नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के नक्शेकदम पर चलते हुए गुरुवार को मध्य प्रदेश ने भी संपत्ति की तोड़फोड़ करने पर प्रदर्शनकारियों से वसूली के संबंध में और ज्यादा सख्त कानून पारित कर दिया.
मध्य प्रदेश विधानसभा ने सार्वजनिक और निजी संपत्ति को क्षति की रोकथाम और क्षति की भरपाई विधेयक 2021 बिना किसी चर्चा के ध्वनि मत से पारित कर दिया.
इसके तहत यदि 15 दिन के भीतर भरपाई (क्षतिग्रस्त संपत्ति की लागत के बराबर) नहीं की जाती तो इसके लिए प्रस्तावित दावा न्याधिकरण को क्षति की कुल लागत की दोगुनी राशि, ब्याज सहित वसूलने का अधिकार होगा. उत्तर प्रदेश में लागू इसी तरह के कानून के तहत केवल नुकसान की वास्तविक लागत की वसूली का ही प्रावधान किया गया है.
मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने विधानसभा में कहा कि इस कानून का इस्तेमाल ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए होगा जो जुलूस, दंगे, विरोध प्रदर्शनों, सांप्रदायिक दंगों या बंद और आंदोलन में शामिल होने के दौरान निजी या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं.
उन्होंने कहा कि कानून का इस्तेमाल विस्फोटकों का इस्तेमाल करने वाला अपराधियों और तमाम तरह के ‘माफिया’—जुआ, शराब, जमीन, जंगल और खनन से जुड़े लोगों के खिलाफ कार्रवाई के लिए भी किया जाएगा.
मार्च में उत्तर प्रदेश विधानसभा ने सार्वजनिक और निजी संपत्ति की क्षतिपूर्ति संबंधी विधेयक और उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण (संशोधन) विधेयक, 2021 पारित किया था.
इन दोनों कानूनों के तहत राज्य में कई गैंगस्टरों की संपत्तियों को कुर्क किया गया, और सीएए के विरोध प्रदर्शनों के दौरान आंदोलन करने वालों समेत तमाम प्रदर्शनकारियों से नुकसान की वसूली की गई.
मध्य प्रदेश में यह कानून पारित होना— जो कि कई मायने में यूपी के कानून से अधिक सख्त है— एक बार फिर दर्शाता है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक ‘विनम्र, उदार’ राजनेता की अपनी छवि बदलने और एक सख्त प्रशासक वाली छवि कायम करने की कोशिश कर रहे हैं.
चाहे आदिवासी या हिंदुत्व के प्रतीकों के नाम पर रेलवे स्टेशनों का नामकरण हो, धर्मांतरण विरोधी मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता विधेयक पारित करना, या राज्य में कथित तौर पर ईसाइयों का उत्पीड़न करने वाले बजरंग दल जैसे हिंदुत्व समूहों पर नरम रुख अपनाना, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चार बार मुख्यमंत्री रहे शिवराज अपनी छवि बदलने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं.
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मध्य प्रदेश का बिल यूपी से अलग
उत्तर प्रदेश के उलट मध्य प्रदेश में पारित बिल के तहत जिलाधिकारियों और राजस्व अधिकारियों को नुकसान की भरपाई की वसूली करने और दावे की राशि तय करने का अधिकार दिया गया है, जबकि कोई पीड़ित व्यक्ति तोड़फोड़ की घटना के 30 दिन के अंदर एफआईआर के बिना मुआवजे के लिए दावा न्यायाधिकरण की शरण ले सकता है.
यूपी में दोनों बिल के तहत कोई व्यक्ति एफआईआर दर्ज होने और उपमंडल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) की रिपोर्ट आने के बाद ही दावा न्यायाधिकरण से संपर्क कर सकता है. क्षतिपूर्ति के दावे पर अंतिम निर्णय करना भी राज्य सरकार के अधिकार में आता है.
मध्य प्रदेश में पारित विधेयक के तहत, ‘मालिक’, ‘किरायेदार’, ‘पट्टा धारक’, ‘झुग्गी वाला’ और ‘ठेला वाला’ कोई भी किसी दंगे या विरोध प्रदर्शनों के दौरान संपत्ति को पहुंचे नुकसाई की भरपाई के लिए दावा कर सकता है. जबकि यूपी के कानून में केवल क्षतिग्रस्त संपत्ति का मालिक ही दावा कर सकता है.
एक और बड़ा अंतर यह है कि यूपी में ट्रिब्यूनल एक साल के अंदर अपना फैसला दे सकता है, जबकि मध्य प्रदेश के कानून में तीन माह के भीतर फैसला सुनाना अनिवार्य किया गया है.
मध्य प्रदेश में पारित विधेयक के तहत दावा न्यायाधिकरण का गठन- जिसके सदस्य सेवानिवृत्त जिला जज या सचिव स्तर के सेवानिवृत्त अधिकारी हो सकते हैं- विवाद की एक और वजह है. विपक्षी दल कांग्रेस का आरोप है कि ऐसे अधिकारियों को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है.
यूपी के कानून के तहत दावों के निर्धारण का जिम्मा अतिरिक्त सचिव स्तर के एक अधिकारी का होता है. ऐसा ही कानून लागू करने वाले एक अन्य राज्य हरियाणा में दावा न्यायाधिकरणों में सदस्यों को नामित करने से पहले हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने का प्रावधान रखा गया है.
वहीं, मध्य प्रदेश के बिल में एक कड़ा प्रावधान यह है कि कोई ट्रिब्यूनल तोड़फोड़ और क्षति की भरपाई के लिए नुकसान की वास्तविक लागत से दोगुना शुल्क वसूल सकता है. जबकि उत्तर प्रदेश और हरियाणा में इसी तरह के कानूनों के तहत दोषी पक्ष से नुकसान के अनुपात में ही राशि वसूलने का प्रावधान है.
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जब कानून लाया गया
राज्य में निजी और सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की वसूली के लिए यह कानून पिछले साल उज्जैन और इंदौर में भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) की रैली पर पथराव की घटना के बाद लाया गया है.
नरोत्तम मिश्रा ने दिप्रिंट से कहा, ‘जो लोग पथराव करते हैं और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं, वे कानून के दायरे में आएंगे…यह यूपी में लागू कानून से ज्यादा सख्त है. इसके जरिये असामाजिक तत्वों, आंदोलनकारियों और दंगाइयों से निपटा जाएगा. चाहे वह भू-माफिया हो, शराब माफिया हो या खनन माफिया…किसी को बख्शा नहीं जाएगा. कांग्रेस अपनी तुष्टिकरण की राजनीति के कारण इसका विरोध कर रही है.’
विपक्षी दल कांग्रेस ने नए विधेयक की तुलना अब खत्म हो चुके कठोर कानून पोटा (आतंकवाद रोकथाम अधिनियम) से की और आरोप लगाया कि उसकी तरह इस कानून का अल्पसंख्यकों के खिलाफ दुरुपयोग किया जाएगा.
मध्य प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता रवि नंदन सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘चूंकि ‘गैंगस्टर’ की कोई परिभाषा नहीं है, इसलिए अधिकारी जिसे चाहें उसे अपनी मर्जी से गैंगस्टर घोषित कर सकते हैं, ठीक उसी तरह जैसे टाडा (आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम) और पोटा का दुरुपयोग किया गया था. राज्य के अधिकारियों की तरफ से इन कानून के दुरुपयोग का भी उतना ही खतरा है.’
उन्होंने कहा, ‘दंगाइयों से निपटने के लिए कानून तो पहले से ही है लेकिन लोगों को ‘माफिया’ होने के आरोप में गिरफ्तार करने के लिए…इस कानून के तहत उन लोगों को निशाना बनाया जाएगा जो सरकारी नीतियों पर असंतोष जताते हैं.’
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