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Saturday, 20 April, 2024
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खेती पर लौटे रोडियो राइडर: कांग्रेस के प्रतापसिंह राणे क्यों नहीं लड़ेंगे गोवा चुनाव

अगर वो चुनाव लड़ रहे होते, तो 1972 से विधायक और 6 बार के सीएम प्रतापसिंह राणे, अपनी पुरानी सीट पोरियम से अपनी ही बहू और भाजपा उम्मीदवार देविया के सामने होते.

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सत्तारी: बुधवार सुबह करीब 10.30 बजे, 11 बार के विधायक, गोवा के सबसे लंबे समय तक विधायक और छह बार के पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह राणे शानदार ढंग से सजे अपने घर के बरामदे में बैठे हुए थे. वो अपने चुनाव क्षेत्र के एक इलाके पोरियम की ओर निकलने वाले थे, जहां स्थानीय लोगों ने एक नई सड़क बनाए जाने का अनुरोध किया है. उनके परिवार के सदस्यों ने उनसे आग्रह किया कि अपने औपचारिक जूते बदलकर कोई ऐसे जूते पहन लें, जिनमें पैदल चलना आसान हो. राणे ने, जो शुक्रवार को 83 के हो गए, दृढ़तापूर्वक मना कर दिया.

कुछ देर के बाद, वयोवृद्ध राजनेता विनम्र लेकिन दृढ़ स्वर में कहते हुए उठे कि वो अपने जूते बदलेंगे और उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि ये उनका अपना फैसला था.

इधर राणे के ड्राइवर ने उनके चलने के लिए गाड़ी तैयार की, उधर उनकी छह-वर्षीय कॉकर स्पेनियल डॉग बबल्स, जो सीनियर कांग्रेस नेता की रक्षा को लेकर बहुत सजग रहती है, तेज़ी से दौड़ती हुई ड्राइव वे में आ गई और स्पष्ट कर दिया कि उसे भी साथ जाना है. राणे की पत्नी विजयादेवी ने इस विचार को खारिज कर दिया और बबल्स से कहा कि वो वहीं रुके और घर पर अपने बाल ब्रश कराए जो कि उसका सुबह का नियम है. निराश बबल्स दौड़कर राणे के पैरों के पास पहुंच गई. राणे ने उस पर एक नज़र डाली और बड़े सामान्य लहजे में कहा, ‘बबल्स साथ चलेगी’. और बस बात खत्म. बबल्स को कार में उसकी जगह मिल गई, जहां पूरे सफर में वो आज्ञाकारी बनकर बैठी रही.

दोस्तों, परिवार और समर्थकों के लिए जो उन्हें करीब से जानते हैं, इसमें कुछ भी असामान्य नहीं था. उनका कहना है कि प्रतापसिंह राणे हमेशा से मज़बूत इरादे वाले इंसान रहे हैं और बड़े हों या छोटे, वो अपने फैसले खुद करने के लिए जाने जाते हैं.

इसलिए 29 जनवरी को, जब राणे ने संन्यास लेने का फैसला किया और कहा कि वो 14 फरवरी को पोरियम से गोवा विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे, तो उनके समर्थक जानते थे कि जूते बदलने और बबल्स को कार में ले जाने की तरह ही, ये फैसला भी सिर्फ राणे का था और एक बार ले लिया तो फिर वो सभी हितधारकों पर बाध्यकारी था, उनके परिवार से लेकर, उनके समर्थकों और कांग्रेस पार्टी तक.

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ये निर्णय कई दिनों की अनिश्चितता और गोवा के राजनीतिक हलकों में पर्याप्त अटकलों के बाद आया, कि राणे क्या करने जा रहे हैं: क्या वो चुनाव लड़ेंगे जैसा कि कांग्रेस चाहती थी; क्या वो पीछे हट जाएंगे, ये देखते हुए कि उनके बेटे विश्वजीत राणे ने, जो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के एक मंत्री हैं, उन्हें सख़्ती के साथ चेतावनी दी थी कि ‘शालीनता के साथ रिटायर’ हो जाएं, अन्यथा चीज़ें ‘बहुत खराब’ हो सकती हैं’, क्या वो अपने बेटे और उसकी पार्टी, सत्तारूढ़ बीजेपी के दबाव में हैं. विश्वजीत 2017 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले गए थे.

सीनियर राणे ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने 50 वर्ष अच्छी, स्वच्छ राजनीति में बिताए हैं. लोगों का काम करने के लिए मुझे चुनाव लड़ने की ज़रूरत नहीं है. परिवार का मुखिया होने के नाते, मुझे लगा कि किसी को एक परिपक्व निर्णय लेने की ज़रूरत है, और मैंने वही किया’.

राणे ने आगे कहा, ‘मैं हमेशा से एक कट्टर कांग्रेसी कार्यकर्ता रहा हूं और रहूंगा. इस चुनाव क्षेत्र से कांग्रेस जिस भी उम्मीदवार को नामांकित करती है, मैं उसका समर्थन करूंगा’. राणे 1972 से गोवा के हरे भरे सत्तारी ताल्लुका के पोरियम का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं, जब गोवा दमन व दीव के साथ एक केंद्र-शासित क्षेत्र ही था और इस चुनाव क्षेत्र को सत्तारी के नाम से जाना जाता था.


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राणे परिवार में लड़ाई

उससे दो दिन पहले, जब प्रतापसिंह राणे ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला सुनाया, तो खासकर ये देखते हुए कि इस बारे में उनके 50 वर्षीय बेटे के बहुत सार्वजनिक विचार क्या हैं, उनकी संभावित उम्मीदवारी से जुड़ा तनाव, संक्वेलिम स्थित गोल्डन एकर्स फार्म पर साफ महसूस किया जा सकता था, जहां राणे परिवार रहता है,.

विजयदेवी अपने मज़ाकिया अंदाज़ में समय-समय पर, माहौल का तनाव कम करतीं थीं और पोरियम चुनाव क्षेत्र में इधर उधर घूमते हुए किसी घर के एक ख़ास गहरे पीले रंग पर टिप्पणी करतीं थीं और कहतीं थीं कि कैसे इतने सालों के बाद, लोगों का अभिवादन करते हुए अपना हाथ ऊपर उठाना (जो कांग्रेस का चुनाव चिन्ह भी है) उनकी आदत बन गई है.

उधर घर पर, राणे से मिलने आए उनके कुछ समर्थकों ने विजयादेवी से, अनुरोध किया कि अगर उनके पति चुनाव लड़ने को राज़ी नहीं हैं, तो उनकी जगह वो मैदान में उतर जाएं. उन्होंने अपने मज़ाकिया अंदाज़ में टिप्पणी करते हुए इन सुझावों को खारिज कर दिया और इस बात पर क़ायम रहीं कि जो कुछ भी हो, ये फैसला उनके पति को ही करना होगा.

अगर प्रतापसिंह राणे ने चुनाव लड़ने का फैसला किया होता, तो वो सीधे विश्वजीत की पत्नी देविया राणे के सामने होते, जिन्हें बीजेपी ने पोरियम से खड़ा किया है, जबकि विश्वजीत उनके पड़ोस की सीट वालपोई से चुनाव लड़ रहे हैं. विश्वजीत या देविया में से किसी ने भी, टिप्पणी के लिए दिप्रिंट की कॉल्स और लिखित संदेशों का जवाब नहीं दिया.

बुधवार को प्रतापसिंह राणे ने अपनी बहू के, उनके गढ़ पोरियम से चुनाव लड़ने के फैसले पर, बड़ी नपी तुली प्रतिक्रिया दी. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘हर कोई चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र है. हमें सिर्फ एक चीज़ याद रखनी चाहिए और वो ये कि जब हम चुनाव लड़ने का निर्णय करते हैं, तो हमें लोगों से झूठे वायदे नहीं करने चाहिए’.

विश्वजीत राणे, जिन्हें पोरियम और वालपोई चुनाव क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर ‘बाबा’ कहा जाता है, वालपोई से तीन बार विधायक रहे हैं- एक कार्यकाल निर्दलीय विधायक के रूप में, दूसरा कांग्रेस एमएलए के तौर पर, और तीसरा बीजेपी विधायक के रूप में, जब कांग्रेस टिकट पर जीतकर उन्हें दल बदल लिया था. इसलिए बीजेपी के लिए वालपोई के लिए उन्हें नामांकित करने में कोई आश्चर्य नहीं था. देविया को लड़ाने का पार्टी का फैसला, और गोवा में बीजेपी के चुनाव पर्यवेक्षक देवेंद्र फड़णवीस द्वारा उसे न्यायोचित ठहराए जाने से, कुछ हल्कों में नाराज़गी पैदा हुई थी और सीनियर राणे की उम्मीदवारी को लेकर तनाव बढ़ गया था. शुरू में बीजेपी दावा कर रही है कि उसकी नीति एक परिवार में एक ही सदस्य को टिकट देने की है.

इसी महीने जब बीजेपी ने 40 सदस्यीय गोवा विधानसभा के लिए उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी की, तो उस समय फडणवीस ने कहा था, ‘विश्वजीत राणे हमारे सिटिंग विधायक रहे हैं. प्रतापसिंह राणे 50 वर्षों तक कांग्रेस विधायक रहे हैं. हम उस सीट पर कभी नहीं जीते. हमने उनसे (प्रतापसिंह राणे) से आग्रह किया,और उन्होंने हमारे लिए वो सीट छोड़ दी है’.

अस्सी की उम्र पार कर चुके राणे ने तीखा जवाब देते हुए कहा था, कि पोरियम सीट उनके ‘बाप की जागीर नहीं है जिसे किसी को दे दिया जाए’.

सितंबर में फडणवीस प्रतापसिंह राणे से उनके घर डिनर पर मिले, जिससे क़यास लगाए जाने लगे कि बीटे के पीछे कांग्रेस नेता भी बीजेपी में जा सकते हैं. बीजेपी के और कई बार इशारा करने के बाद, कि राणे संभवत: पाला बदल सकते हैं, सूबे के सबसे वरिष्ठ विधायक ने एक वीडियो के ज़रिए मामला साफ करते हुए कहा, ‘ये लोग सिर्फ झूठी अफवाहें फैलाना चाहते हैं…मैं 45 साल से कांग्रेस पार्टी के साथ हूं, और मुझे नहीं लगता कि इस समय पर मैं कभी भी कांग्रेस पार्टी छोड़ने की बात सोचूंगा. मेरा ताल्लुक़ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से है और बस’.

बुधवार को दिप्रिंट से बात करते हुए राणे ने दोहराया कि फड़णवीस के गोल्डन एकर्स दौरे के दौरान, उनसे कोई सियासी बातचीत नहीं हुई थी. ‘मेरे दरवाज़े हमेशा खुले हैं, हर किसी का घर पर आने के लिए स्वागत है. जो कोई भी आता है उसे चाय और कुछ खाने के लिए पेश किया जाता है. श्री फडणवीस के साथ भी मैंने यही किया.

अपने सामान्य सौम्य अंदाज़ में राणे ने दिप्रिंट से पूछा, ‘उम्मीद है आपको कुछ चाय वगैरह पेश की गई होगी. आपने चाय ली?

गोवा कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा, ‘प्रतापसिंह राणे कभी भी छिपे तौर पर बीजेपी के साथ काम नहीं करेंगे. हम सबको इसका पूरा विश्वास है. फड़णवीस बड़े बड़े बयान दे रहे हैं, लेकिन वो बिन बुलाए उनके घर गए थे. राणे की पत्नी ने उन्हें बताया कि देवेंद्र फड़णवीस आए हैं और मिलना चाहते हैं. प्रतापसिंह शुरू में उनसे मिलने के इच्छुक नहीं थे’.

कांग्रेस ने चुनाव लड़ने या न लड़ने का फैसला पूरी तरह राणे पर छोड़ दिया था. गोवा से पार्टी के एक दूसरे नेता ने कहा, ‘उनके लिए ये थोड़ी कठिन स्थिति थी, चूंकि ये एक पारिवारिक विवाद था. लेकिन, प्रतापसिंह राणे हमेशा से एक चतुर नेता रहे हैं. उन्होंने अपने दिमाग में सही हिसाब लगा लिया होगा’.

पोरियम से एक और राणे मैदान में हैं- विश्वजीत कृष्णाराव राणे- जो प्रतापसिंह राणे के गढ़ से चुनाव लड़ने के लिए आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हो गए हैं. विश्वजीत के राणे प्रतापसिंह राणे परिवार के सदस्य नहीं हैं, लेकिन उनसे पूरी तरह अलग भी नहीं हैं. विजयादेवी ने दिप्रिंट को बताया कि ये व्यक्ति बहुत साल पहले, प्रतापसिंह राणे का चुनावी एजेंट हुआ करता था.


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सत्तारी के राणे

सत्तारी के राणे जो उस समय तक सावंतवाड़ी के सावंत-भोंसले के सरदार रहे, जब 18वीं सदी में पुर्तगालियों ने गोवा के बड़े क्षेत्रों पर कब्ज़ा किया, गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त कराने वाले पहले क्रांतिकारी थे.

राणे लोगों ने 1755 और 1822 के बीच, अपने खोए हुए अधिकारों को फिर से पाने के लिए, पुर्तगाली शासकों के खिलाफ 14 बार विद्रोह किए. राणे परिवार का पुश्तैनी आवास अभी भी सही सलामत है, अपनी मूल स्थिति में, उनके शानदार आवासीय फार्महाउस से सिर्फ पांच मिनट की दूरी पर. ये वही पुश्तैनी मकान था जिसमें गोवा के पहले सीएम दयानंद बंडोदकर ने, प्रतापसिंह राणे को पहली बार राजनीति में आने की दावत दी थी, जब वो अमेरिका से बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन की डिग्री लेने के बाद अपने गृह नगर लौटे थे.

राजनेताओं के नाते, सत्तारी के राणा परिवार ने तालुका पर अपनी ऐतिहासिक पकड़ को और मज़बूत किया है, जिसमें दो विधान सभा सीटें आती हैं- पोरियम और वालपोई. 1972 में वो पहली बार विधायक बने, और 1980 में गोवा सीएम बन गए. राणे उस समय भी सीएम थे जब 1987 में गोवा को राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ. उन्होंने अपना राजनीतिक करियर गोवा के क्षेत्रीय संगठन, महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) के साथ शुरू किया और उसके बाद 1970 के दशक में कांग्रेस में शामिल हो गए. अपने पूरे करियर के दौरान वो कई कैबिनेट पदों पर रहे, और दो बार नेता प्रतिपक्ष तथा दो मरतबा विधानसभा स्पीकर के तौर पर काम किया. इनमें से एक बार तब था जब 2000 में बीजेपी के मनोहर परिकर सीएम थे.

अपने इलाक़े में अपनी एसयूवी में चलते हुए, राणे बहुत फख़्र के साथ एक सैर कराते हैं, और गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट दिखाते हैं, जिसके वो संस्थापक सदस्य हैं, और संक्वेलिम में गवर्नमेंट कॉलेज भी दिखाते हैं, जिसके बनने से पहले सबसे नज़दीकी सरकारी कॉलेज में जाने के लिए, छात्रों को क़रीब 25 किलोमीटर का सफर तय करके मपूसा जाना पड़ता था. राणे ने बताया, ‘तीस साल पहले मैंने अपने चुनाव क्षेत्र में लोगों से कह दिया था, कि हर परिवार के पास एक कार होगी. आज आप देख सकते हैं कि हर घर के बाहर एक गाड़ी खड़ी है, और मैंने यहां से बेलगाम तक के लिए सड़कें बनवाई हैं’.

विश्वजीत ने भी अभी तक कोई चुनाव नहीं हारा है. 2017 में कांग्रेस के लिए जीत हासिल करने के बाद, वो पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गए, ताकि उसकी अपनी संख्या बढ़ाकर सरकार बनवा सकें, हालांकि कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी. 2018 में, वो कथित रूप से दो और कांग्रेस विधायकों का दलबदल कराकर बीजेपी में ले गए थे, ताकि 40 सदस्यीय असेम्बली में पार्टी की स्थिति और मज़बूत हो जाए.

मनोहर परिकर की मौत के बाद विश्वजीत राणे सीएम की कुर्सी मिलने की उम्मीद कर रहे थे लेकिन बीजेपी ने प्रमोद सावंत को चुना, जो एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) नेता हैं, और बीजेपी काडर के भीतर से ही ऊपर उठे हैं.

सभी पार्टियों के सूत्रों ने, जिनमें उनकी अपनी पार्टी बीजेपी भी शामिल है, दिप्रिंट को बताया है कि विश्वजीत बेहद महत्वाकांक्षी हैं और अपने नाम पर पूरा उतरने की जल्दी में हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ है दुनिया को जीतना. वो कहते हैं कि उनकी दुनिया गोवा है और जीत है सीएम का पद.

उसी जीत की तलाश में जूनियर राणे की सीएम सावंत के साथ झड़पें हुईं हैं.

गोवा बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम छिपाने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘हमें यकीन था कि प्रतापसिंह राणे पीछे हट जाएंगे. उनके साथ सीधे तौर पर कोई बातचीत नहीं हुई थी लेकिन विश्वजीत ने हमें आश्वस्त किया था कि ऐसा हो जाएगा’.


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रोडियो राइडर, जॉकी और पहले किसान

बुधवार को, जब तक प्रतापसिंह राणे ने चुनाव लड़ने के बारे में अंतिम फैसला नहीं लिया था, टीकवुड बेंचों और पौधों से सजे बरामदे में बैठे वो ये सोच रहे थे कि अगर वो रिटायर होने का फैसला करते हैं तो उसके बाद क्या करेंगे.

राणे ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं दुनिया की सैर करूंगा, यूरोप में समय बिताउंगा. वहां मेरे बहुत से दोस्त हैं. मैं म्यूज़ियम्स में जाउंगा’. उन्होंने बरामदे में लगे घुड़दौड़ की तस्वीर के एक फ्रेम की ओर इशारा किया और कहा कि ये पुणे रेसकोर्स में उन्हीं की है. उन्होंने उन दिनों को याद किया, जब वो जवान थे और उन्होंने मुम्बई के महालक्ष्मी रेसकोर्स, तथा पुणे टर्फ क्लब में बहुत सी दौड़ें जीतीं थीं.

राणे ने कहा, ‘जब में अमेरिका में पढ़ रहा था, तो टेक्सस में काउबॉयज़ के साथ घुड़सवारी करता था. मैंने रोडियो मुक़ाबलों में भी हिस्सा लिया’.

इस तमाम वर्षों में वो कभी गोवा से बाहर नहीं निकले, इसका एक कारण ये था उन्हें कई एकड़ में फैले अपने काजू बाग़ान के फार्म, और डेयरी से बहुत लगाव था. राणे परिवार के पास एक मुर्गी फार्म भी था, जिसे उन्होंने अब बंद कर दिया है लेकिन उनकी संपत्ति पर अभी भी बहुत सारे जानवर मौजूद हैं.

पचास साल की लंबी पारी खेलने के बाद, राणे ने राजनीतिक दौड़ से ख़ुद को भले बाहर कर लिया हो लेकिन उनकी अपनी नज़र में उन्हें पहचान का कोई नुकसान नहीं हुआ है.

उन्होंने आगे कहा, ‘खेती मेरा पहला प्यार है. मैं हमेशा से किसान पहले था, नेता बाद में. उसमें कोई बदलाव नहीं है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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