चेन्नई: पिछले कई वर्षों से, विदुथलाई चिरुथिगल काची (वीसीके) या लिबरेशन पैंथर्स पार्टी के अध्यक्ष तोलकाप्पियन थिरुमावलवन के दोस्तों और राजनीतिक साथियों ने घोषणा कर रखी है कि इस नेता ने ‘समाज से शादी की है.’
तमिलनाडु कांग्रेस के नेता एस. पीटर अल्फोंस ने पिछले साल एक कार्यक्रम में कहा था, ‘वह अक्सर कहते हैं – मैंने इस समाज से शादी की है, मैंने उन लोगों से शादी की है जिनके साथ भेदभाव किया जाता है. अब उन्हें ऊपर उठाना और उन्हें सशक्त बनाना ही मेरा जीवन है. हमें थिरुमा जैसे नेताओं की सख्त जरूरत है.‘
पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय से, एक सामाजिक कार्यकर्ता और पीएचडी डिग्री वाले विद्वान रहे थिरुमावलवन ‘मनुस्मृति’ द्वारा समर्थित विचारधारा के खिलाफ आंदोलनरत हैं. फिर भी, इस महीने की शुरुआत में, उन्हें चेन्नई के व्यस्त कोयम्बेडु बस टर्मिनस में इस पुस्तक के श्लोकों के तमिल अनुवादों के साथ छपी पुस्तिकाएं वितरित करते हुए देखा गया था. जहां डॉ.अम्बेडकर ने ‘मनुस्मृति’ को जलाया था, वहीं वीसीके का मानना है कि लोग इसके ‘संदेशों’ को पढ़कर जागरूक हों. इसी मकसद से पार्टी के कार्यकर्ता इस समय पूरे राज्य में इस पुस्तिका की प्रतियां बांट रहे हैं.
दिप्रिंट के साथ बात करते हुए, थिरुमावलवन ने कहा कि जब उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को तमिलनाडु में ‘खुले तौर पर अपना अधिकार जमाते हुए और पिछले महीने 50 स्थानों पर जुलूस निकालने की मांग करते हुए देखा, तो उन्हें एक तरह का नैतिक भय’ महसूस हुआ.
थिरुमावलवन ने कहा, ‘मुझे लगा कि आरएसएस के बारे में सच्चाई को सामने लाने के लिए और उन्हें बेनकाब करने की जरूरत है. विशेष रूप से ओबीसी क्लास (अन्य पिछड़ा वर्ग) के युवाओं को वास्तविक तस्वीर को समझना चाहिए, क्योंकि अब हिंदू त्योहारों को मनाने या ‘जय श्री राम’ और ‘भारत माता की जय’ जैसे नारे लगाने का जूनून वैसे ही होता जा रहा है जैसे कि वे उत्तर भारत में करते हैं.’
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राजनीतिक उत्थान
आज के समय में अपने उग्र भाषणों के लिए जाने जाने वाले और दक्षिणी तमिलनाडु के जिलों में एक मजबूत दलित समर्थन वाला आधार रखने वाले थोल थिरुमावलवन ने 1980 के दशक के अंत में राज्य की राजनीति में प्रवेश किया था.
साल 1989 में उन्होंने तत्कालीन दलित पैंथर्स अय्यक्कम (डीपीआई) की बागडोर संभाली और अगले वर्ष इसका नाम बदलकर वीसीके कर दिया.
डीपीआई की स्थापना साल 1982 में मदुरै में एम. मललचामी के नेतृत्व में असंतुष्ट दलितों द्वारा की गई थी.
लगभग एक दशक तक, वीसीके ने चुनावी राजनीति को ‘गैर-प्रतिनिधित्व वाली‘ और ‘भ्रष्ट’ बताते हुए इसका बहिष्कार किया. लेकिन साल 1999 में जब के. मूपनार ने कांग्रेस से निकलने के बाद अपनी पार्टी – तमिल मनीला कांग्रेस (टीएमसी) – की स्थापना की, तो वीसीके ने उसके साथ मिलकर अपना पहला चुनाव लड़ा.
हालांकि, उस चुनाव में टीएमसी का प्रदर्शन खराब रहा, लेकिन प्राप्त वोटों के मामले में वीसीके ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया.
इस राज्य में अनुसूचित जातियों की आबादी 23.7 प्रतिशत है और दलितों के नेतृत्व वाली यह तमिल पार्टी अपने पहले चुनाव से ही एक महत्वपूर्ण राजनीतिक दल के रूप में उभरी है.
चुनावी राजनीति में प्रवेश करने के दो दशकों के बाद से, इसने दोनों प्रमुख द्रविड़ पार्टियों – द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) – के साथ-साथ एस रामदास की पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) के साथ गठबंधन किया है, और यहां तक कि एक चुनाव में तो इसने अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ भी हाथ मिलाया था.
इस समय के दौरान, इसके द्वारा लड़ी गयी सीटों की संख्या छह से 25 सीटों के बीच रही. तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में इसका वोट-शेयर विभिन्न समय काल में 1.3 प्रतिशत (2006), 1.5 प्रतिशत (2011), 0.8 प्रतिशत (2016), और 1 प्रतिशत (2021) रहा है.
साल 2019 के लोकसभा चुनावों जब डीएमके के नेतृत्व वाले सामाजिक प्रगतिशील गठबंधन ने तमिलनाडु में भारी जीत हासिल की थी तो, वीसीके खुद को आवंटित की गईं दोनों सीटों से विजयी रही थी. पार्टी के महासचिव और जाने-माने लेखक डी. रविकुमार ने द्रमुक के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा था और पीएमके के उम्मीदवार के खिलाफ एक लाख से भी अधिक के अंतर से जीत हासिल की थी. तिरुमावलवन ने एक स्वतंत्र चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा था और उन्होंने अन्नाद्रमुक के उम्मीदवार के खिलाफ 3,000 मतों से जीत हासिल की.
पार्टी के पास अब राज्य विधानसभा में चार विधायक हैं और वीसीके यहां द्रमुक के साथ गठबंधन में शामिल है. इसके लोकसभा में दो सांसद हैं और दोनों तमिलनाडु से हैं.
जर्मनी के जॉर्ज-अगस्त-यूनिवर्सिटीएट गॉटिंगेन में सेंटर फॉर मॉडर्न इंडियन स्टडीज के रिसर्च फेलो, कार्तिकेयन दामोदरन के अनुसार, वीसीके ने तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य को फिर से परिभाषित करना शुरू कर दिया है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘अब कोई भी राजनीतिक दल दलितों की उस तरह से उपेक्षा नहीं कर सकता जैसा कि वे पहले करते थे. सड़क की राजनीति और कट्टरपंथी राजनीतिक विरोध प्रदर्शनों के साथ हुई अपनी उत्पत्ति के बाद से वीसीके ने लोकतांत्रिक संस्थानों को दलित अधिकारों को सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करने हेतु एक लंबा सफर तय किया है. ‘
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु की चुनावी राजनीति में ‘दो द्रविड़ पार्टियों (एआईएडीएमके और डीएमके) के दोहरे अधिकार (डुओपोली) वाला वर्चस्व है और इस संदर्भ में छोटे दलों के लिए एक राजनीतिक ताकत के रूप में उभरना कोई आसान काम नहीं है.
दामोदरन ने कहा कि वीसीके के लिए अपने मतों को साझा करना और अपने सहयोगियों के साथ वोटों का आपसी हस्तांतरण हमेशा से एक पेचीदा मुद्दा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘थिरुमावलवन ने पहले कहा था कि गठबंधन के सहयोगियों के साथ मिलकर काम करने के बावजूद भी वोटों का आपसी हस्तांतरण (ट्रांसफर) नहीं हो पाता है, क्योंकि जातिगत हित राजनीतिक हितों को प्रभावित करते रहते हैं.’
उन्होंने स्पष्ट किया कि न केवल डीएमके बल्कि कोई भी पार्टी जो एक प्रमुख सहयोगी के रूप में वीसीके के साथ गठबंधन का नेतृत्व करेगी उसे दलित समर्थन हासिल करने में थिरुमावलवन की उपस्थिति से लाभ होने वाला है.
उन्होंने कहा, ‘द्रविड़ राजनीतिक प्रभुत्व के बावजूद भी राज्य के चुनावी परिदृश्य में हमेशा इस बात के लिए स्थान रहा है कि कोई भी पार्टी एक मजबूत गठबंधन को कैसे प्रभावी ढंग से जोड़ सकती है… यही वह जगह है जहां वीसीके और पीएमके जैसी छोटी पार्टियों ने अपने पैर जमा लिए है.’
पिछले कुछ सालों के दौरान वीसीके कई विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे रहा है और इसने कावेरी नदी जल मुद्दे, मुल्लापेरियार बांध, ओबीसी आरक्षण और एनईईटी जैसे मुद्दे उठाने के साथ तमिल आबादी के बड़े हिस्से को प्रभावित किया है.
इस हफ्ते, वीसीके ने संकेत दिया कि वह ईडब्ल्यूएस आरक्षण को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक सुधारात्मक याचिका दायर करेगी. थिरुमावलवन ने अपने एक बयान में कहा, ‘मोदी सरकार जिसने ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों के लिए हजारों बैकलॉग वैकेंसीज (पहले से चली आ रही रिक्तियों) को नहीं भरा है, वह ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण में विशेष रुचि दिखा रही है.’
उन्होंने कहा, ‘हालांकि भाजपा कहती रहती है कि सभी हिंदू एक हैं, मगर वह लगातार ओबीसी, एससी और एसटी के हितों के खिलाफ और विशेषाधिकार प्राप्त जातियों के पक्ष में काम कर रही है.‘
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सम्पूर्ण भारत में व्यापक पहुंच बनाने का लक्ष्य
यह पूछे जाने पर कि वीसीके उत्तर भारत की दलित पार्टियों से अलग कैसे हो सकती है, थिरुमावलवन ने कहा कि आरएसएस-भाजपा के खिलाफ दलित समाज के प्रतिरोध में देश के उस हिस्से में कमजोरी है और उनकी समझ में एक रिक्तता है.
उन्होंने कहा, ‘लेकिन उत्तर भारत में दलित समुदायों के बुद्धिजीवी सनातन राजनीति को समझते है.’
उन्होंने कहा, ‘वीसीके की मनुस्मृति विरोधी गतिविधियां उन्हें (बुद्धिजीवियों को) प्रेरित करती हैं.’ साथ ही, उन्होंने कहा कि वीसीके तमिलनाडु के बाहर और अधिक मुद्दों में शामिल हो रहा है और उन पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहा है.
उन्होंने कहा, ‘वीसीके अब उत्तर की ओर जा रहा है और तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक का भी दौरा कर रहा है, खासकर दलित अत्याचारों के संबंध मे. जब भी मैं दिल्ली जाता हूं, तो काफी सारी बातचीत होती है. कई राज्यों से लोग मुद्दों पर चर्चा करने आते हैं.‘
पार्टी के केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पदाधिकारी हैं. यह मुंबई और महाराष्ट्र के कई अन्य हिस्सों में रह रहे तमिलों पर इसके प्रभाव के अलावा है.
अक्टूबर में, थिरुमावलवन उस अवसर पर मौजूद थे जब तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस), जो तेलंगाना में सत्ता में है, ने अपनी पार्टी का नाम बदलकर ‘भारत राष्ट्र समिति’ करने हेतु एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया था.
इसके अगले दिन वह उस समय भी उपस्थित थे जब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने हैदराबाद में एक दलित सम्मेलन आयोजित करने की अपनी योजना की घोषणा की थी.
इस कार्यक्रम के बारे में इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, वीसीके नेता रविकुमार ने कहा था कि पार्टी तेलंगाना सरकार की पहल का ‘सम्मान’ करना चाहती है क्योंकि वे ‘अपने बजट का लगभग 13 प्रतिशत दलित कल्याण पर खर्च करते हैं, जो राष्ट्रीय औसत से पांच गुना अधिक है.’
उन्होंने ‘दलित बंधु’ जैसे ‘गेम-चेंजिंग’ कार्यक्रमों का भी उल्लेख किया, जो ‘सरकारी अनुबंधों (कॉन्ट्रैक्ट्स) का 10 प्रतिशत हिस्सा दलितों को देता है और दलित व्यवसायों को 10 लाख रुपये की सहायता की पेशकश करता है.’
उससे एक महीने पहले, सितंबर में, थिरुमावलवन ने कन्याकुमारी में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के उद्घाटन के अवसर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ भी मंच साझा किया था.
दामोदरन कहते हैं कि वीसीके ने मीडिया और राजनीतिक हलकों में एक दलित पार्टी के रूप में पेश की जा रही उसकी छवि के बावजूद निश्चित रूप से एक व्यापक और बहु-जातीय काडर वाले जनाधार को आकर्षित करना शुरू कर दिया है.
दामोदरन ने दिप्रिंट को बताया, ‘वीसीके राज्य की सबसे बड़ी दलित राजनीतिक पार्टी है, लेकिन यह पार्टी और उसके नेता इस तरह ‘सीमित’ नहीं रहना चाहते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘इसके बढ़ते जनाधार का कारण मुख्य रूप से इसे मिला मुस्लिम समर्थन और संख्या में कम प्रभावी ओबीसी और एमबीसी (अत्यधिक पिछड़ा वर्ग) के वर्गों के बीच इसकी बढ़ती लोकप्रियता है.’
साल 2021 के तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में, वीसीके ने छह उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें से चार जीते थे. इनमें एक वन्नियार (एमबीसी) और एक मुस्लिम उम्मीदवार शामिल थे.
दामोदरन ने कहा, ‘हालांकि, पार्टी का बड़ा जनाधार दलित समुदाय के परैयार वर्ग से आता है.’
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‘सोशल मीडिया ने तोड़ दी हैं बाधाएं’
थिरुमावलवन ने कहा कि 23 साल से चुनाव लड़ने के उनके अनुभव में उन्होंने जो सबसे बड़ा बदलाव देखा है, वह सोशल मीडिया के रूप में आया है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘अस्पृश्यता, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं के खिलाफ अत्याचार सहित कई सामाजिक मुद्दों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था. मीडिया में इसकी कभी चर्चा ही नहीं की गई थी. लेकिन, सोशल मीडिया के विकसित होने के बाद ये सारी बाधाएं टूट गई हैं और यह इन अत्याचारों को खुलकर उजागर करती है. यह सब बहस के दायरे में आता है और राजनीतिक दलों को जवाबदेह ठहराया जाता है.‘
उन्हें लगता है कि इन बदलावों का दलित समुदाय पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है जैसे कि उन्हें राजनीतिक दलों द्वारा ‘मजबूरी’ से ही सही, पर महत्वपूर्ण पद दिए जा रहे हैं.
थिरुमावलवन कहते हैं, ‘हालांकि, सोशल मीडिया का जितना लोकतांत्रिक पक्ष है, उसी तरह उसने फासीवाद के प्रसार की भी अनुमति दी है. हिंदू राष्ट्रवाद को विकसित करने और युवाओं को जातिवाद के माध्यम से आकर्षित करने के लिए एक जगह है जो उन्हें सांप्रदायिकता की ओर ले जाती है. आरएसएस के लिए जाति के नाम पर हिंदू लोगों को बांटना काफी आसान हो गया है.‘
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