मुम्बई: एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर राज्य और केंद्र के बीच रस्साकसी से लेकर, एक न्यूज़ नेटवर्क के संस्थापक की गिरफ्तारी तक. उद्योगपति मुकेश अंबानी के मुम्बई आवास के बाहर कथित रूप से विस्फोटक रखने से, एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के राज्य के तत्कालीन गृह मंत्री खिलाफ रिश्वत के आरोप लगाने तक.
सत्तारूढ़ पार्टियों से जुड़े सदस्यों के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय की जांच शुरू होने से लेकर, राज्य सरकार के एक केंद्रीय मंत्री को गिरफ्तार कराने तक.
महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के दो साल में, केंद्र और राज्य की क़ानून प्रवर्तन एजेंसियां एक ओर सत्ताधारी शिवसेना, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस, तथा दूसरी ओर विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और अन्य के लिए, राजनीतिक अखाड़ा बनी रही हैं. केंद्रीय क़ानून प्रवर्तन एजेंसियां बीजेपी की केंद्र सरकार के अंतर्गत आती हैं.
ईडी ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से एमवीए पार्टियों से जुड़े कम से कम आधा दर्जन नेताओं के खिलाफ कुछ न कुछ कार्रवाई की है. इस बीच राज्य के गृह विभाग, और महाराष्ट्र पुलिस से जुड़ी ऐसी कई घटनाएं हुईं हैं जिनसे विवाद खड़े हुए हैं, जिनमें राजनीतिक आक़ाओं के अपने हित साधने, या फिर पहले से हिली हुई एमवीए सरकार को शर्मिंदा करने के लिए, क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों का इस्तेमाल करने की कोशिश पर, सवाल खड़े किए गए हैं.
हालांकि तीनों सहयोगियों के बीच हमेशा हर मुद्दे पर सहमति नहीं रही है, लेकिन असहमति की फुसफुसाहट कभी मुश्किल से ही खुली अनबन तक पहुंची है, और एमवीए कठिन मुद्दों के बीच से अपनी नाव खेता रहा है.
पूर्व महाराष्ट्र मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा, ‘ये सरकार स्थिर है. लोग हमें सत्ता में देखना चाहते हैं. बीजेपी की भी समझ में आ गया है, कि यहां पर ऑपरेशन कमल मुमकिन नहीं है, क्योंकि 105 (बीजेपी विधायकों की संख्या) और बहुमत के आंकड़े के बीच का अंतर काफी बड़ा है’.
राजनीतिक टीकाकार अभय देशपाण्डे ने दिप्रिंट से कहा, कि हालांकि महाराष्ट्र में गृह विभाग हमेशा फोस में रहा है, लेकिन पिछले दो वर्षों में वो राजनीतिक स्थिति की वजह से ख़बरों में ज़्यादा रहा है.
देशपाण्डे ने कहा, ‘जब ये सरकार बनी तो विपक्ष किसी ‘प्रतीक्षारत सरकार’ की तरह ज़्यादा बर्ताव कर रहा था. पिछले दो सालों में, उनकी (बीजेपी) समझ में आ गया है कि सरकार को हटाने के लिए उन्हें प्रयास करने होंगे’. उन्होंने आगे कहा, ‘केंद्रीय एजेंसियां महाराष्ट्र में बहुत सक्रिय हैं. इसलिए, एमवीए भी मौक़े का फायदा उठाकर पीड़ित होने का कार्ड खेल रही है, और राज्य के गृह विभाग के ज़रिए पलटवार कर रही है. लेकिन, अंत में ये सिर्फ हमले और जवाबी हमले हैं, जो धारणा का खेल जीतने के लिए किए जा रहे हैं.’
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‘सरकार व महाराष्ट्र के लिए बुरा प्रचार’
दिप्रिंट से बात करने वाले एक वरिष्ठ कांग्रेस पदाधिकारी ने, नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘बहुत से विवाद क़ानून व्यवस्था से जुड़े थे, ख़ासकर तीन मामले ऐसे थे जिनमें केंद्रीय एजेंसियां शामिल हो गईं थीं, जो चर्चा में छाए रहे. ये घटनाएं न सिर्फ राज्य सरकार बल्कि पूरे महाराष्ट्र के लिए एक बुरा प्रचार थीं.
कांग्रेस ने ये तीन विवाद इस तरह गिनाए:
• एक्टर राजपूत की मौत और फिल्म इंडस्ट्री में ड्रग्स के दुरुपयोग के खिलाफ, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की कार्रवाई.
• एंटिला विस्फोटक मामले में पूर्व मुम्बई पुलिस शार्पशूटर सचिन वाझे की भागीदारी और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा अब बर्ख़ास्त हो चुके कॉप की गिरफ्तारी, जिसके बाद पूर्व मुम्बई पुलिस प्रमुख परम बीर सिंह ने, तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ, जबरन वसूली रैकेट चलाने के आरोप लगाए.
• और आख़िर में, गोवा जा रहे एक क्रूज़ शिप में एक कथित रेव पार्टी पर, जिसमें एक्टर शाहरुख़ ख़ान का बेटा आर्यन ख़ान भी शरीक था, एनसीबी का छापा और उसके बाद, एनसीबी मंत्री तथा एनसीबी के बीच छिड़ी लड़ाई.
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘गृह विभाग के भीतर कर्मियों का चयन, ख़ासकर मुम्बई पुलिस आयुक्त (परम बीर सिंह) सबसे अच्छे उपलब्ध विकल्प नहीं थे. लेकिन उन्हें राजनीतिक कारणों के चलते चुना गया, जो स्पष्ट रूप से काम नहीं आया’.
एमवीए के सूत्रों ने बताया कि उद्धव ठाकरे, सिंह को मुम्बई पुलिस आयुक्त के पद पर बिठाने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन एनसीपी का तर्क था कि इस प्रतिष्ठित पद के लिए चयन का अधिकार उसे है, क्योंकि गृह विभाग उसके पास है. एंटी-करप्शन ब्यूरो (एसीबी) प्रमुख होने के नाते, सिंह ने सिंचाई घोटाला मामले में एनसीपी मंत्री अजित पवार को क्लीन चिट दी थी.
एक एनसीपी नेता ने कहा, ‘सीएम विवादों से दूर रहे हैं. उन्हें इन घटनाओं के बीच ज़्यादा सक्रिय होना चाहिए था. लेकिन उनका वो अंदाज़ नहीं है. वो सार्वजनिक रूप से इससे दूर रहे, और आलोचना किसी और को झेलनी पड़ी. इस सब के बीच आलोचनाओं के निशाने पर एनसीपी रही’.
विवाद पर सीएम की ख़ामोशी इस कारण ज़्यादा ख़राब नज़र आई, कि वाझे का एक शिवसेना कनेक्शन था. मुम्बई पुलिस बल से इस्तीफा देने के बाद (उसकी इस्तीफा स्वीकार नहीं हुआ था), 2008 में वो औपचारिक रूप से शिवसेना में शामिल हो गया था. ठाकरे ने भी सार्वजनिक रूप से वाझे का बचाव करते हुए कहा था कि ‘वो ओसामा नहीं हैं’, कि बीजेपी एंटिला केस में उसे निशाना बना रही है, हालांकि बाद में शिवसेना ने अब बर्ख़ास्त हो चुके पुलिसकर्मी से किनारा कर लिया है.
देशमुख ने आख़िरकार अप्रैल में इस्तीफा दे दिया, जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने सीबीआई को, सिंह द्वारा एनसीपी नेता के खिलाफ लगाए गए आरोपों की शुरूआती जांच के आदेश जारी कर दिए.
शिवसेना लीडर भास्कर जाधव ने दिप्रिंट से कहा, ‘उद्धव साहब का अंदाज़ ऐसा है कि वो ज़्यादा बात नहीं करते. जब वो महामारी को हैंडल कर रहे थे, तब भी केंद्रीय नेता लगातार राज्य सरकार की आलोचना करते थे, लेकिन उद्धव साहब ख़ुद पर क़ाबू रखते थे. इसलिए ऐसा नहीं है कि उन्होंने सिर्फ वाझे विवाद पर अपनी ज़बान नहीं खोली है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘इस बीच बीजेपी एमवीए सरकार को हटाने की भरसक कोशिश कर रही है, कभी परम बीर सिंह को उछालती है तो कभी सुशांत सिंह राजपूत को. वो केंद्रीय एजेंसियों का पूरा इस्तेमाल कर रही है, और राज्य सरकार को भी उसी भाषा में जवाब देने को मजबूर कर रही है.’
राजनीतिक लड़ाइयां
कोविड-19 महामारी की पहली लहर के बीच, बांद्रा टर्मिनस पर लोगों की भीड़, और अप्रैल 2020 में पालघर में लिंचिंग की घटना ने, बीजेपी को क़ानून व्यवस्था पर एमवीए पर हमले करने का मौक़ा दे दिया. लेकिन, केंद्र बनाम राज्य का असली संघर्ष पहली बार, राजपूत की मौत की जांच पर शुरू हुआ.
बीजेपी ज़ोर दे रही थी कि केस की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराई जाए, चूंकि उसका आरोप था कि राजपूत की मौत शायद एक हत्या थी. कुछ बीजेपी नेताओं ने तो सूबे के कैबिनेट मंत्री और सीएम के बेटे, आदित्य ठाकरे की संभावित संलिप्तता पर भी उंगली उठाई, जबकि एमवीए का आरोप था कि जांच के ज़रिए बीजेपी, तीन पार्टियों की सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रही थी.
इस शोर ग़ुल के बीच उद्धव ठाकरे की एमवीए सरकार ने, महाराष्ट्र में सरकार की अनुमति के बिना, मामलों की जांच करने की सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली.
राजपूत की मौत पर उठी राजनीतिक विवाद की गर्द अभी बैठी भी नहीं थी, कि पिछले साल अक्तूबर में राज्य के गृह विभाग ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया, जब मुम्बई पुलिस ने ऐलान किया कि वो टेलीवीज़न रेटिंग प्वॉइंट्स में कथित हेराफेरी की जांच कर रही है, जिसमें रिपब्लिक टीवी संस्थापक अर्णब गोस्वामी शामिल हैं.
उसी महीने मुम्बई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी के वरिष्ठ संपादकों, और न्यूज़रूम स्टाफ के खिलाफ एक और केस दायर कर दिया, जिन पर कथित रूप से पुलिस बल के सदस्यों के बीच ‘असंतोष भड़काने के प्रयास’ का आरोप लगाया गया था.
नवंबर में, महाराष्ट्र पुलिस ने 2018 में मुम्बई स्थित इंटीरियर डिज़ाइनर अनवय नायक की ख़ुदकुशी के मामले में कथित भूमिका के लिए, गोस्वामी को गिरफ्तार कर लिया. बीजेपी ने रिपब्लिक टीवी और गोस्वामी के खिलाफ दायर मामलों की तीखी आलोचना की, और कहा कि ‘विरोध के सुरों को दबाने के लिए’ एमवीए सरकार, इमरजेंसी दौर की मानसिकता के साथ काम कर रही है.
कुछ कांग्रेसी नेताओं ने भी अनौपचारिक रूप से दिप्रिंट से स्वीकार किया था, कि गोस्वामी के खिलाफ कार्रवाई बदले की भावना से की गई थी.
एक शिवसेना नेता ने नाम छिपाने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘आख़िरकार इस सरकार के अंदर पार्टियों की अपनी अलग विचारधाराएं हैं. कांग्रेस का अंदाज़ बहुत गांधीवादी है. वो खुलकर हमला करने, या चीज़ों से सीधे टकराना पसंद नहीं करती. इसके अलावा एक डर हमेशा ये भी रहता है, कि केंद्रीय एजेंसियां नाराज़ न हो जाएं, इसलिए एमवीए के बहुत से नेताओं ने, इन मुद्दों पर ख़ामोश रहना ही पसंद किया है’.
हमले और जवाबी हमले
पिछले दो वर्षों में, ईडी ने एमवीए से जुड़े कई नेताओं को समन जारी किए हैं, या उनकी संपत्तियों पर छापे मारे हैं, जैसे शिवसेना के अर्जुन खोटकर, भावना गावली, प्रताप सरनायक, आनंदराव अदसुल, अनिल परब, एनसीपी के एकनाथ खड़से, अनिल देशमुख और अजित पवार.
इसी साल सितंबर में, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने पत्रकारों से कहा, कि विरोधियों को दबाने के लिए केंद्र ईडी को मोहरा बना रहा है. इस पर बीजेपी के अपने नेता हर्षवर्धन पाटिल ने, जो 2019 में कांग्रेस छोड़कर आए थे, कहा कि बीजेपी में शामिल होने के बाद से, वो ‘चैन की नींद’ सो रहे हैं.
इस बीच शिवसेन सदस्यों की शिकायत पर महाराष्ट्र पुलिस ने, सोशल मीडिया पर एमवीए सरकार, मुख्यमंत्री ठाकरे, और उनके बेटे आदित्य ठाकरे की आलोचना करने के मामले में, कम से कम 10 एफआईआर दर्ज की हैं जिनमें 50 लोगों को नामज़द किया गया है. बीजेपी ने कार्रवाई आलोचना करते हुए कहा है, कि सरकार ‘विरोधियों को ख़ामोश करने के लिए अपनी ताक़त का दुरुपयोग कर रही है’.
इस साल मार्च में, जब एंटिला केस की जांच में कथित ख़ामियों को लेकर, एमवीए सरकार आलोचनाओं के घेरे में थी, तो राज्य सरकार ने दादरा व नगर हवेली से सात बार के सांसद, मोहन डेल्कर (उनकी मौत मुम्बई में हुई) की मौत की जांच के लिए, एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित कर दी. उससे पहले कांग्रेस ने इस मामले में बीजेपी की भूमिका की जांच की मांग की थी.
लगभग उसी समय, नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने एंटिला केस के संवेदनशील कॉल डेटा रिकॉर्ड्स के साथ, असेम्बली के अंदर एमवीए पर निशाना साधा, और बाद में आईपीएस अधिकारी रश्मि शुक्ला की एक ‘गोपनीय रिपोर्ट’ को लीक किया, जो पुलिस तबादलों और तैनातियों में भ्रष्टाचार के बारे में थी, और फड़णवीस ने दावा किया कि एमवीएम सरकार ने रिपोर्ट की अनदेखी की थी.
इसी साल अगस्त में, महाराष्ट्र पुलिस ने सीएम ठाकरे को थप्पड़ मारने की बात करने पर, केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को गिरफ्तार कर लिया. एमवीए के अंदर भी बहुत से लोगों के बीच फुसफुसाहट होने लगी, कि ये घटना शिवसेना का राजनीतिक एजेंडा थी, क्योंकि राणे का ठाकरे परिवार से दुश्मनी का इतिहास रहा है.
बीजेपी और एमवीए सरकार के बीच ताज़ा रस्साकसी, इसी महीने अमरावती की हिंसा को लेकर हुई, जब इस्लामी संगठन रज़ा अकैडमी ने त्रिपुरा की एक में, मस्जिद कथित तोड़फोड़ के विरोध में प्रदर्शन का ऐलान किया, जिसके बाद बीजेपी ने भी एक दिन के बंध का अह्वान किया. दोनों प्रदर्शनों के नतीजे में हिंसा हुई.
शिवसेना के जाधव ने कहा, ‘तीनों पार्टियों ने साथ मिलकर सरकार बनाई है, इसलिए नहीं कि उनमें एक दूसरे के प्रति बहुत प्यार है, बल्कि इसलिए कि ये हर पार्टी की ज़रूरत है. बीजेपी ये नहीं समझ रही कि केंद्रीय एजेंसियों की सहायता से, वो हमारे नेताओं को जितना ज़्यादा निशाना बनाएगी, उतना ही तीनों पार्टियां कसकर एक दूसरे के साथ चिपकेंगी’.
राजनीतिक विश्लेषक देशपांडे ने कहा कि दो साल के बाद आख़िरकार बीजेपी, ‘प्रतीक्षारत सरकार से एक विपक्ष में तब्दील हो रही है.’
उन्होंने कहा, ‘जब तक बीजेपी उनकी टांगें खींचती रहेगी, तब तक एमवीए सहयोगी हाथ में हाथ मिलाए रखेंगे’. उन्होंने कहा कि दो साल के बाद यही एक सबसे बड़ा निष्कर्ष है.
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