scorecardresearch
Friday, 1 November, 2024
होमराजनीतिअपने विधायकों का साथ और निर्दलीयों से ज्यादा नजदीकी—महा विकास अघाड़ी को राज्यसभा चुनाव से मिला सबक

अपने विधायकों का साथ और निर्दलीयों से ज्यादा नजदीकी—महा विकास अघाड़ी को राज्यसभा चुनाव से मिला सबक

शिवसेना नेता संजय राउत ने जहां हार के लिए निर्दलीय विधायकों को जिम्मेदार ठहराया है, वहीं एनसीपी नेता छगन भुजबल का कहना है कि एमवीए को निर्दलीय विधायकों के साथ नजदीकी बनाए रखने की जरूरत थी.

Text Size:

मुंबई: महाराष्ट्र में राज्यसभा की छठी सीट भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खाते में जाने के बाद महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के अंदर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है और शिवसेना ने कुछ निर्दलीय विधायकों पर अंगुली उठाने के साथ-साथ अपने सहयोगी दलों से भी आत्ममंथन करने को कहा है.

शिवसेना ने एमवीए की हार के लिए छह विधायकों—जो या तो निर्दलीय हैं या छोटे दलों के हैं—पर अंगुली उठाई है, पार्टी नेता संजय राउत ने आरोप लगाया कि वे हार्स-ट्रेडिंग के झांसे में आ गए.

राउत जिन नामों का जिक्र कर रहे हैं, उनमें हितेंद्र ठाकुर के नेतृत्व वाले बहुजन विकास अघाड़ी (बीवीए) के तीन विधायक, पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी विधायक श्यामसुंदर शिंदे, और निर्दलीय विधायक संजयमामा शिंदे और देवेंद्र भुयार शामिल हैं. यद्यपि भुयार, संजयमामा शिंदे और श्यामसुंदर शिंदे ने इन आरोपों का खंडन किया है, वहीं हितेंद्र ठाकुर का कहना है कि वह इस पर कोई सफाई नहीं देना चाहते.

इस बीच, एमवीए में शिवसेना के सहयोगियों कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेताओं को लगता है कि तीन-दलीय गठबंधन को बेहतर रणनीति बनानी चाहिए थी और निर्दलीय उम्मीदवारों को अधिक प्रभावी ढंग से साधना चाहिए था.

महाराष्ट्र में हाई-वोल्टेज राज्यसभा चुनाव में, एमवीए और भाजपा ने तीन-तीन सीटें जीती हैं. शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के पास अपने दम पर एक-एक उम्मीदवार चुनने की ताकत थी, जबकि भाजपा के पास दो को चुनने की क्षमता थी. हालांकि, शिवसेना ने अन्य एमवीए सहयोगियों और कुछ निर्दलीयों के सरप्लस वोटों के मद्देनजर दो उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जबकि भाजपा ने इस लड़ाई में एमवीए को सीधे तौर पर चुनौती देते हुए तीसरे उम्मीदवार को उतारा.

शनिवार तड़के तक चली मतगणना में शिवसेना के संजय पवार भाजपा के धनंजय महादिक से हार गए.

इस चुनाव में भाजपा और शिवसेना दोनों के लिए 13 निर्दलीयों और छोटे दलों के 16 विधायकों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी, जिनमें लगभग 17 ने भाजपा के पक्ष में वोट डाला.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि एमवीए को निर्दलीय और छोटे दलों के 29 में से 16 विधायकों के समर्थन की उम्मीद थी, लेकिन उनमें से ‘चार नदारत हो गए थे.’

उन्होंने कहा, ‘हम अभी यह पता लगा रहे हैं कि ये कौन से वोट थे.’

भाजपा विधायक आशीष शेलार ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारा होमवर्क काम आया, रणनीति भी मददगार रही और हम एमवीए के खेमे से वोट खींचने में सफल रहे. वे दावा कर रहे हैं कि उनके अधिकांश छोटे सहयोगियों ने उनके पक्ष में मतदान किया, लेकिन अगर उनमें हिम्मत है तो सार्वजनिक रूप से घोषित करें कि उनके मूल सहयोगियों ने कैसे मतदान किया, और वोटिंग पैटर्न का ब्योरा दें.’


यह भी पढ़ेंः ‘पहले कहीं कोई समस्या नहीं थी’; औरंगजेब के मकबरे के केयरटेकर ने कहा- ओवैसी के दौरे से तनाव भड़का 


गंवाए वोटों पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर

विपक्षी नेता देवेंद्र फडणवीस ने शनिवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में एमवीए पर तंज कसते हुए कहा, ‘नतीजा एक ही बात साबित करता है कि इस सरकार के तहत विधायकों में बहुत असंतोष है.’

गौरतलब है कि 2019 में इसे जब विश्वास मत मिला, तो तीन-दलीय गठबंधन को महाराष्ट्र विधानसभा में 170 विधायकों का समर्थन हासिल था, जिसमें 16 विधायक या तो छोटे दलों के थे या निर्दलीय थे. राज्यसभा चुनाव के लिए एमवीए को उन्हीं विधायकों का सहारा था.

हालांकि इस बार, एमवीए को अप्रत्याशित ढंग से ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के दो विधायकों का साथ मिला. 2019 के विश्वास मत के दौरान नदारत रहे इन विधायकों ने एमवीए उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान किया.

राज्यसभा चुनाव में जीत हासिल करने वाले शिवसेना के एकमात्र उम्मीदवार संजय राउत ने छठी सीट तीन-दलीय गठबंधन के खाते में न आने के लिए ‘खरीद-फरोख्त के शिकार विधायकों’ को जिम्मेदार ठहराया.

उन्होंने कहा, ‘वे बिक गए. इसके लिए ही बाजार में खड़े थे और शायद उन्हें अच्छी कीमत मिली होगी, या अन्य कारण भी हो सकते हैं लेकिन हमने निर्दलीयों के लगभग छह वोट गंवा दिए. ऐसे लोग किसी के प्रति वफादार नहीं होते हैं.’ साथ ही जोड़ा कि मुख्यमंत्री ठाकरे संजय पवार की हार से दुखी जरूर हैं लेकिन यह शिवसेना के लिए कोई बड़ा झटका नहीं है.

राउत ने आगे कहा कि एमवीए के पास निर्दलीय और छोटे दलों के विधायकों की एक सूची है जिन्होंने गठबंधन को अपनी जुबान दी थी और बाद में उससे पलट गए. उन्होंने कहा, ‘हम जानते हैं कि आप कौन हैं.’


यह भी पढ़ेंः औरंगाबाद या संभाजीनगर? काशी से दूर औरंगजेब की राजधानी में छिड़ी सांप्रदायिक राजनीति


एमवीए की ‘सूची’ में शामिल विधायक

एमवीए की इस ‘सूची’ में बहुजन विकास अघाड़ी के तीन विधायक हितेंद्र ठाकुर, उनके बेटे क्षितिज ठाकुर और राजेश पाटिल (क्रमशः वसई, नालासोपारा और बोइसर के विधायक) शामिल हैं. तीनों ने 2019 में विश्वास मत के दौरान एमवीए के पक्ष में मतदान किया था.

हितेंद्र ठाकुर ने दिप्रिंट से कहा, ‘जब लोग आपसे वोट मांगने आते हैं, तो आप उनके मुंह पर ना नहीं कहते. मैंने उनसे बातचीत की, उन्हें पूरा सम्मान दिया. वोट मांगना उनका अधिकार है, लेकिन आखिरकार किसे वोट देना है, यह फैसला तो मेरा होगा. मुझे पता है कि मैंने किसे वोट दिया है. मैं इसका खुलासा नहीं करना चाहता.’

हालांकि, एमवीए सूत्रों का कहना है कि उन्हें संदेह है कि ठाकुर पिता-पुत्र को ईडी से बचाने के लिए बहुजन विकास अघाड़ी विधायकों ने भाजपा का ही साथ दिया होगा. पिछले साल, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने यस बैंक से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच के सिलसिले में ठाकुर के चिरायु समूह की 34 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की थी.

एक अन्य विधायक जिसका नाम सूची में शामिल हो सकता है, वह है पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी के श्यामसुंदर शिंदे. नांदेड़ के लोहा से पहली बार विधायक बने शिंदे ने भी 2019 के विश्वास मत के दौरान एमवीए के पक्ष में मतदान किया था.

उन्होंने शनिवार को संवाददाताओं से कहा, ‘मैं एक एमवीए विधायक हूं. एनसीपी का सहयोगी सदस्य हूं. मुझे एक विशेष क्रम में वोट देने के लिए एमवीए से तीन नाम मिले थे और मैंने निर्देशों का पालन किया.’

शिंदे ने शिवसेना नेता पर तंज कसते हुए कहा, ‘यह एक गोपनीय वोट था. अगर संजय राउत को पता है कि हर किसी ने किसको वोट दिया तो उनके पास शायद महाभारत के संजय जैसी विशेष शक्तियां होंगी.’

इसके अलावा, एमवीए ‘सूची’ में एक संभावित नाम अमरावती के मोर्शी के विधायक देवेंद्र भुयार का है. भुयार ने 2019 में स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता था, और 2019 में एमवीए के पक्ष में मतदान करने वाले विधायकों में शामिल थे.

हालांकि, उनकी पार्टी ने इस साल के शुरू में मतभेदों के कारण उन्हें निष्कासित कर दिया था.

भुयार ने दिप्रिंट को बताया कि वह हमेशा से ही एमवीए के साथ रहे हैं और राउत की तरफ से अपनी छवि खराब किए जाने को लेकर जल्द ही एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से मिलने वाले हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं हमेशा एमवीए के साथ रहा हूं. मैं मंगलवार को ट्राइडेंट होटल में एमवीए के शक्ति प्रदर्शन में भी शामिल था. संजय राउत को कुछ संदेह है और उन्होंने मेरा नाम ऐसे उछाल दिया है, मानो कोई मौसम की भविष्यवाणी कर रहा हो.’

सोलापुर के करमाला से निर्दलीय विधायक संजयमामा शिंदे, जिन्होंने 2014 में एनसीपी छोड़ दी थी, भी एमवीए की ‘सूची’ में हो सकते हैं. वह कुछ समय के लिए स्वाभिमानी शेतकारी संगठन में शामिल हुए थे और 2014 के विधानसभा चुनाव में असफल रहे थे.

2019 में शिंदे ने निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा और एनसीपी के समर्थन से जीत हासिल की. इसके बाद उन्होंने 2019 के विश्वास मत के दौरान एमवीए का समर्थन किया.

संजयमामा शिंदे ने दिप्रिंट से कहा कि उन्होंने शनिवार को कुछ मराठी टेलीविजन चैनलों के सामने अपना रुख स्पष्ट कर दिया था. इसमें उन्होंने कहा था, ‘उद्धव ठाकरे से पूछा जाना चाहिए कि क्या मैं हार्स-ट्रेडिंग मार्केट में खड़ा था. 2019 में जब सरकार बन रही थी तब भी मुझे न जाने कितने ऑफर मिले थे, मैंने कितने स्वीकार किए? उनसे यह पूछा जाना चाहिए. मैं शिवसेना के अरविंद सावंत और अनिल देसाई के साथ वोट करने गया था और जैसा उन्होंने मुझे बताया मैंने वैसा ही किया. उन्होंने जो पेपर मुझे दिया था, मैंने उसे देखा तक नहीं था.’


यह भी पढ़ेंः डेडलाइन, एमनेस्टी, नए डेवलपर्स- मुंबई की अटकी हुई झुग्गियों के पुनर्विकास के लिए उद्धव सरकार की योजना


एमवीए के लिए सबक

नाम न छापने की शर्त पर एनसीपी के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट से कहा कि ‘फ्लोर मैनेजमेंट’ और अधिक बेहतर होना चाहिए था और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को निर्दलीय विधायकों को अपने साथ रखने को लेकर अधिक सजग होना चाहिए था.

एनसीपी नेता ने कहा, ‘जबकि, सामान्य तौर पर एमवीए ने हार मान ली है, हालांकि यह विशेष तौर पर शिवसेना की हार है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अपने करीबी सहयोगियों के माध्यम से निर्दलीयों को ज्यादा बेहतर ढंग से साधना चाहिए था और उनका समर्थन मिलना सुनिश्चित करना चाहिए था. आखिर प्रत्याशी तो शिवसेना का था. गठबंधन सहयोगी के रूप में हमारी भूमिका शिवसेना के समर्थन की थी, जो हमने पूरी तरह निभाई.’

उधर, एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि चुनाव नतीजे बताते हैं कि एमवीए लगभग उतना ही मजबूत है जितना विश्वास मत के दौरान था, लेकिन तीनों दलों को अपने विधायकों के साथ बेहतर तालमेल बनाने और निर्दलीयों के साथ करीबी बढ़ाना सीखना होगा.

भुजबल ने कहा, ‘यह चुनाव थोड़ा जटिल है. किसी की रणनीति काम कर सकती है; किसी की गलत साबित हो सकती है. हमारी रणनीति पहले दौर में चारों उम्मीदवारों को निर्वाचित कराने की थी, जो काम नहीं आई. 170 विधायकों के समर्थन से एमवीए का गठन किया गया था, लेकिन इस बार हमें 170 के बजाये 180 का साथ पाने का लक्ष्य रखना चाहिए था.’

उन्होंने आगे कहा, ‘तीनों दलों को समझना चाहिए कि हमें अतिरिक्त (निर्दलीय) विधायकों के साथ नजदीकी बढ़ाने की जरूरत है. हमें इसका भी ध्यान रखना होगा कि हमारे विधायक निराश न हों. हमें इस धारणा के साथ काम करना चाहिए कि किसी भी पार्टी का एमवीए विधायक हमारी पार्टी के विधायक की तरह है. हम सभी ने यह सबक सीखा है और हमें अब से इस पर और ध्यान देना चाहिए.’

भुजबल शायद एमवीए के तीनों दलों के विधायकों, खासकर कांग्रेस विधायकों की तरफ से पर्याप्त फंड न मिलन को लेकर कई बार जताई गई नाराजगी का जिक्र कर रहे थे.

वहीं, अपना नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने संजय पवार वाली सीट पर हार के पीछे ‘एमवीए के भीतर रणनीति के अभाव और अति आत्मविश्वास’ को जिम्मेदार ठहराया.

उन्होंने कहा, ‘हमने जो योजना बनाई थी, उससे कांग्रेस प्रत्याशी इमरान प्रतापगढ़ी को दो अतिरिक्त वोट मिले और इसी तरह एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल को एक अतिरिक्त वोट मिला. हमें नहीं पता कि ये वोट कहां से आए. यह आत्मनिरीक्षण का मामला है.’

कांग्रेस नेता और राज्य मंत्री बालासाहेब थोराट ने शनिवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि हार की वजह किसी विधायक का मुख्यमंत्री से असंतुष्ट होना है. लेकिन हम अपने गणित में कहीं गलत रह गए। हमें आत्मनिरीक्षण करना होगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः BJP कैसे राज्यसभा और महाराष्ट्र MLC चुनावों का इस्तेमाल ‘एमवीए में दरार’ सामने लाने के लिए कर रही है


 

share & View comments