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Thursday, 25 April, 2024
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मतदान केंद्रों की ABC समझ रही बूथ स्तर की आर्मी- गुजरात में कैसे चल रहा है कांग्रेस का ‘साइलेंट’ कैंपेन

गुजरात में पिछले कुछ महीनों से पूर्व मंत्रियों समेत पड़ोसी राज्यों के कांग्रेस नेता चुपचाप पार्टी के लिए जमीनी स्तर पर समर्थन जुटाने के काम में जुटे हैं.

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अहमदाबाद/सूरत: कड़क सफेद कुर्ता पायजामा पहने संजय पटवा शुक्रवार शाम सूरत के अदजान स्थित कांग्रेस दफ्तर के बाहर प्लास्टिक कुर्सी पर काफी शांति के साथ बैठे नजर आए. उसी सुबह, पटवा ने सूरत पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से बतौर कांग्रेस प्रत्याशी अपना नामांकन भरा था. राज्य के कैबिनेट मंत्री पूर्णेश मोदी की यह सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है.

पहली बार विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा रहे पटवा ने दिप्रिंट को बताया, ‘इस समय अपनी पार्टी के अन्य उम्मीदवारों की तुलना में मैं थोड़ा कम तनावग्रस्त हूं.’ पटवा का कहना है, ‘सामान्यत: उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद मुझसे जिन कामों की उम्मीद की जाती थी, उनमें से बहुत से काम पहले ही किए जा चुके हैं.’

पिछले चार-छह महीनों से, गुजरात के पड़ोसी राज्यों राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के साथ-साथ छत्तीसगढ़ से भी कांग्रेस के विधायक, मौजूदा और पूर्व मंत्री चुपचाप गुजरात आ रहे हैं और कुछ दिन उन जिलों में बिता रहे हैं जिनकी जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई है, वे कुछ दिन रुकते हैं, अपना काम करते हैं और चुपचाप रवाना हो जाते हैं.

वे राज्य कांग्रेस नेताओं के साथ मिलकर पार्टी की पैदल-सेना तैयार करने, उन मतदान केंद्रों का पता लगाने जहां कांग्रेस कमजोर है, पार्टी सदस्यों संग सक्रिय ढंग से काम करने के लिए संबंधित क्षेत्रों के प्रभावित लोगों की पहचान करने के अलावा कांग्रेस के मतदाताओं के बीच डोर-टू-डोर कैंपेन चलाने में भी जुटे रहे हैं.

इन मंत्रियों, विधायकों और पदाधिकारियों की तरफ से जमीनी स्तर पर प्रचार, बूथ स्तर की नियुक्तियां और मतदान केंद्रों के अंकगणित पर काम करना दरअसल कांग्रेस के एक ‘साइलेंट कैंपेन’ का ही हिस्सा है. इसी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले माह राज्य में अपनी एक रैली के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कैडर को आगाह भी किया था.

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पार्टी सदस्य मानते हैं कि मूल विचार एक जमीनी कैडर तैयार करना रहा है, जो भाजपा के बहुचर्चित नेटवर्क यानी पन्ना प्रमुखों— मतदाता सूची के हर पन्ने के प्रभारी— और पन्ना समितियों की तरह काम कर सकें.

गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता हिरेन बैंकर ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले चुनाव (2017) में हम अपने संगठनात्मक ढांचे की तुलना में प्रचार अभियान पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे थे. हम अपने बूथ ढांचे पर उतने मजबूत नहीं थे लेकिन इस बार स्थिति एकदम अलग है.’

गुजरात कांग्रेस के एक अन्य नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘पहले ज्यादातर जगहों पर उम्मीदवार को ही जमीनी ढांचा तैयार करना होता था और बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को संगठित करना पड़ता था. इस बार हम प्रत्याशियों को एक पूरा सिस्टम मुहैया करा रहे हैं, उन्हें अपनी तरफ से इसे सिर्फ बढ़ाना ही है.’


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‘चुपचाप’ चला रहे अभियान

राजस्थान की प्रतापगढ़ सीट से विधायक रामलाल मीणा सूरत के बारडोली में डेरा डाले हैं. दो चरणों में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण में वहां मतदान होना और मीणा की योजना है कि 1 दिसंबर यानी मतदान के दिन तक वह वहीं पर रहेंगे. मौजूदा समय में इस सीट पर भाजपा का कब्जा है और चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक कांग्रेस उम्मीदवार को यहां 34,854 मतों के भारी अंतर से हार का सामना करना पड़ा था.

मीणा ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम यहां घर-घर जा रहे हैं, लोगों से पूछ रहे हैं कि वे क्या चाहते हैं कि कांग्रेस उनके लिए क्या करे. मैं राजस्थान की कांग्रेस सरकार की कुछ नीतियों के बारे में उनसे बात करता हूं और हम इस पर भी चर्चा कर रहे कि उन्हें गुजरात में कैसे लागू किया जा सकता है.’

इसके अलावा, उन्होंने यह भी बताया कि पार्टी कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस का संदेश फैलाने और लोगों को वोट देने के लिए लाने के उद्देश्य से हर बूथ पर 25 लोगों तक की एक टीम बनाई है.

कांग्रेस ने गुजरात के 26 लोकसभा क्षेत्रों में से प्रत्येक के लिए मीणा की तरह ही वरिष्ठ नेताओं— किसी बुजुर्ग नेता, मौजूदा या पूर्व मंत्री आदि— को नियुक्त किया है. कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में ऐसे दो कोऑर्डिनेटर बनाए गए हैं. पार्टी नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि हर बाहरी नेता के साथ गुजरात कांग्रेस का एक नेता जुड़ा है जो राज्य मशीनरी के साथ कोऑर्डिनेट करता है.

वे यहां आते हैं और फिर चुपचाप चले भी जाते हैं. नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस के उपरोक्त नेता ने कहा, ‘यहां तक, मीडिया को भी इसकी भनक तक नहीं लगती.’

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने इसी तरह गुजरात के सभी 182 विधानसभा क्षेत्रों में से प्रत्येक के लिए एक नेता की प्रतिनियुक्ति की है. सभी 182 नेताओं के पास गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी का एक सह-प्रभारी है.

उन्हीं कांग्रेस नेता ने कहा, ‘ये नेता जाकर जमीनी हालात का पता लगाते हैं. एंटी-इनकंबेंसी का स्तर क्या है, निर्वाचन क्षेत्र में क्या मुद्दे मायने रखते हैं, जातीय समीकरण और सोशल इंजीनियरिंग के लिहाज से क्या आवश्यकता है. यह फीडबैक सीधे हमारे क्षेत्रीय प्रभारियों के पास पहुंचा.’

कांग्रेस ने एआईसीसी पदाधिकारियों को क्षेत्रीय प्रभारी नियुक्त किया है—

गुजरात मध्य क्षेत्र के लिए उषा नायडू, दक्षिणी क्षेत्र में बी.एम. संदीप, सौराष्ट्र में रामकृष्ण ओझा और उत्तरी गुजरात के लिए वीरेंद्र सिंह राठौड़.

पार्टी नेताओं का कहना है कि इस पूरी कवायद से कांग्रेस को जीतने की क्षमता के आधार पर उम्मीदवारों का चयन करने में मदद मिली.


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कांग्रेस की बूथ स्तर वाली पैदल सेना

गुजरात युवा कांग्रेस के एक नेता ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘करीब छह महीने पहले जब हमने शुरुआत की, तो पहला काम बूथ वालंटियर की पहचान करना था. हमें मतदान की अंतिम तिथि तक काम करने के लिए पर्याप्त संख्या में प्रतिबद्ध लोगों को खोजना था. फिर उन्होंने बूथ वालंटियर को प्रशिक्षित करने के लिए मतदान केंद्रवार बैठकें शुरू कीं. हर मतदान केंद्र में पांच से दस बूथ होते हैं.’

उन्होंने बताया कि इसके तहत प्रत्येक बूथ के लिए एक पुरुष और एक महिला बूथ वालंटियर तैयार करना था और जिनमें से हर के नेतृत्व में 10 लोगों को रखना था. फिर हर मतदान केंद्र के लिए एक सेक्टर प्रभारी बनाया गया. इसके बाद जमीनी स्तर पर पार्टी नेताओं ने पांच मतदान केंद्रों के समूहों को जोन में संगठित किया और उसका एक जोनल प्रभारी नियुक्त किया गया.

भाजपा की ही तर्ज पर कांग्रेस ने भी जोन, मतदान केंद्रों और बूथों पर काम करने के लिए नियुक्त प्रत्येक वालंटियर का नाम, फोटो, पहचान दस्तावेज और संपर्क का पता आदि विवरण दर्ज किया है.

कांग्रेस के कई नेताओं ने यह भी बताया कि विधानसभा चुनावों में अपना वोट शेयर बढ़ाने के लिए पार्टी किस तरह से विशिष्ट मतदान केंद्रों पर ध्यान केंद्रित कर रही है. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, गुजरात में इसका वोट शेयर 2002 के बाद से पिछले चार विधानसभा चुनावों में लगभग 38 से 41 प्रतिशत के बीच रहा है, जबकि भाजपा का वोट शेयर 47 से 50 प्रतिशत रहा है.


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क्या है मतदान केंद्रों की ए,बी,सी

अपने वोट शेयर के आधार पर काम करने के लिए पार्टी ने हर निर्वाचन क्षेत्र में मतदान केंद्रों को ए, बी और सी कैटेगरी में रखा है.

ए श्रेणी के केंद्र वो हैं जहां कांग्रेस के लिए जीत लगभग तय ही है. बी श्रेणी के केंद्रों में कांग्रेस के लिए स्थिति टच-एंड-गो वाली हो सकती है या जिसे पार्टी परंपरागत रूप से मामूली अंतर से हारती रही है. और सी श्रेणी वाले केंद्र वो हैं जहां कांग्रेस भाजपा से काफी पीछे है और बड़े अंतर से हार के आसार हैं.

ऊपर उद्धृत युवा कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘हम ए कैटगरी वाले केंद्रों में मतदान बढ़ाने की कवायद में जुटे हैं. उदाहरण के तौर पर अगर वहां वोटिंग 60 फीसदी के आसपास होती है तो हम इसे 80 फीसदी तक लाना चाहेंगे. इसके अलावा हम बी श्रेणी के केंद्रों को ए और सी श्रेणी वालों को बी में बदलने की कोशिश कर रहे हैं.’

डोर-टू-डोर प्रचार के अलावा पार्टी नेता विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में अलग-अलग कैटगरी के हिसाब से स्थानीय फैक्टर और मुद्दों पर भी ध्यान दे रहे हैं और उसके मुताबिक अलग-अलग रणनीति भी बना रहे हैं.

कुछ जगहों पर, उन्होंने डॉक्टरों, वकीलों, शिक्षकों की मदद भी ली है, जो आम तौर पर स्थानीय स्तर पर प्रभावशाली साबित हो सकते हैं. कुछ अन्य स्थानों पर, खासकर शहरी क्षेत्रों में उन्होंने हाउसिंग सोसायटियों के संग नजदीकी बढ़ाई, और जहां कहीं किसी जाति का दबदबा है, वहां पर समुदाय के नेताओं के साथ संपर्क साधा गया.

उदाहरण के तौर पर, पटवा के सूरत पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं में विभिन्न हिंदू समुदायों की उप-जातियों की मिलीजुली आबादी है, जो व्यापक स्तर पर स्थानीय समूहों में रहते हैं. कांग्रेस उम्मीदवार ने कहा, ‘हमने यहां जातीय समीकरणों के आधार पर काम किया. हमने यहां सभी जातियों के नेताओं से संपर्क साधा, जो अपने समुदायों के अन्य सदस्यों को प्रभावित करने वाले साबित हो सकते हैं जिनमें जैन, पाटीदार, दलित आदि शामिल हैं.’

वह अपने निर्वाचन क्षेत्र को ‘डी कैटेगरी’ को रखते हैं, जहां भाजपा की जीत का अंतर 77,553 रहा था. यह अंतर इतना बड़ा है कि यदि कांग्रेस यहां अंतर ही कम कर ले तो उसके लिए खुशी की बात होगी.

पटवा ने कहा, ‘निश्चित तौर पर हमारा लक्ष्य जीतना ही है. लेकिन मेरे निर्वाचन क्षेत्र में 220 बूथों के लिए एक बूथ पर काम करने के लिए पांच लोग मिलना भी एक बड़ी बात थी.’

लेकिन एक कड़े मुकाबले के बावजूद पटवा ज्यादा विचलित नजर नहीं आते हैं.

उन्होंने कहा, ‘डोर-टू-डोर चुनाव प्रचार का एक दौर पहले ही हो चुका है. मेरा क्षेत्र के दौरे करना उन्हें मजबूती ही प्रदान करेगा.’

(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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