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Saturday, 20 April, 2024
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आरएसएस आया चुनावी मोड में, भागवत के मैराथन दौरे और प्रतिनिधि सभा का मंथन

आगामी लोकसभा चुनाव से पहले होने जा रही संघ की अंतिम बैठक में भाजपा की जीत का मार्ग प्रशस्त करने पर रणनीति बनाई जा सकती है.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरी तरह से भारतीय जनता पार्टी की आगामी लोक सभा चुनावों में मदद करने का मन बना चुका है. आम चुनाव में जबकि दो से ढाई माह का समय ही शेष है ऐसे में मोदी सरकार की रोज़गार के मुद्दे पर नाकामी, जीएसटी और नोटबंदी जैसे मुद्दे की अस्वीकार्यता व उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन और प्रियंका गांधी की कांग्रेस में आमद जैसे कई चुनावी मुद्दों के चलते आरएसएस भाजपा की ढाल के रूप में चुनावी समर में उतरने को तैयार है.

आज से मप्र के इंदौर में सरसंघचालक मोहन भागवत की तीन दिवसीय बैठक शुरू हो रही है जिसमें हाल ही में भाजपा की मप्र में हुई हार पर समीक्षा होनी है. किसी समय भाजपा का मज़बूत गढ़ रहा मालवा क्षेत्र इस बार कमलनाथ के साथ हो लिया था. आदिवासी क्षेत्रों व वनवासी बन्धुओं के बीच संघ की स्वीकार्यता और भाजपा का प्रभाव कम होना कहीं न कहीं संगठन को चिंता में डाल रहा है. लोकसभा चुनाव के मद्देनजर संघ प्रमुख अपने इसी गढ़ को और अधिक मज़बूत करने की मंशा से सभी आनुषंगिक संगठनों से विचार विमर्श करके आगे की रणनीति तय करेंगे. इसके तुरंत बाद संघ की दृष्टि से महत्वपूर्ण मध्य भारत और महाकौशल प्रांत की बैठक होनी है.

मार्च महीने में मध्य प्रदेश के ग्वालियर में होने जा रही प्रतिनिधि सभा की बैठक में देशभर के लगभग 15 सौ छोटे बड़े अधिकारियों की मौजूदगी में आगामी लोकसभा चुनाव के विषय पर मंथन होना तय है. इसी बैठक के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की मोहन भागवत से संभावित मुलाकात की अटकलों ने आगामी लोकसभा चुनाव में संघ के हस्तक्षेप को चर्चा में ला दिया है. बैठक के दौरान जहां एक ओर संघ के विभिन्न संगठनों के आगामी एक वर्ष के क्रिया कलापों पर मंथन होगा तो वहीं लोकसभा चुनाव में भाजपा को जीत के मुहाने तक कैसे पहुंचाया जाए इस पर भी गंभीरता से चिंतन होगा.

बैठक में इस बात पर भी मंथन हो सकता है कि स्वयंसेवक मोदी सरकार के किन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाएं ताकि सरकार के कार्य वृहद स्तर तक पहुंचाए जा सकें. भाजपा से जुड़े एक नेता ने नाम न छापने के अनुरोध पर बताया कि 2019 में 2014 जैसा माहौल नहीं है. बेशक मोदी सरकार ने आर्थिक सुधारों से लेकर देशहित के कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं. किंतु इस बार एकजुट विपक्ष के चलते संघ को भाजपा की चुनावी वैतरणी पार लगाने के लिए मैदान में उतरना ही होगा.

हालांकि जब संघ और भाजपा के रिश्तों और आगामी लोकसभा चुनाव में संघ की भूमिका पर संघ विषयक पुस्तकों के लेखक सिद्धार्थ शंकर गौतम ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि ‘स्वयंसेवक अपनी इच्छा अनुसार राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने वाले राजनीतिक दल के पक्ष में मतदान करने और कराने के लिए मेहनत करते ही हैं. भाजपा की राष्ट्रवादी विचारधारा स्वयंसेवकों को उसके पक्ष में कार्य करने के लिए प्रेरित करती है. भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व भी संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों से विचार-विमर्श करता रहता है. यह कोई नई बात नहीं है.’

हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मिली हार ने भाजपा को संघ के कैडर का अपने पक्ष में उपयोग करने को मजबूर कर दिया है. तीनों राज्यों में संघ की स्थिति काफ़ी मजबूत मानी जाती है. ऐसे में एंटी इंकम्बसी के चलते हुई हार ने भाजपा को मजबूर कर दिया है कि वह संघ के दिखाए मार्ग पर चले और स्वयंसेवकों की लंबी फ़ौज को चुनावी मोड में लाए. गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से पहले होने जा रही संघ की अंतिम बैठक में इस बात पर सहमति बन सकती है.

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