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Thursday, 28 March, 2024
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इतने सारे पूर्व CMs लेकिन प्रचार से गायब- उत्तराखंड की चुनावी गतिविधियों में सक्रिय क्यों नहीं BJP के पुराने नेता

उत्तराखंड में नेतृत्व संकट के बीच भाजपा ने पिछले साल चार महीनों में दो बार राज्य के मुख्यमंत्री बदले थे और यह इस बार एक चुनावी मुद्दा बनकर उभरा है. ऐसे में सत्तारूढ़ दल भाजपा की पूरी कोशिश है कि धामी के पूर्ववर्ती इस चुनाव में उन पर ज्यादा भारी न पड़ जाएं.

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उत्तराखंड: उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कड़ी चुनौतियों का सामना करती नज़र आ रही है. इसकी एक वजह यह भी है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी— जिनसे राजनीति के गुर सीखने वाले पुष्कर सिंह धामी ने पिछले वर्ष जुलाई में राज्य के 10वें मुख्यमंत्री के रूप में कुर्सी संभाली थी— को छोड़कर भाजपा के कम से कम आधा दर्जन पूर्व मुख्यमंत्री चुनावी सक्रियता के लिए मौके का इंतजार कर रहे हैं.

उत्तराखंड में नेतृत्व संकट के बीच भाजपा ने पिछले साल चार महीनों में दो बार राज्य के मुख्यमंत्री बदले थे और यह इस बार एक चुनावी मुद्दा बनकर उभरा है. ऐसे में सत्तारूढ़ दल भाजपा की पूरी कोशिश है कि धामी के पूर्ववर्ती इस चुनाव में उन पर ज्यादा भारी न पड़ जाएं.

यही वजह है कि ये सभी पूर्व सीएम भाजपा के प्रचार अभियान से काफी हद तक नदारत हैं, उम्मीदवारों की तरफ से इन्हें प्रचार के लिए आमंत्रित नहीं किया जा रहा और न ही पार्टी के सोशल मीडिया अभियान में इन्हें कोई खास जगह मिल रही है. उन्होंने खुद को अपने निर्वाचन क्षेत्रों तक सीमित कर लिया है और व्यापक स्तर पर सक्रिय चुनाव प्रचार का हिस्सा नहीं बन रहे हैं.

भाजपा के एक पदाधिकारी के मुताबिक, कोशिश यह है कि सारा ध्यान पूरी तरह मुख्यमंत्री धामी पर केंद्रित रहे और किसी अन्य को बहुत ज्यादा तवज्जो न दी जाए. वहीं, कुछ अन्य भाजपा नेताओं का यह भी दावा है कि अधिकांश उम्मीदवार स्टार प्रचारकों की आधिकारिक सूची में शामिल होने के बावजूद इन नेताओं को अपने प्रचार के लिए बुलाने के इच्छुक नज़र नहीं आ रहे हैं.

A Modi-Dhami BJP poster graces the Mussoorie-Dehradun road | Photo: Suraj Singh Bisht | ThePrint
मसूरी-देहरादून रोड पर लगा मोदी-धामी का पोस्टर | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

पार्टी के एक सूत्र ने कहा, ‘उत्तराखंड में 70 सीटें हैं और पूर्व मुख्यमंत्री इनमें से 10 में भी प्रचार नहीं कर रहे हैं.’

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त्रिवेंद्र सिंह रावत

पिछले साल मार्च में राज्य के मुख्यमंत्री पद से हटा दिए गए त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भाजपा केंद्रीय नेतृत्व से उन्हें विधानसभा चुनाव में न उतारने का आग्रह किया था. उन्होंने यह भी कहा था कि वह यह सुनिश्चित करने में समय देना चाहते हैं कि धामी के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में लौटे.

इसके बाद से उन्होंने खुद को प्रचार तक सीमित कर लिया है, खासकर डोईवाला सीट तक, जहां से वह अभी तक विधानसभा सदस्य रहे हैं और इस बार बृज भूषण गैरोला चुनाव लड़ रहे हैं.

दिप्रिंट ने उत्तराखंड दौरे के दौरान पाया कि रावत ने डोईवाला विधानसभा क्षेत्र में कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है, जो कि देहरादून और ऋषिकेश से सटा हुआ इलाका है.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘वह जो दिखाना चाहते हैं, उसके विपरीत वास्तविकता यह है कि रावत को चुनाव नहीं लड़ने को कहा गया था और पार्टी चाहती है कि केवल धामी पर फोकस किया जाए. वह अपने करीबियों को टिकट दिलाने में कामयाब रहे हैं और अपना ज्यादातर समय उनके लिए घर-घर प्रचार करने और नुक्कड़ सभाओं में हिस्सा लेने में बिता रहे हैं. दरअसल, उन्हें राज्य के अन्य हिस्सों में प्रचार करने के लिए आमंत्रित ही नहीं किया जा रहा है.’

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि रावत को कुछ उम्मीदवारों ने अपने प्रचार के लिए आमंत्रित किया था. उन्होंने श्रीनगर सीट पर प्रचार किया, जहां से उनके पूर्व कैबिनेट सहयोगी धन सिंह रावत दूसरी बार जीत के लिए मैदान में हैं.

इसके अलावा, रावत ने देहरादून जिले की देहरादून कैंट, राजपुर रोड और सहसपुर विधानसभा सीटों और हरिद्वार जिले के रानीपुर और हरिद्वार शहरी विधानसभा क्षेत्रों में भी कुछ चुनावी सभाओं को संबोधित किया हैं. वहीं, लैंसडाउन, कर्णप्रयाग और विकासनगर क्षेत्रों में वर्चुअल बैठकों के दौरान उनका संबोधन हुआ है.

हालांकि, त्रिवेंद्र रावत ने चुनाव प्रचार से अपनी गैर-मौजूदगी के मुद्दे को कोई खास तवज्जो नहीं दी. पूर्व मुख्यमंत्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुख्य तौर पर लगातार खराब मौसम और कोविड महामारी के मद्देनजर चुनाव आयोग की पाबंदियों के कारण हम सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों के दौरे में असमर्थ रहे हैं. लेकिन चुनाव के लिए बचे समय में अधिक से अधिक क्षेत्रों को कवर करने का प्रयास किया जा रहा है.’


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तीरथ सिंह रावत, निशंक और खंडूरी

तीरथ सिंह रावत, जिन्हें त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह लेने के महज चार महीने के भीतर ही धामी के लिए कुर्सी छोड़नी पड़ी थी, गढ़वाल सीट से भाजपा सांसद हैं. वह केवल अपने निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.

अपना नाम न छापने की शर्त पर पार्टी के एक नेता ने कहा, ‘तीरथ सिंह रावत सिर्फ अपने संसदीय क्षेत्र में छोटी-छोटी सभाएं और अन्य चुनावी कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं. इस बार कोई चुनाव प्रबंधन ठीक से नहीं संभाला गया है और इसलिए उन्हें (वरिष्ठ नेताओं को) इसमें शामिल नहीं किया गया है और उन्होंने खुद को अपने क्षेत्रों तक ही सीमित कर रखा है.’

उन्होंने कहा, ‘प्रचार सामग्री में भी वरिष्ठ नेताओं और पूर्व मुख्यमंत्रियों को पहले स्थान दिया गया था लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. पूरा फोकस सिर्फ मुख्यमंत्री धामी पर है.’

भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि यह पहली बार है कि वरिष्ठ नेताओं को चुनाव प्रचार में पर्याप्त जगह नहीं मिली है. एक नेता ने कहा, ‘अगर आप आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर नज़र डालें तो आपको शायद ही पूर्व मुख्यमंत्रियों से संबंधित ट्वीट नजर आएं.’

रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ उत्तराखंड के एक और पूर्व मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें पिछले साल जुलाई में केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था. माना जा रहा कि उन्हें फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलने की उम्मीद थी. लेकिन पहले यह जिम्मेदारी तीरथ सिंह और फिर धामी को सौंपी गई.

निशंक हरिद्वार संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऊपर उद्धृत एक अनाम भाजपा नेता ने कहा, ‘उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र के तहत आने वाले रानीपुर और धर्मपुर जैसे विधानसभा क्षेत्रों के लिए चुनाव प्रचार किया है. हालांकि, चुनाव प्रचार में ज्यादा नज़र न आने का एक कारण यह भी है कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा है.’

BJP puts up a Vinod Chamoli poster in Dharampur | Photo: Suraj Singh Bisht | ThePrint
उत्तराखंड में लगे चुनावी पोस्टर में कुछ में ही पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल की फोटो है | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

पार्टी के एक अन्य नेता ने दिप्रिंट को बताया कि एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री बी.सी. खंडूरी अपने खराब स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र के कारण चुनाव प्रचार में ज्यादा सक्रिय नहीं रहे हैं.

हालांकि, उनकी बेटी और कोटद्वार से भाजपा उम्मीदवार रितु खंडूरी के 12 फरवरी को चुनाव प्रचार समाप्त होने से पहले कुछ बैठकों में हिस्सा लेने की उम्मीद है.

यही हाल खंडूरी के उत्तराधिकारी रहे विजय बहुगुणा का भी है, जो अपना ज्यादातर समय सितारगंज में बिता रहे हैं, जहां से भाजपा ने उनके बेटे सौरव बहुगुणा को दूसरी बार मैदान में उतारा है. विजय बहुगुणा ने नानकमत्ता निर्वाचन क्षेत्र में भी पार्टी उम्मीदवार के समर्थन में एक जनसभा को संबोधित किया था.


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एक मुश्किल लक्ष्य

भाजपा ने 70 सदस्यीय विधानसभा में ‘अबकी बार 60 पार’ का नारा दिया है लेकिन पार्टी से ही जुड़े तमाम लोग निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि स्पष्ट बहुमत पाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है. उन्होंने इस ओर भी ध्यान आकृष्ट किया कि 2022 के चुनाव पार्टी के बजाये निजी तौर पर उम्मीदवारों के लिए चुनावी प्रतिस्पर्धा बने हुए हैं.

उत्तराखंड में 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 57 सीटों के साथ भारी बहुमत से जीत हासिल की थी. लेकिन इस बार आंतरिक कलह पार्टी के लिए एक बड़ा सिरदर्द बनी हुई है.

एक अन्य नेता ने कहा, ‘पिछली बार एक लहर थी. मोदी के नाम पर कच्चे खिलाड़ी भी जीत गए थे. इस बार भी हम ब्रांड मोदी को हाइलाइट कर रहे हैं. लेकिन लोगों ने मोदी और राज्य के चुनावों के बीच अंतर मानना शुरू कर दिया है. फिर भी हमें उम्मीद है कि मोदी सरकार के कामकाज खासकर महामारी के दौरान किए गए कल्याण कार्यों की वजह से इन चुनावों में मदद मिलेगी.’

भाजपा में नेतृत्व का संकट एक ऐसा मुद्दा रहा है जिसे कांग्रेस इस चुनाव में काफी मुखरता से उठाती रही है. पिछले साल मार्च में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने करीब चार साल बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि उनके ‘उदासीन नेतृत्व’ और राज्य प्रशासन पर नियंत्रण के अभाव को लेकर भाजपा नेतृत्व पर उन्हें हटाने के लिए दबाव बढ़ रहा था.

पार्टी में तमाम लोगों को आशंका थी कि इससे 2022 के चुनावों में भाजपा की संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं. वहीं उनकी जगह लेने वाले तीरथ सिंह रावत को मात्र चार महीने के संक्षिप्त कार्यकाल के बाद ही पद छोड़ना पड़ा. लोकसभा सांसद रहते मुख्यमंत्री बनाए गए तीरथ रावत को इस पद पर बने रखने के लिए 10 सितंबर 2021 से पहले राज्य विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी था.

इसके बाद भाजपा ने 46 वर्षीय धामी को यह जिम्मेदारी सौंपी, जिन्हें मुख्यमंत्री बनने से पहले कभी मंत्री का पद संभालने का अनुभव नहीं था.

एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘स्थिति से पूरी तरह अवगत केंद्रीय नेतृत्व ने ही यह सुनिश्चित किया कि त्रिवेंद्र सिंह रावत व अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों को मैदान में न उतारा जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि एक बार हम जीत गए, तो पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता कोई दावा नहीं कर पाएंगे.’

हालांकि, पार्टी की राज्य इकाई के कुछ लोगों को लगता है कि जिन पूर्व मुख्यमंत्रियों को दरकिनार किया गया है, वे असल में पार्टी के हितों को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

एक अन्य नेता ने कहा, ‘अभी एकजुट होकर चुनाव लड़ने का समय है. लेकिन इतने सारे कैंप बन गए हैं कि उन्हें संभालना ही अपने आप में एक बड़ा काम है. वे विरोधाभासी बयान दे देते हैं जिससे पार्टी के लिए असहज स्थिति उत्पन्न हो जाती है. फिर भी हम बेहतर स्थिति में हैं और बहुमत हासिल कर लेने के प्रति आश्वस्त हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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