के प्रभारी भी हैं, ने कहा कि नाराज व्यापारियों को मंदिर के निर्माण से होने वाले सभी प्रकार के अन्य लाभों के बारे में सोचना चाहिए.

मिश्रा ने कहा, ‘अयोध्या में हो रहे विकास से किसे फायदा होगा? पर्यटन से किसे होगा फायदा? मोदी सरकार अयोध्या में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण कर रही है और यहां तक कि अयोध्या को बड़े पर्यटक गंतव्य के रूप में स्थापित करने के लिए एक नया टाउनशिप भी बना रही है.’

अयोध्या से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार पवन पांडे | फोटो: विशेष प्रबंध

इस बीच सपा प्रत्याशी पवन पांडे ने भाजपा के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया हुआ है.

मंदिर निर्माण के लिए हुई जमीन की खरीद को लेकर सामने आये विवादों की ओर इशारा करते हुए, पांडे ने आरोप लगाया, ‘जनता भाजपा को कभी माफ नहीं करेगी. उन्होंने दुकानदारों को बिना किसी तरह की उचित व्यवस्था किए अपनी दुकानें सौंपने के लिए मजबूर किया है और स्थानीय लोगों को अपनी जमीन बेचने के लिए विवश किया है.’

उन्होंने कहा, ‘मैं भी एक राम भक्त हूं लेकिन मैं राम के नाम पर लोगों को धोखा नहीं दे सकता.’

हालांकि, भाजपा नेता अभिषेक मिश्रा ने कहा कि मंदिर ट्रस्ट द्वारा की गयी जमीन की खरीद पारदर्शी थी और पूरी तरह से नियमों के तहत की गई थी.


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ब्राह्मण मतदाता हैं सबसे अहम

भाजपा सूत्रों के अनुसार, सपा से पवन पांडे, जो एक ब्राह्मण हैं, की उम्मीदवारी की वजह से ही पार्टी ने अयोध्या से यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो एक राजपूत हैं, को मैदान में नहीं उतारने का फैसला किया था.

एक स्थानीय भाजपा नेता ने कहा कि पार्टी नहीं चाहती थी कि इस तरह की चुनावी लड़ाई की वजह से पूरे इलाके में राजपूतों और ब्राह्मणों का ध्रुवीकरण हो.

अयोध्या में जीत की चाबी ब्राह्मण वोट ही है. इस निर्वाचन क्षेत्र में 3,16,722 पंजीकृत मतदाता हैं और इनमें ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या लगभग 22 प्रतिशत हैं, इसके बाद यादव (12 प्रतिशत) और मुस्लिम (लगभग 8 प्रतिशत) हैं. दलित कुल मतदाताओं की संख्या में लगभग 15 प्रतिशत का हिस्सा रखते हैं.

भाजपा के लल्लू सिंह, जो राजपूत समुदाय से आते हैं, ने पहले अयोध्या पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी थी और 1991 के बाद से पांच बार यहां से जीते थे. 2012 में सपा के पवन पांडे, जिन्हें ब्राह्मण वोट का एक बड़ा हिस्सा मिला था, ने उनका इस सीट से राज खत्म किया. व्यापारियों के बीच पांडे की लोकप्रियता के अलावा यही एक कारण है जिसकी वजह से उनकी उम्मीदवारी भाजपा को परेशानी महसूस करवा रही है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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