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Thursday, 19 December, 2024
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पहले चिंतन शिविर से नदारद रहे, फिर पार्टी छोड़ी: कपिल सिब्बल के कांग्रेस छोड़ने के पीछे की कहानी

पूर्व केंद्रीय मंत्री, जिन्होंने चिंतन शिविर में हिस्सा नहीं लिया था, 16 मई को कांग्रेस को भी अलविदा कह दिया. जी-23 नेताओं में से एक कपिल सिब्बल 2020 से कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ आवाज़ उठाते रहे हैं.

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नई दिल्ली: पूर्व कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल की कांग्रेस से विदाई, पार्टी का चिंतन शिविर आयोजित किए जाने से पहले ही तय हो गई थी, जिसमें सुधार का वादा किया गया था. दिप्रिंट को यह पता चला है.

पूर्व केंद्रीय मंत्री ‘जी-23’ का हिस्सा थे, जो नाम उन 23 असंतुष्ट कांग्रेस मतविरोधियों को दिया गया था जिन्होंने सबसे पहले पार्टी के पुनर्गठन की मांग उठाई थी, हालांकि उसके बाद से ये संख्या बदल गई है. 13 मई से 15 मई के बीच पार्टी के उदयपुर सत्र से गैर-हाज़िर रहने के बाद बुधवार को सिब्बल ने ऐलान कर दिया कि उन्होंने 16 मई को पार्टी छोड़ दी थी.

उसी समय उन्होंने एक निर्दलीय उम्मीदवार के नाते लखनऊ से राज्य सभा के लिए समाजवादी पार्टी (एसपी) के समर्थन से अपना नामांकन दाखिल कर दिया.

सिब्बल ने, जिनका बतौर राज्य सभा सदस्य जुलाई में कार्यकाल खत्म हो रहा है, लखनऊ में पत्रकारों को बताया, ‘मैंने एक निर्दलीय के नाते अपना नामांकन दाखिल किया है. मैं (एसपी प्रमुख) अखिलेश जी का मुझे समर्थन देने के लिए आभार प्रकट करता हूं. 16 मई को मैंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था और अब मैं कांग्रेस नेता नहीं हूं’.

जी-23 के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि चिंतन शिविर से पहले उन्होंने ब्लॉक के कुछ नेताओं से मुलाकात की और उन्हें विश्वास में लेकर पार्टी छोड़ने के अपने फैसले के बारे में बताया था. नेता ने कहा कि सिब्बल को लगता था कि ग्रुप के पार्टी में बड़े बदलाव किए जाने की मांग के दो साल बाद भी, ‘चीज़ें आगे नहीं बढ़ रहीं थीं’ और बीजेपी के खिलाफ अलग से लड़ाई छेड़ने की जरूरत थी.

दिप्रिंट को ये भी पता चला है कि 15 अप्रैल से सिब्बल आधिकारिक रूप से कांग्रेस के ‘सदस्य’ नहीं रहे थे क्योंकि उन्होंने उस सदस्यता अभियान में अपना पंजीकरण नहीं कराया था जो उस दिन खत्म हुआ था. लेकिन पार्टी सूत्रों ने बताया कि अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करने के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा पेश कर दिया था.

दिप्रिंट ने फोन कॉल्स और लिखित संदेशों के जरिए सिब्बल से टिप्पणी लेने के लिए संपर्क किया लेकिन इस रिपोर्ट के छपने तक उनकी प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

हालांकि जाने माने वकील सिब्बल ने पार्टी से अपनी विदाई का ऐलान अब जाकर किया है लेकिन पार्टी नेतृत्व से उनके मतभेद 2020 में शुरू हो गए थे और वो मतभेद लगातार बने हुए हैं.


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‘जी हुज़ूर 23 नहीं’

2020 में कांग्रेस के 23 नेताओं के एक समूह ने अंतरिम पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र लिखकर, 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की करारी हार के बाद संगठन में आमूलचूल परिवर्तन और मज़बूत नेतृत्व की मांग की थी. 2014 के बाद ये कांग्रेस की लगातार दूसरी हार थी.

उस समूह में सिब्बल के अलावा गुलाम नबी आज़ाद, शशि थरूर, मुकुल वासनिक, पृथ्वीराज चव्हाण और भूपिंदर सिंह हुड्डा जैसे कई कद्दावर कांग्रेसी नेता शामिल थे.

उसके बाद से ग्रुप के आकार में बदलाव आया है- कई लोग उससे अलग हो गए हैं, जितिन प्रसाद पार्टी छोड़कर जा चुके हैं और मणि शंकर अय्यर जैसे कुछ और नाम साथ आ रहे हैं. इस बीच ग्रुप के कुछ दूसरे सदस्यों को आहिस्सा आहिस्ता पार्टी के अंदर हाशिए पर पहुंचा दिया गया है.

लेकिन नेतृत्व के प्रति सिब्बल के रुख में पिछले दो वर्षों में न सिर्फ कोई बदलाव आया, बल्कि उनका स्वर और मुखर हुआ है और उन्होंने एक अधिक ‘सक्रिय और स्पष्ट नेतृत्व’ की मांग उठाई है.

अगस्त 2021 में, अपनी 73वीं सालगिरह पर सिब्बल ने बहुत सारे विपक्षी नेताओं को अपने घर ज़ाहिरी तौर पर जन्मदिन के डिनर पर बुलाया था.

डिनर पर बातचीत में- जिसमें एनसीपी प्रमुख शरद पवार, शिवसेना के संजय राउत, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओब्रायन, और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला आदि नेताओं ने शिरकत की और कांग्रेस को मज़बूत करने और विपक्षी पार्टियों के एकजुट होने की जरूरत पर चर्चा की गई.

उस समय खबर दी गई थी कि डिनर पर गांधी परिवार तथा उनके नेतृत्व का सवाल भी उठाया गया था- जिस कदम को पार्टी में पसंद नहीं किया गया था.

सितंबर 2021 में, पंजाब विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले, जब मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद कांग्रेस की पंजाब इकाई राजनीतिक संकट में घिरी हुई थी, तो सिब्बल ने एक बार फिर पार्टी नेतृत्व पर निशाना साधा था: इस बार उन्होंने खुलकर ऐसा किया था.

सिब्बल ने प्रेस को बताया कि जी-23 ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर, पंजाब के घटनाक्रम पर चर्चा के लिए पार्टी की निर्णय लेने वाली सर्वोच्च इकाई- कांग्रेस कार्यकारिणी समिति (सीडब्लूसी) की तत्काल बैठक बुलाने का अनुरोध किया था.

उन्होंने ये भी कहा कि चूंकि कांग्रेस में कोई ‘अध्यक्ष नहीं’ था, इसलिए ये स्पष्ट नहीं था कि पार्टी के लिए कौन फैसले ले रहा था. उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि असंतुष्टों का ग्रुप बोलना बंद नहीं करेगा.

जी-23 पर शब्दों से खेलते हुए सिब्बल ने कहा, ‘हम लोग ‘जी हुज़ूर 23’ नहीं हैं.


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‘गांधी परिवार को अलग हट जाना चाहिए’

गांधी परिवार पर सिब्बल का अगला सार्वजनिक हमला मार्च 2022 में सामने आया, जब कांग्रेस का उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधान सभा चुनावों में निराशाजनक प्रदर्शन रहा.

सिब्बल की टिप्पणी से पहले पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा के लिए कांग्रेस सीडब्ल्यूसी की बैठक बुलाई गई थी. इसी बैठक में जो साढ़े चार घंटे तक चली, चिंतन शिविर का विचार सामने रखा गया और उसे मंजूरी मिल गई. इसी बैठक में ही सीडब्ल्यूसी ने कहा कि वो सोनिया गांधी के नेतृत्व में ‘एकमत से अपनी आस्था की फिर से पुष्टि करती है’.

मीटिंग के कुछ घंटों के बाद, सिब्बल ने प्रेस से कहा कि गांधी परिवार को ‘नेतृत्व से अलग हो जाना चाहिए’, ताकि दूसरे लोगों को एक मौका मिल सके. उन्होंने आगे यहां तक कहा कि अगर वो पिछले आठ सालों में पार्टी के पतन को नहीं देख सका, तो इससे जाहिर है कि नेतृत्व किसी ‘कल्पना लोक’ में रह रहा है.

लेकिन, जल्द ही सिब्बल अकेले पड़ गए जब साथी जी-23 सदस्यों ने उनसे दूरी बनाली- ग़ुलाम नबी आज़ाद ये आश्वासन देने के लिए सोनिया गांधी से मिलने तक चले गए कि इसपर कोई सवाल ही नहीं है कि उन्हें कांग्रेस प्रमुख बने रहना चाहिए.

उसी समय आज़ाद और जी-23 के दूसरे नेताओं ने मांग उठाई कि पार्टी सीडब्ल्यूसी चुनावों का ऐलान कर सकती है, केंद्रीय चुनाव समिति को- जो पार्टी में चुनावों का प्रबंधन करती है- एक चुनी हुई इकाई बना सकती है और पार्टी के निष्क्रिय पड़े संसदीय बोर्ड को फिर से जीवित करके सुनिश्चित कर सकती है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया सामूहिक हो.

ये मांगें अभी तक पूरी नहीं की गईं हैं, इसके बावजूद कि जी-23 के कई नेता उदयपुर के चिंतन सत्र में शरीक हुए थे और उन्हें सोनिया गांधी की सलाहकार समिति तथा 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए नवगठित टास्क फोर्स में भी शामिल किया गया.

चूंकि उन्हें एक निर्दलीय उम्मीदवार के नाते राज्य सभा के लिए मनोनीत किया गया है, इसलिए नियम कहते हैं कि अगर सिब्बल किसी पार्टी में शामिल होते हैं, तो उन्हें इस्तीफा देना होगा.

फिलहाल के लिए उनका कहना है कि किसी भी पार्टी से बाहर रहने के उनके फैसले में जल्दी से कोई बदलाव नहीं होगा.

 (इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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