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Monday, 4 November, 2024
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हरियाणा के IAS अधिकारियों के बीच छिड़ी FIRs की जंग, विज-खट्टर के बीच एक बार फिर टकराव के संकेत

आईएएस अधिकारी अशोक खेमका और संजीव वर्मा के बीच यह लड़ाई एक दशक पुराने एक मामले को लेकर छिड़ी है, जब खेमका हरियाणा राज्य भंडारण निगम के प्रबंध निदेशक के तौर पर कार्यरत थे.

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नई दिल्ली: एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के खिलाफ 13 साल पहले लगा भ्रष्टाचार का आरोप, कथित तौर पर 10 लाख रुपये की घूसखोरी, कई शिकायतें, और एफआईआर दर्ज कराने की जंग—हरियाणा के दो आईएएस अधिकारी आजकल इसी टकराव में उलझे हैं.

हरियाणा कैडर के 1991 बैच के अधिकारी अशोक खेमका और 2004 में बतौर आईएएस पदोन्नत हुए राज्य सिविल सेवा अधिकारी संजीव वर्मा के बीच लड़ाई करीब एक दशक पुराने उस मामले को लेकर छिड़ी है जो खेमका के हरियाणा राज्य भंडारण निगम (एचएसडब्ल्यूसी) के प्रबंध निदेशक (एमडी) के तौर पर काम करने के दौरान का है.

वर्मा मौजूदा समय में एचएसडब्ल्यूसी के एमडी के तौर पर संयुक्त प्रभार संभाल रहे हैं.

दोनों अधिकारियों के बीच टकराव इस तरह खुलकर सामने आना संभावित राजनीतिक रस्साकशी के संकेत भी देता है.

वर्मा हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के निर्वाचन क्षेत्र करनाल के संभागीय आयुक्त हैं. वहीं, खेमका को इस मामले में राज्य के गृह मंत्री अनिल विज का समर्थन मिल रहा है.

हालांकि, विज और खट्टर के बीच रिश्तों में खटास जगजाहिर है, लेकिन भाजपा नेताओं का कहना है कि यह दोनों आईएएस अधिकारियों के बीच तकरार की वजह नहीं है.

20 अप्रैल को वर्मा ने खेमका के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उन्होंने 2009 में एचएसडब्ल्यूसी के एमडी रहते हुए एक कर्मचारी की भर्ती के लिए 10 लाख रुपये की रिश्वत ली थी.

25 अप्रैल को खेमका ने भी एक काउंटर-एफआईआर दर्ज कराई और हरियाणा के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर वर्मा के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. खेमका ने दिप्रिंट को बताया कि इस कोशिश में उन्हें विज का सहयोग मिला, जिन्होंने ‘सुनिश्चित किया कि काउंटर-एफआईआर’ दर्ज की जा सके, क्योंकि हरियाणा पुलिस ने ‘शुरू में ऐसा करने में अनिच्छा’ दिखाई थी.

दिप्रिंट से बातचीत में खेमका और वर्मा दोनों ने अपने-अपने रुख को सही ठहराया.

खेमका—जो अब हरियाणा के सांस्कृतिक मामलों, अभिलेखागार, पुरातत्व और संग्रहालय विभाग में प्रमुख सचिव हैं—ने खुद को ‘एक दुर्भावनापूर्ण साजिश का शिकार’ बताया.

उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की ‘पुलिस और (राज्य) लोकायुक्त द्वारा कम से कम तीन बार जांच की जा चुकी है, लेकिन हर बार इसे झूठा पाया गया है.’

वर्मा ने कहा कि उन्होंने इस मामले खेमका के खिलाफ प्राथमिकी की सिफारिश करने वाली तीन सदस्यीय समिति की सिफारिशों पर यह कदम उठाया है.

दिप्रिंट ने इस मामले पर सरकार की प्रतिक्रिया जानने के आग्रह के साथ अपने सवाल मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) को ईमेल पर भेजे हैं, और इस पर अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है.

वहीं, विज और उनके दफ्तर को किए गए फोन कॉल का जवाब नहीं मिला और न ही ईमेल और टेक्स्ट मैसेज पर कोई प्रतिक्रिया आई है.


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13 साल पहले लगे थे आरोप

2016 में रविंदर कुमार नामक एक व्यक्ति ने हरियाणा पुलिस के समक्ष दर्ज कराई गई शिकायत में 2009 में एचएसडब्ल्यूसी में प्रबंधक के तौर पर एक व्यक्ति की भर्ती के मामले की जांच की मांग थी.

रविंदर कुमार के मुताबिक, वह व्यक्ति इस पद के लिए ‘योग्य नहीं’ था और उसने नौकरी पाने के लिए खेमका को 10 लाख रुपये की रिश्वत दी थी.

दिप्रिंट ने 2016 से ही इस मामले में दर्ज जांच रिपोर्ट, शिकायतें और प्राथमिकी हासिल कीं और पाया है कि पुलिस और लोकायुक्त की तरफ से 2016 और 2018 के बीच कम से कम तीन बार जांच की गई थी, लेकिन कोई संज्ञेय अपराध नहीं पाया गया.

2021 में राज्य सरकार ने आरोपों पर आगे विचार के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया. वर्मा कहते हैं कि उन्होंने इसी समिति की सिफारिशों के आधार पर ही खेमका के खिलाफ एफआईआऱ दर्ज कराई है.

वर्मा ने दिप्रिंट को बताया, ‘खेमका के खिलाफ आरोपों की उचित तरीके से जांच नहीं हुई है. दलितों-वंचितों के लिए आवंटित कोटे का इस्तेमाल पैसे कमाने और घूस लेने के लिए किया गया था. नए सिरे से जांच होनी चाहिए और कम से कम यह उम्मीद तो हम कर सकते हैं. मैंने केवल अपना आधिकारिक कर्तव्य निभाया है.’

उनकी शिकायत में कहा गया है कि ‘आईएएस अशोक खेमका, जो प्रबंध निदेशक के नाते कार्यकारी समिति के सदस्यों में शामिल थे, ने अन्य अधिकारियों के साथ इंटरव्यू लिया और चयनित उम्मीदवारों की मेरिट सूची तैयार की और नियम-कायदों की अनदेखी कर अवैध और मनमाने तरीके से नियुक्तियां कीं.

वर्मा की तरफ से प्राथमिकी दर्ज कराने के पांच दिन बाद खेमका ने हरियाणा के मुख्य सचिव संजीव कौशल को पत्र लिखकर वर्मा के खिलाफ अखिल भारतीय सेवा (एआईएस) नियमावली के नियम-8 के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की.

उन्होंने वर्मा की शिकायत को ‘झूठी और दुर्भावनापूर्ण’ बताया है.

उनकी शिकायत, जिसे दिप्रिंट ने एक्सेस किया है, में कहा गया है, ‘संजीव वर्मा ने नुकसान पहुंचाने के इरादे से रविंदर कुमार (मूल शिकायतकर्ता) के साथ मिलकर झूठी शिकायत करके अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग किया है और एक दुर्भावना के साथ एक लोक सेवक को दंडित कराने का प्रयास किया है. संजीव वर्मा, रविंदर कुमार और अन्य के खिलाफ उचित कानून कार्रवाई की जानी चाहिए…’

खेमका ने कहा, ‘(वर्मा के) आरोप व्यक्तिगत प्रतिशोध की कार्रवाई हैं.’

उन्होंने पत्र में लिखा, ‘शिकायत में शामिल तथ्य आधिकारिक रिकॉर्ड को तोड़-मरोड़ कर तैयार किए गए हैं क्योंकि उनके वरिष्ठ अधिकारी होने के नाते संजीव वर्मा के गलत कार्यों को सरकार के संज्ञान में लाया गया था.’ साथ ही जोड़ा, ‘यही वजह है दुर्भावना से प्रेरित होकर उन्होंने रवींद्र कुमार के साथ मिलकर मेरी प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने के इरादे से अनधिकृत तरीके से झूठे आरोप लगाए हैं. उनके पिछले आचरण को देखते हुए बहुत संभावना है कि वह रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं या उन्हें नष्ट भी कर सकते हैं.’

उन्होंने कहा कि तीन-सदस्यीय समिति की जांच एक ‘दिखावा’ थी और ‘उसने मुझे अपने बचाव का कोई मौका दिए बिना अपना काम किया था.’


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अपने-अपने रुख को सही ठहरा रहे

अपने रुख को जायज ठहराते हुए वर्मा ने दिप्रिंट को बताया कि ‘एक अपराध हुआ है, और मैंने एक अधिकारी के नाते अपराध की सूचना दी है.’

उन्होंने कहा, ‘एआईएस नियमों में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि कोई आईएएस अधिकारी किसी अपराध की रिपोर्ट नहीं कर सकता है. सब कुछ सरकार के सामने है. अगर वे मेरी या मेरे इरादों की जांच करना चाहते हैं, तो मैं सीबीआई या अदालत की निगरानी वाली न्यायिक जांच अथवा राज्य या केंद्रीय एजेंसियों की किसी भी जांच का सामना करने के लिए तैयार हूं.’

इस बीच, खेमका ने अपने खिलाफ—पुरानी और नई—शिकायतों को ‘बदनाम करने की साजिश’ करार दिया है.

उन्होंने कहा, ‘यह हास्यास्पद है. हालांकि कोई ये तो नहीं कह सकता कि क्या यह कोई सोची-समझी राजनीतिक साजिश है, लेकिन निश्चित तौर पर बदले की कार्रवाई जरूर है. आरोप पूरी तरह दुर्भावना से प्रेरित हैं.’

दिप्रिंट ने इस मुद्दे पर टिप्पणी के लिए फोन कॉल, टेक्स्ट मैसेज और मेल के जरिये कौशल से संपर्क साधा, लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित होने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

यह बताते हुए कि विज इस पूरे मामले में कैसे सामने आए, खेमका ने आरोप लगाया कि हरियाणा पुलिस ने शुरू में वर्मा के खिलाफ उनकी काउंटर एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया था.

उन्होंने कहा, ‘मुझे बताया गया था कि उन्हें मुख्यमंत्री कार्यालय से मंजूरी लेने की जरूरत है. मैंने राज्य के गृह मंत्री को मौखिक रूप से सूचित किया कि पुलिस अधिकारी मेरी शिकायत दर्ज नहीं कर रहे हैं. फिर उनके हस्तक्षेप के बाद एफआईआर दर्ज की गई.

खेमका ने आगे कहा कि विज ने उनकी उपस्थिति में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ एक बैठक की और सुनिश्चित किया कि शिकायत दर्ज की जाए.

उन्होंने कहा, ‘गृह मंत्री ने इस स्थिति में जो सबसे बेहतर हो सकता था, वो किया. मैं उनके हस्तक्षेप के लिए आभारी हूं.’

खेमका के आरोप के बारे में पूछे जाने पर पंचकुला के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि वे केवल ‘आईएएस अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज होने के मामले में निर्धारित प्रक्रियाओं और मानक प्रोटोकॉल का पालन कर रहे थे.’

इसके पीछे सियासी खेल है?

विज और मुख्यमंत्री के बीच तनावपूर्ण संबंध किसी से छिपे नहीं है. उदाहरण के तौर पर 2020 में खट्टर ने राज्य के आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) को अपने अधीन कर लिया था. हालांकि, यह परंपरागत तौर पर यह गृह विभाग के दायरे में रहा है, जिसका नेतृत्व विज करते हैं.

राज्य के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘2020 में स्थिति इतनी विकट हो गई थी कि हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष (जे.पी.) नड्डा जी को हस्तक्षेप करना पड़ा था.’

फिर, जुलाई 2021 में, विज ने आरोप लगाया कि कुछ अधिकारी खट्टर को ‘खुश’ करने के लिए उनके विभागीय काम में बाधा डाल रहे हैं. इस साल की शुरुआत में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को मिली सुरक्षा भी दोनों के बीच मतभेद का विषय बन गई थी.

हालिया टकराव पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘अनिल जी हमेशा लोगों को यह दिखाना चाहते हैं कि वह ईमानदारों के साथ हैं, इसलिए वह खेमका के समर्थन में खुलकर सामने आए हैं. खेमका को एक ईमानदार अधिकारी के तौर पर जाना जाता है और ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि वह आप में शामिल हो सकते हैं.’

आईएएस अधिकारियों के झगड़े और इसके पीछे संभावित राजनीतिक समर्थन के बारे में पूछे जाने पर हरियाणा भाजपा के महासचिव वेदपाल ने कहा कि खट्टर और विज दोनों का ‘काम करने का अपना-अपना तरीका’ है.

उन्होंने आगे कहा, ‘उनकी विभिन्न विषयों पर राय अलग-अलग हो सकती है. लेकिन, आखिरकार, वे दोनों ही राज्य के हित में काम कर रहे हैं. इन अधिकारियों को लेकर अनिल विज और मुख्यमंत्री के बीच ऐसा कोई मतभेद नहीं है.’

हरियाणा के प्रभारी भाजपा महासचिव विनोद तावड़े ने कहा कि ये ‘प्रशासनिक मुद्दे हैं, और दोनों नेता बहुत वरिष्ठ हैं.’

उन्होंने कहा, ‘एक हमारा मुख्यमंत्री है और दूसरा गृह विभाग का प्रभारी. अनिल विज जी पार्टी के बुजुर्ग नेता हैं. हम सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि इन नेताओं को अपना काम अच्छे और सौहार्दपूर्ण तरीके से करना चाहिए. पार्टी ने अभी तक इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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