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Friday, 15 November, 2024
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ठाणे के ठाकरे, बालासाहेब के ‘प्रतिद्वंद्वी’- कौन हैं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शिंदे के गुरु आनंद दिघे

एकनाथ शिंदे अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन में दिघे को बेहद अहम भूमिका निभाने का श्रेय देते हैं, और उनकी कार्यशैली और वेशभूषा में भी दिघे की छवि साफ नजर आती है.

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मुंबई: एकनाथ शिंदे इस साल मई में जब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार में मंत्री थे, तब उन्हें दिवंगत शिवसेना नेता आनंद दिघे की बायोपिक का काफी उत्साह के साथ प्रचार करते देखा गया. वह दिघे को अपना गुरु मानते हैं.

दिघे की 2001 में 50 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी, और उन्हें ठाणे के लोगों के बीच लगभग वही दर्जा हासिल था जो मुंबई में बाल ठाकरे का था.

‘धर्मवीर: मुक्कम पोस्ट ठाणे’ की रिलीज के दो महीने बाद दिघे का नाम एक बार फिर महाराष्ट्र के राजनीतिक हलकों में गूंज उठा जब शिंदे ने बागी शिवसेना विधायकों का नेतृत्व करके ठाकरे को पटखनी दे दी.

शिंदे ने ऐसा करते हुए दावा किया कि वह दिघे की विचारधारा की रक्षा कर रहे हैं जो शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की भी विचारधारा है.

बहरहाल, ऐसा लगता है कि जी स्टूडियोज के बैनर तले बनी मंगेश देसाई निर्मित दिघे की बायोपिक सही समय पर रिलीज हुई है जो महाराष्ट्र के मतदाताओं को दिघे के जीवन और उनकी विरासत की याद दिलाती, और दर्शाती है कि कैसे उनके शिष्य शिंदे उसके एक स्वाभाविक दावेदार हैं.

राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश बल ने दिप्रिंट को बताया, ‘बायोपिक देखकर लगता है जैसे यह सब जानबूझकर किया गया होगा.

एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच आज संबंध बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे कभी आनंद दिघे और बाल ठाकरे के बीच रहे थे.’

उन्होंने कहा, ‘दिघे अपना कद लगातार बढ़ाते जा रहे थे, और बाल ठाकरे ने उन्हें कभी पसंद नहीं किया.’

ठाणे के ठाकरे

आनंद दिघे को ठाणे और उसके पड़ोसी क्षेत्रों, कल्याण, डोंबिवली, अंबरनाथ और भिवंडी आदि में शिवसेना की जड़ें मजबूत करने का श्रेय दिया जाता है.

ठाणे के एक पूर्व शिवसेना पार्षद ने दिप्रिंट को बताया, ‘दिघे साहब पहली बार 1980 के दशक में शिवसेना के ठाणे जिला प्रमुख बने और उन्होंने पूरे जिले में शिवसेना की हिंदुत्व विचारधारा का प्रसार किया, यहां पार्टी का आधार मजबूत किया और हमने कई चुनाव जीते.’

पूर्व पार्षद ने कहा, ‘बालासाहेब की तरह उन्होंने भी कभी चुनाव नहीं लड़ा, बल्कि हर चीज पर नजर रखते थे और लोगों की नब्ज पहचानते थे.’

ठाणे में दिघे ने अपनी छवि कुछ उसी तरह बना ली थी जैसी मुंबई में खुद बाल ठाकरे की थी.

ठाकरे को किसी भी जरूरतमंद की मदद के लिए अपने आवास ‘मातोश्री’ के दरवाजे हमेशा खुले रखने के लिए जाना जाता था. वहीं दिघे हर शाम ठाणे के टेम्बी नाका स्थित अपने आवास में एक जनता दरबार चलाते थे, और इसमें तमाम लोगों की शिकायतों का समाधान करते और असंख्य विवादों को सुलझाते.

लेखक थॉमस ब्लॉम हैनसेन ने 2001 में अपनी किताब ‘वेजेस ऑफ वायलेंस: नेमिंग एंड आइडेंटिटी इन पोस्टकोलोनियल बॉम्बे’ में ठाणे में दिघे की छवि के बारे में लिखा कि उन्हें ‘किसी पौराणिक चरित्र जैसा बताया जाता था जिसके पास सुपर ह्यूमन ताकत थी.’

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में रिलायंस-धीरूभाई अंबानी प्रोफेसर ऑफ एंथ्रोपॉलॉजी हैनसेन लिखते हैं, ‘अपनी उम्र के तीसवें दशक में जबसे दिघे ने जिला प्रमुख के तौर पर पदभार संभाला, तबसे ही उन्हें किसी पौराणिक चरित्र जैसा माना जाता था. उनके बारे में कहा जाता था कि वह सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान हैं. दिघे अपनी इस रहस्यमयी और सशक्त छवि को बढ़ावा भी देते रहे. वह हमेशा अपनी जीप में पूरे जिले में घूमते रहते और अफवाह तो यह तक थी कि वह कभी भी एक जगह पर दो बार रात नहीं बिताते थे.’

हैनसेन के मुताबिक, मध्य ठाणे के टेम्बी नाका में दिघे के ‘मुख्यालय में एक विशाल स्वागत कक्ष बना था, जहां हर शाम सौ-पचास लोग या तो सहायता मांगने के लिए या फिर सहायता मिलने पर अपना आभार जताने के लिए वहां प्रतीक्षा करते ही रहते.

आनंद दिघे को 1989 में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं और तत्कालीन आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत गिरफ्तार किया गया. यह गिरफ्तारी शिवसेना के एक पार्षद श्रीधर खोपकर की हत्या के सिलसिले में हुई थी जिसने कथित तौर पर क्रॉस वोटिंग में हिस्सा लिया था जिसके वजह से ठाणे मेयर चुनाव में शिवसेना को हार का सामना करना पड़ा था. दिघे को बाद में जमानत पर छोड़ दिया गया.

एक दशक बाद दिघे को पैर में फ्रैक्चर के कारण ठाणे के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया. 50 वर्षीय दिघे की 26 अगस्त 2001 को इसी अस्पताल में हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई.

उनकी मौत से आक्रोशित शिवसेना कार्यकर्ताओं ने अस्पताल के कुछ हिस्से और वहां खड़े वाहनों में आग लगा दी. एम्बुलेंस और तमाम चिकित्सा उपकरण तोड़ दिए. उनका गुस्सा सड़कों तक फैल गया और अपने नेता की मौत से दुखी शिवसैनिकों पर तमाम बसों और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगा.


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बाल ठाकरे के साथ रिश्ते

इस साल मई में दिघे पर बायोपिक की एक विशेष स्क्रीनिंग के दौरान क्लाइमेक्स से पहले ही शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे वहां से चले गए. स्क्रीनिंग के दौरान मौजूद लोगों में एकनाथ शिंदे और उनके सांसद पुत्र श्रीकांत शिंदे शामिल थे.

ठाकरे ने बाद में संवाददाताओं से कहा कि वह क्लाइमेक्स- जिसमें दिघे के साथ हादसे और फिर उनकी मौत को दर्शाया गया है-से पहले ही बाहर आ गए थे क्योंकि यह उन्हें ‘विचलित कर देने वाला लगा.’

तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने यह भी याद किया कि उनके पिता बाल ठाकरे कैसे दिघे की मृत्यु से बेहद दुखी हो गए थे.

हालांकि, दिघे के जीवन के आखिरी समय में उनके और शिवसेना नेतृत्व के बीच रिश्तों में आ रही तल्खी राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय रही थी.

यद्यपि बाल ठाकरे दिघे के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए लेकिन शिवसेना ने यह कहकर उनकी अनुपस्थिति को उचित ठहराया कि ‘सुरक्षा कारणों से’ पार्टी प्रमुख से इसमें भाग लेने से परहेज करने को कहा गया था. लेकिन सुगबुगाहट यह भी रही कि ये जानबूझकर किया गया होगा.

राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश बल बताते हैं कि बाल ठाकरे को आनंद दिघे और उनके तौर-तरीके कभी खास पसंद नहीं आए थे.

उन्होंने इस संदर्भ में विशेष तौर पर एक घटना का जिक्र किया जब शिवसेना नेता मनोहर जोशी, जो उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे, ने टी. चंद्रशेखर को नगर आयुक्त पद से हटाने के शिवसेना के नेतृत्व वाले ठाणे नगर निगम (टीएमसी) के प्रस्ताव को खारिज कर दिया.

प्रकाश बल ने बताया, ‘आनंद दिघे और उनके समर्थकों ने ठाणे में अवैध निर्माण के खिलाफ चंद्रशेखर के ध्वस्तीकरण अभियान पर आपत्ति जताई थी. बाद में बाल ठाकरे ने मुंबई में सांताक्रूज एयरपोर्ट के पास स्थित सेंटौर होटल में दिघे और ठाणे के अन्य प्रमुख शिवसेना नेताओं की एक बैठक की अध्यक्षता की, और उनसे साफ कह दिया कि चंद्रशेखर वहीं रहेंगे.’

शिंदे के ‘दिघे साहब’

शिवसेना सूत्रों ने बताया कि दिघे ने ही एकनाथ शिंदे को बतौर नेता तैयार किया और उन्हें अपना दबदबा कायम करने में मदद की.

दिघे पर बायोपिक में शिवसेना नेता को एक डांस बार के खिलाफ कार्रवाई के लिए शिंदे को चुनते दिखाया गया है, जब कुछ स्थानीय निवासियों ने उनके जनता दरबार के दौरान इस बारे में शिकायत की थी.

बायोपिक में शिंदे के अपने समर्थकों के साथ बाइक से आते दिखने से पहले दिघे को ‘एकनाथ कुठे आहे? (एकनाथ कहां है)’ बोलते दिखाया गया है. इसके बाद शिंदे डांस बार में जाकर वहां सब कुछ तहस-नहस कर देते हैं.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे फ्लोर टेस्ट जीतने के बाद राज्य विधानसभा में पहले भाषण के दौरान अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन में दिघे की भूमिका का जिक्र करते हुए एकदम भावुक हो गए थे.

उन्होंने कहा, ‘जब मैंने अपने दो बच्चे अपनी आंखों के सामने खो दिए, तब आनंद दिघे साहब ने ही मुझे ताकत दी.’ शिंदे ने नम आंखों के साथ यह बात 2001 के एक नौका विहार हादसे का जिक्र करते हुए कही, जिसमें उन्होंने अपने 11 साल के बेटे और 7 साल की बेटी को खो दिया था.

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘मुझे किसके लिए जीना चाहिए? मैंने तय कर लिया था कि मैं केवल अपने श्रीकांत, अपनी पत्नी और अपने माता-पिता के लिए जिऊंगा…दिघे साहब पांच बार घर आए और मैंने उनसे कह दिया, मैं अब फिर से खड़ा नहीं हो सकता और आपकी पार्टी के साथ न्याय नहीं कर सकता. उन्होंने एक दिन मुझे तेम्बी नाका बुलाया, मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा, एकनाथ ना मत कहो. तुमको अपना दुख भुलाना होगा.’

शिंदे- जिन्होंने न केवल दिघे की कार्यशैली अपनाई है, बल्कि उनकी तरह ही घनी दाढ़ी रखते हैं और उंगलियों पर कई अंगूठियां भी पहने रहते हैं- सोमवार शाम विधान भवन से निकलकर मुंबई के शिवाजी पार्क में ठाकरे स्मारक पहुंचे.

फिर उन्होंने 21 जून- जब उनकी अगुआई में शिवसेना विधायकों ने बगावत की थी- के बाद पहली बार घर जाने से पहले ठाणे में दिघे स्मारक पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित की.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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