scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमराजनीतिमाझा वोट- पंजाब में सत्ता की चाबी? सिद्धू vs मजीठिया के अलावा भी कई कारणों से इस क्षेत्र का है महत्व

माझा वोट- पंजाब में सत्ता की चाबी? सिद्धू vs मजीठिया के अलावा भी कई कारणों से इस क्षेत्र का है महत्व

अमृतसर पूर्व सीट पर एसएडी नेता मजीठिया और पंजाब कांग्रेस प्रमुख सिद्धू का आमने-सामने होना शीर्ष नेताओं के बीच एक अहम मुकाबला तो है ही, इसने पंजाब में सत्ता की चाबी माने जाने वाले माझा क्षेत्र में चुनावी जंग को और रोचक भी बना दिया है.

Text Size:

चंडीगढ़: अक्सर कहा जाता है कि पंजाब में राजनीति की दिशा पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे माझा क्षेत्र से तय होती है. लेकिन ‘माझे दा जरनैल’ बनने की लड़ाई बुधवार को और भी ज्यादा गर्मा गई जब शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) ने अमृतसर पूर्व की सीट पर राज्य कांग्रेस प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ बिक्रम सिंह मजीठिया को मैदान में उतारने की घोषणा की.

मजीठा से तीन बार विधायक रहे मजीठिया एसएडी प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के बहनोई है. उन पर दिसंबर में ड्रग्स का एक मामला दर्ज किया गया था और वह अग्रिम जमानत के प्रयास कर रहे हैं. 20 फरवरी को होने वाले पंजाब विधानसभा चुनावों में उनके सिद्धू के खिलाफ मैदान में उतरने से अमृतसर पूर्व माझा क्षेत्र की सबसे हॉट सीट बन गई है.

मौजूदा और पूर्व मंत्रियों समेत विभिन्न दलों के कई अन्य शीर्ष नेता सिख पंथिक राजनीति का केंद्र माने जाने वाले इस क्षेत्र में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. माना जाता है कि यहां एकतरफा मतदान करने वाले मतदाताओं का रुख ही पंजाब में राजनीति की दिशा तय करने में निर्णायक होता है.

इतिहास के नजरिये से देखें तो माझा को पंजाब का दिल कहा जाता है जो विभाजन के समय दो हिस्सों में बंट गया और भारत के हिस्से आए चार सीमावर्ती जिलों में अमृतसर, गुरदासपुर, तरनतारन और पठानकोट शामिल हैं. वैसे तो पंजाब विधानसभा की 117 में से केवल 25 सीटें ही इस क्षेत्र में आती हैं लेकिन राज्य के चुनावी इतिहास में इसकी हमेशा एक अहम भूमिका रही है.


यह भी पढ़ें: ज़मीन खो रहे हैं इमरान खान, फिर छिनने जा रही है किसी की कुर्सी


मैदान में उतरे शीर्ष नेता

सिद्धू-मजीठिया के बीच चुनावी जंग के अलावा माझा क्षेत्र से करीब आधा दर्जन शीर्ष कांग्रेसी नेता अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिसमें मौजूदा सरकार में दो उपमुख्यमंत्रियों सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओ.पी. सोनी के अलावा कैबिनेट मंत्री अरुणा चौधरी, तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा, सुखबिंदर सिंह सरकारिया और राजकुमार वेरका आदि शामिल हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

इसमें राज्य सभा के एक सांसद प्रताप सिंह बाजवा भी शामिल हैं, जो मौजूदा कांग्रेस विधायक और अपने ही भाई फतेहजंग सिंह बाजवा के हटने के बाद अपनी गृह सीट कादियान से चुनाव लड़ रहे हैं.

फतेहजंग कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं और गुरुवार को उन्हें बटाला से पार्टी उम्मीदवार घोषित किया गया. वह एसएडी प्रत्याशी सुच्चा सिंह छोटेपुर— जो पहले आम आदमी पार्टी (आप) के राज्य प्रमुख थे— और कांग्रेस के पूर्व मंत्री अश्विनी सेखरी के खिलाफ मैदान में उतरे हैं.

पूर्व में शिरोमणि अकाली दल सरकार (2007-2017) में मंत्री रहे कई नेता भी माझा से चुनाव लड़ रहे हैं, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के पोते आदेश प्रताप सिंह कैरों भी शामिल हैं. वह 2017 में पट्टी से कांग्रेस के हरमिंदर गिल से हार गए थे. इस चुनाव में दोनों एक बार फिर आमने-सामने होंगे.

मजीठिया मजीठा सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं, जहां उन्होंने लगातार तीन बार (2007, 2012, 2017) जीत हासिल की थी. उनके मुकाबला यहां दो भाइयों के साथ है— उनमें एक हैं आप प्रत्याशी सुखजिंदर राज लल्ली मजीठिया—जो कि 2017 में इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार थे— और दूसरे हैं उनके भाई और मौजूदा कांग्रेस प्रत्याशी जगविंदर पाल सिंह जग्गा मजीठिया.

एक अन्य पूर्व मंत्री रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा— जिन्होंने शिरोमणि अकाली दल (टकसाली) के गठन के लिए कई अन्य नेताओं के साथ एसएडी को छोड़ दिया था, लेकिन दिसंबर 2021 में फिर मूल पार्टी में शामिल हो गए— इस बार खडूर साहिब की पंथिक सीट पर कांग्रेस के रमनजीत सिंह सिक्की के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं. 2017 में ब्रह्मपुरा के बेटे और तत्कालीन विधायक रविंदर सिंह ब्रह्मपुरा सिक्की से चुनाव हार गए थे.

पूर्व अकाली मंत्री विरसा सिंह वल्टोहा और गुलजार सिंह रानिके, जो 2017 में क्रमशः खेमकरण और अटारी की अपनी सीटें हार गए थे, इस बार फिर कांग्रेस से ये दोनों सीटें कब्जाने के लिए मैदान में हैं.

माझा में पठानकोट और अमृतसर शहर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का पारंपरिक गढ़ है. पूर्व में जब एसएसडी के साथ उसका गठबंधन था तो दोनों दलों के बीच सीट बंटवारे के तहत माझा की 25 सीटों में से आठ सीटें भाजपा के कोटे में आई थीं.

राज्य भाजपा प्रमुख अश्विनी शर्मा को 2017 में पठानकोट सीट पर हार का सामना करना पड़ा था और इस साल उन्हें फिर उसी सीट से मैदान में उतारा जा रहा है. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुग भी 2017 में अमृतसर सेंट्रल सीट से हार गए थे. पंजाब से पार्टी के दो सांसदों में एक अभिनेता सनी देओल भाजपा की परंपरागत सीट गुरदासपुर का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका प्रतिनिधित्व अपने निधन से पहले कई सालों तक अभिनेता विनोद खन्ना करते रहे थे.

हालांकि इस क्षेत्र में आप की कोई ज्यादा पकड़ नहीं है, लेकिन अमृतसर नार्थ सीट से उसने पंजाब कैडर के पूर्व आईपीएस अधिकारी कुंवर विजय प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है. उनका मुकाबला भाजपा के पूर्व मंत्री अनिल जोशी से है, जो पिछले साल ही अकाली दल में शामिल हुए थे.

आप ने माझा में अपनी जमीन मजबूत करने के लिए पिछले साल पूर्व अकाली मंत्री और दिग्गज नेता सेवा सिंह शेखवां को भी पार्टी में शामिल किया था. हालांकि, अक्टूबर में उनका निधन हो गया और अब उनके बेटे जगरूप सिंह कादियान से पार्टी प्रत्याशी हैं, जहां उनका मुकाबला प्रताप बाजवा से होगा.


यह भी पढ़ें: EVM से जुड़ी जन-प्रतिनिधित्व कानून की धारा 61-A की संवैधानिकता को SC में चुनौती के क्या हैं मायने


माझा करता है एकतरफा मतदान

पंजाब की चुनावी राजनीति में माझा की महत्वपूर्ण स्थिति का एक प्रमुख कारण यह भी है कि अक्सर यह क्षेत्र एकदम एकतरफा मतदान करता है और नतीजा यह होता है कि माझा में अच्छा प्रदर्शन करने वाली पार्टी ही सत्ता में पहुंचती है.

माझा में अमृतसर स्थित सिखों का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल स्वर्ण मंदिर और उनका सर्वोच्च तख्त यानी अकाल तख्त तो है ही, इसके अलावा यह क्षेत्र सिख पंथिक राजनीति का केंद्र भी है. राज्य में करीब दो दशक तक छाई रही आतंकवाद की काली छाया के दौरान इसके जिले ही सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए थे.

इस क्षेत्र में ड्रग्स एक बड़ी समस्या है, जिसका मुख्य कारण पाकिस्तान से लगी सीमा है, जहां से पंजाब में ड्रग्स और अब हथियारों की भी तस्करी की जाती है.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिद्धू और उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर रंधावा अपने चुनाव अभियान को पंथिक मुद्दों के साथ-साथ ड्रग्स पर भी केंद्रित कर रहे हैं. दोनों ही 2015 के बेअदबी मामलों में सिखों के साथ न्याय सुनिश्चित करने में नाकाम रहने और ड्रग्स मामले में मजीठिया पर कोई कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाते पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पर निशाना साध रहे हैं.

माझा क्षेत्र के गुरदासपुर, पठानकोट और अमृतसर शहरों के कुछ हिस्सों में हिंदू आबादी का भी खासा दबदबा है. वहीं, सिख आबादी बड़े पैमाने पर तरनतारन, अमृतसर और गुरदासपुर के ग्रामीण इलाकों में बसी है. लेकिन धार्मिक और शहरी-ग्रामीण विभाजनों के बावजूद माझा अमूमन एकतरफा मतदान ही करता है.

उदाहरण के तौर पर कांग्रेस ने 1992 में माझा की अधिकांश सीटें जीतीं और सरकार बनाने में सफल रही. 1997 में एसएडी-भाजपा गठबंधन के साथ ही ऐसा ही हुआ और उसने इस क्षेत्र में कांग्रेस को पछाड़ दिया. 2002 में कांग्रेस ने माझा की तत्कालीन 27 सीटों में से 17 पर जीत हासिल की, लेकिन 2007 में उसके पास सिर्फ तीन सीटें ही रह गईं और बाकी 24 सीटें अकाली-भाजपा गठबंधन ने जीतीं.

2012 के चुनावों से पहले माझा में कुल सीटों की संख्या घटाकर 25 कर दी गई थी और एसएडी-भाजपा गठबंधन ने इनमें से 16 पर कब्जा कर लिया और 2017 तक राज्य में सत्ता में रहा और 2017 में कांग्रेस ने माझा की 22 सीटों पर जीत हासिल की. इसके साथ ही सत्ता की चाबी फिर इस पार्टी के हाथ में आ गई.


यह भी पढ़ें: ‘हमेशा कांग्रेस वर्कर बना रहूंगा’: बेटे से विवाद के चलते पूर्व CM राणे गोवा में चुनाव मैदान से हटे


मंत्रियों का व्यापक प्रतिनिधित्व

यह क्षेत्र पंजाब के कुछ सबसे प्रमुख राजनेताओं का घरेलू मैदान है और यही वजह है कि सरकार में शामिल मंत्रियों के रूप में इस क्षेत्र को खासा प्रतिनिधित्व भी मिलता रहा है.

1997 में जब एसएडी-भाजपा गठबंधन में 25 विधायक माझा से थे तो 11 को मंत्री बनाया गया था. 2002 से 2007 के बीच बतौर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के पहले कार्यकाल में माझा से कांग्रेस के 17 विधायक जीते, जिनमें से आठ को मंत्री बनाया गया.

2007-2012 के बीच एसएडी-भाजपा सरकार के कार्यकाल में माझा से 24 विधायक थे, जिसमें सात को मंत्री बनाया गया था. अगले कार्यकाल में जब इस क्षेत्र से एसएडी-भाजपा के 16 विधायक थे, तो चार को मंत्री पद दिया गया था.

मौजूदा कांग्रेस सरकार के 18 मंत्रियों में से— पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में और अब चरणजीत सिंह चन्नी के नेतृत्व में— आधा दर्जन माझा से ही हैं.

हालांकि, माझा कई मंत्रियों का गृह क्षेत्र रहा है और यहां का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं महत्वपूर्ण विभाग भी संभाले, लेकिन आजादी के बाद से ही माझा ने केवल एक मुख्यमंत्री ही दिया है, जो कि प्रताप सिंह कैरों (1956-64) थे. वह तरनतारन के कैरों गांव के रहने वाले थे. पंजाब में मुख्यमंत्री बनने वाले ज्यादातर नेता मालवा क्षेत्र के रहे हैं.

पिछले साल सितंबर में जब इस बात के संकेत मिल रहे थे कि तत्कालीन कैबिनेट मंत्री रंधावा— गुरदासपुर में डेरा बाबा नानक से विधायक— कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो प्रेस को दिया गया उनका पहला बयान था कि पंजाब में करीब 60 सालों के बाद कोई मझैल मुख्यमंत्री होगा. हालांकि, ऐसा हो नहीं पाया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: बिहार में रेल जलाने वाले और UP में पुलिस से पिटने वाले युवा क्यों कर रहे हैं विरोध प्रदर्शन


 

share & View comments